रायपुर, 17 दिसंबर (भाषा) भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में आवास और कल्याण योजनाओं में गंभीर खामियां तथा वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया है।
विधानसभा में बुधवार को राज्य के वित्त मंत्री ओ पी चौधरी ने 31 मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के लिए कैग से प्राप्त निष्पादन एवं अनुपालन लेखापरीक्षा (सिविल) पर प्रतिवेदन पटल पर रखा।
कैग ने छत्तीसगढ़ में प्रमुख आवास एवं श्रमिक कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीर कमियों की ओर ध्यान दिलाया है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में अपात्र लाभार्थियों को लाभ, योजनागत धनराशि के लंबे समय तक अवरुद्ध रहने, कमजोर निगरानी तंत्र और टाली जा सकने वाली वित्तीय हानियों को रेखांकित किया है।
रिपोर्ट में सामान्य, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित विभागों के व्यय का आकलन किया गया है। इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी के कार्यान्वयन पर निष्पादन, श्रम विभाग द्वारा संचालित कल्याण योजनाओं पर अनुपालन ऑडिट, छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के माध्यम से सोलर पंप स्थापना पर एक विस्तृत ऑडिट तथा लोक निर्माण विभाग से संबंधित अनुपालन ऑडिट शामिल है।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, जिसे केंद्र सरकार ने जून 2015 में शुरू किया और जिसे आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा लागू किया जा रहा है, का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में झुग्गीवासियों तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, निम्न आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग के लोगों को किफायती आवास उपलब्ध कराना है।
इसके अनुसार, राज्य के चार शहरी स्थानीय निकायों – नगर पालिक बिलासपुर, रायपुर, कोरबा और नगर पंचायत, प्रेमनगर में ऐसे 71 हितग्राहियों का चयन किया गया जिनकी आय तीन लाख रूपए से अधिक थी और उन्हें हितग्राही आधारित व्यक्तिगत आवास का निर्माण/भागीदारी में किफायती आवास के तहत आवास/आवासीय इकाइयां आवंटित किए गए थे।
कैग रिपोर्ट के अनुसार, शहरी स्थानीय निकायों ने हितग्राहियों के नाम पर भूमि का स्वामित्व सुनिश्चित किए बिना हितग्राही आधारित व्यक्तिगत आवास निर्माण के तहत 250 हितग्राहियों को 4.05 करोड़ रूपए की सहायता का भुगतान किया।
रिपोर्ट के अनुसार, ऑडिट में यह भी सामने आया कि प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी और प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के प्रबंधन सूचना तंत्र आपस में जुड़े न होने के कारण 99 लाभार्थियों ने दोनों योजनाओं का लाभ उठाया।
इसके अतिरिक्त, 35 ऐसे लाभार्थी भी पाए गए जिन्होंने पहले एकीकृत आवास एवं झुग्गी विकास कार्यक्रम के तहत लाभ लेने के बावजूद योजना के अंतर्गत पुनः सहायता प्राप्त की।
रिपोर्ट के अनुसार, भागीदारी में किफायती आवास परियोजनाओं के तहत आवास इकाइयों के निर्माण में देरी के कारण 230.05 करोड़ रुपए की योजना निधि अवरुद्ध रही। झुग्गीवासियों से वसूली योग्य राशि में से नगरीय निकाय केवल 22.13 करोड़ रूपए ही वसूल सके, जबकि मार्च 2025 तक 17.23 करोड़ की राशि वसूल नहीं की जा सकी।
रिपोर्ट के अनुसार, हितग्राही आधारित व्यक्तिगत आवास निर्माण में कुल स्वीकृत 2.77 लाख आवासों में से 66,383 आवासों की कटौती/समर्पण किया गया था, और बकाया 2.11 लाख आवासों में से 1.84 लाख आवासों को अप्रैल 2025 तक पूर्ण किया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऋण आधारित सब्सिडी योजना के तहत हितग्राहियों द्वारा जमा किए गए कुल 2.49 लाख सब्सिडी दावों में से केवल 37,374 दावों को मंजूरी दी गई, जिसके लिए वर्ष 2016-17 से 2022-23 के दौरान सब्सिडी के रूप में 820.93 करोड़ रूपए की राशि जारी की गई। कैग ने 29 मामलों में दोहरी सब्सिडी प्राप्त करने की भी पुष्टि की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला सशक्तीकरण पर विशेष जोर के बावजूद, 2016–17 से 2023–24 के बीच केवल 50 प्रतिशत मकान ही महिला लाभार्थियों के नाम पर स्वीकृत किए गए, जो योजना के उद्देश्यों से कम है। वहीं, निगरानी व्यवस्था में भी गंभीर खामियां पाई गईं, जिनमें गलत जियो-टैगिंग, अन्य लाभार्थियों के मकानों की तस्वीरों का उपयोग और सामाजिक ऑडिट में देरी शामिल है।
रिपोर्ट के अनुसार, श्रम विभाग की कल्याणकारी योजनाओं के अनुपालन ऑडिट में यह पाया गया कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए असंगठित कर्मकार राज्य सामाजिक सुरक्षा मंडल को आवंटित 329.41 करोड़ रूपए में से 210.75 करोड़ रूपए (64 प्रतिशत) का व्यय किया गया, जबकि संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए छत्तीसगढ़ श्रम कल्याण मंडल द्वारा 44.86 करोड़ रूपए की उपलब्ध निधि में से केवल 21.27 करोड़ रूपए व्यय किया गया।
वहीं, भारत सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 76.33 लाख श्रमिकों के मुकाबले राज्य पोर्टल पर केवल 22 प्रतिशत श्रमिक ही दर्ज पाए गए।
रिपोर्ट के अनुसार, सोलर पंप स्थापना के ऑडिट में यह उजागर हुआ कि छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण ने सौर सुजला योजना के अंतर्गत योजना के दिशानिर्देशों के विपरीत ‘एसी सौर पंप’ के स्थान पर महंगे ‘डीसी सौर पंप’ की स्थापना की अनुमति दी, परिणामस्वरूप सौर पंप की स्थापना से संबंधित कार्यों पर अतिरिक्त लागत आई।
वहीं, कुओं में जल की गहराई पर विचार किए बिना सतही पंपों के स्थान पर कुओं में महंगे सौर सबमर्सिबल पंप की स्थापना की गई, परिणामस्वरूप 9.70 करोड़ रूपए की अपरिहार्य अतिरिक्त लागत आई।
भाषा संजीव शफीक
शफीक
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