नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2022, लोकसभा में पेश किया. विधेयक में सिर्फ़ दिल्ली के नगर निगमों के एकीकरण का प्रस्ताव ही नहीं है. यह दिल्ली सरकार के अधिकारों को भी कम करने वाला है. नगर निगमों की मौजूदा वित्तीय चुनौतियों से निपटने के लिए यह फैसला लिया गया है. साल 2012 में दिल्ली नगर निगम को, उत्तर दिल्ली नगर निगम, दक्षिण दिल्ली नगर निगम, और पूर्व दिल्ली नगर निगम में बांटा गया था.
विधेयक में उन प्रावधानों को खत्म करने की कोशिश की गई है जो दिल्ली सरकार को दिल्ली नगर निगम के कुछ मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है. दिप्रिंट की ओर से, नए विधेयक और मौजूदा कानून के प्रावधानों की समीक्षा में यह बात सामने आई है.
विधेयक में दिल्ली सरकार के कुछ अधिकारों को कम करने का प्रस्ताव है. इनमें, फंड, म्यूनिसिपल जोन का सीमांकन, निगम के वार्डों के सीमांकन के लिए परामर्श, स्थानीय कानून बनाने को लेकर सुझाव और उनकी मंजूरी देने के अधिकारों के साथ ही, निगम के मालिकाना हक या हिस्सेदारी (वेस्टेड) वाली संपत्ति या धन के नुकसान, बर्बादी या दुरुपयोग के मामले में वार्ड पार्षद, अधिकारियों और म्युनिसिपल के कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराने के अधिकार शामिल हैं.
दिल्ली के तीनों नगर निगमों में 15 अप्रैल के आसपास चुनाव होने की उम्मीद थी. लेकिन, इस महीने की शुरुआत में राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव को टाल दिया. ऐसा इसलिए, क्योंकि केंद्र सरकार ने तीनों निगमों के एकीकरण के लिए समय मांगा था. चुनाव टालने के फैसले का आम आदमी पार्टी ने कड़ा विरोध किया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मामले में कहा, ‘ईसी पर चुनाव रद्द करने के लिए दबाव बनाना, अभूतपूर्व, असंवैधानिक और लोकतंत्र के लिए बुरा है.’
फंड की समस्या
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को तीन हिस्सों में बांटने का काम उस समय, प्रदेश की मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने 2012 में किया था. इसके बाद, दक्षिण, उत्तर, और पूर्व दिल्ली नगर निगम अस्तित्व में आए.
विधेयक के उद्देश्य और कारण में दावा किया गया है कि तीन हिस्सों में बांटने से तीनों निगमों के क्षेत्र और रेवेन्यू पैदा करने की क्षमता में असमानता आ गई है, जिसके समाधान के लिए यह विधेयक लाया गया है.
14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में अनुशंसा की गई है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को हर साल 2.87 लाख करोड़ रुपये की सहायता दे, जिसमें से 87,144 करोड़ रुपये निगमों के लिए है. केंद्र सरकार ने फरवरी 2015 में इस सुझाव को मंजूरी दी थी, लेकिन, केंद्र शासित प्रदेश होने की वजह से दिल्ली को यह फंड नहीं मिलता है. ये बातें राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहीं.
वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यही वजह है कि दिल्ली सरकार की ओर बेसिक टैक्स असाइनमेंट (बीटीए) के तहत इन तीन निगमों को फंड जारी किया जाता है, ताकि वेतन का भुगतान किया जा सके. दिल्ली सरकार यह तय करती है कि बीटीए का कितना हिस्सा निगमों को जारी करना है. इसके अलावा, निगमों को अपने खर्च को पूरा करने के लिए रेवेन्यू के दूसरे स्रोत भी हैं. इनमें प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स शामिल हैं.
राज्य सरकार के उस अधिकारी ने बताया कि इन तीन निगमों को केंद्र सरकार की ओर से स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी खास योजनाओं के लिए फंड मिलते हैं, लेकिन वर्तमान कानून के प्रावधानों के तहत ये फंड भी राज्य सरकार की ओर से ही आवंटित होते हैं.
पिछले कई सालों से दिल्ली के इन नगर निगम का आरोप है कि AAP की दिल्ली सरकार संसाधनों की कटौती करती है, जिसकी वजह से वेतन के भुगतान में देरी होती है और निर्माण संबंधी परियोजनाओं के लिए फंड कम पड़ जाता है. गौरतलब है कि तीनों नगर निगम पर बीजेपी का कब्जा है.
दूसरी तरफ AAP सरकार इन निगमों में चौतरफा भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाती है.
दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2022 में, नगर निगमों के किसी भी मामले में दिल्ली सरकार के हस्तक्षेप के अधिकार पर रोक लगाने का प्रावधान है. वहीं, एकीकृत निगम फंड के लिए पूरी तरह से केंद्र सरकार पर निर्भर रहेगा.
अन्य बदलाव
विधेयक में, मौजूदा कानून के प्रावधानों में जहां कहीं ‘सरकार’ का जिक्र है उसे ‘केन्द्र सरकार’ से बदलने का प्रस्ताव है.
मौजूदा कानून के एक प्रावधान में लिखा गया है, ‘केंद्र सरकार, सरकार से परामर्श के बाद, कभी-कभी, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के जरिए किसी खास क्षेत्र या जोन का नाम बदल सकती है और उसे बढ़ा या घटा सकती है.’
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘सरकार’ शब्द को हटा देने से केंद्र सरकार के पास म्युनिसिपल जोन तय करने का पूरा अधिकार होगा.
फिलहाल, दिल्ली में 12 म्युनिसिपल जोन हैं. इनमें में से हर जोन प्रशासनिक इकाई की तरह काम करता है. इनके प्रमुख आईएएस रैंक का कोई अधिकारी होता है.
विधेयक में स्पष्ट तौर पर परिसीमन के संकेत मिलते हैं. इसका मतलब है कि दिल्ली के नगर निगमों के चुनाव में देरी होगी. साथ ही, केंद्र सरकार को प्रशासनिक मामलों के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार मिल जाएगा.
नया विधेयक लागू होने के बाद, केंद्र सरकार को परिसीमन के मामले में राज्य सरकार से परामर्श लेने की ज़रूरत नहीं होगी. दिल्ली सरकार के जिन अधिकारों की कटौती होगी उनमें वार्ड की कुल संख्या तय करना, म्युनिसिपल चुनावों के लिए वार्ड की सीमा का निर्धारण, और महिला उम्मीदवारों और अनुसूचित जाति के लिए सीट के आरक्षण जैसे मामले शामिल हैं.
फिलहाल, दिल्ली में 272 वार्ड हैं. इनमें से दक्षिण दिल्ली नगर निगम में 104 वार्ड, उत्तर दिल्ली नगर निगम में 104 वार्ड, और पूर्व दिल्ली नगर निगम में 64 वार्ड हैं.
मौजूदा कानून के एक अन्य प्रावधान में कहा गया है, ‘…म्युनिसिपल के प्रत्येक अधिकारी और म्यूनिसिपल के दूसरे कर्मचारी, कॉरपोरेशन के मालिकाना हक या हिस्सेदारी(वेस्टेड) वाले धन या अन्य संपत्ति के नुकसान, बर्बादी या दुरुपयोग के तब जिम्मेदार होंगे, जब इस तरह के नुकसान, बर्बादी या दुरुपयोग उनकी उपेक्षा या कदाचार का सीधा परिणाम हो, ऐसे मामले में सरकार की पूर्व अनुमति के साथ कॉरपोरेशन या सरकार की ओर से कार्रवाई की जा सकती है.’
दूसरे वाले वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस विधेयक में ‘सरकार’ को ‘केंद्र सरकार’ से बदलने का प्रस्ताव है, जिससे कॉरपोरेशन के धन या संपत्ति के नुकसान होने, बर्बादी या दुरुपयोग के मामले में म्युनिसिपल अधिकारी पर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार केंद्र सरकार के पास आ जाएगा.
इसी तरह से, विधेयक में, कॉरपोरेशन की ओर से बनाए गए कानूनों और संशोधन के मसौदे को राज्य सरकार की ओर से मंजूरी देने के अधिकार को भी छीनने का प्रस्ताव है.
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