नई दिल्ली: उभरते डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता पीयूष पाल शनिवार रात दक्षिणी दिल्ली के पंचशील पार्क इलाके में 30 मिनट तक सड़क पर खून से लथपथ पड़े रहे, लेकिन किसी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया.
पाल, जो सड़क पर एक अन्य बाइक से दुर्घटनाग्रस्त हो गए, अगले तीन दिनों तक अस्पताल में जीवित रहने के लिए संघर्ष करते रहे और आखिरकार मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली. जब वह सड़क पड़े हुए थे तो कथित तौर पर उनका मोबाइल फोन, वॉलेट और गोप्रो कैमरा चोरी हो गया.
30 मिनट के बाद, एक राहगीर, जो अपने भाई के साथ यात्रा कर रहे थे, पाल को देखकर रुके और उनके पास गए. वह नेक व्यक्ति, उनके भाई और एक बाइक सवार पाल को एक ऑटो में पास के अस्पताल ले गए, जहां सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया.
यह घटना फिर से इस बात की तरफ ध्यान दिलाती है कि, यदि उदासीनता नहीं, तो कम से कम 2016 में स्थापित गुड समारिटन कानून के बारे में आम जनता के बीच कानूनी जागरूकता की कमी है. लोगों में आज भी यह डर हैं कि पुलिस या एम्बुलेंस को फोन करने या किसी घायल को अस्पताल ले जाने के परिणामस्वरूप पुलिस स्टेशन, अस्पताल और अदालतों में उन्हें परेशान किया जाएगा.
पिछले साल 31 दिसंबर को दिल्ली के सुल्तानपुरी में ब्यूटीशियन अंजलि सिंह की स्कूटी को एक कार ने टक्कर मार दी थी. जिसके बाद वह गिरी और कार के पहियों में फंस गई और ड्राइवर उसे कंझावला तक कई किलोमीटर तक घसीटता रहा.
अंजलि की दोस्त निधि, जो अंजलि के साथ स्कूटी पर थी और दुर्घटना की गवाह थी, ने शुरू में पुलिस को सूचित नहीं किया या मदद के लिए फोन नहीं किया. पुलिस के सूत्रों ने कहा कि निधि ने उन्हें बताया कि दुर्घटना के बाद वे दोनों अलग-अलग जगह पर गिर गए और वह डरी हुई थी और वह अपने घर वापस चली गई.
एक पुलिस सूत्र ने दिप्रिंट को बताया था, “उसने कहा कि वह नशे में थी और काफी दुखी थी. वह नहीं चाहती थी कि कोई उससे पूछताछ करे इसलिए वह मौके से भाग गई थी.” जब तक अंजलि का निर्जीव शरीर मिला, तब तक वह मर चुकी थी और उसकी त्वचा और कपड़े भी शरीर से उतर चुके थे.
दिसंबर 2012 में, फिजियोथेरेपी इंटर्न ज्योति सिंह को दक्षिणी दिल्ली में एक निजी बस में पीटा गया, सामूहिक बलात्कार किया गया और प्रताड़ित किया गया और बाद में उसके साथी के साथ नग्न अवस्था में सड़क पर लहूलुहान हालत में फेंक दिया गया था. उनके पास से लगातार कई गाड़िया गुजरी लेकिन किसी ने भी रुक कर उनकी मदद नहीं की.
गुड समारिटन कानून, 2016 कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो पीड़ित को अस्पताल ले जाता है, उसे बिना कोई सवाल पूछे “तुरंत जाने की अनुमति दी जानी चाहिए”.
दिशानिर्देशों में कहा गया है कि “एक व्यक्ति जिसने किसी की मदद की हो उसे अपना काॅनटेक्ट शेयर करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि वह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है और इसके लिए स्वेच्छा से तैयार न हो.”
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “जनता में इस बारे में जागरूकता की कमी है कि गुड समारिटन कानून उनकी रक्षा कैसे करता है. उन्हें डर है कि अगर वे किसी दुर्घटना पीड़ित की सहायता करेंगे या पुलिस या एम्बुलेंस को कॉल करेंगे तो वे पुलिस या अदालतों के साथ परेशानी में पड़ जाएंगे.”
उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा, ज्यादातर लोग पुलिस पर भरोसा नहीं करते हैं. इससे आम लोगों के मन में बनी यह छवि काफी हद तक जुड़ी हुई है कि पुलिस उनसे पूछताछ करेगी, उनका संपर्क विवरण लेगी और उन्हें पुलिस स्टेशन आने के लिए कहती रहेगी. वे यह भी सोचते हैं कि वे स्वचालित रूप से कानूनी प्रक्रियाओं का हिस्सा बन जाएंगे.”
वरिष्ठ आपराधिक वकील शिल्पी जैन इस बात से सहमत हैं कि गुड समारिटन कानून को लागू हुए कई साल हो गए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव नाममात्र का हुआ है.
जैन ने दिप्रिंट को बताया, “दुर्घटना पीड़ितों की मदद करने के लिए दर्शक कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं और किसी घायल व्यक्ति की सहायता के लिए उच्च नैतिक आधार की आवश्यकता होती है. लोग अब भी उत्पीड़न से डरते हैं. हमारी पुलिस और अस्पताल के कर्मचारियों को इस मामले में और अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है, ताकि जब कोई अच्छा व्यक्ति किसी घायल व्यक्ति को लेकर उनके पास आए, तो वे उन्हें सम्मानित महसूस कराएं और उनको परेशान न करें.”
दिप्रिंट ने गुड समारिटन कानून के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उनके प्रयासों पर टिप्पणी के लिए टेक्स्ट संदेश पर दिल्ली पुलिस प्रवक्ता सुमन नलवा से संपर्क किया है, प्रतिक्रिया मिलने के बाद रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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कानून क्या कहता है?
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, एक अच्छा व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो अच्छे विश्वास के साथ, भुगतान या इनाम की उम्मीद के बिना, और देखभाल या विशेष संबंध के किसी भी कर्तव्य के बिना, स्वेच्छा से तत्काल सहायता या आपातकालीन व्यवस्था के लिए आगे आता है. किसी दुर्घटना या आपातकालीन चिकित्सा स्थिति में किसी घायल व्यक्ति की मदद करता है.
2012 में, सेवलाइफ फाउंडेशन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें घायलों की मदद के लिए आगे आने वाले मदद करने वाले लोगों की सुरक्षा करने का अनुरोध किया गया था. मार्च 2016 में, SC ने 2015 में किसी की मदद करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए सड़क मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों को “कानून का बल” देते हुए एक आदेश पारित किया. अदालत ने दिशानिर्देशों को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कानूनी रूप से जरूरी बना दिया था.
दिशानिर्देशों के तहत, घायल व्यक्ति से कोई संबंध नहीं रखने वाला व्यक्ति किसी दुर्घटना, आपातकालीन चिकित्सा स्थिति में आपातकालीन देखभाल के रूप में सहायता प्रदान करने के लिए आगे आ सकता है. कानून ऐसे अच्छे लोगों को सड़क दुर्घटना या चिकित्सा आपातकालीन पीड़ितों के जीवन को बचाने के लिए किए जा रहे कार्यों के बाद किसी भी तरह की परेशानी से बचाता है.
इसके अलावा कोई भी व्यक्ति, प्रत्यक्षदर्शी को छोड़कर, जो पुलिस को किसी दुर्घटना के परिणामस्वरूप मृत्यु या चोट की सूचना देता है, उसे अपना व्यक्तिगत विवरण जैसे पूरा नाम, पता या फ़ोन नंबर बताने की आवश्यकता नहीं है. गुड समारिटन कानून के अनुसार, व्यक्ति को पुलिस द्वारा इन विवरणों को रजिस्टरों और अन्य रिकॉर्डों में दर्ज करने के लिए भी नहीं कहा जाएगा.
इसके अलावा, यदि कोई मदद करने वाला व्यक्ति पुलिस गवाह बनने के लिए सहमत होता है, तो उसके साथ अत्यंत सम्मान और देखभाल के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए. कानून के मुताबिक, बयान की रिकॉर्डिंग सादे कपड़ों में एक अधिकारी द्वारा की जाएगी और अगर व्यक्ति को उस पुलिस स्टेशन में जाना होगा जहां मामला दर्ज है, तो उसे यह बात लिखित में देनी होगी.
यदि वह व्यक्ति प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा करता है, तो उसे शपथ पत्र के रूप में साक्ष्य प्रदान करने की अनुमति है. दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए किसी क्षेत्र के पुलिस उपायुक्त या पुलिस अधीक्षक को जिम्मेदार बनाया गया था.
2020 में, सड़क दुर्घटना पीड़ितों की सहायता करने वाले अच्छे लोगों की सुरक्षा के लिए एक नई धारा, 134ए, मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 में शामिल की गई थी.
धारा में कहा गया है कि मदद करने वाले व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, पंथ, लिंग या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा. मोटर वाहन से जुड़े किसी दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की किसी भी चोट या मृत्यु के लिए वह किसी भी नागरिक या आपराधिक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं है, अगर “आपातकालीन चिकित्सा या गैर-चिकित्सीय देखभाल या सहायता प्रदान करते समय कार्य करने में लापरवाही या कार्य करने में असफल होता” है.
हालांकि, सेवलाइफ फाउंडेशन द्वारा 2018 में 11 भारतीय शहरों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि, मदद करने वाले लोगों की सुरक्षा के दिशानिर्देशों के बावजूद, केवल 29 प्रतिशत उत्तरदाता (कुल 3,667 लोगों में से) किसी घायल को अस्पताल ले जाने के इच्छुक थे, केवल 28 प्रतिशत लोग एम्बुलेंस बुलाने को तैयार थे और केवल 12 प्रतिशत लोग पुलिस बुलाने को तैयार थे. इसके अलावा, केवल 16 प्रतिशत लोगों के गुड समारिटन कानून के बारे में पता था.
सड़क परिवहन मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, “देश में चार में से तीन लोग पुलिस उत्पीड़न, अस्पतालों में हिरासत और लंबी कानूनी औपचारिकताओं के डर के कारण सड़कों पर घायल दुर्घटना पीड़ितों की मदद करने से झिझकते हैं. अगर कोई मदद करना भी चाहता है, तो ये कारक उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं.”
(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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