रायपुर: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक मचा रहे टिड्डी दल का खतरा अब छत्तीसगढ़ से फिलहाल कम होता दिख रहा है लेकिन अभी ये पूरी तरह से टला नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि टिड्डियों का एक बड़ा स्वार्म जो राज्य के अंदर आ रहा था अब उसने अपनी दिशा बदल ली है.
हालांकि दूसरी ओर शानिवर शाम को राज्य के दूसरे छोर से टिड्डियों के एक दूसरे दल ने कोरिया जिले के मध्य प्रदेश बॉर्डर से लगने वाले गांवों में हमला बोल दिया है.
सरकार द्वारा टिड्डी दल से बचाव और ट्रैकिंग टीमों में शामिल अधिकारियों का कहना है कि 4-5 दिनों पहले मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से आने वाले टिड्डियों के दो दलों से हमले का डर था लेकिन रविवार को यह संख्या मात्र एक रह गई क्योंकि दूसरे दल ने अपनी दिशा बदल ली.
दिप्रिंट को प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र से होते हुए मध्य प्रदेश के बालाघाट और वारा सिवनी जिलों से लगने वाले राज्य के सीमावर्ती गांवों में जिस टिड्डी दल के हमले की आशंका थी वह अब काफी क्षीण हो गई है. ये सीमावर्ती गांव मुख्यतः छत्तीसगढ़ के कवर्धा और राजनांदगांव जिलों के हैं.
अधिकारियों का कहना है कि यदि टिड्डी दल का हमला हो जाता तो इन गांवों में फसलों को अधिक नुकसान नहीं होता लेकिन फलों की खेती विशेषकर पपीता और आम के बगीचों को बड़ी तादात में नुकसान होता.
टिड्डियों के हमले की आशंकाओं को देखते हुए राज्य के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने मीडिया को बताया कि सभी सीमावर्ती जिलों के जिलाधीशों, प्रभागीय वनाधिकारी, कृषि विभाग के स्थानीय अधिकारियों और अन्य संबंधित विभागों को उचित कार्रवाई के लिए आदेश दे दिए गए हैं. जिलाधिकारियों से कहा गया है कि टिड्डियों के खतरे को दूर करने के लिए सभी उचित कदम उठाएं.
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राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह टिड्डी दल अब राज्य की तरफ नहीं बढ़ रहा है क्योंकि हवा निरंतर उत्तर की ओर चल रही है.
ज्ञात हो की टिड्डी दल या लोकस्ट स्वार्म का आगे बढ़ना हवा के रुख पर निर्भर करता है.
वहीं टिड्डियों के दूसरे दल ने मध्य प्रदेश के भोपाल, रायसेन, उत्तर प्रदेश के झांसी और फिर एमपी के सिंगरौली जिलों से होते हुए छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के सीमावर्ती गांव भरतपुर में शानिवर की शाम को हमला बोल दिया.
कृषि विभाग के सयुंक्त निर्देशक आरके चंद्रवंशी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस टिड्डी दल का दायरा 4-5 हेक्टेयर तक सीमित है और इस दल में इनकी संख्या भी अपेक्षाकृत काफी कम है.’
चंद्रवंशी का कहना है, ‘जिस क्षेत्र में टिड्डीदल का हमला हुआ है वहां कोई खड़ी फसल नहीं होने के कारण ज्यादा नुकसान भी नहीं होगा लेकिन ये लोकस्ट आसपास के जंगल को कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अच्छी बात यह है कि टिड्डियों का हमला राज्य के अंदरूनी भागों में होने की गुंजाइश कम है क्योंकि इन क्षेत्रों में भी हवा की गति और दिशा उत्तर की ओर चल रही है. फिर भी विभाग द्वारा लोकस्ट कंट्रोल सेंटर जोधपुर और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से इन टिड्डी दलों को लगातार ट्रैक किया जा रहा है. पेस्टिसाइड के छिड़काव के साथ-साथ ग्रामीणों को भी टिड्डियों को स्थिर न होने देने के लिए जागरूक किया जा रहा है.’
टिड्डियों का रंग बदलना चिंताजनक
विशेषज्ञों का कहना है कि हमलावर लोकस्ट स्वार्म अब रंग बदलने लगे हैं. इनका रंग अब गुलाबी से पीला होने लगा है जो इस बात का संकेत हैं कि वे ब्रीडिंग के लिए तैयार हो रही हैं. यदि ऐसा हुआ तो टिड्डी का दल और बड़ा हो सकता है और इनके नुकसान पहुंचाने की तीव्रता ज्यादा होगी.
चंद्रवंशी का कहना है कि टिड्डियों को खत्म करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है जिसकी वजह से इनकी संख्या भी कम हो रही है. इसके बावजूद रंग बदलना उनके ब्रीडिंग की तैयारी है.
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रायपुर स्थित राजीव गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक गजेंद्र चंद्राकर कहते हैं, ‘हमलावर टिड्डी डेजर्ट लोकस्ट के नाम से जाने जाते हैं. एक मादा लोकस्ट करीब 250 अंडे देती है. इनके रंग बदलने का अर्थ है कि वे अंडे देने के लिए रेतीली जगह या नदी का किनारा ढूंढेंगी. यहां ये अपनी लम्बाई से दोगुनी लगभग 8-10 इंच नीचे अंडे देंगी जिससे इनकी वृद्धि बड़ी तेजी से होगी. हालांकि इसमें हफ्तों लग सकते हैं.’
लेकिन चंद्रवंशी का मानना है कि टिड्डियों द्वारा अंडे देने के लिए रेतीले स्थान की खोज एक प्रकार से अच्छा भी हो सकता है क्योंकि ऐसे में टिड्डियों की एक बड़ी संख्या राजस्थान के रेतीले मैदानों की ओर कूच करेंगी और वहीं नर टिड्डी अपने आप खत्म हो जाएंगे.
चंद्रवंशी का कहना है, ‘यदि टिड्डी अंडे देने के लिए स्थानीय नदियों का किनारे चुनते हैं तो भी अंडों की हैचिंग में लगने वाले समय में मानसून आने की गुंजाइश है. यदि ऐसा होता है तो अंडे स्वयं नष्ट हो जाएंगे. उनके अनुसार यदि अंडे हैच भी होते हैं तो चूजे उड़ने लायक नहीं हो पाएंगे और फिर उनको या तो प्रिडेटर्स खाएंगे या बारिश में स्वयं नष्ट हो जाएंगे.’
अच्छी रिपोर्ट है…. लेकिन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय है या राजीव गांधी? कृपया अंतर स्पष्ट करें।
धन्यवाद!