नई दिल्ली : समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता के बिना उनके अधिकारों पर विचार के लिए केंद्र सरकार सहमत हो गई है. केंद्र LGBTQIA+ समुदाय के मुद्दों पर गौर करने के लिए केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाएगा. भारत के सॉलिटर जनरल तुषार मेहता ने ये जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी है.
समलैंगिक विवाह से जुड़ी एक याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की है. केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC को अवगत कराया कि समलैंगिक जोड़ों के सामने आने वाले मुद्दों को देखने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी. एसजी मेहता का कहना है कि याचिकाकर्ता सुझाव दे सकते हैं, ताकि समिति इस पर ध्यान दे सके.
Centre agrees to set up a committee headed by Union Cabinet Secretary to look into issues faced by the LGBTQIA+ community. pic.twitter.com/A0HiqE3blF
— ANI (@ANI) May 3, 2023
पिछली सुनवाई की तारीख पर संविधान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सरकार द्वारा समलैंगिक जोड़ों के सामाजिक सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए उनके कुछ अधिकारों को लेकर निर्देश देने को कहा था.
पीठ ने पूछा था कि क्या कोई कार्यकारी दिशा-निर्देश जारी किया जा सकता है जिससे कि समलैंगिक जोड़ों की वित्तीय सुरक्षा का उपाय किया जा सके, जैसे कि- संयुक्त बैंक खाते खोलना, जीवन बीमा पॉलिसियों में भागीदार बनाना, भविष्य निधि वगैरह.
आज जैसे ही संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की, एसजी मेहता ने पीठ को सूचित किया कि उन्होंने बेंच के दिए गए सुझावों के संबंध में निर्देश ले लिया है.
एसजी ने कहा, ‘सरकार सकारात्मक है. हमने जो निर्णय लिया है वह यह है कि इसके लिए एक से अधिक मंत्रालयों के बीच समन्वय की जरूरत होगी. इसलिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति बनाई जाएगी.’
एसजी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील अपने सुझाव दे सकते हैं और उन्हें (एलजीबीटीक्यूएआई को) होने वाली समस्याओं से अवगत कराएं और सरकार जितना भी कानूनी तौर पर संभव होगा इस मुद्दे को देखेगी.
CJI चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि, सॉलिसिटर जनरल और मामले में उपस्थित वकीलों सप्ताह के अंत में चर्चा के लिए बैठक कर सकते हैं. सीजेआई ने साफ किया कि इस कवायद को पूर्वाग्रह के साथ नहीं देखा जाएगा.
सीजेआई ने कहा, ‘एसजी द्वारा पिछली बार की गई प्रस्तुतियों से ऐसा लगता है कि वह भी स्वीकार करते हैं कि लोगों को सहवास का अधिकार है और यह अधिकार एक स्वीकृत सामाजिक हकीकत है. इसके आधार पर कुछ चीजें हो सकती हैं- एक साथ बैंक खाते, बीमा पॉलिसीज, ये व्यावहारिक मुद्दे हैं जिन्हें सरकार द्वारा हल किया जा सकता है.’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मामले में पर्याप्त संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं, और इसलिए सरकार द्वारा महज ‘प्रशासनिक फेरबदल’ से मुद्दों को पूरी तरह से हल नहीं किया जा सकता है.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि केंद्र की ओर से दी जाने वाली रियायतों की परवाह किए बिना न्यायालय समलैंगिक जोड़ों के विवाह के अधिकार से संबंधित संवैधानिक मुद्दे पर फैसला करेगा.
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