नई दिल्ली: देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बिहार के किसान त्राही-त्राही कर रहे हैं. मौसम लीची और आम का है, पेड़ों पर फल लग चुके हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण ठप पड़ी गाड़ियों और आवाजाही न होने की वजह से लीची और आम के किसानों को अपनी पूरे साल की मेहनत बर्बाद होती दिखाई दे रही है.
सरकार कह रही है हम काम कर रहे हैं किसानों की आय दुगुनी करने और इस विपदा में किसानों को कोई परेशानी न हो लीची बगान से टूटकर खाने वालों के मुंह तक पहुंचे उसे लेकर लगातार कोशिशें जारी हैं. मीटिंग दर मीटिंग हो रही है लेकिन गाड़ियां न चलने और एक राज्य से दूसरे राज्यों की सीमाएं बंद होने की वजह से व्यापारी किसानों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. किसानों को शक है कि सरकार ने जल्दी कुछ नहीं किया तो इस बार फसल पेड़ों पर ही लगी रह जाएगी. इस सोच से बिहार के किसानों के माथे पर पसीना बढ़ता जा रहा है.
45000 किसान-32000 हेक्टेयर में हैं लीची के बागीचे
बिहार में लीची के करीब 45000 से अधिक छोटे-बड़े किसान है और बिहार हॉर्टीकल्चर विभाग के अनुसार 32000 हेक्टेयर भूमि में लीची की बागवानी की जाती है. अगर लीची के उत्पादन की बात करें तो 0.30 मिलियन मिट्रिक टन यानी तीन लाख टन से अधिक बिहार में लीची का उत्पादन होता है, जिसमें अकेले मुज्जफ्फरपुर में करीब एक लाख टन लीची का उत्पादन होता है. बिहार में सबसे अधिक प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर और वैशाली की लीची है. हालांकि इसका उत्पादन मोतिहारी और पुर्णिया जिले में भी होता है.
बता दें कि लीची की सेल्फ लाइफ बहुत कम होती है इसलिए भी किसान इसे लेकर बहुत परेशान हैं. सबसे ज्यादा शाही लीची पसंद की जाती है जो महज़ दस-12 दिनों में खत्म हो जाती है.फिर चाइना (चूंकी इसका साइज़ भी छोटा होता है) और फिर बेदाना लीची का सीज़न आता है.
यह भी पढ़ें: पहले बारिश, ओले और अब लॉकडउन की मार- आम उत्पादकों को 70%-80% कमाई के नुकसान का डर
बिहार सरकार के हॉर्टीकल्चर विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक विशाल नाथ झा ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया, ‘राज्य सरकार को किसानों की चिंता है और उसे लेकर हम ग्राउंड लेवल पर काम कर रहे हैं. लीची किसान और व्यापारियों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने ‘टास्क फोर्स’ का गठन किया है जिससे छोटे-बड़े सभी किसानों को कोई भी परेशानी होने पर उन्हें सुविधाएं मुहैया कराई जा सके.
उन्होंने बताया कि इसे लेकर उच्च स्तरीय बैठक भी हुई है जिसमें भारतीय रेल के अधिकारियों से लेकर, राज्य के बड़े व्यापारियों और मंडी के अधिकारियों से भी बात हुई है.’
पिछले दिनों मुजफ्फरपुर के डीएम डॉ. चंद्रशेखर सिंह की अध्यक्षता में एक बैठक भी हुई थी जिसमें किसानों के साथ साथ व्यापारी, प्रोसेसिंग यूनिट चलाने वाले प्रतिनिधियों की परेशानी सुनी गई. जिसमें पता चला की लॉकडाउन की वजह से इस बार अभी तक व्यापारी वर्ग सामने नहीं आया है. और यह तय भी किया गया है कि जिलास्तरीय टास्क फोर्स समिति का गठन किया जाएगा जिसके अध्यक्ष उप विकास आयुक्त होंगे और उनकी अध्यक्षता में हर मंगलवार को बैठक भी होगी. जिसमें जिला कृषि पदाधिकारी, जिला उद्यान पदाधिकारी, जिला उद्योग प्रबंधक, जिला परिवहन पदाधिकारी सहित किसान और व्यापारी भी शामिल होंगे.
फल पेड़ों पर व्यापारी नदारद और किसान परेशान
झा ने यह भी बताया, ‘परिवहन विभाग और पुलिस वालों से भी लीची की बिक्री, ट्रक की व्यवस्था को लेकर बात हुई है कि लीची ले जा रही ट्रक को ‘पास’ की जरूरत नहीं होगी. वहीं लीची तोड़ने सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखने को लेकर उन्होंने बताया कि लीची के बगान में सोशल डिस्टेंसिंग होती ही है बस जरा और सावधानी बरतने की जरूरत है.’
‘जहां तक मजदूरों की बात है इन दिनों बिहार में कमी नहीं है.’
बता दें कि लीची का मंजर (फूल) जैसे ही आता है व्यापारी बगान का दाम लगाते हैं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से व्यापारी किसान तक नहीं पहुंच सके, फल पेड़ों पर लग चुके हैं व्यापारी नदारद हैं और किसान परेशान.
मुजफ्फरपुर के बड़े किसान भोला नाथ झा दिप्रिंट को बताते हैं, ‘बड़ा किसान हों या फिर छोटा, मैं बता देना चाहता हूं कि सरकारी आश्वासनों के बाद भी इस वर्ष किसान फिर से बर्बाद होने जा रहा है.’ वह आगे कहते हैं, ‘ लॉकडाउन जो बढ़ता जा रहा है सरकार किसान की बात कर रही है लेकिन सुविधाएं नहीं दे रही है.’
‘इस बार 90 फीसदी फसल पेड़ों पर लगी रह जाएगी, किसान उसे तोड़ कर बेच नहीं पाएगा. वह बताते हैं कि ट्रेन नहीं चल रही है. स्टेशन और लोकल बाजारों में भी लीची की मांग काफी रहती है. मेरी लीची दिल्ली और मुंबई के बाजारों में जाती रही है.’
झा ने कहा कि किसान चौतरफा मार झेल रहा है, ‘ग्राहक तक फसल को पहुंचाने वाला व्यापारी नहीं है और न गाड़ी ही है.’ कोविड-19, लॉकडाउन की वजह से आज देशभर में लोगों की नौकरी जा रही है, मजदूर के पास खाने के लिए पैसे नहीं है. फल मंडिया बंद पड़ी हैं.’ कहां बेचेगा किसान अपना फल.
भोला नाथ झा आगे कहते हैं कि वह चीनी मिल के मालिक हुआ करते थे जब 1990 में मिल बंद हुई तो वह खेती-किसानी की तरफ मुड़े लेकिन यहां भी हालत ठीक नहीं है.
बता दें कि भोला नाथ झा के पास अकेले 600 लीची के पेड़ औं और 200 आम के. वह बताते हैं कि इस वर्ष प्रदूषण न होने की वजह से और मौसम फेवरेवलरहा है फसल भी बहुत अच्छी हुई है.
पहले इनसेफलाइटिस और अब कोरोना
अमूमन उनका एक लीची का पेड़ 10,000 रुपये का बिकता है लेकिन इसबार पेड़ों में इतना अच्छा फल आया है कि वह 15000 तक का बिकता..लेकिन पिछले वर्ष ‘इनसेफलाइटिस’ की झूठी अफवाह की वजह से मार झेल चुकी लीची इसबार कोरोनावायरस की शिकार हो गई है.
लीची के किसान और बिहार लीची किसान एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह कहते हैं,’ कोरोनासंक्रमण की वजह से देश की बड़ी मंडियां दिल्ली, मुंबई सब लगभग बंद ही हैं.
उन्होंने बताया कि दिल्ली 1500 टन लीची की सप्लाई होती है और 1000 टन लीची मुंबई जाती है लेकिन दोनों ही राज्य कोविड-19 के रेड जोन घोषित किए जा चुके हैं. बड़ी संख्या में यहां से मजदूरों का पलायन हो रहा है. इन राज्यों के ऑरेंज जोन आने में अभी भी 15-20 दिन का समय लगेगा और तब तक लीची का समय बीत चुका होगा.
महज़ 30 दिन का खेल है लीची
बता दें कि लीची मई महीने के तीसरे सप्ताह से अपने पूरे रूप में होती है और 25 मई से पेड़ों से टूटना शुरू होती है और जून के दूसरे तीसरे सप्ताह तक ही रहती है. पेड़ों से टूटने के बाद इसकी लाइफ महज दो से तीन दिन ही होती है. वैसे लीची के बाजार को लेकर कई तरह की बातें सामने आईं हैं. बच्चा सिंह जहां लीची के 1000 करोड़ का मार्केट होने की बात बताते हैं वहीं किसान भोला नाथ झा इसके 5000 करोड़ का बाजार होने की बात बताते हैं.
यह भी पढ़ें: कोविड-19 संकट में भारत के किसान अर्थव्यवस्था को आराम से चला सकते हैं पर मोदी सरकार को समझाए कौन
जब इस बारे में हॉर्टीकल्चर के विशाल झा से पूछा तो उन्होंने कहा, ‘देखिए बाजार फसल के हिसाब से बदलता रहता है. लेकिन इन सबके बीच लीची किसानों की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि बागीचे का बीमा की भी सरकार की तरफ से कोई योजना नहीं है. न ही फसल का वैल्यूएशन ही सरकार की तरफ से किया जाता है.’
इन सबके बीच लीची के छोटे किसानों की हालत और खराब है, वैशाली के जंदाहा गांव में 200 लीची और लगभग 100 आम के पेड़ों के छोटे व्यापारी प्रेम किशोर बताते हैं, ‘न तो पहले कभी सरकार की तरफ से कोई मदद मिली है और न ही इस बार उम्मीद है.
मुजफ्फरपुर में किसानों का एसोसिएशन भी हैं लेकिन वैशाली के किसानों की हालत और भी खराब है. ‘लॉकडाउन की वजह से एक भी व्यापारी बागीचे का दाम लगाने नहीं पहुंचा है, और फल पूरी तरह से पेड़ों पर आ चुका है..क्या होगा फल का और हम किसानों का…’