(दुर्बा घोष)
गुवाहाटी, एक सितंबर (भाषा) लेखक टी. रिचर्ड ब्लरटन का दावा है कि ब्रिटिश संग्रहालय में रखा वृंदावनी वस्त्र अपनी शैली का संभवत: एकमात्र उपलब्ध भक्ति वस्त्र नहीं है लेकिन यह वर्तमान में उपलब्ध दुनिया का निश्चित रूप से सबसे बड़ा भक्ति वस्त्र है।
लंदन स्थित ब्रिटिश संग्रहालय ने 16वीं शताब्दी में वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा निर्मित रेशमी वस्त्र ‘वृंदावनी वस्त्र’ को 2027 में प्रदर्शित करने के लिए असम को कुछ समय के लिए देने पर सहमति जतायी है।
ब्लरटन ने अपनी पुस्तक ‘कृष्णा इन द गार्डन ऑफ असम‘ में लिखा है कि ‘‘यह निश्चित रूप से सबसे बड़ा वस्त्र है, लेकिन इसे सबसे पुराना नहीं माना जाता है… ऐसा माना जाता है कि इस तरह के ‘वृंदावनी वस्त्र’ के टुकड़े ‘लॉस एंजिलिस काउंटी म्यूजियम ऑफ आर्ट’ और पेरिस के ‘म्यूजे गुइमेट’ में भी हैं।’’
असम की प्राचीन वस्त्र परंपरा पर लिखी गई एकमात्र पुस्तक में लेखक ने बताया कि ‘वृंदावनी वस्त्र’ के लगभग 20 टुकड़े आज भी शेष हैं।
इस पुस्तक में असम में ब्रह्मपुत्र के तट से तिब्बत के मठों और अंततः लंदन तक इस रेशमी वस्त्र की यात्रा के साथ-साथ इसके इतिहास, इससे जुड़े धर्म और संदर्भ का वर्णन किया गया है।
पुस्तक के मुताबिक, एक अभिलेख में यह उल्लेख है कि वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव ने 16वीं शताब्दी में कोच राजा नारायणराय के भाई चिलाराय के अनुरोध पर लंबे कपड़े की बुनाई की व्यवस्था की थी और इसे ‘वृंदावनी वस्त्र’ के रूप में संदर्भित किया गया था।
लेखक ने बताया कि ब्रिटिश संग्रहालय में रखा ‘वृंदावनी वस्त्र’ रेशम की 12 बुनी हुई पट्टियों से बना है, जिन्हें एक साथ सिलकर एक कपड़ा बनाया गया है, जो 9.37 मीटर लंबा और 2.31 मीटर चौड़ा है।
सभी अलग-अलग पट्टियां कृष्ण के जीवन एवं भगवान विष्णु के ‘अवतारों’ को दर्शाती हैं।
वृंदावनी वस्त्र’ श्रीमंत शंकरदेव के मार्गदर्शन में बनाया गया था, जिसमें भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों को दर्शाया गया है। इस वस्त्र में श्रीमंत शंकरदेव की लिखी एक कविता का अंश भी है।
भाषा सिम्मी मनीषा
मनीषा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.