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Saturday, 27 September, 2025
होमदेश‘केंद्र ने हमारे सब्र का अपमान किया, BJP के खिलाफ गुस्सा’ — कैसे सुलगता आक्रोश लद्दाख में आग बन गया

‘केंद्र ने हमारे सब्र का अपमान किया, BJP के खिलाफ गुस्सा’ — कैसे सुलगता आक्रोश लद्दाख में आग बन गया

CRPF और पुलिस का कहना है कि राज्य का दर्ज़ा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर भूख हड़ताल के दौरान हिंसा की उम्मीद नहीं थी. ‘भीड़ पेट्रोल-केरोसिन लेकर आई थी, इसमें कई बाहरी लोग भी शामिल थे.’

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लेह: जब 72 साल के त्सेरिंग आंगचुक और 60 साल ताशी डोलमा मंगलवार रात भूख हड़ताल के दौरान बेहोश होकर गिर पड़े और उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ा, तो इसने लद्दाख को उसकी खामोशी से झकझोर दिया. तब तक, राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के प्रावधानों की मांग कर रहे आंदोलन में कई युवा लद्दाखी अलग-थलग ही रहे थे, लेकिन आंगचुक और डोलमा की हालत पर गुस्सा, जोशीले भाषणों और भावनात्मक अपीलों से और भड़क उठा और बुधवार को नवांग डोरजे स्तोबदान (एनडीएस) मैदान में हुए जुलूस में करीब 5,000 लोग शामिल हो गए.

लेकिन यह एकजुटता जल्द ही गुस्से में बदल गई. हाथों में केरोसिन की बोतलें, डंडे और सरिए लिए एक समूह लेह की आमतौर पर शांत सड़कों पर निकल पड़ा. शांतिपूर्ण प्रदर्शन अचानक हिंसा में बदल गया, जिसकी उम्मीद सुरक्षा बलों ने भी नहीं की थी.

बुधवार की हिंसा को किसने भड़काया और क्या यह पहले से योजनाबद्ध थी—ये सवाल अब भी बने हुए हैं. वहीं लद्दाख प्रशासन और प्रदर्शनकारी अपने-अपने कदमों का बचाव कर रहे हैं. पुलिस फायरिंग में कम से कम चार लोग, जिनमें एक पूर्व सैनिक भी शामिल है, मारे गए और 70 लोग घायल हुए जिनमें कम से कम 30 पुलिसकर्मी और अर्धसैनिक बल के जवान भी हैं.

तो क्या यह खुफिया तंत्र की नाकामी थी? लद्दाख में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “हमें कुछ जानकारी थी कि बाहरी लोग मौजूद हैं, लेकिन यहां तक के विरोध-प्रदर्शन हमेशा शांतिपूर्ण रहे हैं. बलों को उम्मीद नहीं थी कि बिना उकसावे के पत्थरबाजी और हमले होंगे.”

बुधवार को लेह में भीड़ द्वारा जलाई गई गाड़ी के जले हुए अवशेष | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
बुधवार को लेह में भीड़ द्वारा जलाई गई गाड़ी के जले हुए अवशेष | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

दिप्रिंट से बात करते हुए लेह के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) स्तानजिन नोरबू ने बताया कि 23 सितंबर को बड़े पैमाने पर प्रदर्शन का आह्वान किया गया था. उन्होंने कहा, “लेह एपेक्स बॉडी के यूथ को-ऑर्डिनेटर स्तानजिन चोफेल और उपाध्यक्ष रिगजिन डोरजे ने भावनात्मक भाषण दिए और जनता से बड़ी संख्या में प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की.”

उन्होंने आगे बताया, “सोशल मीडिया और आपसी बातचीत के जरिए बड़े पैमाने पर जुटान शुरू हो गया. नेताओं ने युवाओं से कहा, ‘देखो, बुजुर्ग लद्दाख के लिए बलिदान दे रहे हैं.’”

एसएसपी नोरबू के अनुसार, एनडीएस मैदान में भूख हड़ताल में रोज़ाना महज़ 140 से 400 लोग आते थे, लेकिन बुधवार को भीड़ बढ़ गई। उन्होंने बताया कि वांगचुक और कांग्रेस पार्षद फुंतसोग स्तानजिन त्सेपग और स्मानला दोरजे नुरबू के भाषणों का वीडियो फुटेज पुलिस के पास है, जिनमें कुछ ने यह तक कहा कि वे भूख हड़ताल में विश्वास नहीं करते.

लेह में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग वाला पोस्टर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
लेह में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग वाला पोस्टर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

वांगचुक को शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया. उनके खिलाफ छह अलग-अलग दंगों और आगज़नी की घटनाओं में भारतीय न्याय संहिता (बीएनसी) की संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज है. उन्हें आरोपित बनाया गया है. उनके अलावा कम से कम 40 लोगों को, जिनमें पूर्व सैनिक भी शामिल हैं, हिंसा से जुड़े मामलों में पकड़ा गया है.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जांचकर्ता दो ऐसे लोगों की तलाश कर रहे हैं जिनका किसी राजनीतिक दल से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन वे कथित तौर पर नागरिक समाज समूहों के साथ जुड़े हो सकते हैं, जो इस हिंसा से ‘लिंक्ड’ हैं.

लेह एपेक्स बॉडी, जो इस आंदोलन की अगुवाई कर रही है, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का एक गठबंधन है, जिसमें कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) भी शामिल है. वांगचुक भी इसका हिस्सा हैं. इसने हिंसा के मद्देनज़र पूर्ण बंद का आह्वान किया है और न्यायिक जांच की मांग की है.

शुक्रवार को कर्फ्यू के बीच लेह में सन्नाटा पसरा रहा. सुनसान सड़कों पर दुकानों के शटर बंद रहे. टैक्सी ड्राइवर भी बाहर निकलने से डर रहे थे. इस बीच, हिंसा में गिरफ्तार किए गए लोगों के परिजन पुलिस कॉलोनी के बाहर इकट्ठा हो गए, जहां अधिकारी हालात की समीक्षा कर रहे थे और वे अपने परिजनों की बेगुनाही की गुहार लगाने लगे.

शुक्रवार को वीरान नज़र आता लेह का बाज़ार | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
शुक्रवार को वीरान नज़र आता लेह का बाज़ार | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

भीड़ को जुटने से रोकने के लिए लेह के कुछ हिस्सों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं.


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मोबिलाइजेशन: भूख हड़ताल से उपद्रव तक

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि लेह में पिछले 10 दिनों से असंतोष सुलग रहा था; आंगचुक और डोलमा का अस्पताल पहुंचना बस चिंगारी साबित हुआ. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने इसे बहाना बनाकर उन शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर भी कार्रवाई शुरू कर दी जो हिंसा से दूर थे.

अस्पताल के बिस्तर से दिप्रिंट से बात करते हुए 23 साल के जिगमेत ने कहा, “लद्दाखियों को अपनी मांगों—राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा को लेकर आंदोलन करने के लिए सोशल मीडिया की ज़रूरत नहीं है. जब हमें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला था तो हम खुश थे, लेकिन उन्होंने हमें बेवकूफ बनाया.”

उन्होंने आगे कहा, “वे चाहते हैं कि यहां और-और बाहरी लोग आएं और सब कुछ बर्बाद कर दें, यहां का पर्यावरण भी और यहां के लोगों की रोज़ी-रोटी भी. यहां भारी बेरोजगारी है.”

लेह का एक अस्पताल, जहां हिंसा में घायल लोग भर्ती हैं | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
लेह का एक अस्पताल, जहां हिंसा में घायल लोग भर्ती हैं | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

जिगमेत ने बताया कि वह बुधवार को आंदोलन में शामिल हुए, इससे पहले उन्होंने कभी वांगचुक की भूख हड़तालों में हिस्सा नहीं लिया था. यहां तक कि 10 सितंबर को शुरू हुई नवीनतम हड़ताल में भी नहीं. उन्होंने कहा, “सरकार लद्दाख फेस्टिवल को ऐसे करना चाहती थी जैसे सब कुछ सामान्य हो.” लेकिन गुरुवार को फेस्टिवल के स्टॉल खाली पड़े थे, सजावटें ज़मीन पर बिखरी हुई थीं, इस बात की गवाही देते हुए कि लेह ने कैसी हिंसा देखी.

नाम न बताने की शर्त पर एक और प्रदर्शनकारी ने कहा, “युवा लगातार चर्चा कर रहे थे कि सरकार कितना अन्याय कर रही है. बेरोज़गारी पर गुस्सा भी बढ़ रहा था. यह आंदोलन एक दिन में शुरू नहीं हुआ, न ही किसी एक व्हाट्सएप ग्रुप से. यह बहुत रणनीतिक रूप से संगठित भी नहीं था, जैसा कि सरकार कहेगी. यह बस सामूहिक गुस्सा था, जैसा तब होता है जब लोग अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर सड़कों पर उतरते हैं.”

पीएलएफएस 2022-23 रिपोर्ट के अनुसार, लद्दाख की बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत 3.2 प्रतिशत से अधिक है. संसद में सरकार ने बताया था कि 2021-22 से 2022-23 के बीच लद्दाख में बेरोज़गार ग्रेजुएट्स की संख्या में 16 प्रतिशत से भी ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज हुई, जो देश में सबसे तेज़ है.

बुधवार की घटनाओं को याद करते हुए दिप्रिंट से बात करने वाले चश्मदीदों ने बताया कि हिंसा सबसे पहले चीता चौक पर भड़की, जो एनडीएस मैदान से लगभग 300 मीटर दूर है, जहां वांगचुक और अन्य भूख हड़ताल पर बैठे थे. भीड़ ने वहां से स्थानीय बीजेपी दफ्तर में तोड़फोड़ की, आगजनी की और पुलिस की गाड़ियों में आग लगा दी. एक घायल प्रदर्शनकारी ने, जो अस्पताल में भर्ती है, पुष्टि की, “हंगामा चीता चौक से शुरू हुआ.”

उन्होंने कहा कि जब कुछ प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया तो सीआरपीएफ ने “फायरिंग” की.

हिंसा के गवाह एक सीआरपीएफ जवान ने दिप्रिंट को बताया, “भीड़ का एक हिस्सा लेह हिल डेवलपमेंट काउंसिल के सचिवालय की तरफ बोतलें फेंकने और पथराव करने लगा. फिर कुछ लोग बीजेपी दफ्तर पहुंचे और उसमें तोड़फोड़ की. हम समझ ही नहीं पाए कि यह सब कैसे शुरू हुआ क्योंकि यह सब बिना किसी उकसावे के हो रहा था. हमने इसकी उम्मीद नहीं की थी.”

24 सितंबर की हिंसा में लेह का बीजेपी दफ्तर तोड़फोड़ का शिकार | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
24 सितंबर की हिंसा में लेह का बीजेपी दफ्तर तोड़फोड़ का शिकार | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

24 साल के स्थानीय ड्राइवर स्टैंज़िन नामग्याल, जिन्हें पैर में गोली लगी, ने कहा, “पुलिस ने पहले आंसू गैस चलाई और फिर गोलियां चलाईं.”

उन्होंने कहा, “मैं रोज़ाना भूख हड़ताल का हिस्सा नहीं था, लेकिन बुधवार की रैली में शामिल हुआ. हम छठी अनुसूची की सुरक्षा चाहते हैं ताकि बाहरी लोग हमारे खूबसूरत लद्दाख को बर्बाद न कर सकें.” नामग्याल ने ज़ोर दिया कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी थे, भूख हड़ताल का हिस्सा थे, रैली का नहीं.

एसएसपी नोरबू ने बताया कि हालात सुबह करीब 10:30 बजे बिगड़े और शाम 5 बजे तक काबू में लाए गए. उन्होंने कहा, “वे लोग केरोसिन की बोतलें लेकर आए थे. यहां इतनी केरोसिन हो ही नहीं सकती, तो उन्होंने इसे बाहर से मंगवाया और तैयारी करके आए. यह योजनाबद्ध लगता है. हालांकि, यह ठीक-ठीक कब शुरू हुआ, यह तभी साफ होगा जब हम उन लोगों की पहचान करेंगे जिन्होंने सीधे तौर पर हिंसा के लिए आह्वान किया और भीड़ का नेतृत्व किया.”

खामोशी के पीछे

खूबसूरत लेह में गुरुवार और शुक्रवार सुबह एक झूठी शांति दिखाई दी, लेकिन प्रदर्शनकारियों, ज्यादातर 20 साल के आसपास के युवाओं का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ था. जब नामग्याल से पूछा गया कि क्या वह फिर से सड़कों पर उतरेंगे, तो उन्होंने बिना झिझक कहा, “मुझे लगता है हां, हम सालों से मांग कर रहे हैं. अब क्यों रुकें?”

इसी तरह की भावना जताते हुए जेरी, जो जम्मू-कश्मीर के पाडर के रहने वाले हैं और पिछले पांच साल से लेह में रह रहे हैं जहां वह मोटरसाइकिल रेंटल कंपनी में काम करते हैं, ने कहा, “गुस्सा बीजेपी के खिलाफ है, किसी और के खिलाफ नहीं.”

उन्होंने कहा, “इसीलिए उनका (बीजेपी का) दफ्तर निशाना बना. हम वहां टकराव के लिए गए थे. कुछ युवाओं ने पत्थर उठाए, लेकिन पुलिस ने भी फायरिंग की. दोनों तरफ से हुआ, लेकिन प्रदर्शनकारियों के पास बंदूकें नहीं थीं.”

लेह इस समय सख्त कर्फ्यू के भीतर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
लेह इस समय सख्त कर्फ्यू के भीतर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

छठी अनुसूची की मांग को लेकर जेरी ने कहा कि “भूख हड़ताल दो साल पहले शुरू हुई थी और शांतिपूर्ण ही रही, लेकिन केंद्र ने लद्दाखियों की सहनशीलता का अपमान किया.”

उन्होंने कहा, “सभी धर्मों के लोग जुलूस में शामिल हुए. मई से बातचीत ठप है; अब कहते हैं अक्टूबर में होगी.” अपनी उंगलियों पर बुधवार की हिंसा में लगी हल्की चोट को देखते हुए 23 साल के जेरी ने कहा, “बिलकुल, युवा गुस्से में हैं, मैं भी हूं.”

वहीं वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास प्रदर्शनकारियों के हथियार लेकर आने के सबूत हैं और कुछ सुरक्षा कर्मियों को जानलेवा चोटें लगी हैं.

लद्दाख डीजीपी एस.डी. सिंह जमवाल ने कहा, “प्रदर्शन में कई बाहरी लोग शामिल थे. हम जांच कर रहे हैं कि यह भीड़ कैसे जुटाई गई.” दिप्रिंट के पास जो घायलों की सूची है उसमें डोडा और जम्मू के अन्य हिस्सों के लोग, साथ ही बिहार और यहां तक कि नेपाल के लोग भी शामिल हैं.

लेह एपेक्स बॉडी ने “बाहरी” लोगों की मौजूदगी के दावे से इनकार किया और कहा कि हिंसा में घायल हुए जम्मू या बिहार के लोग तो महज़ राहगीर थे.

डीजीपी जमवाल ने दिप्रिंट से कहा कि वांगचुक और “कांग्रेस पार्टी जैसे राजनीतिक नेताओं ने लद्दाख के लोगों को भड़काया.”

उन्होंने कहा, “लेह एपेक्स बॉडी ने आधिकारिक रूप से आम प्रदर्शन आयोजित किया था, लेकिन यह हिंसक प्रदर्शन उनका नहीं था. सोनम वांगचुक ने पहले लोगों से कोविड के चलते मास्क पहनकर विरोध करने को कहा, लेकिन असल में वे लोगों से यह कह रहे थे कि पहचान से बचें. उन्होंने अपने भाषणों में श्रीलंका और नेपाल की हिंसा का हवाला दिया. वे इस्लामाबाद भी गए हैं. यह सब धीरे-धीरे पकाया गया था.”

वांगचुक ने अपनी गिरफ्तारी से एक दिन पहले इसे “बलि का बकरा बनाने की चाल” बताया था. दिप्रिंट से बात करने वाले लगभग सभी प्रदर्शनकारियों ने भी यही कहा. उनका कहना था कि वांगचुक का हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था और भीड़ में बुधवार को एनडीएस मैदान पर पहुंचे युवा शामिल थे. हालांकि, वे यह नहीं बता पाए कि भीड़ का नेतृत्व किसने किया.

इस बीच, एनडीएस मैदान, जहां वांगचुक की भूख हड़ताल चल रही थी, की दीवारों पर “लद्दाख के लिए छठी अनुसूची, लद्दाख हिमालय को बचाओ” के पोस्टर लगे हैं. बुधवार की हिंसा ऐसे निशान छोड़ गई है जिन्हें भरने में सालों लग सकते हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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