नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देने के सात साल बाद, सामाजिक कार्यकर्त्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) संस्थापक मेधा पाटकर के आप के साथ रिश्ते, चुनावी गुजरात में एक गरमा-गरम राजनीतिक मुद्दा बन गए हैं.
हालांकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नज़र पाटकर पर है, लेकिन लगता है कि असल निशाना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने गृह राज्य में, आप के पदचिन्हों को फैलाने के लिए काम कर रहे हैं.
उस आंदोलन की निंदा करते हुए, जिसकी पाटकर ने सरदार सरोवर बांध के खिलाफ अगुवाई की थी, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इन अपुष्ट दावों को लेकर आम आदमी पार्टी पर हमले कर रही है, कि उन्हें पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है. इन दावों में, जिनकी शुरुआत गुजरात मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने की, पिछले एक सप्ताह में बीजेपी प्रवक्ताओं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत शीर्ष नेताओं ने और इज़ाफा कर दिया.
लेकिन पाटकर और आप- जिसने गुजरात में नया नया प्रवेश किया है- दोनों ने उनके पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा होने की संभावना को सरासर बकवास क़रार दिया है.
आप के संयुक्त महासचिव इसुदान गढ़वी ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये कहना कि आप गुजरात में मेधा पाटकर को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उतार रही है, ऐसा ही है जैसे ये कहना कि बीजेपी अपने प्रधानमंत्री चेहरे के तौर पर सोनिया गांधी को आगे कर रही है’.
एक और आप नेता ने दावा किया कि बीजेपी इस बात को भांप रही है, कि कांग्रेस अब उसे टक्कर देने की स्थिति में नहीं है, और आप का नैरेटिव आगे बढ़ रहा है. उन्होंने आगे कहा, ‘यही कारण है कि वो (बीजेपी नेता) अफवाहों को ख़बरों में बदल रहे हैं, और गृह मंत्री तक उस पर टिप्पणी कर रहे हैं. ये बहुत ही हास्यास्पद है.’
इस बीच, गुजरात बीजेपी महासचिव भार्गव भट्ट ने दिप्रिंट से कहा, कि अगर आम आदमी पार्टी की पाटकर को अपनी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर आगे लाने की कोई योजना नहीं है, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से ऐसे दावों का खंडन करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन ऐसा कोई खंडन नहीं है. गुजराती लोग जानते हैं कि पिछले दो दशकों में नर्मदा का मुद्दा उठाकर, पाटकर ने किस तरह गुजरात के साथ विश्वासघात किया. ये पीएम ही थे जिन्होंने कच्छ के सूखा-संभावित क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता को संभव बनाया. गुजरात कभी मेधा पाटकर को स्वीकार नहीं करेगा’.
एक और गुजरात बीजेपी नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट से कहा: ‘आप आदिवासी क्षेत्रों में समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है. यही वजह है कि उन्होंने आदिवासी पार्टी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) के साथ गठबंधन किया है; वो उन आदिवासी क्षेत्रों में पांव टिकाने पर विचार कर सकते हैं जहां पाटकर ने काम किया है, लेकिन अगर उन्होंने पाटकर की उम्मीदवारी घोषित कर दी, तो ये उल्टा पड़ जाएगा.’
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अफवाह की जड़ें
मेधा पाटकर के आप के साथ फिर से बने रिश्तों का दावा, सबसे पहले गुजरात मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने 28 अगस्त को भुज ज़िले में एक सार्वजनिक सभा में किया.
प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा करते हुए पटेल ने अपने भाषण में कहा, कि हमें उन लोगों को याद रखना चाहिए जिन्होंने कच्छ को पांच दशकों तक नर्मदा के पानी से वंचित रखा’.
‘हमें पहले से पता है कि विरोध कर रहे शहरी नक्सल कौन थे. इन लोगों ने गुजरात और कच्छ को विकास से वंचित रखने की कोशिश की. ऐसी ही एक व्यक्ति हैं मेधा पाटकर. इन लोगों ने गुजरात को गुमराह किया और राज्य में नक्सलवाद लाने की कोशिश की, लेकिन गुजरात और कच्छ के लोगों ने उनकी इच्छाओं को पूरा नहीं होने दिया’.
2015 में पार्टी छोड़ने से पहले 2014 के आम चुनाव में, पाटकर ने किस तरह उत्तर-पूर्व मुम्बई से आप के टिकट पर लड़ने का असफल प्रयास किया, इसका उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा: ‘हर कोई जानता है कि मेधा पाटकर जैसी शख़्स का संबंध किस पार्टी से है, किसने उन्हें संसदीय चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया. उन्होंने गुजरात को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन गुजरात के समझदार लोगों ने ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं किया’.
दो दिन बाद, 29 अगस्त को मुम्बई बीजेपी के आधिकारिक प्रवक्ता सुरेश नखुआ ने ट्वीट किया, ‘अगर सूत्रों की बात पर विश्वास किया जाए, तो भारत-विरोधी, विकास-विरोधी, गुजरात-विरोधी मेधा पाटकर को केजरीवाल लोकपाल दल का सीएम चेहरा घोषित किया जाएगा’.
उसी दिन, दिल्ली बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने भी दावा किया कि पाटकर गुजरात में आप की सीएम उम्मीदवार होंगी. उन्होंने ट्वीट किया, ‘हां, मेधा पाटकर जिन्होंने पानी रोका, बांध के खिलाफ एक साज़िश रची, गुजरात को बदनाम किया, और आंदोलन के नाम पर एक दुकान चलाती हैं’.
30 अगस्त को एक ट्वीट में, पाटकर ने अटकलों का खंडन किया और लिखा: ‘मैंने 2014 में ही कुछ महीनों के भीतर पार्टी छोड़ दी थी, और मैं पार्टी राजनीति में बिल्कुल नहीं हूं! बीजेपी समर्थक आप का फैसला कैसे जान सकते हैं, झूठे दावे किए जा रहे हैं…’
बाद में उसी दिन, गुजरात बीजेपी ने एक सोशल मीडिया मुहिम शुरू की, जिसका विषय था ‘गुजरात-विरोधी आप’. इस विषय पर किए गए ट्वीट्स, जिनमें आप तथा पाटकर की आलोचना थी, बीजेपी सांसदों, पदाधिकारियों, तथा नेताओं ने व्यापक रूप से साझा किए, जिनमें गुजरात बीजेपी आईटी सेल के संयोजक निखिल पटेल, और गपजरात बीजेपी महासचिव प्रदीपसिंह वाघेला शामिल थे.
पटेल ने 1 सितंबर को ट्वीट किया कि पाटकर को गुजरात में सीएम चेहरा बनाए जाने पर, पूर्व कांग्रेस विधायक इंद्रनील राजगुरु की अगुवाई में, आप के ‘13 घोषित उम्मीदवारों’ ने चुनाव लड़ने से ‘इनकार’ कर दिया है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी पाटकर और आप के बारे में किए जा रहे दावों को दोहराया, जब 4 सितंबर को वो 36वें राष्ट्रीय खेलों से पहले के समारोह, और अहमदाबाद में खेल महाकुंभ समारोह को संबोधित कर रहे थे.
आप का नाम लिए बिना शाह ने कहा, ‘इन दिनों, कुछ लोगों ने नर्मदा परियोजना का विरोध करने वाली मेधा पाटकर को, गुजरात की सियासत में पिछले दरवाज़े से घुसाने के लिए एक नई शुरुआत की है. मैं युवाओं से पूछना चाहता हूं कि क्या वो ऐसे लोगों को राज्य में घुसने की अनुमति देंगे, जिन्होंने नर्मदा परियोजना और उसके साथ गुजरात के विकास का विरोध किया’.
प्रधानमंत्री कीभगीरथ से तुलना करते हुए, जो एक पौराणिक चरित्र थे जो गंगा को पृथ्वी पर लाए थे, शाह ने कहा: ‘ये सब इसलिए हो सका क्योंकि मोदी जी नर्मदा के पानी को कच्छ में खावड़ा तक ले आए. अगर मोदी जी भगीरथ बनकर गुजरात न आते, और नर्मदा के पानी को कच्छ तक न लाते, तो ये विकास संभव नहीं हो सकता था’.
गुजरात के उस दौरे के दौरान, शाह ने अहमदाबाद में एक स्कूल का उदघाटन करते हुए, आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पर भी निशाना साधा.
उन्होंने कहा, ‘लोग दो तरह के होते हैं. एक वो होते हैं जो पांच साल तक कच्छ में पसीना बहाते हैं और मेहनत करते हैं, और फिर राजनीतिक दलों के ज़रिए चुनाव लड़ते हैं, और दूसरे वो होते हैं चुनाव से केवल पांच महीने पहले नए कपड़े ख़रीदते हैं, और वोट लेने के लिए वादे करने शुरू कर देते हैं. लेकिन गुजरात के लोग दूसरे प्रकार के लोगों को अच्छी तरह जानते हैं.’
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गुजरात में AAP बनाम BJP
गुजरात में कांग्रेस के धीरे धीरे पृष्ठभूमि में जाने के साथ ही, राज्य के सौराष्ट्र इलाक़े में आप की बढ़ती लोकप्रियता से सत्तारूढ़ बीजेपी में घबराहट फैल गई है.
पार्टी ने गुजरात में कुछ ज़मीन हासिल की, जो पिछले साल के नगर निकाय चुनावों में उसके प्रदर्शन से ज़ाहिर है, जब उसने सूरत में 28 प्रतिशत, गांधीनगर में 21 प्रतिशत, और राजकोट में 17 प्रतिशत वोट हासिल कर लिए.
आप के गुजरात प्रभारी संदीप पाठक ने अप्रैल में दावा किया था, कि एक सर्वे में- जिसे राज्य की ख़ुफिया एजेंसियों ने बीजेपी सरकार के लिए किया था- पता चला था कि अगर उस समय चुनाव कराए जाएं, तो आप गुजरात की 182 असेम्बली सीटों में से 55 पर जीत हासिल कर रही थी.
इसी सप्ताह केजरीवाल ने दावा किया कि आप सूरत में, 12 में से 7 असेम्बली सीटें जीत रही है.
गुजरात में चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं, और आप ने राज्य के उनके दौरों के दौरान कई चुनावी वादे किए हैं. 300 यूनिट मुफ्त बिजली के अलावा, हर युवा के लिए रोज़गार, और नौकरी मिलने तक बेरोज़गारों को 3,000 रुपए मासिक भत्ते के अलावा, केजरीवाल ने ये भी वादा किया है कि अगर आप सत्ता में आ जाती है, तो हर महिला को 1,000 रुपए महीना दिया जाएगा.
बीजेपी की रणनीति का अनुसरण करते हुए, आप ने एक ‘मिस्ड कॉल’ अभियान का भी ऐलान किया है, जिसमें एक नंबर पर फोन करने वाले हर व्यक्ति को पार्टी सदस्य के तौर पर पंजीकृत कर लिया जाएगा. मतादाताओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए पार्टी नेता बार बार दावा कर रहे हैं, कि आप चुनाव जीतने की ओर बढ़ रही है- एक और चुनाव-पूर्व रणनीति जिससे बीजेपी अनजान नहीं है.
इसके अलावा, पिछले महीने आज़ादी के 75वें दिवस के अवसर पर, केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने पूरे गुजरात में तिरंगा यात्राएं निकालीं.
इस बीच दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जो आप सरकार की आबकारी नीति के सिलसिले में एक सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं, ‘ड्राई-स्टेट’ गुजरात में अवैध शराब से हुई मौतों को लेकर, बीजेपी सरकार पर हमले कर रहे हैं. जुलाई में केजरीवाल उन लोगों से मिलने के लिए भावनगर गए, जिन्होंने अवैध शराब के कारण अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था, और उनके लिए मुआवज़े की मांग की.
इस मुद्दे को आप सांसदों ने मॉनसून सत्र के दौरान संसद में भी उठाया.
केजरीवाल का सामना करते हुए, गुजरात बीजेपी प्रमुख सीआर पाटिल ने पिछले महीने, सूरत में एक उदघाटन समारोह के दौरान अपने समर्थकों से कहा था, कि इन दिनों ‘राज्य के दौरे पर आया हुआ एक व्यक्ति’ ऐसे चुनावी वादे कर रहा है जो ‘चीनी वस्तुओं’ की तरह हैं.
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