नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने के संबंध में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा एक के मुकालबे आठ के बहुमत से दिए गए फैसले के बाद उसने एक सुधारात्मक याचिका दायर की है।
शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया था कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्यों के पास है।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहुमत के फैसले के खिलाफ न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष याचिका दायर करने की जानकारी दी। मेहता ने कहा, ‘हमने पूरी गंभीरता से सुधारात्मक याचिका दायर की है।’
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 जुलाई, 2024 के अपने फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि संसद के पास संविधान की सूची एक की प्रविष्टि 54 के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं है। यह प्रविष्टि केंद्र द्वारा खानों और खनिज विकास के विनियमन से संबंधित है।
इस फैसले में यह भी कहा गया कि संसद खनिज अधिकारों पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार पर ‘कोई सीमा’ लगाने के लिए कानून बना सकती है।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने असहमति वाले अपने फैसले में कहा कि रॉयल्टी कर या वसूली की प्रकृति की होती है और केंद्र के पास इसे लगाने का अधिकार है।
पिछले वर्ष 14 अगस्त को खनिज संपदा से समृद्ध राज्यों के लिए एक बड़ी जीत के रूप में शीर्ष अदालत ने उन्हें केंद्र और खनन कंपनियों से खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर एक अप्रैल 2005 से 12 वर्षों की अवधि में हजारों करोड़ रुपये मूल्य की रॉयल्टी और कर बकाया वसूलने की अनुमति दे दी थी।
फैसले में कहा गया कि राज्यों द्वारा कर की मांग के भुगतान का समय एक अप्रैल, 2026 से शुरू होकर 12 वर्षों की अवधि में किस्तों में विभाजित किया जाएगा।
भाषा आशीष अविनाश
अविनाश
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