दिसंबर: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह राज्य की आदिवासी पट्टी में कुपोषण की वजह से होने वाली मौतों को रोकने के लिए अल्पकालिक योजना लेकर आए.
अदालत 2007 में दायर की गईं कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण के कारण बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की मौतों की अधिक संख्या को उजागर किया गया है.
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एम एस कार्णिक की बेंच ने यह भी कहा कि जब सवाल आदिवासी आबादी के स्वास्थ्य से जुड़ा हो तो उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिए.
अदालत के पहले के आदेशों के अनुसार, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डॉ छेरिंग दोरजे (विशेष महानिरीक्षक) ने सोमवार को इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की समस्याओं पर अपनी रिपोर्ट पेश की.
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रिपोर्ट में, दोरजे ने राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और बच्चों में कुपोषण के मसले के समाधान के लिए एक व्यापक कार्यक्रम चलाए जाने का सुझाव दिया है.
दोरजे ने कहा, ‘आदिवासी आबादी में अपने पुराने रीति-रिवाजों और मान्यताओं के कारण सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में जाने को लेकर अनिच्छा और हिचकिचाहट है.’ उन्होंने कहा कि कुछ आदिवासी बीमार होने के बाद तांत्रिक के पास जाते हैं और हालत गंभीर होने के बाद ही उचित इलाज कराते हैं.
बेंच ने इसके बाद कहा कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अपनी अनिच्छा को दूर करना होगा.
हाई कोर्ट ने दोरजे की ओर से पेश की गई रिपोर्ट को देखने और इस मुद्दे के हल के लिए राज्य सरकार को अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं के साथ आने का निर्देश दिया.
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