नई दिल्ली: दो भाइयों रिजवान और इमरान अली के लिए उनके पिता का टेस्ट में कोविड-19 पॉजिटिव पाया जाना और दिल्ली के एक अस्पताल में उन्हें भर्ती कराना अन्य वजहों से भी बुरी खबर रहा. साकेत के निजी अस्पताल मैक्स में एक दिन बिताने के बाद ही उन्हें अपने 57 वर्षीय पिता रमजान अली के इलाज के लिए करीब 2 लाख रुपये का इंतजाम करना था.
द्वारका निवासी रिजवान अली ने 28 जुलाई को बताया, ‘केवल एक दिन रखने के बाद ही अस्पताल ने मुझे 1.73 लाख रुपये का अनुमानित बिल बता दिया. हम इतने पैसों का भुगदान कैसे करेंगे? भर्ती कराते समय ही हमने 50,000 रुपये का भुगतान किया था.’ उनके पिता को 27 जुलाई को भर्ती कराया गया था.
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने निजी अस्पतालों के लिए दिल्ली सरकार की निर्धारित दरों का फायदा क्यों नहीं उठाया, रिजवान ने कहा, ‘हमें नहीं पता था कि दिल्ली सरकार ने दरें सीमित कर रखी हैं. अस्पताल ने इसका उल्लेख भी नहीं किया. उन्होंने बस इतना कहा कि एक रात के लिए 50,000 रुपये 60,000 तक का शुल्क लगता है.’
अली परिवार अकेला नहीं है जिन्हें यह पता नहीं था कि अस्पताल उनसे मनमाने शुल्क वसूले रहे हैं, न कि अरविंद केजरीवाल सरकार की तरफ से तय की गई दरें.
दिप्रिंट ने विभिन्न अस्पतालों के जिन अन्य मरीजों ने भी बात की उनका कहना था कि अस्पतालों ने उनसे न केवल निर्धारित दरों से ज्यादा शुल्क वसूला, बल्कि उन्हें सरकारी आदेश की जानकारी भी नहीं दी. कुछ ने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा निर्धारित दरों का मुद्दा उठाने के बाद भी उनसे ज्यादा शुल्क लिया गया. ऊपर से मामला इसलिए भी जटिल हो गया है कि बीमा प्रदाता दिल्ली सरकार की निर्धारित दरों से ऊपर खर्च को कवर करने को तैयार नहीं हैं.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अन्य राज्यों के उलट, जैसे महाराष्ट्र जहां जुर्माना लगाया गया और कार्रवाई की गई, दिल्ली सरकार के पास कोई शिकायत निवारण तंत्र या ऐसी कोई सरकारी एजेंसी नहीं है जो आदेश लागू कराने और उसकी निगरानी का काम करती हो.
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क्या कहता है दिल्ली सरकार का आदेश
कोविड के इलाज पर निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के मनमाने शुल्क वसूलने की खबरों के बाद दिल्ली सरकार ने 20 जून को कुल बेड में से 60 फीसदी के लिए दरें निर्धारित करने का आदेश जारी किया था.
नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एनएबीएच) की तरफ से मान्यता प्राप्त अस्पतालों में इलाज के लिए दैनिक दरें निम्नलिखित हैं—आइसोलेशन बेड के लिए 10,000 रुपये (1,200 रुपये लागत वाली पीपीई समेत), बिना वेंटिलेटर वाला आईसीयू बेड 15,000 रुपये (2,000 रुपये की पीपीई समेत) और वेंटिलेटर समेत आईसीयू बेड के लिए 18,000 रुपये (2000 रुपये की लागत वाली पीपीई समते).
गैर-एनएबीएच मान्यता प्राप्त अस्पतालों के लिए समान श्रेणी की दरें क्रमश: 8,000 रुपये (1,200 रुपये लागत वाली पीपीई समेत), 13,000 रुपये (पीपीई के 2,000 रुपये सहित) और 15,000 (2,000 रुपये वाली पीपीई समेत) निर्धारित की गई थीं.
आदेश जारी होने के एक महीने से अधिक बीत जाने के बावजूद निजी अस्पतालों में इसके उल्लंघन के कई उदाहरण सामने आए हैं.
मनमाना शुल्क, जानकारी का अभाव
फिर मैक्स अस्पताल पर आते हैं, जहां दोनों अली भाइयों ने अस्पताल प्रशासन से बात करने की कोशिश की कि उनके पिता के इलाज का बिल सरकारी दरों के अनुसार सही किया जाए. उन्होंने यह शिकायत भी की कि अस्पताल ने मरीजों को इसके बारे में बताने के लिए कोई नोटिस या साइनबोर्ड नहीं लगाया था.
रिजवान ने सवाल उठाया, ‘हर कोई हर सरकारी आदेश के बारे में नहीं जानता. वे कोई बोर्ड लगाकर दरें के बारे में क्यों नहीं बताते ताकि आम लोगों को भी इसकी जानकारी मिल सके?’
दिप्रिंट ने 28 जुलाई को मूलचंद अस्पताल का दौरा करने पर पाया कि प्रवेश द्वार पर ही बेड की उपलब्धता और शुल्क के बारे में सूचना उपलब्ध है. लेकिन मरीजों ने दिप्रिंट को बताया कि अस्पताल ज्यादा शुल्क ले रहा है.
नितिन गुलाटी की 60 वर्षीय मां तरुण लता 20 जून से 30 जून तक वहां भर्ती रही थीं. जब उन्हें डिस्चार्ज किया गया तो बिल आया 2.59 लाख रुपये—प्रति दिन लगभग 20,000 रुपये के हिसाब से- यानी सरकार द्वारा निर्धारित दर से करीब दोगुना.
गुलाटी ने यह भी पाया कि उनकी मां को नौ दिन ऑक्सीजन देने के लिए चार्ज किया गया है, जबकि ऐसा नहीं था. इसके अलावा, अस्पताल ने उनसे पीपीई के लिए प्रति दिन 4,477 रुपये का शुल्क वसूला, जो निर्धारित दर से चार गुना अधिक है.
गुलाटी ने कहा, ‘अस्पताल ने मुझे बताया कि चूंकि मेरी मां को 20 जून (जिस दिन आदेश पारित हुआ) को भर्ती कराया गया था, वह इसके लिए पात्र नहीं थीं.’
इस मामले के बारे में पूछे जाने पर मूलचंद अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक मधु हांडा ने टिप्पणी से इनकार कर दिया और दिप्रिंट से बिलिंग विभाग से संपर्क करने को कहा. बिलिंग विभाग में प्रभारी व्यक्ति छुट्टी पर था. दिप्रिंट ने जब फिर हांडा से संपर्क साधा तो उन्होंने कहा कि मामले का ब्योरा पता नहीं है और मरीज की गोपनीयता ध्यान रखते हुए वह इस पर आगे बात नहीं कर सकती हैं.
गुलाटी की तरह ही नितिन कुमार और उनकी मां बिनी रानी ने भी दावा किया कि उन्हें ज्यादा शुल्क का भुगतान करना पड़ा. रानी को 29 जून को साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 2 जुलाई को डिस्चार्ज किया गया था.
नितिन कुमार ने बताया, ‘उन्हें भर्ती कराने के अगले दिन मुझे 10,000 रुपये के बजाये हर रात के हिसाब 27,000 रुपये अनुमानित शुल्क का संदेश मिला. डिस्चार्ज के समय भी इस मसले का कोई समाधान नहीं निकला और मुझे अपनी मां को वहां से छुट्टी दिलाने के लिए 75,000 रुपये अतिरिक्त चुकाने पड़े.’ उन्होंने यह भी बताया कि उनकी मां के साथ बतौर अटैंडेंट रहे परिजन ने उन्हें अनकैप्ड कैटेगरी में भर्ती करने के लिए सहमति नहीं दी थी.
हालांकि, मैक्स अस्पताल ने दावा किया कि रानी और उनके रिश्तेदार ने अनकैप्ड कैटेगरी के कमरे का विकल्प चुना था. दिप्रिंट को ईमेल पर भेजे जवाब में अस्पताल ने कहा, ‘उन्हें इस बारे में बताया गया था और अटैंडेंट राजी थे और भर्ती किए जाते समय ही इस पर सहमति दी थी.’
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बीमा राशि पाने में मुश्किलें
बीमा कंपनियों ने कथित तौर पर मरीजों द्वारा खर्च किए गए पूरे शुल्क को कवर करने से इनकार कर दिया है और स्पष्ट रूप से केवल सरकारी रेट कार्ड के अनुसार ही राशि जारी की है.
गुलाटी के मामले में उनके इफको टोकियो कॉर्पोरेट स्वास्थ्य बीमा की तरफ से कुल 2.59 लाख रुपये के बिल के एवज में 1.02 लाख शुल्क का भुगतान किया गया है. गुलाटी ने दावा किया कि उसकी मां को दो दिन बाद छुट्टी दी गई जब तक पूरी राशि का भुगतान नहीं किया गया था.
बातचीत के बाद इफको ने 80,000 रुपये का और भुगतान किया, लेकिन गुलाटी ने कहा कि अस्पताल के ‘गैरकानूनी और अनुचित रवैये’ के कारण उन्हें 78,348 रुपये का नुकसान हुआ.
अपना और अपनी कंपनी का नाम न देने की शर्त पर एक निजी बीमा कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘दिल्ली के निजी अस्पतालों के संबंध में हमें दिल्ली सरकार की दरों का पालन करना होगा. अतिरिक्त कवर किया जा सकता है या नहीं, इस पर संबंधित मामलों के आधार पर मूल्यांकन की जरूरत है.’
अली परिवार ने कहा कि वह रमजान के कारण बीमा प्रदाता मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस से संपर्क नहीं कर पाए हैं. हालांकि, मैक्स बूपा ने दावा किया कि कोविड मरीजों की चिंताओं को प्राथमिकता पर रखा गया है.
दिप्रिंट को ईमेल पर भेजे जवाब में मैक्स बूपा ने कहा, ‘सभी कोविड मामलों में 95 प्रतिशत से अधिक तक कैशलेस दावों को 30 मिनट के अंदर मंजूरी दी गई. हमने जरूरी जानकारियां जुटाने और दावों को तेजी से निपटाने के लिए ग्राहकों के साथ संपर्क में सक्रियता दिखाई है.’
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मरीज अधर में, कार्यकर्ताओं की सरकार पर दबाव की कोशिश
तमाम मरीजों की तरफ से ऐसी ही जानकारी दिए जाने के बीच लगभग 20 सिविल सोसाइटी ग्रुप ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल को 25 जुलाई को निजी अस्पतालों के खिलाफ एक पत्र भेजा है जो आदेश का पालन न किए जाने के संबंध में है.
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क से जुड़ी मालिनी आइसोला ने बताया, ‘हमने पहले 23 जून को एक और पत्र भेजा था जिसमें कहा गया था कि यह आदेश निजी अस्पतालों में मुनाफाखोरी को बढ़ावा देता है और यही हो रहा है. आदेश में निजी बीमा धारकों के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है. पब्लिक डोमेन में कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में लोगों को सही जानकारी कैसे मिलेगी?’
पत्र में पांच मरीजों के बयान भी शामिल हैं. कार्यकर्ताओं ने बताया कि दिल्ली सरकार की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. दिप्रिंट ने दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. नूतन मुंडेजा और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से फोन कॉल और व्हाट्सएप मैसेज के जरिये संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित करने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
आइसोला ने बताया, ‘इन सभी मरीजों ने शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन दिल्ली सरकार की ओर से अब तक कोई शिकायत निवारण तंत्र नहीं बनाया गया है.’
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