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Friday, 1 November, 2024
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क्या दिल्ली यूनिवर्सिटी के सभी छात्रों का हॉस्टल में रहने का सपना होगा पूरा

3 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सभी छात्रों को हॉस्टल देने की याचिका को खारिज कर दिया है. यूनिवर्सिटी के करीब 4  प्रतिशत छात्रों को ही हॉस्टल की सुविधा मिल पा रही है.

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नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले का दौर शुरू हो चुका है. यहां पढ़ना लगभग हर भारतीय छात्र का सपना होता है. इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने की मारामारी को यहां के कई कॉलेजों के कटऑफ लिस्ट से भी समझा जा सकता है. देश के टॉप कॉलेजों की सूची में इस यूनिवर्सिटी के कई कॉलेज शामिल हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में देश के कोने कोने से करीब 75 हजार छात्र पढ़ने आते हैं. जिसमें आधे से अधिक छात्र दिल्ली के बाहर से होते हैं. लेकिन, सबकी हॉस्टल की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती.

बीते 3 जुलाई यानी बुद्धवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सभी छात्रों को हॉस्टल देने की याचिका को खारिज कर दिया है. 90 कॉलेज, 20 डिपार्टमेंट वाली इस यूनिवर्सिटी के करीब 4 प्रतिशत छात्रों को ही हॉस्टल की सुविधा मिल पा रही है. वहीं, दूसरी ओर बीते जून महीने में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के करीब 1000 छात्रों के लिए हॉस्टल बनवाने की हामी भरी है.

हाईकोर्ट ने याचिका रद्द की

दिल्ली यूनिवर्सिटी में सभी छात्रों को हॉस्टल देने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण सिंह ने याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता ने इसके लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी एक्ट, 1992 के सेक्शन 33 का हवाला दिया था. जो कि दिल्ली यूनिवर्सिटी को अपने सभी छात्रों को ठहरने का प्रबंध कराने का निर्देश देता है. वहीं, जिन छात्रों को हॉस्टल सुविधा नहीं मिल पा रही है. उन्हें 10 हजार रुपये का स्टाइपेंड दिया जाए. इसके अलावा यूनिवर्सिटी प्रांगण के 5 किलोमीटर रेंज में जितने भी हॉस्टल हैं उनका रेंट रेगुलेट किया जायेगा.

प्रवीण सिंह की याचिका को हाईकोर्ट ने मंगलवार को रद्द कर दिया. जस्टिस पटेल और जस्टिस शंकर की दो जजों की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी सेक्शन 33 के तहत सभी छात्रों को हॉस्टल देने के लिए बाध्य नहीं है. कोर्ट का तर्क है कि इस तरह का निर्णय आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि इसमें बहुत से पैसे खर्च होंगे.
इस केस की याचिका वकील कमलेश मिश्रा द्वारा डाली गई है. उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली यूनिवर्सिटी में लगभग 1,84,668 छात्र पढ़ते हैं. जबकि हॉस्टल केवल 6,237 छात्रों को ही प्रदान किया गया है. यूनिवर्सिटी को इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए. इससे नुकसान कुल मिलाकर छात्रों का ही हो रहा है. वे आसपास के मकान मालिकों को मनमाना रेंट देने को मजबूर हैं.’

जमीनें बहुत हैं लेकिन कोशिश तो करे

दिल्ली यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के अनुसार नॉर्थ कैंपस में कुल 17 हॉस्टल हैं. जो कि चार प्रतिशत छात्रों की भी आपूर्ति पूरा नहीं कर पाते हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जानकारों के मुताबिक यूनिवर्सिटी की लगभग मुखर्जी नगर के ढाका क्षेत्र और प्रीतमपुरा इलाके में खाली पड़ी है. लेकिन उस पर हॉस्टल बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं आया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैंपस में पढ़ाने वाले एक प्रोफेसर के मुताबिक यूनिवर्सिटी के पास संसाधनों की कमी नहीं है. हमारे पास जमीने इतनी है कि ज्यादातर छात्रों को हॉस्टल की सुविधा मिल सकती है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अपने 5 प्रतिशत छात्रों को भी हॉस्टल नहीं दे पा रहे हैं. जबकि, कम से कम 25 प्रतिशत छात्रों को हॉस्टल सुविधा देनी चाहिए. लेकिन इसके लिए पर्याप्त कोशिश नहीं की जा रही है.

इसको लेकर हमने विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण केंद्र से संपर्क किया, तो वहां से कोई जवाब नहीं आया. वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डूटा) के एक शिक्षक ने बताया, ‘कौन अपने छात्रों को हॉस्टल नहीं देना चाहेगा. लेकिन, यूजीसी से पर्याप्त मात्रा में फंड नहीं मिलने से हम हॉस्टल नहीं बनवा पा रहे हैं.’

जबकि, वकील कमलेश मिश्रा का कहना है, ‘यूजीसी से फंड लेने के लिए एक प्रपोजल बनाना पड़ता है. लेकिन यूनिवर्सिटी ने इसके लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है. जबकि जेएनयू और बाकी अन्य यूनिवर्सिटी ने अपने यहां हॉस्टल की सीट बढ़वाने के लिए यूजीसी को प्रस्ताव भेजा है.’

सेक्योरिटी और रेंट की दिक्कत

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्रों को हॉस्टल नहीं मिलने के कारण कैंपस के आस-पास चल रहे हॉस्टलों में अपना आशियाना ढ़ूढना पड़ता है. लेकिन, आसपास मिलने वाले कमरे की अपनी दिक्कत है.

एलएलबी सेकेंड ईयर में पढ़ने वाले सोनीपत से आए राजेंद्र बताते हैं, ‘अगर हमें हॉस्टल मिले तो हमारा हॉस्टल फीस और खाने का कुल खर्च 5 हजार रुपये के आसपास आता. लेकिन नहीं मिलने से हमें इसी चीज़ का दस से बारह हजार देने पड़ते हैं. रेंट कहीं कोई फिक्स नहीं है.’

वहीं, डीयू से अंग्रेजी में स्नातक कर रही प्रियंका बताती है, ‘हॉस्टल की सुविधा नहीं होने से हम लड़कियों को ज्यादा मशक्कत झेलनी पड़ती. हमारी मजबूरी है कि हमें कैंपस से ज्यादा दूर हॉस्टल नहीं ले सकते. आने-जाने में दिक्कत होगी. और हमारी मजबूरी का फायदा यहां के मकान मालिक उठाते हैं.’

लगाया धांधली का आरोप

डीयू से एलएलबी कर रहे एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘प्रत्येक हॉस्टल का एक अध्यक्ष चुना जाता है. उसके हिस्से भी कुछ सीटें रहती हैं. तो वो उनमें से कई सीटों को अपने परिचितों को बांटता है. जिससे मेरिट में आने के बाद भी छात्र हॉस्टल से वंचित हो जाते हैं. ये दिक्कत स्नातक स्तर के हॉस्टलों में कम लेकिन परास्नातक के हॉस्टलों में अधिक होती है. इसको लेकर जब हमने हॉस्टल के अध्यक्ष से संपर्क किया, तो उन्होंने ऐसी किसी भी बात से इंकार कर दिया.

योगी आदित्यनाथ से भी जगी उम्मीद 

दिल्ली यूनिवर्सिटी में हर साल यूपी बिहार से करीब 50 हजार छात्र एडमिशन लेने के लिए आते हैं. लेकिन, उनमे से एक से दो प्रतिशत छात्रों को ही हॉस्टल मिल पाता है. ऐसे में एक पहल राज्य सरकार की ओर से की जा सकती है.

इसी कड़ी में दिल्ली छात्रसंघ अध्यक्ष शक्ति सिंह के मुताबिक बीते 10 जून को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के 1000 छात्रों के लिए करीब 48 करोड़ की लागत से हॉस्टल बनवाने के लिए हामी भरी है. जिसमें किचन और डाइनिंग हॉल के अलावा खेल कूद की सुविधाएं देने के लिए तीन करोड़ की लागत लगाने का भी प्रस्ताव है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राकेश ने छात्रावास की समस्या हल करने के बारे में यूनिवर्सिटी को राज्यों से पहल करने की बात कही है. वे कहते हैं, ‘यूनिवर्सिटी में यूपी बिहार के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों से भी छात्र आते हैं. इसको लेकर छात्रों के हॉस्टल के लिए उन राज्यों से भी मदद ली जा सकती है.’

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