(कृष्ण)
नयी दिल्ली, 31 अगस्त (भाषा) उच्च कोलेस्ट्रॉल के उपचार में सहायक ‘स्टैटिन’ को ‘कोलोरेक्टल ट्यूमर’ (एक प्रकार का कैंसर) के विकास को धीमा करने में सक्षम पाया गया है। एक नए अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
इससे अनुसंधानकर्ता इस दवा का उपयोग दूसरे उद्देश्य (कैंसर के उपचार में सहायक दवा के रूप में) के लिए करने की संभावना पर विचार कर रहे हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि स्टैटिन के मानक कैंसर उपचार का हिस्सा बनने से पहले वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करने के लिए और अधिक नैदानिक परीक्षणों की आवश्यकता है।
दवाओं को दूसरे उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जाना (इसे दवाओं का दोबारा उपयोग भी कहते हैं), नए सिरे से दवाओं के विकास के पारंपरिक तरीके का एक विकल्प है। इससे नयी दवा की खोज की गति में तेजी आती है क्योंकि मौजूदा दवाएं और उनके लिए उपयोग किए जा रहे यौगिक पहले ही सुरक्षा परीक्षणों में खरे साबित हो चुके हैं।
दवाओं के विकास की लागत को कम करने की आवश्यकता के कारण कंप्यूटिंग शक्ति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जैव सूचना विज्ञान में प्रगति के साथ, हाल के वर्षों में इस विचार ने गति पकड़ी है जिससे मौजूदा दवाओं के नए उपयोगों की पहचान अधिक व्यवस्थित एवं शीघ्रता से करने में मदद मिली है।
कैंसर रूमेटाइड आर्थराइटिस और एचआईवी/एड्स जैसी उन कई बीमारियों में से एक है, जिनके लिए दवाओं के पुन: इस्तेमाल पर विचार किया जा रहा है। रूमेटाइड आर्थराइटिस, ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से स्वस्थ जोड़ों के ऊतकों पर हमला करती है, जिससे दर्द, सूजन और अकड़न होती है।
इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक शिव नादर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज के डीन संजीव गलांडे ने कहा, ‘‘स्टैटिन वर्ग की दवा कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए जानी जाती है और कोलेस्ट्रॉल का मेटाबोलिज्म (चयापचय) कोलोरेक्टल कैंसर से मिलता जुलता है।’’
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘स्टैटिन का इस्तेमाल कुछ कैंसरों को प्रभावी रूप से धीमा करता है, लेकिन इन दवाओं की सटीक और विशिष्ट क्रियाविधि अब तक प्रदर्शित नहीं हुई है।’’
गलांडे की टीम में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), पुणे के शोधकर्ता शामिल थे। उन्होंने कोशिका संवर्धन और चूहों पर प्रयोगों के माध्यम से प्रदर्शित किया कि कैसे स्टैटिन आणविक स्तर पर कैंसर के विकास को रोक सकते हैं और उपचार में सहायक हो सकते हैं।
ये निष्कर्ष ‘ऑन्कोटारगेट’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन में कहा गया है, ‘‘हमारे निष्कर्ष दृढ़ता से यही सुझाव देते हैं कि संवर्धित (कोलोरेक्टल कैंसर) कोशिकाओं और चूहों दोनों में स्टैटिन कोलोरेक्टल ट्यूमर की वृद्धि को प्रभावी ढंग से कम करते हैं।’’
गलांडे ने बताया कि जीन की गतिविधि में हुए बदलाव ने कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोका, यह असर उन प्रयोगशाला मॉडलों में देखा गया जो ट्यूमर से बहुत मिलते-जुलते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि स्टैटिन ‘कोलोरेक्टल कैंसर’ के लिए एक संभावित उपचार के रूप में आशा की किरण है।’’
भाषा सुरभि नेत्रपाल संतोष
संतोष
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