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Friday, 20 December, 2024
होमदेशचंद्रचूड़ ने कोर्ट में 'महिला दृष्टिकोण' रखने का आह्वान किया, कुछ भारतीय इसे पचा नहीं पा रहे हैं

चंद्रचूड़ ने कोर्ट में ‘महिला दृष्टिकोण’ रखने का आह्वान किया, कुछ भारतीय इसे पचा नहीं पा रहे हैं

ट्विटर पर #NotMyCJI ट्रेंड शुरू हो गया है और लोग जस्टिस चंद्रचूड़ पर 'टोक्सिक फेमिनिज्म' को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं.

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नई दिल्ली: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के रूप में अपना कार्यकाल शुरू करने से तीन हफ्ते से भी कम समय में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ भारतीय संस्कृति को ‘नुकसान’ पहुंचाने वाली नारीवाद पर बहस का केंद्र बन गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को प्रगतिशील रुख रखने के लिए जाना जाता है – समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने के लिए निजता का अधिकार. लेकिन कुछ सोशल मीडिया यूजर्स भविष्य के सीजेआई के विचारों को पचा नहीं पा रहे हैं.

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) दिल्ली के छात्रों से कानून का अभ्यास करने के तरीके में ‘नारीवादी सोच को शामिल करने’ का आग्रह करने के बाद ट्विटर पर #NotMyCJI ट्रेंड शुरू हो गया है और लोग जस्टिस चंद्रचूड़ पर ‘टोक्सिक फेमिनिज्म’ को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं. वरिष्ठ अधिवक्ताओं और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को भावी सीजेआई पर तीखे हमलों से झटका लगा है.

23 अक्टूबर की शाम तक, #NotMyCJI को 41 हजार से अधिक बार ट्वीट किया जा चुका था. हर गुजरते मिनट के साथ री-ट्वीट बढ़ते ही जा रहे थे. वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन कहते हैं, ‘यह हमेशा होता है, लेकिन चंद्रचूड़ अपने विचारों के बारे में अधिक मुखर हैं, प्रतिक्रियाएं होंगी. ईमानदारी से, [हमें] सोशल मीडिया प्रतिक्रियाओं को नजरअंदाज करना चाहिए.’


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कोर्ट रूम में फेमिनिज्म

15 अक्टूबर को एनएलयूडी में अपने दीक्षांत समारोह में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कई मुद्दों पर बात करते हुए बताया कि न्याय कैसे सर्वोत्तम सेवा प्रदान करता है. उन्होंने कहा, ‘कानून का शासन, अगर ठीक से समझा और लागू किया जाता है, तो पितृसत्ता, जातिवाद और सक्षमता जैसे दमनकारी संरचनाओं के खिलाफ एक बचाव होता है.’

लेकिन यह ‘नारीवादी सोच’ पर उनकी टिप्पणी ही थी जो चर्चा का विषय बन गई है.

वकीलों ने उनकी ‘प्रगतिशील और सकारात्मक’ टिप्पणियों का स्वागत किया और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने नारीवाद के लिए उनकी ‘निडर और कठोर’ आवाज की सराहना की. वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने दिप्रिंट से यह समझाने के लिए बात की कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के शब्दों को ‘नारीवाद एक सकारात्मक कार्रवाई’ के रूप के संदर्भ में लिया जाना चाहिए.

वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा कहती हैं, जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर दिए गए बयान नारीवाद की बेहतर समझ का आह्वान करेंगे. वो कहती हैं, ‘नारीवादी सोच लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दृष्टि से है. जबकि अलग-अलग लोगों के लिए इन शब्दों के मायने अलग-अलग हो सकते हैं, मुझे लगता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसका इस्तेमाल केवल महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में अधिक प्रगतिशील और सकारात्मक होने के लिए किया था.’

वकील यह भी बताते हैं कि एक पुरुष न्यायाधीश के लिए एक महिला के दृष्टिकोण से स्थिति को देखना अहम था.

अधिवक्ता सुनील फर्नांडीस कहते हैं, ‘उनका [चंद्रचूड़] कहने का मतलब यह था कि जब एक महिला पीड़ित होती है, तो एक पुरुष न्यायाधीश को अपने पुरुष द्वारा लगाई गई सीमाओं को भूल जाना चाहिए और एक महिला के दृष्टिकोण से चीजों को देखने और सीखने की कोशिश करनी चाहिए.’

प्रगतिशील विचारों का इतिहास

चंद्रचूड़ को उनके समावेशी निर्णयों के लिए जाना जाता है जैसे कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को खत्म करना, जिसने 2018 में समलैंगिकता को अपराध घोषित कर दिया था, महिला सेना अधिकारियों को 2020 में स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग समेत हाल ही में, विवाहित और अविवाहित महिलाओं को गर्भपात के अधिकारों का विस्तार करना.

#NotMyCJI पर ट्वीट की बाढ़ 2018 में की गई उनकी टिप्पणियों से और आ गई जब सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को हटा दिया, जिससे व्यभिचार को अपराध बना दिया गया था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक पुरुष ‘अपनी पत्नी की सेक्शुअलिटी का मालिक’ नहीं है; शादी करके, एक महिला शादी के बाहर यौन संबंधों से परहेज करने के लिए सहमति नहीं देती है.

कई लोगों ने उन्हें ‘जागृत’ बताते हुए कहा कि वह एक ‘अनैतिक और पश्चिमी संस्कृति’ को अपना रहे हैं और भारतीय संस्कृति के ताने-बाने को ‘नष्ट’ कर रहे हैं. दूसरों ने मांग की है कि न्यायाधीशों की वर्तमान व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए साथ ही उन पर ‘परिवारों को तोड़ने’ का आरोप लगाया जा रहा है.

फर्नांडीस बताते हैं कि यह पांच न्यायाधीशों की एक बेंच थी – जिसमें चंद्रचूड़ सदस्य थे – इसने व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. उन्होंने आगे कहा, ‘इसका गलत अर्थ नहीं निकाला जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट व्यभिचार का समर्थन कर रहा है. इसका सीधा सा मतलब है कि व्यभिचार के लिए कोई आपराधिक मामला शुरू नहीं किया जा सकता है.’

फर्नांडीस के अनुसार, एक विवाहित महिला की यौन स्वायत्तता पर चंद्रचूड़ का दृष्टिकोण भी एक प्रगतिशील दृष्टिकोण है. वे कहते हैं, ‘सिर्फ इसलिए कि वह पसंद के अधिकार का समर्थन कर रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वह या सुप्रीम कोर्ट इसे अनिवार्य बना रहे हैं या इसे भारत में किसी पर भी लागू कर रहा हैं.’ सोशल मीडिया यूजर्स चंद्रचूड़ को जज से ज्यादा ‘एक्टिविस्ट’ बता रहे हैं.

डीईआईबी एक्सपर्ट और लीडरशिप कोच अपर्णा जैन कहती हैं, ‘महिलाओं के रूप में पहचान रखने वाले लोगों के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ जैसे सहयोगियों का सत्ता में होना अहम है, यह और भी महत्वपूर्ण है कि वह अन्य पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एकमिसाल कायम कर सकें.’

दीक्षांत समारोह में जस्टिस चंद्रचूड़ ने छात्रों से कहा कि वे अपने अभ्यास में 360 डिग्री का दृष्टिकोण अपनाएं. उन्होंने उनसे कहा कि महिलाओं के लिए कानून को और अधिक समावेशी बनाने के लिए उन्हें और खुद, ‘कानून को हम कैसे समझते हैं और सामाजिक अनुभवों को कैसे लागू करते हैं, इसके संदर्भ में सीखने के लिए बहुत कुछ है.’

रेड डॉट फाउंडेशन के संस्थापक एल्सामेरी डी सिल्वा कहते हैं, ‘मेरा मानना ​​है कि जस्टिस चंद्रचूड़ सही हैं. मैं कानून के लिए अधिक नारीवादी नजर से देखने के लिए तैयार हूं. इसे निडर और सख्ती से करने की जरूरत है, मुझे ऐसा लगता है कि वह ऐसा कर रहा हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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