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Wednesday, 20 November, 2024
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छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों ने ‘बाघ का मांस खाया’, पुलिस और वन विभाग कर रही है जांच

दंतेवाड़ा-जगदलपुर क्षेत्र में यह घटना सामने तब आई जब बाघ के कुछ अवशेषों को बेचने के सिलसिले में सात पुलिसकर्मियों सहित 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में पिछले साल के आखिर में एक बाघ को मारे जाने की घटना ने नया मोड़ ले लिया है, जिसमें पुलिस अधिकारियों को संदेह है कि न केवल इस जानवर की खाल और शरीर के अन्य अंग अवैध तरीके से बेचे गए बल्कि हो सकता है कि ग्रामीणों ने इसका कुछ मांस भी खाया हो.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि अगर इसकी पुष्टि की जाती है तो यह छत्तीसगढ़ में बाघ का मांस खाए जाने की पहली घटना हो सकती है.

इस मामले में पुलिस के दो सहायक उप-निरीक्षक, पांच कांस्टेबल, तीन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और एक स्कूल के हेडमास्टर उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें 12 मार्च को पुलिस और वन विभाग की एक संयुक्त ‘डिकॉय’ ऑपरेशन के बाद बाघ के अवैध कारोबार में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में बाघ के मांस के कब्जे या खपत पर किसी भी प्रावधान का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है. धारा 51 में अधिनियम की अनुसूची I के तहत श्रेणीबद्ध किए गए जानवरों का शिकार करने या मारने के खिलाफ दंड प्रावधानों का जिक्र है. एक आरोपी को न्यूनतम तीन साल और अधिकतम सात साल की जेल हो सकती है, साथ ही 10,000 रुपये का जुर्माना भी हो सकता है. बाघ, शेर, तेंदुआ और हाथी जैसे जानवर अधिनियम की अनुसूची I का हिस्सा हैं.


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‘बुजुर्गों ने बाघ का मांस खाया’

नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पूछताछ करने पर दो स्थानीय लोगों ने गलती से बाघ को मार देने की बात स्वीकार की है. पारापुर गांव में रहने वाले 31 साल के बुधरू कुंजम और 27 वर्षीय भीमा इलमी ने अगस्त 2020 में बचेली वन रेंज में जंगली सूअरों को मारने के लिए एक जाल बिछाया था. लेकिन, दिसंबर में इंद्रावती टाइगर रिजर्व का एक बाघ उसमें फंस गया. जब ग्रामीणों ने बिग कैट को उसमें फंसा देखा तो घर लौट गए और दो-तीन दिन बाद आकर देखा कि वह मर चुका है.

अधिकारी ने कहा कि जानवर की खाल उतारी गई और उसकी खाल और शरीर के अन्य हिस्से स्थानीय ग्रामीणों ने अपने पास रख लिए, साथ ही कहा कि पारापुर गांव के कुछ बुजुर्गों ने तीन साल के इस बाघ के मांस को भी खाया था. इस बात की पुष्टि करने के लिए पुलिस मामले की जांच कर रही है.

अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा माना जा रहा है कि ग्रामीणों ने बाघ का मांस खाया, जैसे वे कोई भी अन्य दावत करते हैं और उन्हें नहीं पता कि बाघ की हत्या का क्या असर होगा. वे बाघ को मार देने के मामले की गंभीरता से अनजान थे. बाघ का मांस संभवत: कुछ बुजुर्गों ने पकाया और खाया था लेकिन हम उनके बयानों की पुष्टि के लिए आगे की जांच कर रहे हैं.’

बस्तर रेंज के एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘ग्रामीणों ने शायद बाघ का मांस खाया था.’

छत्तीसगढ़ के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ), वन्यजीव, मोहम्मद शाहिद ने कहा कि बुधरू और भीमा के घरों से बाघ के मांस के टुकड़े बरामद किए गए हैं लेकिन मांस खाए जाने की पुष्टि नहीं हो पाई है.

पड़ोसी जिले जगदलपुर में पुलिस अधीक्षक दीपक झा, जहां इस मामले से जुड़ी गिरफ्तारी हुई है, ने बाघ का मांस खाए जाने की घटना के बाबत पूछे जाने पर दिप्रिंट से कहा, ‘हमें इस संबंध में कुछ इनपुट मिले हैं और जांच की जा रही है कि ग्रामीणों ने बाघ का मांस खाया था या नहीं.’

रायपुर स्थित पोषण विशेषज्ञ और जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर ओंकार खंडवा ने दिप्रिंट को बताया कि बाघ का मांस खाया जाना निश्चित तौर पर एक असामान्य घटना होगी लेकिन ये अन्य मांस का इस्तेमाल किए जाने से बहुत अलग नहीं होगा.

खंडवा ने कहा, ‘बाघ का मांस खाने की बात कभी सुनी नहीं गई होगी लेकिन अच्छी तरह से पकाकर खाए जाने पर इसका कोई हानिकारक असर नहीं होगा. यह किसी भी अन्य मांस से अलग नहीं है जिन्हें हम सभी खाते हैं. इसका असर अन्य मांस जैसे पोर्क, बकरी या चिकन के समान ही होगा.’


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‘जाल बिछाकर’ चलाया अभियान

पुलिस ने अब तक मुख्य आरोपी बुधरू और भीमा इलमी के अलावा बीजापुर जिले की पुलिस लाइन में तैनात दो एएसआई, संतोष बघेल और रमेश अग्नपल्ली सहित 12 अन्य को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार किए गए अन्य लोगों में पांच पुलिस कांस्टेबल, तीन स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी, बस्तर के एक स्कूल हेडमास्टर रामेश्वर सोनवानी और एक अन्य व्यक्ति शामिल है, जिसने ग्रामीणों और सोनवानी के बीच संपर्क सूत्र की तरह काम किया.

सीसीएफ शाहिद ने खुद वन विभाग और पुलिस के संयुक्त अभियान का नेतृत्व करते हुए 12 मार्च को पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को गिरफ्तार किया, जो जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में पूजा और तांत्रिक अनुष्ठान करने जा रहे थे. अन्य सभी की गिरफ्तारी अगले दिन तक कर ली गई थी.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए संपर्क सूत्र, जिसका नाम नहीं बताया गया है, ने हेडमास्टर सोनवानी को बताया था कि बुधरू और भीमा के पास बाघ की खाल है. इसके बाद सोनवानी ने गिरफ्तार किए गए कांस्टेबल में से एक को यह जानकारी दी, जिसने एएसआई बघेल और अग्नपल्ली को यह बात बताई. इन दोनों एएसआई ने बाद में बुधरू और भीमा को 50,000 रुपये दिए और खाल को आगे बेचने की योजना बनाई.

इन लोगों की गिरफ्तारी की कार्रवाई वन विभाग के एक मुखबिर से मिली सूचना के बाद शुरू की गई. बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी. और सीसीएफ (वन्यजीव) शाहिद ने अपराधियों को पकड़ने के लिए एक संयुक्त टीम गठित की, जिसने ‘जाल बिछाकर’ काम किया और एएसआई और एक कांस्टेबल से संपर्क करके कहा कि उन्हें एक बाबा (तांत्रिक) के बारे में पता है जो समृद्धि के लिए बाघ की खाल से पूजा करते हैं.

टीम उन लोगों को अपने जाल में फंसाकर 12 मार्च की सुबह दंतेश्वरी मंदिर में पूजा के लिए आने को तैयार करने में सफल रही, जहां से उनकी गिरफ्तारी हुई.

जगदलपुर के एसपी झा ने बताया, ‘गिरफ्तार किए गए पुलिस एएसआई और कांस्टेबल का रिकॉर्ड पहले भी दागी रहा है. वे इसी तरह के कार्यों में लिप्त थे और उन्हें चेतावनी भी दी गई थी.’

आईजी सुंदरराज ने कहा, ‘बाघ की खाल को बेचने के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था. वे अपने अंधविश्वासों के कारण समृद्धि हासिल करने के लिए इसकी पूजा करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन इस सबमें पुलिसकर्मियों का शामिल होना दुखद है. सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. इसमें शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम और कानून के अन्य प्रावधानों के तहत गंभीर कार्रवाई की जाएगी ताकि दूसरों को इससे सबक मिले.’


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