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Friday, 13 December, 2024
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आरक्षण के लिए मराठा समुदाय की लंबी लड़ाई और कास्ट स्टेटस को समझाने की कोशिश

मराठा समुदाय पिछले 20 वर्षों से भी अधिक समय से आरक्षण के लिए लड़ रहा है और 'कुनबी' जाति प्रमाण पत्र की मांग कर रहा है, ताकि उन्हें ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण मिल सके.

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मुंबई: महाराष्ट्र एक बार फिर सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे मराठा समुदाय के सदस्यों के विरोध प्रदर्शन की चपेट में आ गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया था, जिससे राज्य में आरक्षण की कुल मात्रा 50 प्रतिशत से ऊपर हो गई थी.

इस साल अप्रैल में कोर्ट ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद सरकार ने कहा कि वह क्यूरेटिव पिटीशन दायर करेगी.

इस बीच, मराठा समुदाय के नेता, मनोज जरांगे पाटिल अनिश्चितकालीन उपवास पर हैं और मांग कर रहे हैं कि सरकार महाराष्ट्र में सभी मराठों को ‘कुनबी’ जाति प्रमाण पत्र दे ताकि वे ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ श्रेणी के तहत आरक्षण के लिए पात्र हो जाएं.

मराठा समुदाय, शक्तिशाली चीनी व्यापारियों और जमींदारों से लेकर संकटग्रस्त किसानों और बेरोजगार युवाओं तक के महाराष्ट्र की आबादी का 32 प्रतिशत है और दो दशकों से अधिक समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं.

अगस्त 2016 और अगस्त 2017 के बीच, समुदाय ने 58 साइलेंट मार्च आयोजित किए. 2018 में तो विरोध प्रदर्शन हिंसक भी हो गए थे.

मराठा कौन हैं?

मराठा समुदाय, जो मुख्य रूप से राज्य के मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्रों में रहता है, वह अलग-अलग बटां हुआ है. इस समुदाय में किसान, कुलीन और शासक शामिल हैं और एक स्पष्ट पदानुक्रम मौजूद है. 1980 के मंडल आयोग ने मराठा को अगड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया था.

मोटे तौर पर, मराठों में चार मुख्य वर्ग हैं.

अभिजात वर्ग जो या तो स्वयं सत्ता का केंद्र हैं या सत्ता में बैठे लोगों के बहुत करीबी हैं – मराठा राजनेता, मंत्री, जिला सहकारी बैंकों या चीनी कारखानों के बोर्ड पर निदेशक इत्यादि. उनके नीचे बड़ी जोत वाले धनी किसान हैं जो फसलें उगाते हैं. ये मराठा किसान अपने गांवों में महत्वपूर्ण प्रभाव और अधिकार रखते हैं. उनके नीचे छोटे से मध्यम वर्ग के किसानों है जो अपनी आजीविका के लिए मौसम की फसल पर निर्भर हैं और प्रकृति की अनिश्चितताओं से गहराई से प्रभावित हैं. फिर बहुत गरीब किसान और भूमिहीन मजदूर हैं.

मराठा नेताओं का तर्क है कि निचले दो वर्गों, जिनमें अधिकांश मराठा आबादी शामिल है, की स्थिति सूखे और कृषि संकट के कारण खराब हो गई है.

पुणे स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के एक अध्ययन में कहा गया है कि अप्रैल 2014 और मार्च 2016 के बीच मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों के 3,880 किसानों में से 26 प्रतिशत मराठा समुदाय से थे. विशेष रूप से मराठवाड़ा में, निराशा में आत्महत्या करने वाले किसानों में से 53 प्रतिशत मराठा समुदाय के थे.

मराठा संगठन संभाजी ब्रिगेड के नेता और आरक्षण अध्ययन के विशेषज्ञ प्रवीण गायकवाड़ ने 2018 में दिप्रिंट को बताया था कि मराठों के सभी वर्ग अंततः कृषि भूमि से बंधे हैं और स्तरीकरण राजस्व या कर ढांचे से अधिक विकसित हुआ है.

धारणा यह है कि मराठा समुदाय खुद को क्षत्रिय के रूप में पहचानने में गर्व महसूस करता है, लेकिन गायकवाड़ ने कहा कि समुदाय हमेशा शूद्र वर्ग से संबंधित रहा है और इसका समर्थन करने के लिए पर्याप्त दस्तावेजी सबूत हैं.

उन्होंने कहा, “मराठा समुदाय के सदस्यों की जन्म-पत्रिका में उनका वर्ण (जाति) शूद्र बताया गया है. आज भी, ऐसे मंदिर हैं जहां मराठा समुदाय के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है.”

उन्होंने कहा, “छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने हाथों में हथियार लिए, मराठा साम्राज्य की स्थापना की और उसे बढ़ाया. लेकिन धर्मशास्त्र के अनुसार मराठा शूद्र ही रहते हैं. सिर्फ इसलिए कि कोई शूद्र को क्षत्रिय कहना चाहता है, समुदाय के मुद्दे नहीं बदल जाते.”


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मराठा और कुनबी

गायकवाड़ सहित कुछ नेताओं का तर्क है कि किसान होने के नाते, मराठा भी कुनबी हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत मराठों के लिए कोटा की मांग कर रहे हैं. कुनबी जाति को ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण मिलता है.

राजेश्वरी देशपांडे और सुहास पल्शिकर द्वारा लिखित पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ ए डोमिनेंट कास्ट नामक पेपर में मराठों और कुनबियों के बीच अंतर को समझाया गया है. इसमें कहा गया है, मराठों ने क्षत्रिय रैंक का दावा किया और अपने राजपूत वंश पर गर्व दिखाया, जबकि कुनबी किसान थे और उन्हें शूद्र माना जाता था.

लेखकों ने पेपर में कहा, “कुनबियों के एक वर्ग ने, विशेष रूप से राज्य के पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा क्षेत्र से, अक्सर विवाह संबंधों के माध्यम से मराठों के साथ विलय करने की कोशिश की. वे इन क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व पैटर्न और इन समूहों के बीच ऐतिहासिक रूप से विकसित घनिष्ठ संपर्क के कारण ऐसा कर सके. विदर्भ और कोंकण के क्षेत्रों में, कुनबियों ने अपनी विशिष्ट जाति पहचान बरकरार रखी. वर्तमान में, वे राज्य की आबादी का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा हैं और उपरोक्त दो क्षेत्रों में केंद्रित हैं.”

पेपर में कहा गया है कि मराठों ने हमेशा कुनबियों के आगे बढ़ने के कदमों का विरोध किया था और यह कांग्रेस ही थी जिसने बड़े पैमाने पर मराठा-कुनबियों को एक समरूप समूह और मराठी समुदाय के भीतर प्रमुख सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकत के रूप में पेश किया था.

मंडल आयोग की रिपोर्ट के अलावा, 2000 की राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट ने मराठा समुदाय को ओबीसी के तहत शामिल करने की मांग को खारिज कर दिया था. 2008 में, महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने मराठों को आर्थिक और राजनीतिक रूप से अगड़ा वर्ग कहा.

मराठा समुदाय की आरक्षण की मांग पर कार्रवाई करने के दबाव में, पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सरकार ने इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिए नारायण राणे, जो उस समय कांग्रेस नेता थे, के तहत एक समिति नियुक्त की. समिति ने मौजूदा ओबीसी कोटा का उल्लंघन किए बिना मराठों के लिए आरक्षण की सिफारिश की. जुलाई 2014 में, तत्कालीन चव्हाण के नेतृत्व वाली सरकार ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत मराठा कोटा देने के लिए एक अध्यादेश पारित किया, लेकिन यह निर्णय बॉम्बे उच्च न्यायालय की जांच का सामना नहीं कर सका.

देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने मराठा समुदाय के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को साबित करने के लिए एक सर्वेक्षण किया, जिसके आधार पर नवंबर 2018 में समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण के लिए मराठा कोटा कानून पारित किया गया था.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा लेकिन शिक्षा में कोटा घटाकर 12 प्रतिशत और नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में कोटा को “असंवैधानिक” बताते हुए रद्द कर दिया था.


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मराठा समुदाय का राजनीतिक प्रभुत्व

1960 में राज्य के गठन के बाद से, महाराष्ट्र के 20 मुख्यमंत्रियों में से 11 मराठा रहे हैं. राज्य के पहले सीएम यशवंतराव चव्हाण भी मराठा थे. जैसा कि मौजूदा मुख्यमंत्री शिंदे हैं.

राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों में मराठों की संख्या हमेशा लगभग 30 से 40 प्रतिशत रही है और इस समुदाय की लगातार राज्य मंत्रिमंडलों में मंत्रियों में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रही है.

पुणे के एक मराठा नेता शांताराम कुंजीर ने 2018 में दिप्रिंट को बताया था कि कई लोगों ने समुदाय के राजनीतिक महत्व का हवाला देते हुए मराठा आरक्षण के खिलाफ तर्क दिया था. कुंजिर, जिनकी 2020 में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी, ने कहा, “लेकिन सच्चाई यह है कि मराठा समुदाय के जो सदस्य राजनीतिक महत्व तक पहुंचे, उन्होंने हमें विफल कर दिया है. उन्होंने बड़ी मराठा आबादी के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया है. यही मुख्य कारण है कि 2014 में पिछली सरकार को गिरा दिया गया था.”

कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा, जिन्हें पारंपरिक रूप से मराठों की पार्टियों के रूप में देखा जाता है, ने पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा बना लिया है. 2014 के चुनावों में भाजपा ने इन क्षेत्रों में अच्छी बढ़त बनाई थी.

कुंजिर ने कहा, “मराठा समुदाय के सदस्य कांग्रेस और राकांपा से उतने ही नाराज हैं जितना कि वे मौजूदा देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ हैं. सभी मराठा मुख्यमंत्रियों ने मराठा कोटा लागू करने का वादा किया था, लेकिन इनमें से किसी ने भी वादा पूरा नहीं किया.”

1960 से 2010 तक महाराष्ट्र मंत्रिमंडलों की संरचना का विश्लेषण करने वाली एक आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि हालांकि मराठा मंत्रियों का मंत्रिमंडलों पर प्रभुत्व था, लेकिन इस घटना की एक अलग क्षेत्रीय कहानी थी, जिसमें शक्ति विशेष रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठों के हाथों में केंद्रित थी.

अभय दातार और विवेक घोटले द्वारा लिखित महाराष्ट्र कैबिनेट सोशल एंड रीजनल प्रोफाइल, 1960-2010 नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1960 से 2010 तक 173 कैबिनेट मंत्रियों में से 78 मराठा/कुनबी थे और 2010 तक 16 कैबिनेट में से 10 पर मराठों का वर्चस्व था. संयोग से, छह में से एक जब मराठा बहुमत में नहीं थे, वह 1995 से 1999 तक शिव सेना-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार का मनोहर जोशी के नेतृत्व वाला मंत्रिमंडल था.

विडंबना यह है कि जो मराठा नेता अब आरक्षण की मांग में सबसे आगे हैं, उनमें से कुछ 1980 के दशक में कोटा नीति के खिलाफ मुखर थे, और मराठा महासंघ ऐसा ही एक संगठन था.

कुंजीर ने कहा, “यह सच है कि कुछ संगठन और नेता, खासकर पश्चिमी महाराष्ट्र से, आरक्षण के खिलाफ थे. पश्चिमी महाराष्ट्र हमेशा मराठवाड़ा से थोड़ा बेहतर रहा है.”

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में, भूमि का औसत आकार कम होने से खेती से लाभ भी कम होता जा रहा है और यहां तक कि यह पश्चिमी महाराष्ट्र भी पानी की कमी और पर्याप्त सिंचाई की कमी से प्रभावित है. कुंजीर ने कहा, “पूरा तालुका और गांव सूखे से परेशान हैं. पिछले कुछ वर्षों में स्थिति काफी बदल गई है.”

(संपादन: अलमीना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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