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Friday, 22 November, 2024
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बाइक रैली, पत्थरबाजी और ‘छिपकर हमला’; पड़ताल उन तथ्यों की जिसने करौली को आग में झोंक दिया

राजस्थान के करौली में सांप्रदायिक संघर्ष भड़कने की वजह से कम-से-कम 35 घायल लोगों के घायल होने के दो दिन बाद भी कर्फ्यू लगा हुआ है और इंटरनेट पर रोक जारी है. अभी इस जगह पर तूफान से पहले की शांति का भयानक सन्नाटा छाया है.

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करौली: राजस्थान के करौली में फूटा कोट और हटवाड़ा बाजार की छोटी-छोटी गलियां अक्सर चहल-पहल से गुलजार रहती हैं. पर अब वे सूनी पड़ी हैं. जली हुई दुकानों से काला, सड़ा हुआ धुंआ उठ कर असामान्य रूप से शांत आकाश में जा रहा है.

खाकी वर्दी पहने हुए पुरुष पूरे इलाक़े में घूम रहे हैं.

यह रमजान का दूसरा दिन है. कम-से-कम 35 लोगों – हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के – के घायल होने के 48 घंटे बाद भी इलाक़े में लगा कर्फ्यू और इंटरनेट पर लगी रोक शहर के जन-जीवन को बाधित कर रहा है.

आपस में जुड़े हुए ये दो इलाके हिंदू नव वर्ष का जश्न मनाने के लिए आयोजित की गई एक बाइक रैली के बाद शनिवार को हुए सांप्रदायिक झड़प का केंद्र बिंदु थे.

10-15 हिंदू संगठनों – जिनमें माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल, और सेवा भारती भी शामिल हैं – द्वारा बुलाई गई यह बाइक रैली एक आम रास्ते से शुरू हुई थी. यह झड़प तीन गलियों, जिसमें से एक मंदिर और एक मस्जिद की ओर जाती है, को जोड़ने वाले एक टी-प्वाइंट के पास हुई.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस झड़प में दोनों में से किसी भी धर्मस्थल को नुकसान नहीं पहुंचा है.

करौली के पुलिस अधीक्षक (एसपी) शैलेंद्र सिंह इंदौलिया ने सोमवार को कहा कि झड़प के बाद से राजस्थान सरकार ने इस इलाके में 1500 पुलिसकर्मियों को तैनात किया हुआ है. अब तक बीस लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है. 33 अन्य लोगों को कर्फ्यू का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

संघर्ष के एक दिन बाद यानी कि 3 अप्रैल को दर्ज एक प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गये हैं. इनमें धारा 332 (स्वेच्छा से किसी लोक सेवक को उसके कर्तव्य का पालन करने से रोकने के लिए चोट पहुंचाना); 353 (किसी लोक सेवक को उसके कर्त्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए उस पर हमला करना या आपराधिक बल प्रयोग); 307 (हत्या का प्रयास); 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य); 147 (दंगा फ़साद), 392 (डकैती), 336 (दूसरों की जान या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालना) आदि शामिल हैं.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि इसमें कुल 40 लोगों के नाम हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि हिंदू और मुस्लिम दोनों को समान संख्या में गिरफ्तार किया गया है.

इंदौलिया ने कहा कि पुलिस अब संदिग्धों की पहचान करने में सहायता हेतु इस घटना के वीडियो देख रही है. उन्होंने कहा, ‘अभी और गिरफ्तारियां होंगी.’

पुलिस सूत्रों ने कहा कि इन दंगों में 22 बाइक्स क्षतिग्रस्त हो गईं और 13 दुकानें – जिनमें 11 मुस्लिमों की तथा दो दलित ‘खटीक’ समाज के लोगों की थीं – हिंसा में जल गईं.

इस बीच पुलिस महानिरीक्षक (भरतपुर रेंज) प्रशांत कुमार खमेसरा ने दिप्रिंट को बताया कि रविवार को भी आगजनी की छिटपुट घटनाएं दर्ज की गईं.


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यह सब कैसे हुआ?

फूटा कोट और हटवाड़ा बाजार दोनों ही मुस्लिम बहुल इलाके हैं.

जिला प्रशासन का दावा है कि उसके द्वारा 250 बाइकों वाली रैली की अनुमति दी गई थी. करौली के जिलाधिकारी राजेंद्र सिंह शेखावत ने दावा किया कि रैली पहले से तय रास्ते पर चल रही थी.

प्रशासन के सूत्रों ने बताया कि दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच 31 मार्च को एक शांति समिति (पीस कमिटी) की बैठक हुई थी.

A peace committee meeting held at Karauli Monday, in the aftermath of the violence | Bismee Taskin | ThePrint
हिंसा के बाद करौली में पीस कमिटी की एक बैठक की गई । बिस्मी तस्कीन । दिप्रिंट

रैली के दिन इसकी सुरक्षा के लिए शुरू में 50-60 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था. रैली शाम चार बजे शुरू हुई. इस मामले में चल रही जांच की जानकारी रखने वाले पुलिस सूत्रों ने बताया कि परेशानी तब शुरू हुई जब रैली में शामिल कुछ लोगों ने ऐसे गाने बजाए जिन्हें मुसलमानों के लिहाज से ‘अपमानजनक’ माना जा सकता था. इसके बाद लाउडस्पीकर पर ‘भड़काऊ’ नारेबाजी की गई.

सूत्रों ने बताया कि इसके बाद अराजकता फैल गई. साथ ही उन्होंने कहा कि रैली के रास्ते के साथ लगी एक इमारत से पत्थर के टुकड़े नीचे फेंके गए थे.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘रैली में शामिल लोगों ने अपने समुदाय के सदस्यों को इकट्ठा किया और मुसलमानों की दुकानों को आग लगा दी. पथराव के बाद तो लगभग 500-600 लोग जमा हो गए थे.’

बाद में मौके पर और अधिक पुलिस बल को तैनात किया गया.

जब दिप्रिंट ने एसपी इंदौलिया से नारेबाजी के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि पुलिस अभी इस घटना के बाद से प्रसारित किए जा रहे वीडियो की सत्यता की पुष्टि कर रही है.

एएसपी रैंक के एक अधिकारी के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) इस सारे मामले की जांच कर रहा है.

हालांकि, जांच अभी जारी है; मगर, राजस्थान पुलिस में कुछ उच्च पदस्थ सूत्र इस सारी स्थिति से निपटने में हुई चूक की बात स्वीकार करते हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘डीजे और उसमें बज रहे संगीत को पहली बार में ही बंद करवा दिया जाना चाहिए था. मुस्लिम बहुल इलाके में हो रही नारेबाजी भी तुरंत रुकवाई जानी चाहिए थी.’

सूत्रों ने यह भी बताया कि केवल एक ही फायर ट्रक (आग बुझाने वाला वाहन) की उपलब्धता और छोटी-छोटी गलियां होने के नाते संपत्ति को ज्यादा नुकसान हुआ. जब डीएम शेखावत से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘हां, दमकल की दो ही गाड़ियां थीं और एक ही मौके पर पहुंची.’

पुलिस सूत्रों ने कहा कि वे दो ऐसे लोगों की तलाश कर रहे हैं, जिनका नाम प्राथमिकी में दर्ज है. ये हैं स्थानीय आरएसएस शाखा के प्रमुख नीरू शुक्ला जो रैली के संयोजक भी थे तथा वॉर्ड नंबर 35 के पार्षद मतलुब अहमद.

पुलिस सूत्रों और स्थानीय निवासियों ने बताया कि अहमद मस्जिद के ठीक सामने रहते हैं. सूत्रों ने यह भी कहा कि उस दिन हुआ पथराव कथित तौर पर उनके ही एक रिश्तेदार के घर से शुरू हुआ था.

हालांकि, सूत्रों ने बताया कि पथराव करने वाले लोगों का संबंध अहमद से है या नहीं, यह अभी भी जांच का विषय है.

दिप्रिंट ने शुक्ला और अहमद दोनों से फ़ोन द्वारा संपर्क की कोशिश की लेकिन उनके फोन बंद पड़े (स्विच ऑफ) थे.


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वास्तव में क्या हुआ?

राजस्थान पुलिस के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि प्रथम दृष्टया (पहली नजर मे) यह हिंसा बिना किसी पूर्व योजना के हुई प्रतीत होती है.

मामले की जांच से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘यह पत्थर के टुकड़े पहले से ही उनके घरों में मौजूद थे.’ इस सूत्र ने आगे कहा, ‘ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने इसे रैली में लोगों पर फेंकने के लिए ही इकट्ठा किया था.’

शेखावत और करौली पुलिस दोनों ने इन दावों को खारिज कर दिया है कि उस दिन हुई हिंसा में पेट्रोल बमों का इस्तेमाल किया गया था.

शेखावत ने कहा, ‘उस दिन जलाई गई दुकानों में कुछ चूड़ी की दुकानें भी थीं जिनमें लाह होता है और जो अत्यधिक ज्वलनशील माना जाता है. माचिस की एक छोटी सी लौ भी इसे भारी नुकसान पहुंचा सकती है.’

हालांकि, इंदौलिया ने कहा कि फोरेंसिक विश्लेषण के बाद ही आग लगने के असल कारणों का पता चलेगा. जब दिप्रिंट ने उनसे पूछा कि क्या यह सामाजिक दुर्भाव पैदा करने की कोई साजिश है, तो उन्होंने जवाब दिया कि अभी मामले की जांच की जा रही है.


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‘सांप्रदायिक सद्भाव को हुआ नुकसान’

26 वर्षीय इंजीनियरिंग स्नातक अखिलेश पाराशर का कहना है कि वह उस दिन की गई नारेबाजी और हिंसा के चश्मदीद गवाह हैं. वह फिलहाल करौली जिला अस्पताल में एक टूटे हुए हाथ और सिर में लगी गंभीर चोट का इलाज करा रहे हैं.

उन्होंने अस्पताल से ही दिप्रिंट को बताया. ‘मैं शनि देव मंदिर के पास खड़ा था.,

Akhilesh Parashar, 26, who was injured in the violence, at Karauli district hospital | Bismee Taskin | ThePrint
करौली जिला अस्पताल में बिस्तर पर लेटे अखिलेश पाराशर, जो हिंसा के बाद घायल हो गए थे । बिस्मी तस्कीन । दिप्रिंट

उन्होंने कहा, ‘सभी के पास भगवा झंडे थे. मैंने भी एक झंडा लिया और उसे लहराया भी. हां, लोग नारे लगा रहे थे. अचानक एक तीन मंजिला इमारत से कुछ लोगों ने पथराव शुरू कर दिया. उन सभी ने मास्क पहन रखा था. एक टुकड़े से मुझे चोट लगी. कुछ लोग दुकानों में छिपे हुए थे और उन्होंने रैली में भाग लेने वालों को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया. मैं भाग कर एक दुकान में छिप गया.’

पाराशर ने कहा, ‘मेरे भाई, जो रैली में शामिल थे, उनको हिंसा के बाद हिरासत में ले लिया गया था.’

रैली के संयोजकों में से एक, विपिन शर्मा, जो स्वयं आरएसएस से जुड़े हैं और इस हिंसा में घायल हुए थे, ने दावा किया कि जब रैली हटवाड़ा पहुंची, तो उन्होंने कुछ नकाबपोश लोगों को इमारतों की छतों पर खड़े देखा.

उन्होंने फोन पर बताया, ‘रैली बेहद शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुई थी. लेकिन जब हम हटवाड़ा पहुंचे, तो लगभग 250 लोग छतों पर मास्क पहने खड़े थे. और पत्थर के टुकड़े फेंक रहे थे. यह एक पूर्व नियोजित साजिश थी.’

अमीनुद्दीन खान, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, ने कहा कि उनका मानना है कि गाने और नारेबाजी ने हिंसा भड़काई. उन्होंने कहा, ‘मस्जिद के पास के इलाके में भड़काऊ गाने बजाए गए थे.’

समुदाय के नेता काजी रुखसार अहमद ने दावा किया कि दोनों समुदाय एक-दूसरे को उकसाने से दूर रहने के लिए परस्पर सहमत हो गये थे. उन्होंने कहा, ‘उन मुस्लिमों की दुकानों को क्यों जलाया गया? उन्होंने क्या किया था? वे तो साधारण कारोबारी हैं. पत्थर चलाने वालों को ज़रूर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन बाकियों को सजा क्यों दी गई?’

उनका कहना है कि अहमद को गलत तरीके से दोषी ठहराया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘मतलुब के घर से पत्थर फेंकने वालों के लिए वह जिम्मेदार नहीं है.’

स्थानीय निवासियों ने दावा किया कि इस घटना का क्षेत्र के सांप्रदायिक सद्भाव पर ग़लत प्रभाव पड़ा है. उनका कहना है कि इस इलाक़े में पहले भी दो छोटी-छोटी झड़पें हुई हैं – एक 2006 में और दूसरी 2012 में – लेकिन इस पैमाने पर कभी कुछ भी नहीं हुआ.

उपर 26 वर्षीय जिस इंजीनियरिंग स्नातक का जिक्र किया गया है उन्होंने कहा, ‘मैं मुस्लिम बहुल इलाके में रहता हूं. समुदायों के बीच काफ़ी सामंजस्य था. पहले भी झगड़े हुए हैं लेकिन इस पैमाने पर कुछ भी नहीं हुआ था.’

अंजुम करौलबी की रेडीमेड गारमेंट की दुकान और उसके भाई की जूतों की दुकान को जला दिया गया. कई अन्य लोगों को जिनकी दुकानें इस हिंसा में जल गईं, उन्हें भी अब अपनी आजीविका का डर सता रहा है.

आग से पूरी तरह जल चुकी दुकानों में से एक है मुस्कान बैंगल्स. इस दुकान को 22 साल के अरबाज खान एक तीन मंजिला इमारत के भूतल पर चलाते थे. इमारत का मालिक एक हिंदू परिवार है जो वर्षों पहले मुंबई चला गया और अब केवल छुट्टियों में ही यहां आता है.

वह अपने 12 साल के भाई, पिता और मां के साथ इस दुकान में थे. तभी 8-9 लोग कथित तौर पर दुकान का शटर खटखटाते हुए आए और उसे बाहर खींच लिया. उन्होने कहा, ‘उनके हाथों में लाठियां थीं और उन्होंने हमें चेतावनी दी कि अगर हम जिंदा रहना चाहते हैं तो इस इलाक़े को छोड़ दें. मैंने अपने छोटे भाई को पकड़ लिया और हम जान बचाकर भाग गये.’

22-year-old Arbaaz Khan's shop Muskan Bangles at Karauli was completely destroyed during the violence | Bismee Taskin | ThePrint
22 साल के अरबाज़ खान की दुकान मुस्कान बैंगल्स जो कि हिंसा में पूरी तरह से नष्ट हो गई । बिस्मी तस्कीन । दिप्रिंट

सड़क के उस पार उनके घर पर भी हमला हुआ. परिवार तब से आस-पास के खेतों में रह रहा है. सामानों की आपूर्ति कम होने के साथ ही वे जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

खान ने दिप्रिंट से फोन पर सिसकते हुए कहा, ‘उन्होंने मेरे पिता की जीवन भर की बचत को जला दिया है. हमारे पास खाने और पीने को भी नहीं है. हमने यहां ऐसा कभी नहीं देखा. हमेशा भाईचारे की भावना रही है.’ उन्होंने साल 2010 में इस दुकान को 5,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से किराए पर लिया था.

उनका कहना है, ‘अब हम 17,000 महीने किराया देते हैं और लीज पूरे साल चलती है, इसलिए अब हमारा सारा पैसा चला गया है. हम कैसे जिंदा रहेंगे? क्या खाएंगे?’


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पीएफआई लिंक?

कुछ खबरों में इस हिंसा को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) – जो एक इस्लामिक संगठन है – से जोड़ा गया है, लेकिन एसपी इंदौलिया ने इस दावे को खारिज कर दिया. इनमें से ज्यादातर अटकलें राज्य पीएफआई अध्यक्ष मोहम्मद आसिफ द्वारा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डीजीपी को बाइक रैली से पहले लिखे गए पत्र पर केंद्रित हैं.

इस बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए, मोहम्मद आसिफ ने कहा, ‘राजस्थान के सीएम और डीजीपी को पत्र भेजा गया था जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि विभिन्न जिलों में रैली के दौरान कोई आपत्तिजनक नारे नहीं लगाए जाने चाहिए क्योंकि इससे सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा हो सकता है. और ये भी लिखा गया था कि कुछ बाहरी विरोधी-तत्व सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमने प्रशासन से रैली के आयोजकों की जानकारी का पूरा रिकॉर्ड (लेखा-जोखा) रखने को कहा था.’

आसिफ ने कहा कि पीएफआई की करौली में कोई मौजूदगी नहीं है.

सोमवार को जिलाधिकारी शेखावत ने नुकसान झेलने वालों को मुआवजा दिए जाने और कर्फ्यू में ढील देने पर विचार करने का वादा किया. उन्होंने अशांत क्षेत्र में परिवारों से बात करने के लिए मोहल्ला समितियों की भी घोषणा की.

इस बीच, दोषियों के लिए कड़ी सजा और हिंसा प्रभावितों के लिए मुआवजे की मांग को लेकर सोमवार दोपहर पीस कमिटी की एक बैठक हुई जिसमें दोनों समुदायों के करीब 200 लोग शामिल हुए. उन्होंने शांति बनाए रखने का संकल्प भी लिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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