देहरादून: क्या आप भी उत्तराखंड की सुंदर पहाड़ियों के बीच जमीन खरीदने का सपना देख रहे हैं? पर शायद अब आपका ये सपना पूरा न हो पाए क्योंकि राज्य के भूमि कानून में प्रस्तावित संशोधन इस साल के अंत में पेश किए जा सकते है. पहाड़ी राज्य में लंबे समय से इन कानूनों में बदलाव की मांग की जाती रही है ताकि बाहरी लोगों को उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीदने से रोका जा सके.
साल 2000 में उत्तर प्रदेश से पृथक कर उत्तराखंड के रूप में अलग राज्य घोषित किया गया था. उत्तराखंड के अधिकांश कानून शुरू में मूल राज्य से ही मिले थे.
पहली बार साल 2003 में एन.डी तिवारी की सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम-1950’ में संशोधन किया और तब उत्तराखंड को अपना एक भूमि कानून मिला था. 2003 के संशोधन में भूमि खरीद-फरोख्त पर कई बंदिशें लगाई गईं. किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए प्रदेश में कृषि खरीदने की सीमा 500 वर्ग मीटर कर दी गई थी.
इसके बाद साल 2008 में प्रदेश की दूसरी सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.सी. खंडूरी ने अपने कार्यकाल में पूर्व घोषित सीमा को आधा कर 250 वर्ग मीटर कर दिया.
एक दशक बाद, 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानूनों को नरम बनाने के लिए इनमें संशोधन कर दो क्लॉज जोड़ दिए थे. इस अधिनियम के तहत किसी भी कंपनी, समूह या व्यक्ति को उत्तराखंड में चुनिंदा गैर-कृषि क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के उद्देश्य से कृषि भूमि खरीदने की अनुमति दे दी गई थी.
इस संशोधन का काफी समय से विरोध और उत्तराखंड के पड़ोसी पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश जैसे सख्त भू-कानूनों को लागू करने की मांग की जा रही है.
हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 सभी गैर-कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को राज्य में कृषि भूमि खरीदने से प्रतिबंधित करती है. जो लोग जमीन खरीदना चाहते हैं उन्हें राज्य सरकार से विशेष अनुमति लेनी होगी.
अगस्त 2021 में सख्त भूमि-खरीद कानून की मांग के चलते उत्तराखंड में एक विशेष समिति का गठन किया गया. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर पुष्कर सिंह धामी सरकार अब 2018 भूमि कानून में संशोधन करने जा रही है. कमेटी के सदस्यों का कहना है कि मैदानी इलाकों को संशोधनों से छूट दी जा सकती है.
नाम न छापने की शर्त पर मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘नए भूमि कानून में राज्य भर के नगर पालिका क्षेत्रों में जमीन खरीदने के लिए ज्यादा प्रतिबंध नहीं होंगे, लेकिन खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि जमीन की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए सभी सुरक्षा उपाय अपनाए जाएंगे.’
समिति के सदस्यों का कहना है कि राज्य प्रशासन का मकसद एक ऐसे भूमि कानून बनाने का है जो औद्योगिक निवेश की आवश्यकता और बाहरी लोगों द्वारा पहाड़ियों में कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध की मांग के बीच संतुलन बनाए रखे.’
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‘एक पखवाड़े में रिपोर्ट को अंतिम रूप देगी कमेटी’
दिप्रिंट से बात करते हुए कमेटी के अध्यक्ष और उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने कहा कि कई जिला मजिस्ट्रेटों ने अभी तक औद्योगिक या अन्य वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए कंपनियों द्वारा खरीदी गई जमीन का विवरण प्रस्तुत नहीं किया है.
उन्होंने बताया कि कमेटी इन विवरणों को जमा करने के एक पखवाड़े के भीतर अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे देगी.
सुभाष कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘2003 में एन. डी. तिवारी सरकार ने राज्य का पहला भूमि कानून बनाया था. इसके बनाए जाने के बाद हमारे पास हिमाचल प्रदेश (प्रतिबंधों के साथ) जैसा कानून था. नए भूमि कानून में हिमाचल प्रदेश कानून की छाप होगी. कमेटी की रिपोर्ट राज्य में एक नए भूमि कानून की बार-बार उठती मांग का ध्यान रखेगी.’
उन्होंने कहा,‘रिपोर्ट को अंतिम रूप देने में थोड़ी देरी हुई है. कई जिला मजिस्ट्रेटों ने 2003 के बाद व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कंपनियों या व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई भूमि के बारे में जानकारी मुहैया नहीं कराई है.’ वह आगे कहते हैं, ‘ये जानकारी इसलिए मांगी गई है ताकि ये समझा जा सके कि खरीदार को जिस उद्देश्य के लिए जमीन दी गई थी, उसके लिए किस हद तक नियम और शर्तों का पालन किया गया है.’
कुमार ने कहा कि जिलाधिकारियों को नए सिरे से नोटिस जारी करते हुए, फीडबैक देने की आखिरी तारीख 21 अप्रैल तय की गई है. उन्होंने बताया, ‘इसके एक पखवाड़े के भीतर सरकार को रिपोर्ट सौंप दी जाएगी.’
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‘पहाड़ी और मैदानी इलाकों के लिए अलग-अलग प्रावधान’
कमेटी के सदस्य और भाजपा नेता अजेंद्र अजय ने कहा कि कमेटी के पास हिमाचल प्रदेश में लागू भूमि कानून की तर्ज पर कानून बनाने की मांग को लेकर ढेरों सुझाव आए हैं.
उन्होंने बताया, ‘पहाड़ी क्षेत्रों में बाहरी लोग जमीन न खरीद पाएं, इसके लिए हिमाचल प्रदेश जैसे सख्त कानूनों की जरूरत है. गैर-कृषक बाहरी लोगों ने राज्य में काफी बड़े पैमाने पर खेती की जमीन को खरीदा है. इस पर रोक लगनी चाहिए. कमेटी के सभी सदस्य इस बात पर एकमत हैं कि पहाड़ी इलाकों में जमीन की खरीद बंद होनी चाहिए.’
अजय ने साथ ही यह भी बताया कि उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में जमीन की खरीद को नए भूमि कानून से छूट दी जा सकती है. वह कहते हैं, ‘हमारी भौगोलिक स्थिति हिमाचल प्रदेश से अलग हैं. हमारे पास मैदानी इलाकें हैं जहां औद्योगिक विकास की जरूरत है. हालांकि कमेटी अभी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने में लगी है, लेकिन पहाड़ी और मैदानी इलाकों के लिए अलग-अलग प्रावधान हो सकते हैं.’
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के कई नेताओं ने भी हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर भूमि कानून बनाए जाने की मांग की थी. विपक्षी नेताओं ने सत्ता में आने पर बाहरी लोगों को राज्य में जमीन खरीदने से रोकने के लिए एक कानून लाने का वादा किया था.
बीजेपी के अजेंद्र अजय ने पिछले साल सीएम पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा था कि बाहरी लोगों द्वारा कृषि भूमि खरीदने से राज्य में ‘जनसांख्यिकीय परिवर्तन’ हुआ है. धामी सरकार ने पत्र के जवाब में जिलाधिकारियों को कथित ‘जनसांख्यिकीय परिवर्तन’ का विवरण पेश करने का निर्देश दिया था.
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