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Saturday, 20 April, 2024
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इम्यूनिटी बूस्टर मिथक है- कोविड को मात देने वाले वादों पर आपको क्यों भरोसा नहीं करना चाहिए

‘इम्यूनिटी बूस्टर’ खाद्य पदार्थ बेचने वाली कंपनियों के इनसे प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होने के दावों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया खुद अपना काम करती रहती है.

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बेंगलुरू/नई दिल्ली: कोविड-19 के लिए अभी तक वैज्ञानिक रूप से पुष्ट कोई इलाज नहीं मिला है और टीका अभी परीक्षण के चरण में ही होने के बीच पिछले आठ माह में ‘प्रतिरक्षा तंत्र’ सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा है.

कोरोनावायरस महामारी के कारण अब तक दुनिया भर में 6.5 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है, जबकि लाखों अन्य संक्रमण के शिकार हुए हैं. ज्यादातर मामलों में ठीक होना काफी हद तक मानव शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा यानि इम्यून सिस्टम पर निर्भर रहा है.

लॉकडाउन के बावजूद बाजार में आयुर्वेदिक नुस्खों, फलों के रस, विटामिन की गोलियां, जिंक टैबलेट, हैंड सैनिटाइजर, फेस मास्क- जैसे उत्पादों की भरमार हो गई है जो किसी की भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का दावा करते हैं.

विज्ञापनदाताओं के संदेश से लगता है कि कुछ खाद्य पदार्थों के सेवन या कुछ विशिष्ट उत्पादों के इस्तेमाल से शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाया या मजबूत किया जा सकता है. लेकिन क्या ये उत्पाद वास्तव में आपको कोविड-19 से बचा सकते हैं? या, उपयोगी भोजन या न्यूट्रास्यूटिकल्स (खाने के सप्लीमेंट) आपकी इन्यूनिटी को बढ़ा सकते हैं?

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क्या प्रतिरक्षा तंत्र ‘मजबूत’ किया जा सकता है?

संक्षेप में जवाब है नहीं. इम्यूनोलॉजी एक्सपर्ट कहते हैं कि स्वस्थ वयस्कों के लिए खाद्य पदार्थों या उत्पादों के जरिये अपना प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करने का कोई तरीका नहीं है.

जाने-माने इम्यूनोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन के पूर्व निदेशक राम विश्वकर्मा ने कहा, ‘इम्यूनिटी शब्द बहुत ही व्यापक है जिसे लोग पूरी तरह से समझते नहीं हैं. प्रतिरक्षा तंत्र बहुत जटिल होता है. इम्यूनिटी बढ़ाने के बारे में तमाम दावे तर्कहीन और अवैज्ञानिक हैं.’

शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र उन चीजों से सक्रिय होता है जिन्हें शरीर अपने खुद के हिस्से के तौर पर नहीं पहचानता है, जैसे कि बैक्टीरिया, वायरस या यहां तक कि एलर्जी का कारण बनने वाले पराग कण आदि. अधिकांश रोगाणुओं की सतह पर एक प्रोटीन होता है जिसे प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी तत्व के रूप में पहचानती है. इन्हें एंटीजन कहा जाता है.

मानव शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं दो प्रकार की होती हैं. सबसे पहले आजन्म प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सक्रिय होती है और यह सभी जीवों में होना आम बात है. इसमें कुछ खास नहीं होता है और प्रतिरक्षा कोशिकाएं एंटीजन पर तत्काल हमला करती हैं. यह प्रतिक्रिया बाद में अनुकूली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में बदल जाती है, जो यह पता लगाने के आधार पर बचाव करती कि किस तरह के रोगाणु का सामना करना है.

आजन्म प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में न्यूट्रोफिल, मैक्रोफेज और मोनोसाइट्स जैसी श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं, जबकि अनुकूली प्रतिक्रिया में एंटीबॉडी के साथ टी कोशिकाएं और बी कोशिकाएं शामिल होती हैं.

इन कोशिकाओं और उनके तंत्र का उत्पादन साइटोकिन्स के जरिये नियंत्रित होता है, जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं के बीच संदेशवाहक का काम करने वाले प्रोटीन हैं. इनके निर्माण और कार्यप्रणाली को खाद्य पदार्थों या उत्पादों के जरिये नियंत्रित, परिवर्तित या संशोधित नहीं किया जाता.

आईआईएसईआर पुणे में प्रतिरक्षाविज्ञानी सत्यजित रथ ने दिप्रिंट से कहा, ‘इम्यूनिटी सिर्फ एक चीज नहीं है. शरीर में अणुओं और कोशिकाओं की एक श्रृंखला होती है, जो तब तक कुछ नहीं करते हैं जब तक कि किसी बाहरी उद्दीपक के कारण प्रभावित न हों.’

रथ ने कहा कि अगर कोई यह कहता है कि किसी व्यक्ति की इम्यूनिटी कमजोर है, तो इसका मतलब वह यह बता रहा है कि शरीर इनका (कोशिकाओं और अणुओं) का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर रहा है, जो किसी भी स्वस्थ वयस्क के संदर्भ में किसी भी तरह से सच नहीं है. उन्होंने कहा, ‘इनमें किसी भी तरह की कमी बचपन में बड़ी बीमारियों की वजह बनती है. लेकिन आम तौर पर स्वस्थ लोगों में यह कोई समस्या नहीं है- तो हम वास्तव में किसे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं?’

उन्होंने आगे बताया कि संक्रमण के बिना ही इनमें से किसी भी घटक के उत्तेजित या सक्रिय होने का एक नतीजा ज्वलनशीलता बढ़ने के तौर पर सामने आता है. ज्वलनशीलता तब बढ़ती है जब संक्रमण या बीमारी या कोशिकाओं को क्षति वाली जगह पर सूजन, लाल पड़ना, गर्म होना, चोट लगने या दर्द होने की स्थिति आती है.

प्रतिरक्षा प्रणाली के उत्तेजित होने से बड़ी संख्या में ज्वलनशीलता बढ़ाने वाले साइटोकिन्स निर्मित होते हैं, जिससे खिंचाव और दर्द हो सकता है. रथ ने कहा, ‘अगर कोई कहता है कि वे मेरी इम्युनिटी बढ़ा रहे हैं, तो जाहिर तौर पर मैं बहुत चिंतित होऊंगा.’


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कैसे बनता है प्रतिरक्षा तंत्र

इंटरनेट पर अध्ययन और लेखों के गहन विश्लेषण में पाया गया कि ‘इम्युनिटी बूस्टिंग’ का मिथक अत्यंत व्यापक है. ऐसे ही एक अध्ययन में पाया गया कि जिन 37 तरीकों से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करने दावा किया जाता है, उनमें शीर्ष पर थे आहार (77 प्रतिशत वेबपेज), फल (69 प्रतिशत), विटामिन (67 प्रतिशत), एंटीऑक्सीडेंट (52 प्रतिशत), प्रोबायोटिक्स (51 प्रतिशत), खनिज (50 प्रतिशत), और विटामिन सी (49 प्रतिशत). दिलचस्प बात है कि टीका 27वें स्थान पर रहा है जिसका जिक्र केवल 12 प्रतिशत वेब पेज पर था.

सबसे बड़ी गलत धारणाओं में से एक, यह कि जरूरत से अधिक विटामिन का सेवन प्रतिरक्षा तंत्र के लिए मददगार होता है, को अग्रणी रसायनज्ञ लिनुस पॉलिंग ने अनुमानित और गलत सिद्धांतों के आधार पर आगे बढ़ाया था.

दो बार के नोबेल पुरस्कार विजेता (1954 में रसायन विज्ञान, 1962 में शांति) ने अपनी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में तो उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, लेकिन प्रतिरक्षा तंत्र पर अप्रामाणिक सिद्धांतों को लेकर उनकी खुद उनके समयकाल में ही खासी आलोचना की गई थी. पॉलिंग सीधे तौर पर इस मिथक के लिए जिम्मेदार थे कि विटामिन सी सर्दी-जुकाम को रोकने या ठीक करने में मदद कर सकता है.

बहुत पहले से ही कई बार यह साबित हो चुका है कि विटामिन सी या किसी भी तरह के विटामिन की मेगा-डोज शरीर पर किसी भी तरह प्रभावी नहीं है.

एक और गलत धारणा यह कायम हो रही है कि कोविड-19 पर काबू पाने में जिंक की गोलियां कारगर भूमिका निभा सकती हैं. हालांकि, यह साक्ष्यों के जरिये प्रमाणित नहीं है.

विश्वकर्मा ने कहा, ‘जिंक एक इम्युनिटी बूस्टर नहीं है. यह शरीर के लिए एक आवश्यक खनिज है जो बड़ी मात्रा में प्रोटीन और एंजाइम के लिए एक ‘को-फैक्टर’ है.’

जिंक की तरह विटामिन सी भी एक को-फैक्टर है और शरीर के काम करने के लिए अहम है.

बायोकेमेस्ट्री में को-फैक्टर्स गैर-प्रोटीन होते हैं और इन्हें सहायक मॉलीक्यूल्स की तरह माना जा सकता है. ये आम तौर पर एक यौगिक या एक मेटलिक आयन होते हैं जो किसी एंजाइम के काम करने के लिए जरूरी होते हैं. को-फैक्टर्स शरीर के कई आवश्यक कार्यों के लिए एक तरह के उत्प्रेरक-रासायनिक प्रतिक्रिया की दर को बढ़ाने वाला पदार्थ होते हैं.

विश्वकर्मा ने कहा, ‘यदि आपके शरीर में इन आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है, तो आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.’ लेकिन, यदि किसी व्यक्ति में ऐसी कोई कमी नहीं है, तो शरीर में विटामिन अणुओं की अतिरिक्त मात्रा वायरस से लड़ने की क्षमता नहीं बढ़ाती है.

बर्मिंघम में अलबामा विश्वविद्यालय में पैथोलॉजी विभाग में पूर्व पोस्टडॉक्टरल फेलो सुनील के. नूथी ने कहा, ‘पहले जब बहुत ज्यादा अकाल पड़ते थे, जिंक और विटामिन सी की कमी होना आम बात हुआ करती थी. अब (ये) दुर्लभ हैं क्योंकि तमाम खाद्य स्रोतों में इनकी पर्याप्त मात्रा पाई जाती है.’

उन्होंने कहा, ‘जब तक कोई भुखमरी की स्थिति में नहीं है या पोषक तत्वों से भरपूर आहार नहीं ले रहा तब तक जिंक और विटामिन सी की कमी होना दुर्लभ ही है.’

लेकिन ‘बूस्टिंग’ के लिए किसी वैज्ञानिक परिभाषा के अभाव में एक एक्सट्रीमली ‘बूस्टेड’ इम्यून सिस्टम भी समस्या की वजह हो सकता है.

कोविड-19 के गंभीर मामलों में शरीर एक आक्रामक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू करता है जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में ज्वलनशीलता बढ़ाने वाले प्रोटीन का निर्माण होता है. इसे एक साइटोकिन स्टोर्म कहा जाता है और यह कोविड-19 मरीजों की मृत्यु के सामान्य कारणों में से एक है.

साइटोकिन स्टोर्म की स्थिति तब आती है जब शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र अत्यधिक सक्रिय हो जाता है. ऐसी स्थिति में स्वस्थ कोशिकाओं नष्ट होने लगती है और यही विभिन्न अंगों के काम करना बंद कर देने की वजह बनती है. कई शोध अध्ययन बताते हैं कि साइटोकिन स्टोर्म फेफड़ों को क्षति पहुंचाता है और मल्टी-ऑर्गन फेल्योर की वजह बनता है.

नूथी ने स्पष्ट किया, ‘कोई भी प्रतिरक्षा प्रणाली को बूस्ट क्यों करना चाहता है जबकि कोविड-19 से मौत की सबसे बड़ी वजह अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली ही है?’


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उपभोक्ता पूंजीवाद से मिथक का विस्तार

यदि इम्यूनिटी को बढ़ाया नहीं जा सकता है तो ऐसे लोग, जो इम्यूनोकंप्रोमाइज्ड हैं या ऐसे व्यक्ति जो जल्द संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं, अदृश्य रूप से फैल रही अत्यधिक संक्रामक वायरस वाली इस महामारी में सुरक्षित कैसे रहेंगे?

रथ ने कहा कि सामुदायिक सुरक्षा ही सबसे प्रभावी तरीका है.

आईआईएसईआर पुणे के इम्यूनोलॉजिस्ट ने कहा, ‘सामुदायिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए हम अपने आसपास सार्वजनिक स्वच्छता को बढ़ावा देते हैं. हम सालों से यह जानते हैं कि सार्वजनिक स्वच्छता-पेयजल को सीवेज को अलग रखना, स्वच्छ हवा की व्यवस्था, पर्याप्त पोषण की उपलब्धता आदि— सामुदायिक स्तर पर संक्रामक बीमारियों से निपटने के कारगर तरीके हैं.’

हालांकि, भारत में कामकाजी वर्ग के अधिकांश घरों को बुनियादी सामुदायिक स्वच्छता की यह सुविधा हासिल नहीं होती है. कोविड-19 की बात करें तो अधिकांश घरों में ऐसी महामारी के दौरान शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए पर्याप्त जगह तक नहीं है.

रथ ने कहा कि ब्रांड को इन्हीं कमजोरियों का फायदा उठाने में विशेषज्ञता हासिल है, जो तरह-तरह के चमत्कारी विकल्पों को सामने ला रहे हैं. इस सबकी जड़ में है व्यक्तिगत उपभोक्ता पूंजीवाद.

उन्होंने कहा, ‘हम सबके के लिए एक विकल्प होता है व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों को खरीदने में सक्षम होना. यहां ‘खरीदना’ शब्द सबसे ज्यादा मायने रखता है, क्योंकि यही बाजार की असली ताकत है. लोगों को बताया जाता है कि उन्हें सामुदायिक स्वच्छता के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, इसके बदले उद्योग आपको उत्पाद बेचते हैं जिसके बारे में दावा किया जाता है कि वे आपके आसपास फैली बीमारियों से आपको विशेष रूप से बचाएंगे.’

रथ ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, ‘यह किस विचार को प्रचारित करता है, यही कि यदि कोई व्यक्तिगत स्तर पर और निजी सुरक्षा के उपाय अपनाने में सक्षम है तो वह इसकी चिंता करना बंद कर सकता है कि उसके आसपास क्या हो रहा है. यही इस बिजनेस का पूरा खेल है.

उन्होंने कहा कि इम्युनिटी बूस्टिंग व्यक्तिगत उपभोक्तावाद का एक सर्वोत्तम उदाहरण है जिस पर पूंजीवादी समाज निर्भर करता है.

रथ ने बताया, ‘देश में इम्यूनिटी बूस्टिंग का आइडिया 30-35 साल पुराना है. तथ्य यह है कि भारत द्वारा उपभोक्ता बाजार अर्थव्यवस्था को खोले जाने के साथ ही यह विचार भी यहां आया कि ’सस्ती’ दवाएं व्यक्तिगत प्रतिरक्षा को बढ़ा सकती हैं.’

अप्रमाणित ‘प्राकृतिक’ नुस्खों को लेकर यह विचार विशेष रूप से हावी है.

इम्यूनोलॉजिस्ट विश्वकर्मा ने इससे सहमति जताते हुए कहा, ‘विभिन्न दवाओं के बीच परस्पर प्रतिक्रिया भी हो सकती है. यदि लोग आधुनिक दवाएं ले रहे हैं और फिर साथ में संभावित रूप से औषधीय जड़ी-बूटियों का सेवन करना भी शुरू कर दें, तो हमें नहीं पता जड़ी-बूटी के घटक दवा के साथ (कैसी) प्रतिक्रिया करेंगे. इन गैर-स्वीकृत दवाओं का आपके लिवर और किडनी पर प्रतिकूल असर पड़ता है.’

महामारी फैलने के बाद से न केवल खाद्य पदार्थ बल्कि तमाम ऐसे उत्पाद भी बाजार में छा गए हैं जो इम्यूनिटी बूस्ट करने का दावा करते हैं. यह कोई नया चलन नहीं है. जब 1918 में स्पैनिश फ्लू फैल रहा था कंपनियां इम्युनिटी बूस्टिंग के नाम पर मौके का फायदा उठाने के लिए कूद पड़ी थीं.

हालांकि, अब तक कोई भी उत्पाद प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सुधारने में कारगर साबित नहीं हुआ. विश्वकर्मा ने कहा कि अधिकांश न्यूट्रास्यूटिकल या ‘इम्यूनिटी बूस्टिंग’ खाद्य पदार्थों के प्रभावी होने का भी कोई निर्णायक, चिकित्सकीय प्रमाण नहीं है.


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जीवनशैली सबसे अहम

वास्तव में कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को प्रभावित करती हैं और उनकी प्रतिक्रिया में सुधार करती हैं. उनमें से सबसे अच्छा शायद व्यायाम है.

व्यायाम या तीव्र शारीरिक गतिविधि के कारण कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है और एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सक्रिय हो जाती है जो क्षति के मुकाबले प्रतिरक्षा कोशिकाओं को एकदम बढ़ा देती है. कई अध्ययनों से पता चला है कि 60 मिनट से कम समय के मध्यम व्यायाम से ज्वलनशीलता रोधी साइटोकिन्स, न्यूट्रोफिल, नेचुरल किलर कोशिकाओं, टी कोशिकाओं और बी कोशिकाओं में सुधार हो सकता है.

यह किसी खास स्थिति के समय बीमारियों से मुकाबला करने के बजाये सामान्य रूप से स्ट्रेस हॉर्मोन को सुधारने में प्रभावी तरीके से काम कर सकता है, जिससे प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्य पर नियंत्रण रहेगा.

हालांकि, इन प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं की प्रकृति क्षणिक होती है, लेकिन लंबी अवधि तक एक नियमित प्रतिक्रिया प्रतिरक्षा कोशिकाओं के सबसेट को इस तरह तैयार कर सकती है कि जरूरत पड़ने पर वह प्रभावी ढंग से सक्रिय हो जाएं. यह हमारी प्रणाली में इम्यूनोसर्विलांस (बाहरी तत्वों पर नजर रखने) को भी बढ़ाएगा, विशेष रूप से उन लोगों में जो टाइप 2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं.

ज्वलनशीलता बढ़ाने वाले साइटोकिन्स मध्यम, कम समयावधि वाले व्यायाम के दौरान उच्च स्तर तक नहीं पहुंचते हैं, लेकिन ज्यादा तीव्र व्यायाम के दौरान ऐसा हो सकता है. बहुत ज्यादा तीव्रता से व्यायाम करना कुछ सीमित अवधि में इम्यूनिटी को क्षति पहुंचाकर उस अवधि में बीमारी का जोखिम बढ़ा देता है. यही कारण है कि मैराथन धावक या पेशेवर खिलाड़ी किसी खेल प्रतियोगिता के बाद के दिनों में सर्दी-बुखार की चपेट में आ जाते हैं.

प्रतिरक्षा तंत्र को जीवनशैली से जुड़ी कुछ आदतों के कारण भी नुकसान हो सकता है, मसलन धूम्रपान जो अन्य मापदंडों के अलावा टी और बी कोशिकाओं को भी प्रभावित करती है.

जीवनशैली से जुड़ी टाइप-2 डायबिटीज जैसी बीमारियां भी प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करती हैं. अपर्याप्त इंसुलिन के कारण खून में ग्लूकोज का स्तर ज्यादा होने की प्रतिक्रिया में ज्वलनशीलता बढ़ती है जो पैन्क्रियाटिक कोशिकाओं को क्षति पहुंचाकर हाइपरग्लेसेमिया की स्थिति में ले जाती है, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में शिथिलता आती है. यही कारण है कि मधुमेह के मरीज जल्द ही अन्य तरह के संक्रमणों के शिकार हो जाते हैं.

हालांकि, वर्तमान में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि किसी भी उपभोग योग्य खाद्य पदार्थ या उत्पादों के इस्तेमाल से प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार होता है. इम्यूनिटी बढ़ाने और प्रतिरक्षा तंत्र और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक एकमात्र तरीका सिर्फ टीकाकरण है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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