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Monday, 23 December, 2024
होमदेशचन्नी, सिद्धू ने सुलझाए मतभेद, पर दोआबा और माझा में पार्टी नेताओं के बीच झगड़ा कांग्रेस की नई मुसीबत बना

चन्नी, सिद्धू ने सुलझाए मतभेद, पर दोआबा और माझा में पार्टी नेताओं के बीच झगड़ा कांग्रेस की नई मुसीबत बना

डिप्टी सीएम एस.एस. रंधावा और मंत्री राणा गुरजीत के बीच कैबिनेट बैठक के दौरान गरमा-गरमी एकमात्र ऐसी घटना नहीं है जिसमें विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस नेता आपस में लड़ते नजर आ रहे हों.

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चंडीगढ़: पंजाब में विधानसभा चुनाव एकदम नजदीक आ गए हैं, लेकिन राज्य कांग्रेस—जिसे जल्द ही उम्मीदवारों के नाम शॉर्टलिस्ट करने हैं और उन्हें अंतिम रूप देना है—को अभी भी अंदरूनी कलह और विरोध के सुरों से जूझना पड़ रहा है.

ऐसा लगता है जब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने महीनों चले टकराव के बाद असहजता के साथ ही सही लेकिन आपसी मतभेदों को भुला दिया है, तब अन्य नेताओं के बीच विवाद सुर्खियों में छाने लगे हैं.

ताजा मामला गुरुवार को पंजाब भवन में कैबिनेट बैठक के दौरान सामने आया, जब उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के साथ तीखी झड़प हो गई.

रंधावा उस समय राणा गुरजीत पर भड़क गए जब उन्होंने रंधावा पर आरोप लगाते हुए दावा किया कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मोटी रकम लेकर ट्रांसफर किया जा रहा है.

राणा गुरजीत ने भी डिप्टी सीएम, जिनके पास गृह मंत्रालय भी है, पर जोरदारी से हमला बोला. गुरजीत ने आरोप लगाया कि उन्होंने अपना कोई वादा पूरा नहीं किया, चाहे बेअदबी के मामलों में न्याय की बात हो या फिर करोड़ों रुपये के ड्रग्स की तस्करी के मामले में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की रिपोर्ट सार्वजनिक करना.

गुरजीत ने सुल्तानपुर लोधी के कांग्रेस विधायक नवतेज सिंह चीमा—जिन्होंने हाल में अपने निर्वाचन क्षेत्र में गुरजीत को एक सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं करने दिया था—के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने के लिए भी कथित तौर रंधावा को ही जिम्मेदार ठहराया.

बहरहाल कैबिनेट में हुई झड़प ने विपक्ष को एक अच्छा मौका दे दिया. शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के सांसद और पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने शनिवार को ट्वीट किया कि ‘सत्ता में आने पर’ उनकी सरकार राणा गुरजीत के दावों की जांच करेगी.


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दोआबा में सियासी ड्रामा

चीमा और राणा गुरजीत, जो कपूरथला से विधायक हैं, के बीच एक लंबे अरसे से झगड़ा जारी है जो पिछले हफ्ते बढ़ गया था. गुरजीत की नजरें सुल्तानपुर लोधी से अपने बेटे राणा इंदर प्रताप सिंह को चुनाव लड़ाने पर टिकी हैं, लेकिन मौजूदा विधायक चीमा को अगले साल फिर यहीं से टिकट मिलने की उम्मीद है. नवजोत सिंह सिद्धू और रंधावा दोनों चीमा का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन इंदर प्रताप सिंह ने रविवार को सुल्तानपुर लोधी में अपना चुनाव अभियान कार्यालय खोला था.

होशियारपुर, जालंधर, कपूरथला और शहीद भगत सिंह नगर जिले को मिलाकर बने दोआबा क्षेत्र में गुरजीत को कम से कम आधा दर्जन कांग्रेस नेताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है.

सितंबर में छह नेताओं ने सिद्धू को पत्र लिखकर गुरजीत को चन्नी कैबिनेट में बतौर मंत्री शामिल किए जाने का विरोध किया था. इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में चीमा और भोलाथ विधायक सुखपाल सिंह खैरा भी शामिल थे. 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुए पूर्व कांग्रेसी नेता खैरा इस साल जून में फिर कांग्रेस में लौट आए थे.

गुरजीत के सहयोगी अमनदीप सिंह गोरा गिल ने उन्हें फिर से कांग्रेस में शामिल किए जाने का विरोध किया था.

माझा में भी खिंची तलवारें

कांग्रेस की अंदरूनी कलह सिर्फ दोआबा तक ही सीमित नहीं है. माझा क्षेत्र में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच तो मानों तलवारें खिंची हुई हैं.

माझा क्षेत्र में अमृतसर, पठानकोट, गुरदासपुर और तरनतारन जिले शामिल हैं.

राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और उनके भाई फतेह जंग सिंह बाजवा, जो गुरदासपुर जिले के कादियान से विधायक हैं, खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ बोल रहे हैं.

प्रताप को हाल ही में पार्टी आलाकमान ने चुनाव घोषणापत्र समिति का अध्यक्ष बनाया था और उन्होंने कादियान में प्रचार करना शुरू कर दिया है, जिससे साफ संकेत मिलते हैं कि उन्हें अपने भाई के निर्वाचन क्षेत्र से टिकट मिलने की उम्मीद है.

प्रताप बाजवा ने बुधवार को ट्वीट किया, ‘मिशन 2022 के लिए कादियान में अभियान जारी है.’

इस सबसे आहत फतेह जंग, जिन्हें सिद्धू का समर्थन हासिल है, का कहना है कि कादियान से वही पार्टी के उम्मीदवार हैं. उन्होंने मंगलवार को कादियान में पत्रकारों से कहा था, ‘मैं मौजूदा विधायक हूं. मैं ही पार्टी का उम्मीदवार हूं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिद्धू ने 2 (दिसंबर) को मेरी तरफ से आयोजित एक रैली को संबोधित किया. रैली में मुझे सिद्धू का आशीर्वाद मिला और उन्होंने (उम्मीदवारी का) संकेत दिया. प्रताप सिंह बाजवा एक वरिष्ठ नेता हैं और पूरे पंजाब में उनकी मौजूदगी है. वह कहीं भी जा सकते हैं और कहीं से भी चुनाव लड़ सकते हैं.’

फतेह जंग ने अपने दामाद को महाधिवक्ता कार्यालय में नियुक्त करने को लेकर सुखजिंदर रंधावा पर भी निशाना साधा था.

फतेह जंग ने पिछले महीने मीडियाकर्मियों से कहा था, ‘जब मेरे बेटे अर्जुन प्रताप सिंह बाजवा को कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा डीएसपी नियुक्त किया गया था तो रंधावा ने यह कहते हुए पुरजोर विरोध किया कि अगर विधायकों के बेटों को सरकारी नौकरी दी जाएगी तो हम जनता के आगे मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. मेरे बेटे ने वह पद छोड़ दिया. अब सुखजिंदर रंधावा गृहमंत्री हैं और उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया है और अपने दामाद (तरुणवीर सिंह लेहल) को अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया है. उन्हें सीधे महाधिवक्ता ही क्यों नहीं बना दिया? क्या अब जुबान नहीं लड़खड़ाएगी?’

इससे पहले, फतेह जंग एक अन्य कांग्रेस नेता बलविंदर सिंह कोटलाबामा को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई पंजाब जेनको लिमिटेड के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किए जाने की भी आलोचना की थी. बलविंदर को कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा का करीबी माना जाता है, जो फतेहगढ़ चूड़ियां से विधायक हैं.

फतेह जंग ने बलविंदर सिंह पर अवतार सिंह पन्नू का भाई होने के कारण भी निशाना साधा था. पन्नू अमेरिका में खालिस्तान समर्थक समूह ‘सिख फॉर जस्टिस’ का एक प्रमुख नेता है, जिसे भारत सरकार ने एक गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया था. हालांकि, बलविंदर सिंह का दावा है कि उनका अब अपने भाई से कोई लेना-देना नहीं है और वह सालों से उससे नहीं मिले हैं.

हालांकि, तृप्त बाजवा ने बलविंदर सिंह की नियुक्ति का समर्थन करते हुए उन्हें ‘पार्टी के प्रति निष्ठावान’ बताया था.

बलविंदर की नियुक्ति का बटाला के पूर्व विधायक और तृप्त बाजवा के धुर विरोधी अश्विनी सेखारी ने भी विरोध किया था. पिछले महीने, उन्होंने आरोप लगाया कि तृप्त बाजवा ने अकाली दल के साथ हाथ मिला रखे हैं. सेखारी ने 12 नवंबर को चंडीगढ़ में मीडियाकर्मियों के समक्ष दावा किया था, ‘पंजाब में कम से कम 10 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा कांग्रेस उम्मीदवारों को कमजोर कर रहे हैं और अकाली उम्मीदवारों को मजबूत करने में मदद कर रहे हैं.’

विपक्ष की तरफ से इस मुद्दे पर पंजाब सरकार पर निशाना साधे जाने के बाद 2 दिसंबर को बलविंदर सिंह को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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