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मंगलवार, 22 अप्रैल, 2025
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विधेयक विवाद: न्यायालय विचार करेगा कि तमिलनाडु संबंधी फैसले में केरल के मुद्दे शामिल हैं या नहीं

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नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह इस बात का अध्ययन करेगा कि विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करने की तमिलनाडु की याचिका में केरल सरकार की याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे समाहित हैं या नहीं।

न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केरल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ राज्य सरकार की याचिकाओं पर छह मई को सुनवाई करने पर सहमति जताई।

जब केंद्र और राज्यपाल के कार्यालय की ओर से पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली एक पीठ के एक फैसले में केरल सरकार के उठाए गए मुद्दों को शामिल नहीं किया गया।

तब पीठ ने कहा, ‘‘हम उस फैसले पर गौर करेंगे और देखेंगे कि क्या यहां उठाए गए मुद्दे इसमें शामिल हैं।’’

न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने आठ अप्रैल को तमिलनाडु की याचिका पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और दूसरे दौर में राष्ट्रपति के विचार के लिए 10 विधेयकों को रोककर रखने के फैसले को अवैध एवं कानून के लिहाज से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया।

पीठ ने पहली बार यह निर्धारित किया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर उस तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए, जिस दिन विधेयक उन्हें भेजा गया था।

केरल अपने मामले में इसी तरह के निर्देश चाहता है।

केरल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने मंगलवार को कहा कि राज्य की याचिकाएं हालिया फैसले में शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को संदर्भ भेजने की समय-सीमा क्या है और इस मुद्दे को उस निर्णय द्वारा निस्तारित किया गया है तथा कोई अन्य प्रश्न नहीं है।’’

वेणुगोपाल ने पीठ से अनुरोध किया कि तमिलनाडु संबंधी फैसले के आलोक में केरल सरकार की याचिकाओं को स्वीकार किया जाए।

हालांकि, मेहता ने दलीलें पेश करने पर जोर देते हुए कहा कि तमिलनाडु के फैसले में केरल का मामला शामिल नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘(तमिलनाडु संबंधी) निर्णय में इस मामले के कुछ बिंदु शामिल नहीं हैं और अनिवार्य रूप से अलग तथ्य हैं।’’

उसने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए छह मई की तारीख तय की।

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि वह राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति न दिए जाने को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की तीसरी और बाद की याचिका का उल्लेख मुख्य न्यायाधीश के समक्ष करें, ताकि इसे भी उनके पास भेजा जा सके।

वेणुगोपाल ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश ने याचिका को 13 मई को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने कहा कि वर्तमान याचिका के साथ अन्य याचिका को जोड़ने के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उल्लेख किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 2023 में केरल के तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को दो साल तक ‘रोककर रखने’ पर नाराजगी जाहिर की।

खान वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 26 जुलाई को विपक्ष शासित केरल की उस याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति न दिए जाने का आरोप लगाया गया था।

केरल सरकार ने आरोप लगाया कि खान ने कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा था और उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है।

याचिकाओं पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और केरल के राज्यपाल के सचिवों को नोटिस जारी किए।

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।’’

राज्य ने कहा कि उसकी याचिका राज्यपाल द्वारा सात विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए सुरक्षित रखने के कृत्य से संबंधित है, जिन्हें उन्हें स्वयं निपटाना था।

उसने तर्क दिया कि सातों विधेयकों में से किसी का भी केंद्र-राज्य संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है।

भाषा वैभव सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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