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Sunday, 3 November, 2024
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कॉमनवेल्थ गेम्स 2022: मीराबाई चानू ने वेट लिफ्टिंग में भारत को दिलाया पहला गोल्ड, रचा इतिहास

टोक्यो 2020 में उनके द्वारा लाया गया सिल्वर मेडल, इंडियन वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी के बाद लाया गया दूसरा ओलंपिक मेडल था. इसके अलावा पीवी सिंधु के बाद वह सिल्वर मेडल लाने वाली दूसरी भारतीय महिला थीं.

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नई दिल्लीः मीराबाई चानू ने शनिवार को बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में महिलाओं की वेट लिफ्टिंग के 49 किलो भार वर्ग में भारत को पहला गोल्ड दिला दिया. उन्होंने 201 किलोग्राम वजन उठाकर इतिहास रचा. इस कटेगरी में उन्होंने रिकॉर्ड बनाया है. वहीं पूरे देश की निगाहें चैंपियन वेटलिफ्टर मीराबाई चानू पर लगी हुई थीं.

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर मीराबाई चानू को बधाई दी है. उन्होंने लिखा है, असाधारण @mirabai_chanu आपने भारत को फिर गौरवान्वित किया. प्रत्येक भारतीय इस बात से खुश है कि उन्होंने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता और एक नया रिकॉर्ड कायम किया. उनकी सफलता कई भारतीयों को प्रेरित करती है, खासकर नये उभर रहे एथलीटों को.’

पिछली बार 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाली चानू से फिर मेडल लाने की उम्मीद की जा रही थी. वह टोक्यो ओलंपिक में भी पदक जीत चुकी हैं. बता दें कि चानू वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल लाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं.

टोक्यो 2020 में सिल्वर मेडल इंडियन वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी के बाद लाया गया दूसरा ओलंपिक मेडल था. इसके अलावा पीवी सिंधु के बाद वह सिल्वर मेडल लाने वाली दूसरी भारतीय महिला थीं.

कुल 205 किलोग्राम के साथ चानू एंट्री वेट के मामले में अपने प्रतियोगियों से काफी आगे हैं जबकि उनके सबसे नजदीकी का एंट्री वेट 170 किलोग्राम है. 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने 196 किलोग्राम का वेट उठाकर रिकॉर्ड बना दिया था.

बचपन से ही थीं मजबूत

चानू बचपन से ही काफी मजबूत थीं. जब वह छोटी थीं तो उन्हें जलावन के लिए पहाडों से लकड़ियां लानी होती थीं. लेकिन वह एक बार में ही काफी बड़ा गट्ठर उठाकर ले आती थीं. जब वह सिर्फ 12 साल की थींं तो आसानी से जलाऊ लकड़ी का बड़ा गट्ठर उठाकर ले आती थीं जबकि उनके भाई के लिए इसे उठाना मुश्किल होता था.

कुंजुरानी देवी को देखकर मिली प्रेरणा

मणिपुर के एक छोटे से गांव में जन्मीं चानू अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. जब वह छोटी थीं तो उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं. उन्हीं से चानू को वेटलिफ्टर बनने की प्रेरणा मिली.

लेकिन वेटलिफ्टर बनने के लिए पहले तो परिवार को मनाना पड़ा और बाद में संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ा. उनके पास प्रेक्टिस के लिए लोहे का बार नहीं था तो वह बांस से ही प्रेक्टिस किया करती थीं.

ट्रेनिंग के लिए उन्हें 50-60 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था क्योंकि गांव में कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं था. घर की माली हालत ठीक न होने की वजह से उन्हें अपेक्षित डाइट भी नहीं मिल पाती थी. लेकिन इन सब मुश्किलों को उन्होंने अपनी सफलता के आड़े नहीं आने दिया.


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डिड नॉट फिनिश- हुईं डिप्रेशन का शिकार

बात साल 2016 की है जब मीराबाई सामान्य वजन भी नहीं उठा पाईं और अपने राउंड को खत्म भी नहीं कर पाई थीं. प्वाइंट्स टेबल पर उनके नाम के आगे लिखा था– डिड नॉट फिनिश.

भारत में खेल प्रेमियों के लिए यह काफी दुखी करने वाला था. इस घटना ने उन्हें इतना दुखी किया कि वह डिप्रेशन में चली गईं और स्थिति यह हो गई कि उन्हें मनोवैज्ञानिकों के सेशन लेने पड़े. एक बार को तो उन्होंने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था लेकिन उन्होंने फिर से हिम्मत जुटाई और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में फिर से वापसी की.

तोड़ा अपने ही आइडियल का रिकॉर्ड

अपनी मेहनत और लगन के दम पर चानू महज 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपिनयन बन गईं और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन. सबसे बड़ी बात कि जिस कुंजुरानी से प्रेरणा लेकर उन्होंने वेटलिफ्टर बनने की सोची उन्हीं के 12 साल पुरान राष्ट्रीय रिकॉर्ड को 2016 में 192 किलोग्राम का वजन उठाकर तोड़ दिया.

लेकिन संसाधनों की कमी से उन्हें लगातार जूझना पड़ा स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि अगर वह रियो ओलंपिक नहीं जीत पाईं तो खेल छोड़ देंगी.

डांस का भी है शौक

वेटलिफ्टिंग के अलावा चानू को डांस करना भी पसंद है. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि ट्रेनिंग के बाद वह कभी-कभी डांस भी करती हैं और सलमान खान उन्हें पसंद है.


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