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Friday, 15 November, 2024
होमदेशबिहार की गर्मी में ब्लेज़र? IAS अधिकारी को पटना HC की फटकार के बाद ड्रेस-कोड पर बहस हुई तेज

बिहार की गर्मी में ब्लेज़र? IAS अधिकारी को पटना HC की फटकार के बाद ड्रेस-कोड पर बहस हुई तेज

जज ने कहा, 'कम से कम अपने कॉलर का बटन तो बंद करना चाहिए था और ब्लेजर पहन कर आना चाहिए था'. लेकिन कानूनी बिरादरी के साथ-साथ सिविल सेवकों का तर्क है कि अधिकारी की ड्रेस में कुछ भी गलत नहीं था.  

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नई दिल्ली: पटना हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस पी.बी. बजंथरी ने बिहार सरकार के वरिष्ठ अधिकारी को डांटते हुए कहा कि ‘क्या आप सिनेमा हॉल में आए हैं?’ सुनवाई का यह एक महीने पुराना फुटेज है जो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. न्यायाधीश वरिष्ठ आईएएस आनंद किशोर को कोर्ट में प्रॉपर ड्रेस कोड में नहीं होने की वजह से फटकार लगा रहे थे वहीं जज साहब की फटकार के दौरान अधिकारी अपनी सफाई देते हुए नजर आए.

बता दें कि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी आनंद किशोर बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड (बीएसईबी) के अध्यक्ष और राज्य में आवास और शहरी विकास के प्रमुख सचिव हैं. उन्होंने सुनवाई के दौरान फॉर्मल सफेद शर्ट और पैंट पहनी हुई थी.

न्यायमूर्ति बजंथरी के अनुसार, किशोर जिन्हें अप्रैल में लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, को कम से कम अपने कॉलर को बटन बंद करना चाहिए था और अदालत में ब्लेज़र पहनकर आना चाहिए था.

न्यायाधीश आगे किशोर से पूछते हैं कि क्या उन्होंने मसूरी में सिविल सेवा प्रशिक्षण संस्थान में भाग नहीं लिया था और क्या आपको नहीं बताया गया कि अदालत में कैसे पेश होना है.

न्यायाधीश फिर से आश्चर्य करते हैं और पूछते हैं, ‘बिहार राज्य में आईएएस अधिकारियों को क्या हो गया है? वे नहीं जानते कि अदालत में कैसे पेश होना है?’ जिसके जवाब में आईएएस अधिकारी ने गर्मी के मौसम का हवाला देते हुए कहा कि इसको लेकर कोई आधिकारिक निर्देश नहीं हैं.

वीडियो में देखा जा सकता है कि जज का गुस्सा वकीलों को कठघरे में खड़ा कर रहा है. शायद इसलिए कि किसी भी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे नियम निर्धारित नहीं किए हैं जो सिविल सेवकों के लिए ‘सभ्य ड्रेस कोड’ को परिभाषित करते हों.

फिर भी न्यायाधीशों ने अक्सर इस बारे में बात की है कि किस तरह से एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को सुनवाई के दौरान अदालत के सामने पेश होना चाहिए. और नियमित रूप से इस बात पर जोर दिया है कि अधिकारियों को औपचारिक रूप से सेवाओं में शामिल होने से पहले दिए गए ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान उन्हें बताए गए ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए.

कानून के जानकार इस मुद्दे पर बंटे हुए नजर आते हैं. पटना उच्च न्यायालय में कार्यवाही के समय मौजूद वकीलों ने दिप्रिंट को बताया कि किशोर की ड्रेस में कुछ भी ‘असामान्य’ या ‘अनुचित’ नहीं था.

अदालत के लिए एक प्रॉपर ड्रेस कोड क्या है, इस बारे में सिविल सेवकों के विचार जानने के लिए दिप्रिंट उन तक भी पहुंचा. उन सभी ने कहा कि उनके सेवा नियम किसी विशिष्ट पोशाक की बात नहीं करते हैं. हालांकि, प्रशिक्षण के दौरान उन्हें मिली एक हैंडबुक में जरूर लिखा था कि नौकरशाहों को शालीन कपड़े पहनने चाहिए.

दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘इस बात पर जोर देना कि एक सरकारी अधिकारी को टाई और कोट में होना चाहिए, औपनिवेशिक युग की मानसिकता को दर्शाता है. पटना उच्च न्यायालय में ब्यूरोक्रेट्स की ड्रेस में कुछ भी अनुचित नहीं था.’


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पहली बार नहीं

पटना हाई कोर्ट में बिहार सरकार के एक वरिष्ठ वकील ने दिप्रिंट को बताया कि न्यायमूर्ति बजंथरी ने इससे पहले 2014 बैच के एक आईएएस अधिकारी– एक जिला मजिस्ट्रेट की खिंचाई की थी. वह भी अदालत में प्रॉपर ड्रेस कोड के अनुरूप पेश नहीं हुआ था.

किशोर की तरह ही इस अफसर ने भी अपने कॉलर का बटन नहीं लगाया था और न ही ब्लेजर पहना हुआ था. एक वकील ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब उनसे पूछा गया कि वह उचित पोशाक में क्यों नहीं हैं, तो अधिकारी ने स्वीकार किया कि उन्हें टाई पहनकर आना चाहिए था.’

2018 में जस्टिस जे. चेलमेश्वर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राजस्थान के एक आईएएस अधिकारी को पैंट के साथ रंगीन शर्ट पहनने के लिए अदालत में फटकार लगाई थी. पीठ को ये ड्रेस ‘शालीन और सभ्य’ नहीं लगी थी और इसलिए उस दिन मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया. मामले पर फिर अगले दिन सुनवाई की गई जब वरिष्ठ अधिकारी शाही नीले रंग के सूट में बड़े करीने से अदालत में लौटे. उन्होंने पिछले दिन अपने कपड़ों के लिए बेंच से बिना शर्त माफी मांगी थी.

पीठ ने कहा था, ‘चाहे नियम हों या न हों, नौकरशाहों से हमेशा अदालत में पेश होने के दौरान शांत और सभ्य पोशाक पहनने की उम्मीद की जाती है.’

2017 में बिहार के एक मुख्य सचिव भी गर्मी के मौसम के चलते अनुचित पोशाक में अदालत के सामने पेश हुए थे. जस्टिस चेलमेश्वर की अगुवाई वाली पीठ ने संपत्ति विवाद में अपील दायर करने में बिहार सरकार की ओर से देरी की व्याख्या करने के लिए अधिकारी को तलब किया था. लेकिन उसने अधिकारी की ड्रेस के चलते सुनवाई स्थगित कर दी गई. अगले दिन मुख्य सचिव एक बंद गले के कोट और काली पैंट में अदालत के सामने आए. तब पीठ ने उनसे पूछा था : ‘क्या आप अनौपचारिक पोशाक में (मुख्यमंत्री के साथ) अपनी बैठकों के लिए जाते हैं?’

2017 में ही हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा था कि अदालत में जींस, चेक शर्ट या रंगीन प्रिंट वाली साड़ी पहनना ‘कानून की महिमा को कमजोर कर सकता है.’ उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को सभी सरकारी अधिकारियों को अदालतों में पेश होने के दौरान प्रॉपर ड्रेस पहनकर आने का निर्देश दिया था.

एक जूनियर इंजीनियर ने अपनी कोर्ट में पेशी के दौरान जींस और कई रंग वाली चेक शर्ट पहनी हुई थी, जिसके बाद ये निर्देश जारी किए गए. अदालत ‘हैरान’ हुई जब उसने कहा कि वह अपने काम के लिए भी वही कपड़े पहनती हैं.

अदालत के आदेश का राज्य ने तुरंत पालन किया गया और एक सर्कुलर जारी कर सरकारी अधिकारियों को अदालत या कार्यालय में ‘उचित, औपचारिक, स्वच्छ, और हल्के रंगों वाले सभ्य कपड़े पहनने के लिए कहा, जो भड़कीले न हों.’

ड्रेस कोड का पालन न करने से अक्टूबर 2019 में ओडिशा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी नाराज़ हो गए थे. इस पर ध्यान देते हुए 2019 में राज्य के महाधिवक्ता के कार्यालय ने ओडिशा सरकार के मुख्य सचिव को एक औपचारिक संदेश भेजा, जिसमें कहा गया था कि सरकारी अधिकारियों को अदालत में पेशी के दौरान ‘शालीन और सभ्य पोशाक’ पहनकर आना चाहिए.


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अलग-अलग तर्क

अदालत के लिए ‘उपयुक्त’ ड्रेस कोड क्या है, इस पर कानूनी बिरादरी की अलग-अलग राय है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता का मानना है कि जस्टिस बजंथरी की टिप्पणी अनुचित थी क्योंकि सिविल सेवक ने सही कपड़े पहने हुए थे. उन्होंने कहा, ‘कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि एक नौकरशाह ब्लेज़र या टाई में होना चाहिए. केवल जरूरत इस बात की है कि अधिकारी उचित पोशाक पहन कर आए. जज अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कुछ ज्यादा ही कह गए. न्यायाधीशों के रूप में, हमें थोड़ा सोच-समझकर मामलों से व्यथित होना चाहिए.’

अधिवक्ता शशांक शेखर झा ने भी कहा कि न्यायाधीशों को टाई और कोट पर नहीं, बल्कि डिसेंट ड्रेसिंग पर जोर देना चाहिए. पटना उच्च न्यायालय के इन दो मामलों में, दोनों अधिकारी फॉर्मल कपड़ों में थे. झा ने कहा, ‘गर्मियों के दौरान, कॉलर बटन बंद करने या कोट पहनने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.’

लेकिन 2018 में शीर्ष अदालत में राजस्थान के आईएएस अधिकारी का बचाव करने वाले पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता आत्माराम नाडकर्णी ने कहा कि सिविल सेवक अदालत में एक राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसलिए उन्हें ठीक से तैयार होकर आने की जरूरत होती है.

‘नौकरशाहों को औपचारिक रूप से तैयार होकर अदालत में आना चाहिए, जैसे वे औपचारिक बैठकों या औपचारिक कार्यों में शामिल होने पर करते हैं. आप सिर्फ शर्ट और पैंट पहनकर अदालत में पेश नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि वकीलों के लिए ड्रेस कोड में बैंड के साथ शर्ट के बटन बंद रखना भी अनिवार्य है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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