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Thursday, 19 December, 2024
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अतीक अहमद के साथियों के घरों पर बुलडोजर चलने से दहशत, पुलिस के पास उसके 10 ‘समर्थकों’ की सूची है

यूपी पुलिस हत्या के आरोपी अतीक अहमद को 'समर्थन और फंड देने वालों' की संपत्ति की जांच कर रही है. क्षेत्र के निवासी उसके सहयोगियों से निकटता के कारण टारगेट किए जाने को लेकर चिंतित हैं.

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प्रयागराज: उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के चकिया में, बढ़ती अफवाहों के बीच निवासी तनाव में हैं कि बुलडोजर उनके घरों को जमीन पर गिराने के लिए वापस आ जाएगा. डर यह है कि गैंगस्टर से राजनेता बने पूर्व सांसद अतीक अहमद से जुड़े लोगों और सहयोगियों के उनसे नजदीकी होने के कारण उनके घरों को भी निशाना बनाया जाएगा.

पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) के अधिकारियों के एक ‘डिमोलिशन स्कवॉड’ ने गुरुवार को कथित हथियार व्यापारी और अहमद के सहयोगी सफदर अली के घर को गिरा दिया था.

24 घंटे में यह दूसरा विध्वंस था – पहला, बुधवार को जफर अहमद के ‘अवैध रूप से निर्मित’ घर का था. यह अतीक और उसके साथियों पर कार्रवाई का हिस्सा है, जिन्होंने कथित तौर पर उमेश पाल से पैसे ऐंठने का प्रयास किया था, जिसे 24 फरवरी को दिनदहाड़े मार दिया गया था. 52 वर्षीय वकील उमेश पाल 2005 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक राजू पाल की हत्या में एक प्रमुख गवाह था.

अतीक अहमद उमेश पाल और राजू पाल दोनों की हत्याओं का मुख्य आरोपी है.

“हमारे पास 10 लोगों की सूची है जिन्होंने अहमद का समर्थन किया, न केवल अपराधियों बल्कि उन्हें वित्तपोषित करने वालों की भी. उनकी संपत्ति की भी जांच की जा रही है, ”नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा. पाल हत्याकांड के प्रमुख आरोपियों में से एक, गुड्डू मुस्लिम, जिसका नाम प्राथमिकी में है, की कथित तौर पर बारीकी से जांच की जा रही है. वह चकिया के इसी इलाके में रहता है.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि गिराई जा रही संपत्तियां फर्जी नामों से दर्ज की गई हैं और कुछ समय से प्रशासन के रडार पर थीं.

पुलिस आयुक्त रमित शर्मा ने इस पर टिप्पणी करने या चल रही ‘बुलडोजर कार्रवाई’ या पाल की हत्या की जांच पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

इस बीच, पाल की हत्या में भूमिका के लिए वांछित 24 वर्षीय अरबाज को यूपी पुलिस ने 28 फरवरी को मार गिराया.

अतीक अहमद फिलहाल अपहरण और जबरन वसूली के मामले में अहमदाबाद की साबरमती जेल में है, जबकि गुड्डू मुस्लिम फरार है. हालांकि, प्राथमिकी के अनुसार पाल हत्याकांड में न तो सफदर अली और न ही जफर अहमद को आरोपी बनाया गया है.

‘बुलडोजर’ कार्रवाई

यूपी पुलिस के सूत्रों का कहना है कि जिले के जॉनसनगंज इलाके में बंदूक की दुकान चलाने वाले अली पर आरोप है कि उसने पूर्व सांसद को बंदूकें सप्लाई की थीं. बाद में अली ने मीडियाकर्मियों से कहा कि उन्हें पीडीए से कोई नोटिस नहीं मिला है. हालांकि, पीडीए के अधिकारियों ने अन्यथा दावा किया, यह कहते हुए कि उन्हें चेतावनी के साथ एक नोटिस भेजा गया था कि निर्माण अवैध था और संरचना को ध्वस्त कर दिया गया था.

पीडीए की संयुक्त टीम ने बुधवार को चकिया स्थित जफर अहमद के मकान को गिरा दिया था. इसमें आरोप लगाया गया था कि बिना प्लान की मंजूरी लिए अवैध तरीके से घर बनाया गया था. ऊपर उद्धृत अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ज़फ़र अहमद एक समाचार एजेंसी में स्ट्रिंगर थे.

घर से दो रायफल, एक तलवार और पोस्टर, बैनर समेत कई दस्तावेज बरामद हुए हैं. अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन अपने पुश्तैनी घर को सितंबर 2020 में गिराए जाने के बाद से अपने दो बेटों के साथ जफर अहमद के घर में रह रही थीं.

जांच से जुड़े एक पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि उमेश पाल की हत्या जफर अहमद के घर पर रची गई थी.

दिन के उजाले में गोली मार दी

उमेश पाल की हत्या में अतीक, उनके भाई अशरफ, उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन, उनके करीबी सहयोगी गुड्डू मुस्लिम, गुलाम, अतीक के दो बेटों (नाम अज्ञात) और दो अन्य अज्ञात लोगों सहित नौ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है.

प्राथमिकी में, पाल की पत्नी, जया ने कहा कि उसका पति अदालत से घर लौटा था जब कुछ लोगों ने उनके ऊपर गोलियां चलानी शुरू कर दीं और बम फेंके. वह उस समय घर पर थीं.

उसने धूमनगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी में कहा, “मैं सीसीटीवी कैमरा फुटेज देखने के बाद चिल्लाते हुए बाहर निकली. मैंने देखा कि ये लोग बम फेंक रहे थे और फायरिंग कर रहे थे. बीच-बचाव करने वाले को जान से मारने की धमकी भी दे रहे थे. इसकी वजह से भारी हंगामा खड़ा हो गया था और परिवार के सदस्यों की मदद से, हम मेरे पति और उनके दो सुरक्षाकर्मियों, गनमैन संदीप और राघवेंद्र सिंह को अस्पताल ले जाने में सफल रहे.”

धारा 147 (दंगा), 148 (घातक हथियार से लैस), 149 (गैरकानूनी तरीके से भीड़ का हिस्सा होना), 302 (हत्या), 307 (हत्या के इरादे से गोली चलाना), 506 (आपराधिक धमकी), 34 (एक इरादे के लिए कई लोगों द्वारा कार्य), 120-बी (आपराधिक साजिश के लिए एकजुट होना), विस्फोटक अधिनियम की धारा 3 (विस्फोट से जीवन और संपत्ति को खतरे में डालने की संभावना), और धारा 7 (बेवजह या इसी तरह के किसी भी कार्य को या उस स्थान पर जहां कोई व्यक्ति व्यवसाय करता है, इस तरह से और इस इरादे से कि किसी भी व्यक्ति को उसमें प्रवेश करने या उस स्थान पर आने या व्यवहार करने से रोका जा सके) के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है. दिप्रिंट के पास एफआईआर की कॉपी है.

पाल और संदीप दोनों को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया, जबकि सिंह ने बाद में दम तोड़ दिया. पाल की ऑटोप्सी रिपोर्ट में कहा गया है कि उसे सात बार गोली मारी गई थी और उसके शरीर पर 13 चोटें थीं.

जया ने आरोप लगाया कि उनके पति का 2006 में अतीक के सहयोगियों द्वारा 2005 के मामले में अपने बयान से मुकरने के लिए दबाव बनाने के प्रयास में अपहरण कर लिया गया था. पाल ने इस संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की थी और मामला चल रहा था.

एक पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हालांकि, पाल दबाव के आगे नहीं झुक रहा था और अतीक के लिए आंखों की किरकिरी बन गया था.’

विधायक राजू पाल की हत्या

अतीक और पाल की प्रतिद्वंद्विता 2002 की है जब पाल ने अतीक को इलाहाबाद (पश्चिम) से विधानसभा चुनावों में हराया था. हालांकि, समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर फूलपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद 2004 में गैंगस्टर से राजनेता बने इस व्यक्ति ने इस्तीफा दे दिया. वह चाहते थे कि परिवार का कोई सदस्य सीट बरकरार रखे और उन्होंने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को लॉन्च किया.

नवंबर 2004 में, पाल ने अजीम को हराकर बसपा उम्मीदवार के रूप में उपचुनाव जीता. जनवरी 2005 में, जब पाल गणतंत्र दिवस परेड के लिए जा रहे थे, तब उन्हें गोली मार दी गई थी. उनकी हत्या के बाद, अजीम ने पाल की पत्नी पूजा को हराकर सीट जीती.

अतीक 1989 से 2002 के बीच लगातार पांच बार इलाहाबाद (पश्चिम) से विधायक रहे.

2009 के लोकसभा चुनाव में राजू पाल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार अतीक सपा से निकाले जाने के बाद अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गया. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में जमानत पर छूटे अतीक ने फिर से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन दिवंगत राजू पाल की पत्नी पूजा से हार गए. 2014 में, उन्हें सपा में वापस ले लिया गया और उन्होंने श्रावस्ती लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन फिर से हार गए.

इस बीच, बिल्डिंग्स को ढहाए जाने के बीच, अतीक ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा “फर्जी मुठभेड़” में मारे जाने के डर का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से पुलिस सुरक्षा मांगी है. 2020 में गैंगस्टर विकास दुबे की मौत को याद करते हुए भाजपा के कन्नौज सांसद सुब्रत पाठक के 1 मार्च के ट्वीट के मद्देनजर सुरक्षा की मांग की गई है.

पाठक ने ट्वीट किया, “याद रखें, जब विकास दुबे नहीं बचा, तो आप सोच सकते हैं कि इन दुष्टों का क्या होगा. अगर अतीक की कार भी पलट जाए तो मुझे हैरानी नहीं होगी.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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