नई दिल्ली: विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 (RPWD Act) से जुड़े एक ऐतिहासिक फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) केवल इस वजह से नेत्रहीन उम्मीदवारों को जूनियर एग्जीक्यूटिव (JE) पदों के लिए अयोग्य नहीं ठहरा सकती कि चिकित्सीय जांच में यह कहा गया है कि वे “देखकर” काम नहीं कर सकते.
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस अजय दिगपॉल की बेंच ने तीन नेत्रहीन याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया. इन उम्मीदवारों को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि “देखने” को नौकरी की कार्यात्मक आवश्यकता मानते हुए उसका शाब्दिक अर्थ लिया गया.
कोर्ट ने कहा कि दोबारा मूल्यांकन का उद्देश्य “याचिकाकर्ताओं की भर्ती सुनिश्चित करना होना चाहिए, न कि उन्हें बाहर करना.” कोर्ट ने AAI को आदेश दिया कि वह दो हफ्तों के अंदर तीनों उम्मीदवारों का बिना मेडिकल जांच के दोबारा मूल्यांकन करे.
यह याचिकाएं मुदित गुप्ता, अमित कुमार और दीपक अरोड़ा ने दायर की थीं. मुदित गुप्ता ने जूनियर एग्जीक्यूटिव (कानून) के पद के लिए आवेदन किया था, जबकि अमित कुमार और दीपक अरोड़ा ने क्रमशः कॉमन कैडर और फाइनेंस के जूनियर एग्जीक्यूटिव पदों के लिए आवेदन किया था.
हालांकि AAI के 2023 के विज्ञापन में इन पदों को स्पष्ट रूप से “अंधत्व (B) या कम दृष्टि (LV) वाले व्यक्तियों” के लिए उपयुक्त बताया गया था, फिर भी याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर रद्द कर दी गई, जिसमें कहा गया था कि वे “देखकर” काम नहीं कर सकते.
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस तर्क को पूरी तरह खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि “देखने” की अवधारणा को केवल आंखों की कार्यक्षमता तक सीमित नहीं किया जा सकता. इसे समझने की क्षमता, सहायक तकनीक और उचित सुविधा के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
बेंच ने कहा, “समझने और ग्रहण करने की शक्ति मस्तिष्क में होती है, केवल आंख में नहीं, जो केवल एक रिकॉर्डर और ट्रांसमीटर का काम करती है.” कोर्ट ने कहा, “यदि कोई नेत्रहीन उम्मीदवार सहायक उपकरणों की मदद से JE (कानून) पद के कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक चीजों को समझ सकता है, तो उसे ‘देखने’ की कार्यात्मक क्षमता वाला माना जाएगा.”
‘संदेह से ग्रस्त मॉडल’
कोर्ट ने AAI की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने मेडिकल टेस्ट को ही काम करने की क्षमता का आधार माना. कोर्ट ने इसे “कानून के मुताबिक गलत” और RPWD कानून की समावेशी भावना के खिलाफ बताया.
जजमेंट में कहा गया कि अगर किसी डॉक्टर ने सर्टिफिकेट दे दिया कि नेत्रहीन उम्मीदवार देख सकता है, तो उसे नौकरी मिल जाएगी. अगर डॉक्टर ने मना कर दिया, तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधितों की भर्ती बनाम रजिस्ट्रार जनरल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (2024) का ज़िक्र करते हुए, बेंच ने कहा कि AAI द्वारा अपनाया गया “संदेह-आधारित और डॉक्टरों पर निर्भर मॉडल” कानून की भावना का उल्लंघन करता है.
कोर्ट ने कहा कि किसी विकलांग व्यक्ति की किसी पद पर काम करने की “क्षमता या योग्यता” को मेडिकल या क्लीनिकल जांच से नहीं परखा जा सकता. इसका मूल्यांकन तभी किया जाना चाहिए जब उसे ज़रूरी सहूलियतें और उपयुक्त माहौल दिया गया हो.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि AAI द्वारा नेत्रहीन उम्मीदवारों को बाहर करना, विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग (DEPwD) की 4 जनवरी 2021 की अधिसूचना के खिलाफ है. उस अधिसूचना में कहा गया है कि उम्मीदवार की उपयुक्तता का मूल्यांकन “सॉफ्टवेयर, सहायक उपकरण और ज़रूरत के अनुसार सहायता” के साथ किया जाना चाहिए.
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताई और कहा कि “उचित सुविधा देना” समानता का मूल सिद्धांत है. बेंच ने कहा, “पहली नज़र में लगता है कि लीगल असिस्टेंट या JE (Law) के पद पर ऐसा कोई काम नहीं है जो नेत्रहीन व्यक्ति नहीं कर सकता, अगर उसे ज़रूरी उपकरण और सहायता दी जाए.”
कोर्ट ने कहा कि अगर AAI की संकीर्ण व्याख्या को माना जाए, तो वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. रुंगटा — जिन्होंने इस केस में पक्ष रखा और जो विकलांग अधिकार आंदोलन के प्रमुख चेहरे हैं — भी इस पद के लिए अयोग्य माने जाएंगे. यह बात खुद साबित करती है कि AAI की सोच गलत है.
याचिकाकर्ताओं ने DEPwD की अधिसूचना के नोट 8 को भी चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया है कि “नियुक्ति से पहले नियोक्ता उम्मीदवार की उपयुक्तता की जांच कर सकता है.” हाई कोर्ट ने इस चुनौती को खारिज कर दिया और कहा कि नोट 8 वैध है, जब तक इसे RPWD कानून की धारा 33 के तहत तय प्रक्रिया के अनुसार लागू किया जाए, जो सरकारी नौकरियों में कम से कम 3 प्रतिशत आरक्षण विकलांग व्यक्तियों के लिए तय करती है.
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि AAI ने नोट 8 को “गलत तरीके से” लागू किया, क्योंकि उसने इसका इस्तेमाल मेडिकल रिजेक्शन को सही ठहराने के लिए किया, जबकि इसे “उचित सुविधा के साथ फंक्शनल मूल्यांकन” के लिए होना चाहिए था.
कोर्ट ने याचिकाएं आंशिक रूप से मंज़ूर करते हुए कहा कि उम्मीदवारों की अयोग्यता रद्द की जाती है. कोर्ट ने आदेश दिया कि दो हफ्तों के अंदर उम्मीदवारों की “गैर-चिकित्सीय तरीके से” दोबारा जांच की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि उन्हें बाहर नहीं किया जाए, बल्कि भर्ती की दिशा में कदम बढ़ाए जाएं.
अंत में, जिन याचिकाकर्ताओं को उपयुक्त पाया जाएगा, उन्हें चार हफ्तों के भीतर नियुक्ति दी जाएगी, सेवा की निरंतरता और सभी लाभों के साथ, लेकिन पिछला वेतन नहीं मिलेगा.
जजमेंट की शुरुआत 18वीं सदी के लेखक जोनाथन स्विफ्ट के कथन से हुई — “कोई भी इतना अंधा नहीं है जितना कि वे जो नहीं देखना चाहते.” बेंच ने टिप्पणी की, “हमारे सामने इस मामले में यही सवाल है — क्या नेत्रहीन देख सकते हैं.”
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