जयपुर, 22 जनवरी (भाषा) राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने कोटा के एक सरकारी अस्पताल में बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले) श्रेणी के एक व्यक्ति के इलाज के लिए 90000 रुपये शुल्क वसूले जाने के मामले में राज्य सरकार को परिवादी को 1.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। परिवादी का सरकारी अस्पताल में गैर-बीपीएल व्यक्ति के रूप में इलाज किया गया था।
आयोग ने कोटा के नये मेडिकल कॉलेज में दिसंबर 2019 में एंजियोप्लास्टी कराने वाले पुरुषोत्तम भार्गव की ओर से दायर एक शिकायत पर यह आदेश दिया।
आयोग के सदस्य महेश गोयल ने 13 जनवरी को सुनवाई के दौरान कहा कि भामाशाह लाभार्थी होने के बावजूद मरीज को लाभ नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन पर लगे आरोपों को निराधार नहीं माना जा सकता।
आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि पीड़ित भामाशाह कार्डधारी, बीपीएल श्रेणी में चयनित वरिष्ठ नागरिक पुरुषोत्तम भार्गव को उनके परिजन उपचार के लिए नवीन चिकित्सालय, चिकित्सा महाविद्यालय परिसर, कोटा लाए। फैसले में कहा गया कि वहां के भामाशाह काउंटर पर तैनात संविदा कर्मी (संदीप) की लापरवाही व गलती के कारण, परिवादी के अनुसार 90,000 रुपए (जांच रिपोर्ट के अनुसार 79,730 रुपए) का भुगतान भामाशाह एवं बीपीएल कार्ड होते हुए भी करना पड़ा है।
फैसले के अनुसार, ‘‘अतः राज्य सरकार परिवादी पुरुषोत्तम भार्गव को उनके द्वारा व्यय की गई राशि 90,000 रुपये के पुनर्भरण के रूप में तथा परिवादी पक्ष को हुई मानसिक वेदना व आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए राशि 60,000 रुपये अनुतोष हेतु यानी कुल 1,50,000 रुपये का भुगतान इस आदेश प्राप्ति के दो माह की अवधि में करें।’’
इसके साथ ही आयोग ने कहा कि चूंकि प्रकरण में कथित जांचोपरांत एक संविदा कर्मी पर दोषारोपण करके जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया गया है। आयोग ने कहा कि अतः प्रकरण की विस्तृत जांच कराकर दोषी चिकित्साधिकारी/ चिकित्साकर्मी अथवा अन्य जिम्मेदारी अधिकारी/कर्मचारी की जिम्मेदारी तय करके परिवादी के मानव अधिकार हनन के लिए दोषी कार्मिक के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए। आयोग ने कहा कि सरकार विस्तृत जांचोपरान्त दोषसिद्ध होने पर उक्त राशि आरोपी चिकित्सक, अस्पताल प्रबन्धन अथवा विस्तृत जांचोपरान्त अन्य किसी दोषसिद्ध चिकित्साकर्मी से वसूल कर सकेगी।
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