नई दिल्ली: जून 2019 में, बिहार में सीआरपीएफ कर्मी एक ऐसी ट्रेनिंग से गुज़र रहे थे, जिसका उद्देश्य उन्हें उस समय साफ नहीं था. उस वर्कशॉप में लिंग संवेदीकरण का संदेश देने की कोशिश की जा रही थी, और वो मानसिक कल्याण की एक बड़ी पहल का हिस्सा थी, जिसका मक़सद सीआरपीएफ में व्याप्त, तनाव के स्तर को कम करना था.
वर्कशॉप के पीछे विचार ये था कि लिंग संबंधी रूढ़ियों से आगे देखने में, कार्मिकों की सहायता की जाए और सहकर्मियों व अपने परिवार के साथ, उनकी बातचीत को सार्थक बनाया जाए, ख़ासकर पत्नी के साथ, ताकि उन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों का बोझ अकेले अपने कंधों पर महसूस न हो.
वो वर्कशॉप सीआरपीएफ महानिरीक्षक चारु सिन्हा के दिमाग़ की उपज थी, 24 साल के अनुभव की आईपीएस, जो न सिर्फ जेंडर बाधओं, बल्कि उनके अंदर निहित रूढ़ियों को भी, तोड़ने में विश्वास रखती हैं.
मंगलवार को, सिन्हा पहली महिला अधिकारी बनीं, जिन्हें श्रीनगर सेक्टर के लिए सीआरपीएफ महानिरीक्षक (आईजी) नियुक्त किया गया है, जिसे स्थानीय आतंकवाद की वजह से एक संवेदनशील तैनाती माना जाता है और जो उनके लिए एक और उपलब्धि है. ये पद पहली बार 2005 में बनाया गया था.
इस भूमिका में आने से पहले, वो जम्मू सेक्टर में बतौर आईजी सेवाएं दे रहीं थीं, और उससे पहले बिहार में थीं, जहां वो नक्सल-विरोधी अभियानों में शामिल रही थीं.
एक पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपनी जगह बनाने का सफर, सिन्हा के लिए आसान नहीं था, जिन्होंने अपने संघर्षों के बारे में, 2017 में डेकेन क्रॉनिकल को दिए एक इंटरव्यू में बात की थी.
उनका ये कहते हुए हवाला दिया गया, ‘जब मैं फोर्स में शामिल हुई तो एक पुरुष प्रधान क्षेत्र में, ये एक मुश्किल काम था. मीडिया हमेशा ये जानने की फिराक़ में रहता था कि मैं कहां जाती हूं, किससे मिलती हूं. जैसे मेरी कोई निजी लाइफ ही न हो’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदल गईं’.
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लॉ एंड ऑर्डर के आगे
क़ानून व्यवस्था से आगे तेलंगाना काडर की आईपीएस ऑफिसर सिन्हा, 1996 में सेवा में आईं थीं. सीआरपीएफ द्वारा उपलब्ध कराए गए उनके बॉयोडेटा के अनुसार, वो हैदराबाद के सेंट फ्रांसिस महिला कॉलेज से, अंग्रेज़ी साहित्य, इतिहास और राजनीति शास्त्र में स्नातक हैं, और उन्होंने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद) से, राजनीति शास्त्र में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया है.
1989 में, उनके पिता के एक मित्र द्वारा दिए गए एक तोहफे- परमहंस योगानंद की लिखी दि ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी- ने उनके अंदर एक आध्यात्मिक खोज जगा दी, जैसा कि सिन्हा ने रेडियो साई को बताया, जो स्वर्गीय गुरू सत्या साई बाबा का आधिकारिक पोर्टल है.
अपने अधिकांश करियर में, उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (जो 2014 में आंध्र से निकला) में सेवाएं दीं, जहां उन्होंने नक्सलवाद और सांप्रदायिकता के अलावा, गुटीय झगड़ों की चुनौतियों का भी सामना किया.
उन्होंने प्रकाशम, निज़ामाबाद व चित्तूर से महबूबनगर और ईस्ट गोदावरी तक, कई ज़िलों में बतौर पुलिस अधीक्षक (एसपी) काम किया.
सिन्हा के लिए उनके करियर के अच्छे कार्यों में, चित्तूर में बतौर पुलिस अधीक्षक (एसपी) उनका कार्यकाल शामिल है, जहां उन्होंने एचआईवी पीड़ित महिलाओं और बच्चों के संपत्ति अधिकार बहाल कराए, जिन्हें उनके घरों से बाहर कर दिया गया था.
2005 से 2006 के बीच वो कोसोवो में थीं- जो आंशिक मान्यता प्राप्त यूरोपियन देश है- जहां वो संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत, एथनिक अल्बानियंस और एथनिक सर्ब्स के आपसी संघर्ष के बीच तैनात थीं, जिसका अंत कोसोवो की आज़ादी की घोषणा के साथ हुआ.
2010 से 2013 के बीच, उन्होंने अनंतपुर रेंज में पुलिस उप महानिरीक्षक के तौर पर सेवाएं दीं, जिसके बाद एक साल तक, वो आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग की सचिव और महानिरीक्षक सीआईडी रहीं.
2015 से 2017 के बीच, वो तेलंगाना के एंटी-करप्शन ब्यूरो की निदेशक रहीं, जिसके बाद उन्हें तेलंगाना में ही, आईजी ट्रेनिंग नियुक्त कर दिया गया. इस भूमिका में उन्होंने 28 पुलिस ट्रेनिंग अकादमियों में, 12,000 सिपाहियों को प्रशिक्षित किया.
2018 में उन्हें डेपुटेशन पर, सीआरपीएफ में बतौर आईजी भेज दिया गया.
‘ईमानदार, देखभाल करने वाली’
सिन्हा के सहकर्मी उन्हें एक समर्पित और ईमानदार अफसर बताते हैं, जिनके अंदर ‘फोर्स के कार्मिकों के कल्याण के लिए काम करने का ज़बर्दस्त जज़्बा है’.
एक सीआरपीएफ अधिकारी ने बताया कि अपने बिहार कार्यकाल के दौरान, सिन्हा ने कार्मिकों के कल्याण के लिए कई पहलक़दमियां कीं. ऑफिसर ने आगे कहा कि सीआरपीएफ अपेक्षा करती है कि वो कश्मीर में भी इसी तरह के कल्याणकारी क़दम उठाएंगी.
एक सीनियर सीआरपीएफ अधिकारी के अनुसार, सिन्हा ने जम्मू के अपने कार्यकाल में भी प्रतिष्ठा हासिल की, जहां उन्होंने ‘क़ानून व्यवस्था के हालात और इंसर्जेंसी को बड़े प्रभावी ढंग से हैंडल किया’.
एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘उन्होंने श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर नागरोटा इलाक़े में, जनवरी में हुई मुठभेड़ में बहुत अहम भूमिका अदा की, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकवादी ढेर कर दिए गए, और तीन स्थानीय नागरिक गिरफ्तार हुए. अधिकारी ने आगे कहा, ‘वो तीन आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में घुस आए थे, और घाटी में फिदायीन हमलों की योजना बना रहे थे. आफ़िसर (चारु) ने उन फिदायीन हमलावरों को रोकने और बाद में उनसे हुई मुठभेड़ में एक अहम रोल अदा किया’.
एक और सीनियर सीआरपीएफ अधिकारी ने कहा कि श्रीनगर में पहली महिला आईजी के तौर पर सिन्हा की नियुक्ति, इस बात को दिखाती है कि ‘महिला अधिकारी देश के सामने पेश, क़ानून व्यवस्था की बड़ी चुनौतियों से निपटने में, एक अग्रणी भूमिका निभा रही हैं’.
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