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Thursday, 10 October, 2024
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यमुनोत्री टनल का ढहना सवाल उठाता है कि आखिर क्यों चार धाम परियोजना पर चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया

चूंकि सुरंग में तेजी से बचाव अभियान जारी है, जहां 40 कर्मचारी अभी भी फंसे हुए हैं, अब चार धाम परियोजना के बारे में पर्यावरण और सुरक्षा चेतावनियों पर ध्यान देने का समय आ गया है.

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दीवाली का उत्सव पिछले रविवार को शुरू होने वाला था, जब खबर आई कि उत्तराखंड के यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक निर्माणाधीन सुरंग – जो मोदी सरकार की 12,000 करोड़ रुपये से अधिक की महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा है – ढह गई, जिसमें 40 मजदूर फंस गए.

फरवरी 2024 में पूरी होने वाली 4.5 किमी लंबी सुरंग, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सिल्क्यारा और डंडालगांव को जोड़ेगी. कई एजेंसियां दिल्ली से भेजी गई अत्याधुनिक ड्रिलिंग मशीनों का उपयोग करके मजदूरों को निकालने के लिए छह दिनों से लगातार काम कर रही हैं. छह इंच के पाइप के ज़रिए फंसे हुए लोगों तक ऑक्सीजन, खाना और जरूरी दवाएं पहुंचाई जा रही हैं.

जैसे-जैसे ज़ोर-शोर से बचाव अभियान जारी है, वैसे-वैसे इस संकट ने चार धाम परियोजना के बारे में लंबे समय से चली आ रही और लंबे समय से उपेक्षित पर्यावरण और सुरक्षा चेतावनियों पर सभी का ध्यान केंद्रित कर दिया है. और यही कारण है कि यह दिप्रिंट का न्यूज़मेकर ऑफ द वीक है.

चार धाम सड़क परियोजना, जिसकी आधारशिला 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखी गई थी, उसका उद्देश्य यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के हिंदू तीर्थ स्थलों तक कनेक्टिविटी में सुधार करना है.

लेकिन पहले दिन से ही इस परियोजना को पर्यावरणविदों की तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है, जिनका आरोप है कि इस पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में निर्माण शुरू करने से पहले पर्यावरण-प्रभाव का आकलन नहीं किया गया. इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया है कि पर्यावरण मंजूरी को दरकिनार किया जा सके इसलिए राजमार्ग परियोजना को कई भागों में विभाजित करने की रणनीति का सहारा लिया गया.

कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार पर सड़क बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी के नाम पर बड़े स्तर पर पहाड़ों पर पेड़ों की कटाई और निर्माण कार्य के माध्यम से नाजुक हिमालय श्रृंखला को नष्ट करने का आरोप लगाया है.

उन्होंने 2021 में चमोली में अचानक आई बाढ़, 2023 में जोशीमठ में भूमि का धंसना और भूस्खलन की बढ़ती संख्या सहित इस आपदा के लिए भी परियोजना के कारण बड़े पैमाने पर पहाड़ों पर होने वाली पेड़ों की कटाई को ज़िम्मेदार ठहराया है, हालांकि इसका कोई आधिकारिक लिंक स्थापित नहीं किया गया है.

चार धाम परियोजना के हिस्से के रूप में, मौजूदा सिंगल-लेन राजमार्ग के 889 किमी को 10 मीटर तक चौड़ा किया जाएगा, जिससे इसे उत्तराखंड के चार तीर्थ शहरों के लिए सभी मौसम में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए दो-लेन सड़क में बदल दिया जाएगा. परियोजना के हिस्से के रूप में कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा मार्ग का एक हिस्सा भी विकसित किया जाएगा.


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आपदाओं की बाढ़

पारिस्थितिक रूप से नाजुक हिमालयी क्षेत्र में स्थित उत्तराखंड पर आने वाली आपदाओं में 12 नवंबर को सुरंग का ढहना नवीनतम है. अनियंत्रित पर्यटन, क्षेत्र की वहन क्षमता से अधिक लोगों की जनसंख्या, अनियंत्रित बुनियादी ढांचे के निर्माण और जलवायु परिवर्तन ने प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिए एक नुस्खा तैयार किया है.

2013 में, उत्तराखंड में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ ने 6,000 से अधिक लोगों की जान ले ली और केदारनाथ मंदिर और उसके आसपास सहित बुनियादी ढांचे और संपत्ति को भारी नुकसान हुआ. इसे 2004 की सुनामी के बाद सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा बताया गया है.

फिर, फरवरी 2021 में, नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट गया, जिसके परिणामस्वरूप हिमस्खलन हुआ और उसके बाद अचानक बाढ़ आ गई, जिसने उत्तराखंड के चमोली जिले को तबाह कर दिया. इस घटना ने राष्ट्रीय थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) के ऋषि गंगा और तपोवन-विष्णुगड़ जल विद्युत संयंत्रों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया, जिसमें 200 लोगों की मौत सहित तमाम लोगों के हताहत होने की खबर मिली.

6th World Congress on Disaster Management to be held in Uttarakhand
उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने से एक घर क्षतिग्रस्त | फोटोः एएनआई

इस साल की शुरुआत में, तीर्थनगरी जोशीमठ में भूमि धंसने के कारण घरों और नागरिक संरचनाओं में भारी दरारें आ गईं, जिससे कई निवासियों को निकालने और स्थानांतरित करने की आवश्यकता पड़ी.

भूमि का धंसना एक भूवैज्ञानिक घटना है जिसके परिणामस्वरूप भूमि के नीचे के मटीरियल के विस्थापन के कारण पृथ्वी की सतह धीरे-धीरे बैठती है या अचानक धंसती है. जोशीमठ के मामले में निर्माण के लिए चट्टानों को हटाने और विस्फोट करने को एक प्रमुख कारक बताया गया है.

पर्यावरण बनाम विकास

विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पर्यावरण बनाम विकास की बहस कभी ख़त्म नहीं होती. लेकिन पर्यावरणविदों के अनुसार, उत्तराखंड में हालिया आपदाओं की श्रृंखला को एक तत्काल चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए. वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अनियंत्रित निर्माण और पर्यावरण एवं जलवायु संबंधी विचारों से आंखें मूंद लेने के दुष्परिणाम होंगे. और बिना सोचे समझे की गई प्रतिक्रियाएं मददगार साबित नहीं होंगी.

जब से इस परियोजना के बारे में बात चली है तब से ही यह विवादों में घिरी रही है. पर्यावरणविदों के कड़े विरोध के बावजूद, नितिन गडकरी के नेतृत्व में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने परियोजना को आगे बढ़ाया.

चार धाम परियोजना को सबसे पहले फरवरी 2018 में देहरादून स्थित एनजीओ सिटीजंस फॉर ग्रीन दून द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में घसीटा गया. एनजीओ ने आरोप लगाया कि वन संरक्षण अधिनियम 1970 का उल्लंघन करते हुए परियोजना के लिए 25,000 से अधिक पेड़ काटे गए. अपनी याचिका में उसने यह भी कहा कि राजमार्ग मंत्रालय ने परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) नहीं कराया. एनजीओ ने चार धाम परियोजना के निर्माण को भी इस आधार पर चुनौती दी कि इसके विकास से हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

हालांकि, राजमार्ग मंत्रालय ने परियोजना को आगे बढ़ाने का एक रास्ता खोज लिया. इसमें पर्यावरण मंत्रालय की 2013 की अधिसूचना का हवाला दिया गया, जिसमें 100 किमी लंबाई या 40 मीटर चौड़ाई तक की राजमार्ग विस्तार परियोजनाओं को ईआईए से छूट दी गई थी. मंत्रालय ने कहा कि उसने 889 किलोमीटर की दूरी को 53 अलग-अलग पैकेजों में विभाजित किया था, जिनमें से कोई भी निर्दिष्ट लंबाई और चौड़ाई सीमा से अधिक नहीं थी.

सितंबर 2018 में, एनजीटी ने इस आधार पर सड़क निर्माण को हरी झंडी दे दी कि यदि उचित सुरक्षा उपाय किए गए हैं तो महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित की परियोजना पर काम नहीं रोका जा सकता है. इस आदेश को एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसने चीन के मुकाबले भारत की रक्षा तैयारियों में सुधार के उद्देश्य से दिसंबर 2021 में सड़क के तीन हिस्सों को चौड़ा करने के लिए हरी झंडी दे दी थी.

सरकार द्वारा नियुक्त समितियों से चेतावनियां

पिछले चार दशकों में, सरकार द्वारा नियुक्त कई समितियों ने जोशीमठ क्षेत्र में भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है, जिसमें सड़क परियोजनाओं के लिए बोल्डर हटाने के लिए विस्फोट और खुदाई पर सीमाएं शामिल हैं. हालांकि, ऐसी सिफ़ारिशों को लगातार सरकारों द्वारा अनसुना कर दिया गया है.

1976 की शुरुआत में, सरकार द्वारा नियुक्त एमसी मिश्रा समिति की एक रिपोर्ट में 1962 के बाद जोशीमठ में भारी निर्माण के प्रतिकूल प्रभाव पर प्रकाश डाला गया था. इस कार्य में सड़कों और नागरिक संरचनाओं के निर्माण के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, क्षेत्र के प्राकृतिक वन आवरण को नष्ट करना शामिल था.

रिपोर्ट में निवारक उपाय नहीं किए जाने पर संभावित भूमि धंसने की चेतावनी दी गई और भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई.

Fil photo of mountainsides being blasted off and cleared to make way for the Char Dham highway | PTI
चार धाम राजमार्ग के लिए रास्ता बनाने के लिए पहाड़ों को तोड़कर साफ किए जाने की तस्वीर | पीटीआई

जब चारधाम सड़क परियोजना लागू की जा रही थी तो सुप्रीम कोर्ट ने इसकी व्यवहार्यता की समीक्षा के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति भी नियुक्त की थी. इस समिति का तर्क था कि सड़क को चौड़ा करना भूस्खलन संभावित हिमालयी क्षेत्र के लिए खतरनाक होगा.

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मूल रूप से चार धाम सड़क के 816 किलोमीटर के हिस्से को 10 मीटर तक विस्तृत करने की योजना बनाई थी. इसमें से मंत्रालय ने 365 किमी हिस्से पर निर्माण पहले ही पूरा कर लिया है. अन्य 537 किलोमीटर की दूरी पर 10 मीटर सड़क बनाने के लिए पहाड़ी काटने का काम पूरा हो चुका है.

सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने जवाब में मंत्रालय ने तर्क दिया कि चौड़ाई कम करने से सड़क सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे पैदा होंगे. रक्षा मंत्रालय ने सड़क की चौड़ाई 10 मीटर से कम करने पर राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा हितों पर गंभीर असर का भी हवाला दिया था.

इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना के तीन हिस्सों को चौड़ा करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी. हालांकि, भूमि धंसने की घटना के बाद जनवरी से काम रोक दिया गया है.

अब, यमुनोत्री सुरंग का ढहना एक और संकेत है कि अब राज्य और केंद्र सरकारों के लिए लंबे समय से बज रही खतरे की घंटी पर ध्यान देने का समय आ गया है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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