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Friday, 3 May, 2024
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खंभों से बनाई ‘बुलेटप्रूफ जैकेट’, बंदूक की ट्रेनिंग: कैसे गांव की समितियां चूड़ाचांदपुर की रखवाली में जुटी

चूड़ाचांदपुर में कानन की ग्राम रक्षा समिति के जैसी समितियां पूरे मणिपुर में मौजूद हैं — स्वयंसेवक गश्ती कर्तव्यों का पालन करते हैं और हिंसा के बीच ‘हॉटस्पॉट’ पर तैनात किए जाते हैं.

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क्वाक्टा, चूड़ाचांदपुर: पत्थरों और कीचड़ से भरी एक सड़क कानन गांव की ओर जाती है. सड़क के दोनों ओर छोटे-छोटे छप्पर-छत वाले घर हैं, जो टिन की चादरों से ढके एक बड़े हॉल की ओर जाते हैं.

एक कोने में युवाओं का एक समूह लगन से एक लोहे के तख्ते पर स्पंज की एक शीट चिपकाकर बुलेटप्रूफ जैकेट जैसा दिखने वाला एक कवच तैयार कर रहा है, जिसे एक ढाल जैसा आकार दिया गया है. दूसरे छोर पर, दो आदमी एक नक्शे के सामने खड़े हैं, जो रणनीति बनाने में गहराई से तल्लीन हैं.

20 साल का एक अन्य व्यक्ति अपने वॉकी-टॉकी सेट को ट्यून कर रहा है, ऐसा दिख रहा है कि वो किसी से कनेक्ट करने की कोशिश कर रहा है. इस बीच अन्य लोग कैरम के खेल से विश्राम ले रहे हैं. बगल की दीवार पर समिति के सदस्यों की एक सूची और विरोध प्रदर्शन की रणनीति का विवरण देने वाला एक पोस्टर लटका हुआ है.

Members of the village defence committee play carrom | Praveen Jain | ThePrint
ग्राम रक्षा समिति के सदस्य कैरम खेलते हुए | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

ये व्यक्ति युद्ध कक्ष में कोई सैन्यकर्मी नहीं हैं. वे कुकी-प्रभुत्व वाले चूड़चांदपुर में कानन के निवासी हैं, जो राज्य में चल रही जातीय हिंसा के बीच स्थानीय निवासियों की रक्षा करने के घोषित उद्देश्य के साथ ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) के स्वयंसेवकों के रूप में कार्यरत हैं.

ये ग्राम रक्षा समितियां पूरे मणिपुर में मौजूद हैं – यहां तक कि इंफाल की मैतेई-प्रभुत्व वाली घाटी के गांवों में भी और इन्हें सामुदायिक स्तर पर स्थापित किया गया है.

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मणिपुर पुलिस ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पास हथियार है, लेकिन वह सभी लाइसेंसी हैं.

इसमें शामिल सभी लोगों में हथियारों, वर्दी और रक्षा संबंधी उपकरणों के प्रति आकर्षण स्पष्ट है. इतना कि उन्होंने अपना खुद का निर्माण करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद कर लिए हैं.

अपने बुलेटप्रूफ जैकेटों को आकार देने के लिए, पुरुष सावधानीपूर्वक बंद पड़े लोहे के बिजली के खंभों के हिस्सों को बेलनाकार आकार देते हैं. वे उन्हें आधे में काटते हैं और ढाल बनाने के लिए उन्हें हथौड़े से चपटा करते हैं, जिन्हें बाद में उसी आकार की स्पंज शीट पर चिपका दिया जाता हैय एक बार पूरा हो जाने पर, इन ढालों को बाज़ार में आसानी से उपलब्ध बुलेटप्रूफ जैकेट जैसी जैकेटों में डाला जाता है.

समिति के कमांडर जॉर्ज थांग बताते हैं, “हम बुलेटप्रूफ जैकेट खरीद नहीं सकते, लेकिन हमारे जवानों को उनकी ज़रूरत है, इसलिए हमने अपनी खुद की जैकेट बनाई है.”

VDC commander George Thang shows how they make their improvised bulletproof jackets | Praveen Jain | ThePrint
वीडीसी कमांडर जॉर्ज थांग दिखा रहे हैं कि वे तात्कालिक बुलेटप्रूफ जैकेट कैसे बनाते हैं | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

उन्होंने अपनी टीम को उचित तकनीकों पर निर्देश देते हुए कहा, “हमने बंद पड़े बिजली के खंभों की खोज की और उन्हें ढाल में बदल दिया, जिसे अब हम इन जैकेटों में डाल रहे हैं. प्रत्येक जैकेट का वजन लगभग चार से पांच किलोग्राम होता है क्योंकि ढाल को आगे और पीछे दोनों तरफ रखा जाता है.”

जॉर्ज ने कहा, समिति के सदस्यों द्वारा एक-दूसरे के संपर्क में रहने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वॉकी-टॉकी वही हैं जो आमतौर पर बाज़ार में पाई जाती हैं, जिनका इस्तेमाल अक्सर निर्माणाधीन स्थलों पर किया जाता है.

सभी ज़रूरी उपकरण खरीदने के लिए ग्रामीणों ने “दान” दिया है. कानन गांव में 700 घर और 3,500 से अधिक लोगों की आबादी है.

जॉर्ज ने कहा, “प्रत्येक जैकेट की कीमत लगभग 3,500 रुपये है. इसके अतिरिक्त, वॉकी-टॉकी, बैटरी और वर्दी पर भी खर्च होता है. जॉर्ज ने कहा, “ग्रामीणों ने उदारतापूर्वक धन दान किया है क्योंकि वे जानते हैं कि संघर्ष के इस समय में हम उनकी रक्षा करेंगे.”


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हथियारों की ट्रेनिंग का क्रैश कोर्स

कनान वीडीसी ने अपने स्वयंसेवकों को मानचित्र पर चिह्नित विभिन्न “हॉटस्पॉट” पर तैनात किया है.

Kanaan village defence committee commander George Thang shows how they fashion bulletproof jackets out of iron poles | Praveen Jain | ThePrint
कानन ग्राम रक्षा समिति के कमांडर जॉर्ज थांग ने दिखाया कि कैसे वे लोहे के खंभों से बुलेटप्रूफ जैकेट बनाते हैं | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

निवासियों ने कहा कि हथियारों की ट्रेनिंग वाले कुछ व्यक्तियों को आपात स्थिति के लिए रिजर्व रखा जाता है, जबकि अन्य को सुरक्षा बलों के पूर्व सैनिकों द्वारा प्रदान किए गए क्रैश कोर्स से गुजरना पड़ता है.

जॉर्ज ने कहा, “यह युद्ध का समय है. अगर दुश्मन हमला कर दे तो क्या होगा? हमें अपने लोगों को अग्रिम पंक्ति में भेजने के लिए तैयार रहना चाहिए और हम यही कर रहे हैं.”

“हमारे पास पूर्व सैनिक हैं जो युवाओं को निशाना लगाने की ट्रेनिंग देते हैं. हमारे पास सिंगल और डबल बैरल हथियार हैं जो सभी लाइसेंस प्राप्त हैं.” उन्होंने कहा, “मेतैईयों के विपरीत, जिन्होंने पुलिस शस्त्रागार लूटे थे, हमने अवैध रूप से कोई हथियार हासिल नहीं किया है. इसके अलावा, यह ट्रेनिंग केवल इसलिए दी जा रही है ताकि हम प्रभावी ढंग से अपना बचाव कर सकें.”

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यह लोगों के लिए अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक “रक्षा तंत्र” है.

“इन सभी के पास लाइसेंसी हथियार हैं और 20 वर्ष से अधिक आयु के निवासी स्वयंसेवक हैं जो इन वीडीसी का हिस्सा हैं. मणिपुर के अधिकांश गांवों में इसी तरह की समितियां स्थापित की गई हैं.” अधिकारी ने कहा, “वे दिन और रात की ड्यूटी करते हैं और उन्हें जो भी उपकरण चाहिए उसे खरीदने के लिए अपना धन स्वयं जुटाते हैं.”

अधिकारी ने कहा, चूंकि समिति के सदस्य स्थानीय निवासी हैं, इसलिए वे आम तौर पर संकट के समय सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले होते हैं.

उन्होंने कहा, “एक बार जब पुलिस या बल कार्यभार संभाल लेते हैं, तो वे अलग हट जाते हैं. अपने स्वयं के गांवों की रक्षा करने के अलावा, उनमें से कई लोग झड़प का सामना कर रहे अन्य गांवों में भी तैनात होने के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं.”

‘अगर हम ड्यूटी पर नहीं रहते तो निवासी डरते हैं’

चूड़ाचांदपुर के पहाड़ी जिले में प्रत्येक गांव की अपनी रक्षा समिति होती है, जिसमें मुख्य रूप से 20 से 30 वर्ष की आयु के युवा शामिल होते हैं. कनान वीडीसी में 50 सदस्य हैं.

जबकि इन युवा सदस्यों की ड्यूटी के घंटों में शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक गांव और उसकी सीमाओं पर गश्त करना शामिल है, जबकि बुजुर्ग सदस्य सुबह के समय कार्यभार संभालते हैं. जॉर्ज ने कहा, हालांकि, झड़पों के दौरान, सभी स्वयंसेवक एक साथ आते हैं और विभिन्न स्थानों पर तैनात हो जाते हैं.

सीमा पर हिंसा की घटनाएं बढ़ने के साथ, ये ग्राम रक्षा समितियां अब अपना विस्तार कर रही हैं.

जॉर्ज ने कहा, “हमने कई और युवाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया है क्योंकि इस समय हमें अधिक लोगों की ज़रूरत है. उन्हें बंदूक चलाने, गोली चलाने के बारे में 10 दिनों की ट्रेनिंग दी जा रही है. ये वो लोग हैं जिन्होंने कभी हथियार नहीं उठाए हैं, इसलिए उनके लिए इससे परिचित होना एक क्रैश कोर्स है.”

इन ग्राम रक्षा समितियों की ज़रूरत के बारे में पूछे जाने पर जब क्षेत्र में पहले से ही इतने सारे प्रशिक्षित बल तैनात हैं, जॉर्ज ने हंसते हुए कहा, “हम वो हैं जो अपनी पूरी ताकत से अपनी ज़मीन की रक्षा करेंगे क्योंकि हम इसे किसी और से ज़्यादा महत्व देते हैं. अगर हम घर पर बैठे रहें और बचाव के लिए दूसरों पर निर्भर रहें, तो यह एक आपदा होगी.”

उन्होंने कहा कि यदि ग्राम रक्षा समिति बाहर सड़कों पर गश्त नहीं करेगी, तो कानन के निवासी रात में सो नहीं पाएंगे.

जॉर्ज ने कहा, “जब हम सड़कों पर गश्त करते हैं, तो उन्हें पता होता है कि उनका कोई अपना उन्हें किसी भी हमले से बचाने के लिए वहां मौजूद है. अगर हम सड़क पर नहीं हैं, तो ग्रामीण सो नहीं सकते. अगर हम ड्यूटी पर नहीं हैं, तो लोग अपनी सुरक्षा को लेकर डर जाते हैं. उन्हें हम पर भरोसा है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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