नई दिल्ली: करीब एक साल पहले दिल्ली के बस मार्शलों की बर्खास्तगी को लेकर विवाद इस महीने और गहरा गया, जब उपराज्यपाल के आवास के बाहर मार्शलों की बहाली के लिए प्रदर्शन कर रहे आम आदमी पार्टी (आप) के कई नेताओं को हिरासत में लिया गया.
फिलहाल, डीटीसी की बसों के पूर्व मार्शलों ने दिवाली तक अपना विरोध प्रदर्शन अस्थायी रूप से रोक दिया है, लेकिन अगर उन्हें नौकरी वापस नहीं मिलती है, तो वह अपनी लड़ाई जारी रखने की योजना बना रहे हैं. मार्शलों को इस आधार पर हटाया गया कि वह मूल रूप से नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक थे, जिन्हें सार्वजनिक परिवहन सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहायता करनी चाहिए.
पिछले नवंबर में विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ, जब उपराज्यपाल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार द्वारा नियुक्त करीब 10,000 मार्शलों को बर्खास्त कर दिया. मंत्री सौरभ भारद्वाज सहित आप नेताओं की हिरासत आप सरकार और उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के बीच टकराव का नवीनतम बिंदु था.
पांच अक्टूबर को हिरासत में लिए जाने से ठीक पहले मीडिया से बात करते हुए भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली के नागरिकों को मार्शलों की बर्खास्तगी से “धोखा” मिला है, जिन्हें महिलाओं की सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में नियुक्त किया गया था — खासकर 2012 के निर्भया मामले के बाद.
आम आदमी पार्टी का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 26 सितंबर को दिल्ली विधानसभा द्वारा उनकी बहाली की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित करने के बाद उपराज्यपाल, जिन्हें केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाता है, के माध्यम से मार्शलों को नियमित करने के अपने वादे से पीछे हट गई है. भाजपा और आप दोनों विधायकों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था.
सार्वजनिक बसों में यात्रियों, खासकर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहली बार अक्टूबर 2015 में मार्शलों की नियुक्ति की गई थी.
2019 की शुरुआत में दिल्ली संवाद और विकास आयोग (डीडीसी) के तहत सार्वजनिक परिवहन में महिला सुरक्षा के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. जुलाई 2019 में एक कार्य योजना के रूप में प्रस्तुत इस टास्क फोर्स की सिफारिशों का उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा उपायों को मजबूत करना था, जिसमें बस मार्शलों की तैनाती भी शामिल थी.
मार्शलों की नियुक्ति से पहले, बसों में व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए समर्पित कर्मियों की कमी ने मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था की प्रभावशीलता के बारे में चिंताएं बढ़ा दी थीं.
दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, 2019 तक, डीटीसी बसों के बेड़े में कुल 3,356 बस मार्शल थे — उनमें से 95.5 प्रतिशत नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक (सीडीवी) थे — जिन्हें केवल दोपहर और शाम की पाली में तैनात किया गया था, जो एक दिन में कुल यात्राओं को देखते हुए 49.63 प्रतिशत की कमी थी.
भारद्वाज ने पांच अक्टूबर को राज निवास के बाहर मीडिया से कहा, “हज़ारों बस मार्शल, जो एक साल से ज़्यादा समय से बिना सैलरी के संघर्ष कर रहे हैं, आज एक साधारण मांग के साथ यहां एकत्र हुए हैं: न्याय. इन लोगों को अपने परिवार का भरण-पोषण करना है, किराया देना है और बच्चों को पढ़ाना है. विधानसभा के प्रस्ताव के बावजूद, उनकी दुर्दशा जारी है और एलजी ने इस मुद्दे को हल करने की कोई इच्छा नहीं दिखाई है.”
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क्या मार्शलों का उद्देश्य पूरा हो गया?
जबकि मार्शल अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहे हैं, एक बड़ा सवाल उभर कर आता है: क्या वह वाकई यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कोई बदलाव ला रहे हैं?
विरोध प्रदर्शन कर रहे पूर्व मार्शल आदित्य राय का मानना है कि उन्होंने बदलाव लाया है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमारी प्राथमिक भूमिका व्यवस्था बनाए रखना, उत्पीड़न को रोकना और संकट में फंसे यात्रियों की सहायता करना था. महामारी के दौरान, हमने कोविड-19 प्रोटोकॉल का अनुपालन भी सुनिश्चित किया.”
राय ने कहा, “महिलाएं और बच्चे दिल्ली की बसों में असुरक्षित थे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी थी, जिसे हमने पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाया.” उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाई, संकट में फंसी महिलाओं की मदद करने के लिए कुछ खास उदाहरण दिए. “जब मैं काम कर रहा था, तो मैंने दिल्ली की बसों में रोजाना दो या तीन उत्पीड़न के मामले और चोरी के कई मामले देखे.”
उन्होंने आगे कहा, “एक ऐसा मामला था, जिसमें मैंने एक छात्रा की मदद की, जिसका फोन चोरी हो गया था और उसी व्यक्ति ने उसे परेशान किया था. मैंने उस लड़के को पकड़ा और एफआईआर दर्ज कराने में छात्रा की मदद की.”
राय ने आगे दावा किया कि बस मार्शल की अनुपस्थिति में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं और परिवहन के वैकल्पिक साधनों का विकल्प चुन रही हैं. उन्होंने कहा, “अब महिलाओं को पता है कि बसों में मार्शल नहीं हैं और इस वजह से वह बसों से कम यात्रा कर रही हैं. वह आमतौर पर ऑटो या मेट्रो लेती हैं क्योंकि उन्हें पता है कि बस में वह सुरक्षित नहीं हैं.”
स्नेहा सिंह, एक अन्य पूर्व बस मार्शल ने भी दिल्ली की बसों में यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाने में मार्शलों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. सिंह ने कहा, “अपने कार्यकाल में मैंने न केवल महिलाओं की बल्कि बस में यात्रा करते समय खो जाने वाले बच्चों की भी सहायता की.”
उन्होंने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए नियमित रूप से हस्तक्षेप करना याद किया, खासकर सीट को लेकर होने वाले विवाद.
उन्होंने कहा, “मैंने एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली ताकि कोई भी व्यक्ति अपनी यात्रा के दौरान असुरक्षित महसूस न करे.”
लेकिन दिप्रिंट से बात करने वाले यात्रियों की राय इससे अलग थी.
दिल्ली की बसों में अक्सर यात्रा करने वाली 43-वर्षीय लता दास ने कहा कि उनका मानना है कि मार्शलों की मौजूदगी से यात्रियों की सुरक्षा में कोई खास सुधार नहीं होता और वह अक्सर विवादों में हस्तक्षेप करने में विफल रहते हैं.
उन्होंने कहा, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बस में मार्शल हैं या नहीं. मैंने कई बार बसों में झगड़े देखे हैं — चाहे सीट को लेकर या दुर्व्यवहार के मामले हों — और मार्शल तब तक हस्तक्षेप नहीं करते जब तक कि मामला गंभीर स्तर पर न पहुंच जाए.”
उन्होंने कहा कि वह बस से यात्रा करती हैं क्योंकि यह किफायती है. इसी तरह, 40-वर्षीय यात्री राम ने बताया कि कैसे बस में यात्रा करते समय जब उनका फोन चोरी हो गया तो मार्शलों ने उनकी मदद करने के लिए कुछ नहीं किया.
उन्होंने एक और घटना को याद किया जिसमें एक व्यक्ति द्वारा महिला के साथ दुर्व्यवहार करने और अपनी सीट छोड़ने से इनकार करने के बाद झगड़ा शुरू होने पर मार्शलों ने हस्तक्षेप नहीं किया.
डीटीसी के एक सिक्योरिटी मैनेजर ने कहा कि यात्रियों के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने में मार्शलों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए निगम नियमित सर्वेक्षण करता है. उन्होंने कहा कि कुछ होमगार्ड कुछ रूट्स पर बस मार्शल के रूप में काम करते रहे हैं और सक्रिय रूप से अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं.
उक्त डीटीसी ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार, बस मार्शल एक संरचित जवाबदेही प्रणाली के अधीन हैं, जिसमें यात्री प्रतिक्रिया की निगरानी शामिल है. जब भी कोई यात्री शिकायत दर्ज करता है, तो संबंधित मार्शल को तुरंत सूचित किया जाता है. अगर किसी मार्शल के पास एक महीने में दो से अधिक शिकायतें जमा होती हैं, तो उन्हें औपचारिक चेतावनी दी जाती है.
हालांकि, अगर शिकायतों की संख्या तीन से अधिक हो जाती है, तो परिणाम अधिक गंभीर हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से उनकी ड्यूटी समाप्त हो सकती है. ऐसे मामलों में मार्शल को उनके मूल विभाग में वापिस भेज दिया जाएगा.
मैनेजर ने स्वीकार किया कि डीटीसी को मार्शलों के खिलाफ कुछ शिकायतें मिली थीं, लेकिन अधिकारियों ने इन मामलों में तत्काल कार्रवाई की थी. उन्होंने कहा कि मार्शलों के विरुद्ध दर्ज शिकायतों की संख्या का कोई विस्तृत रिकार्ड नहीं है, जिससे उनकी जवाबदेही और उनकी ड्यूटी के पर्यवेक्षण को लेकर चिंताएं उत्पन्न होती हैं.
कैमरे और पैनिक बटन
कुछ यात्रियों ने कहा कि उनका मानना है कि सरकार को मार्शलों को बहाल करने के बजाय, दिल्ली की सार्वजनिक बसों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए निगरानी कैमरे और पैनिक बटन जैसे तकनीकी समाधानों में निवेश करना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि ये उपाय उत्पीड़न और अपराध के खिलाफ एक अधिक प्रभावी निवारक हो सकते हैं, जिससे सभी यात्रियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित हो सकता है.
नाम न बताने की शर्त पर एक यात्री ने कहा, “कैमरे महत्वपूर्ण निवारक की तरह काम करेंगे और पैनिक बटन होने से यात्रियों को ज़रूरत पड़ने पर तुरंत मदद के लिए कॉल करने का अधिकार मिलेगा.”
हालांकि, मार्शलों का मानना है कि अकेले तकनीक यात्रियों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित नहीं कर सकती है और बसों में उनकी शारीरिक उपस्थिति उत्पीड़न को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. उन्होंने तर्क दिया कि कैमरे और पैनिक बटन केवल घटना के बाद सहायता प्रदान करेंगे, लेकिन किसी घटना के दौरान यात्रियों की शारीरिक सुरक्षा की गारंटी नहीं देंगे.
पूर्व बस मार्शल स्नेहा सिंह ने पूछा, “बड़े कार्यालयों और महत्वपूर्ण स्थानों पर भी कैमरे लगाए गए हैं, लेकिन वह अभी भी सिक्योरिटी के लिए गार्ड को रखते हैं. हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कैमरे और पैनिक बटन अकेले बसों में यात्रियों की सुरक्षा करेंगे?”
वर्तिका सिंह दिप्रिंट के साथ एक इंटर्न हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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