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Sunday, 28 April, 2024
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चित्रकूट के डकैतों से लेकर नोएडा में महिलाओं की सुरक्षा तक, UP की पहली पुलिस कमिश्नर ने क्या कहा

2000 बैच की आईपीएस अधिकारी रहीं लक्ष्मी सिंह ने पिछले सप्ताह नोएडा के नए पुलिस आयुक्त के रूप में अपना कार्यभार ग्रहण किया. दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में उन्होंने यहां की पुलिस व्यवस्था में सुधार लाने की अपनी योजनाओं के बारे में बातें कीं.

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नोएडा: गुरुवार सुबह ठीक 10.30 बजे नोएडा पुलिस की नवनियुक्त कमिश्नर (आयुक्त) लक्ष्मी सिंह अपने दफ्तर आईं. उनके पूरे व्यवहार से सिर्फ काम करने का भाव टपक रहा था- यह एक व्यस्त सुबह थी और सिंह किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थीं.

उन्होंने तुरंत सात वरिष्ठ पुलिस कर्मियों, जिनमें सहायक आयुक्त रैंक के कर्मी भी शामिल थे, को उन्हें सारी जानकारी देने के लिए अपने पास बुलाया. मामले के विस्तृत विवरण पर चर्चा किये जाने के दौरान वह कुछ नोट्स बनाती है और फोन कॉल तथा मोबाइल संदेशों का आदान प्रदान करती हैं. कभी-कभी वह तनावग्रस्त जरूर दिखाई देती हैं लेकिन बीच-बीच में बिखरती उनकी मुस्कान कमरे के माहौल को बहुत अधिक गर्म होने से बचा लेती है.

पिछले हफ्ते ही 2000 बैच की आईपीएस अधिकारी सिंह ने नोएडा के पुलिस आयुक्त (कमिश्नर ऑफ पुलिस-सीपी) का कार्यभार संभाला है. इसके साथ ही वे उत्तर प्रदेश में किसी कमिश्नरी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बन गईं हैं. 48 वर्षीय यह अधिकारी इससे पहले लखनऊ रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) के रूप में कार्यरत थीं.

वैसे नोएडा में शीर्ष सरकारी पद पर नियुक्त होने वाली सिंह अकेली महिला नहीं हैं. साल 2019 में आईएएस अधिकारी रितु माहेश्वरी को नोएडा प्राधिकरण का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नियुक्त किया गया था. इसी साल अक्टूबर में माहेश्वरी को ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का सीईओ भी बना दिया गया था.

और नोएडा, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का एक हिस्सा है, की तरह ही एनसीआर में आने वाले दिल्ली के एक और सैटलाइट टाउन (उप-शहर) गुरुग्राम में भी इन दिनों एक महिला पुलिस आयुक्त, कला रामचंद्रन कार्यभार संभाल रहीं हैं.

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सिंह ने एक विशेष साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया, ‘एक सामान्य रूप से पितृसत्तात्मक समाज के लिए किसी ‘लेडी बॉस’ को स्वीकार करना बहुत कठिन होता है, विशेष रूप से तब जब वह पुरुष-प्रधान पेशे में हो. जब मैं पुलिस सेवा में शामिल हुई थी तो इस क्षेत्र में बहुत अधिक महिलाएं काम नहीं कर रही थीं और (अक्सर) मैं अपने पुरुष समकक्षों के बीच अकेली महिला अधिकारी होती थी. सहकर्मियों द्वारा स्वीकार किया जाना एक बहुत ही मुश्किल काम था.’

उन्होंने कहा, ‘समय के साथ महिला अधिकारियों द्वारा किये गए योगदान के कारण उनकी स्वीकृति बढ़ी है. हमने साबित कर दिया है कि हम पुरुषों के बराबर हैं और अपने पुरुष समकक्षों के जितना ही बेहतर नतीजे दे सकते हैं.’

सिंह की नियुक्ति एक ऐसे समय में हुई है जब नवीनतम ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ में उल्लिखित आंकड़ों के अनुसार अभी भी भारत के पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम- केवल 10.5 प्रतिशत है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (पुलिस बल में) महिलाओं के लिए आरक्षण के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है. पुलिस बल में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रतिशत विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है.

सिंह के लिए यह सफर उतना आसान भी नहीं रहा है. यूपी के डकैतों से प्रभावित चित्रकूट जिले में ग्रामीणों का विश्वास हासिल करने से लेकर अपने पुरुष जूनियर्स द्वारा ‘बॉस’ के रूप में स्वीकार किए जाने तक, नोएडा की नवनियुक्त सीपी ने उन कई चुनौतियों को याद किया, जिनका वह आज जिस स्थिति में हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने सामना किया है.

उनका सारा ध्यान अब नोएडा में ‘प्रीडिक्टिव पुलिसिंग’ (भविष्य में होने वाले अपराधों के पूर्वानुमान पर आधारित पुलिस व्यवस्था) की एक प्रणाली स्थापित करने पर है, ताकि महिलाओं की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

सिंह ने कहा, ‘मेरी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक यह है कि नोएडा में काम करने के लिए आने वाली महिलाओं को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए और उन्हें रात में भी स्वतंत्र रूप से कहीं भी आने-जाने के प्रति आश्वस्त किया जाना चाहिए. मैं कमिश्नरेट सिस्टम को विकसित करने की कोशिश कर रहीं हूं. अभी तक जब कोई घटना होती थी, तब हम कैमरे (सीसीटीवी फुटेज) देखते थे और अपराध को सुलझाते थे. लेकिन अब, मेरा ध्यान उन्हीं संसाधनों का उपयोग करना, उन्हें और बढ़ाना तथा एकीकृत करना है ताकि अपराधों की भविष्यवाणी की जा सके और उन्हें रोका जा सके.’

उन्होंने आहे कहा, ‘मैं चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर (फेस रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर) को स्थापित करने जा रही हूं और एकीकृत नियंत्रण कक्ष की जगह बड़ी कर रही हूं. हमारे सर्वर में आपराधिक डेटा को पुलिसिंग के साथ एकीकृत किया जाएगा, इसलिए यदि कोई पंजीकृत अपराधी शहर में प्रवेश करता है तो एक खतरे का संकेत (रेड फ्लैग) जारी होगा जिसके बाद पुलिस यह देखेगी कि वह क्या करने के फिराक में है. मैं पूरे शहर की क्राइम मैपिंग करवाउंगी और असुरक्षित जगहों का पता लगवाऊंगीं.’

नोएडा में मादक पदार्थों की तस्करी की घटनाओं के बारे में बात करते हुए सिंह ने कहा कि हालांकि छिटपुट बरामदगियां हुईं हैं, उन्हें पूरे सिंडिकेट को धवस्त करने के तरीके से एकीकृत नहीं किया जा सका है.

सिंह ने दिप्रिंट से बात करते हुए जिस दूसरी चिंता का जिक्र किया, वह थी नोएडा की सड़कों पर ट्रैफिक (यातायात) का बढ़ा हुआ बोझ.

उन्होंने कहा, ‘एक शहर में, विशेष रूप से एक महानगरीय शहर में. आपके पास जिस तरह का ट्रैफिक होता है, वह उस क्षेत्र की पुलिसिंग को दर्शाता है. किसी भी पुलिस बल के बारे में आम धारणा सबसे पहले उस बेल्ट (इलाके) में यातायात की स्थिति से प्रभावित होती है.’

नोएडा की इन शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हमें आगे चलकर तैयार होने वाले जेवर हवाई अड्डे के इलाके में यातायात प्रबंधन और पुलिसिंग दोनों के लिए योजना बनानी होगी. मौजूदा संसाधनों का एकीकृत तरीके से उपयोग नहीं किया जा रहा है. एक नियंत्रण कक्ष है, लेकिन इसमें तकनीकी खुफिया जानकारी से लैस अधिकारी उपलब्ध नहीं हैं. हमें एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जो (सघन) यातायात की स्थिति में नियंत्रण कक्ष की तरफ से सीधे हस्तक्षेप करे. इसे कैमरों से देखते रहना कोई समाधान नहीं है.’


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‘महिलाओं को उपदेश न दें’

नोएडा में महिला सुरक्षा संबंधी अपनी योजनाओं के बारे में विस्तार से बताते हुए सिंह ने कहा कि सिर्फ पुलिसिंग ही महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से नहीं निपट सकती.

सिंह कहतीं हैं, ‘यह दुखद बात है कि आज के परिदृश्य में भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों की स्वीकार्यता हमारे समाज की एक अंतर्निहित परिघटना बन गई है. इसे बहुत लापरवाही के साथ लिया जाता है और आरोपी को समाज द्वारा बहुत आसानी से स्वीकार कर लिया जाता है. इसलिए आपको ऐसी (सहज) स्वीकृति के खिलाफ एक सामाजिक अभियान खड़ा करना होगा और इसीलिए योगी सरकार ने ‘मिशन शक्ति‘ की शुरुआत की है.’

सिंह के अनुसार, ‘पीड़ितों और उनके आघात (ट्रामा) के प्रति संवेदनशीलता’ को अभी तक भारतीय पुलिस के कामकाज के तहत संस्थागत नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘मैं कार्यशालाओं और संवेदीकरण अभियान तैयार करने के लिए काम कर रहीं हूं. जब भी हम लैंगिक संवेदनशीलता की बात करते हैं तो पुलिस बल की सभी महिलाओं को कार्यक्रमों के लिए भेज दिया जाता है. मेरे विचार इसके एकदम उलट हैं- हम (महिलाएं) अपने जन्म के समय से ही संवेदनशील होती हैं, इसलिए कृपया हमें कुछ भी उपदेश न दें. यह पुलिस बल के हमारे पुरुष समकक्ष हैं जिन्हें संवेदीकरण की आवश्यकता है और पहली बात यह है कि हमें पीड़ित के आघात के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. हमारे लिए, हर घटना बस एक घटना ही होती है लेकिन मामले को संभालने के दौरान, दूसरी बार पीड़ित बनाये जाने का काम नहीं हो सकता.’


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‘उन्होंने हमें पानी दिया है, हम उन्हें डकैत सौंपेंगे’

एक बीटेक स्नातक रहीं सिंह ने उस संस्मरण को याद किया कि कैसे जब वह कक्षा 2 की छात्रा थीं तभी एक पुलिस अधीक्षक (एसपी) से मिलने के बाद पुलिस बल में शामिल होने के लिए प्रेरित हो गईं थीं.

हालांकि, जब वह पुलिस बल में शामिल हुईं, तो उन्होंने पाया कि एक महिला अधिकारी के रूप में इस बल में स्वीकार किया जाना अपने आप में एक इम्तेहान जैसा है. उन्होंने कहा, ‘जब एक महिला अधिकारी ‘बॉस’ बन जाती है तो सारा समीकरण फिर से बदल जाता है.’

सिंह ने कहा, ‘जनता का समर्थन हासिल करना आसान है, लेकिन पुलिस बल की तरफ से इसे हासिल करने के लिए, आपको यह साबित करना होगा कि आप सिर्फ एक महिला अधिकारी नहीं हैं, बल्कि उनकी ‘बॉस’ भी हैं. जब तक एक महिला को ‘बॉस’ के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है, तब तक टीम उसके साथ नहीं खड़ी होगी. उसे सबसे आगे रहना होगा, अपनी इकाई (यूनिट) का नेतृत्व करना होगा और उनमें यह विश्वास पैदा करना होगा कि वह उनके साथ ही सभी तरह के ईंट-पत्थर का सामना करेगी.’

हालांकि उनका अपना कार्यकाल लगातार चुनौतियों से भरा रहा है, मगर नोएडा के सीपी ने कहा कि कुछ अनुभव उनके साथ बने रहे हैं.

ऐसा ही एक अनुभव चित्रकूट जिले में हुआ था, जहां वह 2004 और 2005 के बीच तैनात थीं.

सिंह ने याद करते हुए कहा, ‘मैं एक युवा एसपी थी और उस समय यूपी संगठित डकैत गिरोहों की तपिश का सामना कर रहा था, जो लोगों और प्रशासन दोनों को आतंकित कर रहा था. मैंने विभाग के बाहर से खुफिया जानकारी एकत्रित करने के लिए ‘मित्र पुलिस’ नाम की एक योजना शुरू की थी. हालांकि, लोग (डकैतों द्वारा) इतने आतंकित किये गए थे कि सड़कों पर किसी पुलिसकर्मी को देखते ही भाग खड़े होते थे. कोई भी पुलिस से बात करते हुए नहीं दिखना चाहता था.’

उन्होंने कहा, ‘जिले का एक गांव चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जब मैं वहां पहुंची तो मुझे पता चला कि मैं वहां प्रवेश करने वाली पहली अधिकारी थी क्योंकि यह बहुत दुर्गम इलाका था. गांव में पीने का पानी तक नहीं था और उन्हें डकैतों या पुलिस की कोई परवाह नहीं थी. ग्रामीणों को पानी लेने के लिए 20-25 किमी पैदल जाना पड़ता था. मैंने जिला प्रशासन से संपर्क किया लेकिन उनका तकनीकी ज्ञान इतना मजबूत नहीं था और उन्हें पता ही नहीं था कि पानी के लिए ड्रिल (खुदाई) कैसे करें (चूंकि यह इलाका पथरीला था और यह एक मुश्किल काम था).’

इसके बाद नोएडा के सीपी ने याद किया कि कैसे वह उस गांव में पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एक एनजीओ के संपर्क में आईं.

सिंह कहतीं हैं, ‘जिस दिन (उनके लिए) पीने का पानी उपलब्ध कराया गया था, उस दिन मुझे भी आमंत्रित किया गया था और उन्होंने मुझे दूध से बनी मिठाई और उस कुएं के पानी की पेशकश की थी. उन्होंने मुझे गले लगाया और मुझे अपनी बेटी बना लिया. अब भी, हर दिवाली, वे ग्रामीण मुझे मिठाई का एक छोटा सा कटोरा भेजने का ध्यान रखते हैं क्योंकि उनका मानना है कि डकैतों को पकड़ना एक बात थी और उनकी मुसीबतों में दिलचस्पी लेना एकदम दूसरी बात थी.‘

नोएडा के शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि ग्रामीणों के साथ उनके संबंधों में बदलाव आने के साथ ही चित्रकूट की पुलिसिंग में भी काफी सुधार हुआ और डकैतों का पता लगाना आसान हो गया क्योंकि ग्रामीण पुलिस की मदद के लिए आगे आने लगे.

सिंह कहती हैं, ‘उनका कहना था कि उन्होंने हमें पानी दिया है, हमें उन्हें यह डकैत (पकड़वा कर) सौपना होगा.’

(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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