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Monday, 4 November, 2024
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बेहतर तकनीक, प्रोपल्शन मॉड्यूल की बदौलत चांद पर पहुंचेगा भारत, इसरो चेयरमैन ने बताया क्या है खास

चंद्रयान-2 की असफलता को देखते हुए चंद्रयान-3 में कई सुधार किए गए हैं. चंद्रयान-3 में पिछले मिशन की तरह ऑर्बिटर के बजाय प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर में एडवान्स्ड टेक्नॉलजी का प्रयोग किया जाएगा.

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भारत ने एक बार फिर से चांद पर उतरने के लिए कमर कस ली है. 14 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से होने वाला है. लॉन्चिंग के बाद अगर सब सही रहा तो 23-24 अगस्त को यह चंद्रमा पर लैंड करेगा. चंद्रयान-3 मिशन को इसरो द्वारा लॉन्च किया जाएगा. इसके लिए तैयारियां शुरू की जा चुकी हैं और लॉन्च वीकल मार्क -III (LVM3) को चंद्रयान-3 के साथ जोड़ा जा चुका है.

क्या है Chandrayaan-3 में खास

चंद्रयान-2 की असफलता को देखते हुए चंद्रयान-3 में कई सुधार किए गए हैं. चंद्रयान-3 में पिछले मिशन की तरह ऑर्बिटर के बजाय प्रोपल्शन मॉड्यूल का प्रयोग किया जाएगा. इस मिशन में लैंडर और रोवर को प्रोपल्शन मॉड्यूल के ज़रिए चंद्रमा से 100 किलोमीटर की दूरी तक लेकर जाया जाएगा. पिछले चंद्रयान-2 में यह काम ऑर्बिटर के ज़रिए किया गया था. दरअसल, ऑर्बिटर में जिस टेक्नॉलजी का प्रयोग किया जाता है उससे चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने तक बीच में किसी खराबी के आने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं जबकि प्रोपल्शन मॉड्यूल में इसकी संभावना कम है.

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इसके अलावा इस बार लैंडर में कुछ खास एक्विपमेंट्स भी लगाए गए हैं जिसकी वजह से चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की संभावना ज्यादा है.

इसके अलावा प्रोपल्शन मॉडयूल स्पेक्ट्रो-पोलैरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) पेलोड से लैस होगा. योजना के मुताबिक लैंडर और रोवर की चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी जिसके बाद रोवर चंद्रमा के केमिकल स्ट्रक्चर के बारे में विश्लेषण करेगा. चंद्रयान-3 में प्रोपल्शन सिस्टम में कई बदलाव किए गए हैं और नए सेंसर्स भी लगाए गए हैं. पिछली असफलता को देखते हुए इसरो इस बार कोई भी कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता है.

लैंडर और रोवर दोनों में चंद्रमा की सतह को स्टडी करने के लिए स्पेसिफिक पेलोड डाले गए हैं. प्रोपल्शन मॉड्यूल का मुख्य काम लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा के 100 किलोमीटर की सर्कुलर पोलर ऑर्बिट में लेकर जाना होगा इसके अलावा उसमें एक साइंटिफिक पेलोड भी होगा जो कि लैंडर मॉड्यूल के अलग होने के बाद ऑपरेट करना शुरू करेगा.

कितने दिनों का होगा मिशन

यह मिशन लगभग दो हफ्ते या 14 दिनों का होगा क्योंकि चंद्रमा पर हमें सिर्फ 14 दिनों के लिए ही सूरज की रोशनी मिलेगी. एक बार अंधेरा होने के बाद रोवर में लगे सोलर पैनल और अन्य तमाम इक्विपमेंट्स काम करना बंद कर देंगे. चूंकि चंद्रमा की सतह पर पृथ्वी जैसा वातावरण नहीं है इसलिए वहां पर दिन के वक्त तापमान बहुत ऊंचा रहता है जबकि रात के वक्त अत्यधिक ठंड होती है.

इसलिए रात होने पर तापमान काफी कम होने से कई इक्विपमेंट्स के टूट जाने की संभावना रहती है और कुछ इक्विमेंट्स ऐसे भी हैं जिन्हें एक बार बंद होने के बाद दोबारा चालू नहीं किया जा सकेगा. ये ऐसे इक्विमेंट्स होते हैं जिनकी एक बार पावर सप्लाई बंद हो जाने पर पृथ्वी से उन्हें दोबारा कमांड नहीं दिया जा सकेगा. बता दें कि चंद्र दिवस पृथ्वी के 29.5 दिनों के बराबर होता है इसलिए चंद्रमा पर लगभग 15 दिन अंधेरा और 15 दिन उजाला रहता है. चूंकि रोवर सोलर पैनल्स की सहायता से संचालित होगा इसलिए एक बार अंधेरा होने के बाद रोवर काम करना बंद कर देगा.

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क्या करेगा चंद्रयान-3

इस मिशन के तहत चंद्रमा की सतह पर सेफ और सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर को अलग अलग साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट करना होगा. इसके जरिए चंद्रमा की चट्टानों की ऊपरी परत की थर्मोफिजिकल विशेषताएं, चंद्रमा पर भूकंप के आने के बारे में और प्लाज़्मा वातावरण इत्यादि के बारे में पता लगाया जाएगा.

इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा, ‘हम चंद्रमा पर रोवर को तभी लैंड करेंगे जब वहां पर दिन होगा. उन्होंने बताया कि चंद्रमा पर पृथ्वी के समय के हिसाब से 15 दिन तक उजाला रहता है जिसे चंद्रमा का एक दिन कहा जाता है और 15 दिनों तक अंधेरा रहता है जिसे चंद्रमा की रात कही जाती है.’ सोमनाथ ने कहा, ‘अगर हम 23-24 अगस्त को सनराइज़ के वक्त लैंड नहीं कर पाएंगे तो फिर हम थोड़ा इंतज़ार करेंगे और इसे सिंतबर में लैंड करेंगे जब वहां दोबारा सनराइज़ होगा.’

क्यों हुआ था चंद्रयान-2 फेल

इसके पहले साल 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया था लेकिन चंद्रमा की सतह पर रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग न करा पाने की वजह से वह मिशन फेल हो गया. इसरो ने लैंडर को ‘विक्रम’ और रोवर को ‘प्रज्ञान’ नाम दिया था और इसे जीएसएलवी से प्रक्षेपित किया गया था.

इसरो चेयरमैने एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 के फेल होने के क्या कारण थे. उन्होंने बताया कि चंद्रयान-2 ने लैंडिंग के पहले तक काफी बेहतर प्रदर्शन किया और सब कुछ काफी ठीक था लैंडिंग के वक्त वह निर्धारित से तेज़ गति से चंद्रमा की सतह पर टकराया जिससे क्रैश लैंडिंग हो गई.

उन्होंने आगे कहा कि हम लोग साउथ पोल के एक खास एरिया में लैंडिंग कराने की कोशिश कर रहे थे जिसकी वजह से हमें कुछ दिक्कतें आईं-

सोमनाथ ने बताया लैंडर में 5 इंजन थे जिन्हें रोवर को लैंड कराने के लिए गति को धीमा करना था लेकिन थ्रस्ट डेवलप होने की वजह से गति अपेक्षित तौर पर धीमी नहीं हो पाई.

उन्होंने कहा कि अंतिम चरण तक सब कुछ ठीक था लेकिन हम लोग साउथ पोल पर एक खास जगह पर लैंड करना चाहते थे और अंतिम समय में वहां तक पहुंचने के लिए समय कम बचा था इसलिए जब लैंडर सतह पर पहुंचा तो यह तय स्पॉट से आधे किलोमीटर दूर था और गति अपेक्षित गति से ज्यादा थी.

सोमनाथ ने कहा कि इससे यह निष्कर्ष निकला कि चंद्रयान-2 में पैरामीटर वैरिएशन को हैंडल करने की क्षमता बहुत सीमित थी तो इस बार हमने इसकी क्षमता को बेहतर बना दिया है.

चंद्रयान-2 मिशन 2007 में रूस की स्पेस एजेंसी रॉसकॉम के साथ मिलकर शुरू किया गया था लेकिन बाद में जनवरी 2013 और फिर 2016 के लिए इसे टाल दिया गया था क्योंकि रूस रोवर को उतारने के लिए लैंडर नहीं बना सका. बाद में भारत ने अकेले ही चंद्रयान-2 मिशन पर काम किया.

इसके भी पहले 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरि कोटा से लॉन्च किया गया था. यह करीब 312 दिनों तक ऑपरेशनल रहा था इसके बाद इससे संपर्क टूट गया था. बाद में 29 अगस्त 2009 को इसे इसरो द्वारा इसे असफल घोषित कर दिया गया.

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किस तरह से होगी लैंडिंग

चंद्रयान-3 जैसे ही चंद्रमा के गुरुत्वीय फील्ड में पहुंचेगा वैसे ही इसकी ऊंचाई को धीरे-धीरे घटाया जाएगा, फिर यह चंद्रमा की चारों तरफ सर्कुलर ऑर्बिट में प्रवेश करेगा. इसके बाद चंद्रमा की सतह पर रोवर के लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और लैंडर-रोवर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. पिछली बार की तरह इस बार भी इसरो ने लैंडर का नाम विक्रम और रोवर का नाम प्रज्ञान रखा है. और पिछले मिशन की तरह ही इस भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने की योजना है. अगर यह मिशन सफल रहता है तो यह चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला यह पहला मिशन होगा.

कौन-कौन से देश पहले भेज चुके हैं मिशन

भारत के पहले सोवियत यूनियन, यूनाइटेड स्टेट्स और चीन सफलतापूर्वक मून मिशन भेज चुके हैं. लेकिन इन सभी में केवल अमेरिका ही ऐसा है जिसने किसी मानव को चंद्रमा पर भेजा है, भारत सहित बाकी के सारे देशों ने मानव रहित मिशन भेजे हैं. अमेरिका ने अपना पहला मिशन 1969 में भेजा था जब नील आर्म्सट्रॉन्ग ने पहली बार चंद्रमा पर कदम रखा था.


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