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Thursday, 16 May, 2024
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पहले बारिश, ओले और अब लॉकडउन की मार- आम उत्पादकों को 70%-80% कमाई के नुकसान का डर

कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन का असर आम के आयात-निर्यात पर काफी पड़ा है. आम उत्पादकों को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी.

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दिल्ली/लखनऊ: देशभर के आम उत्पादकों को इस साल काफी नुकसान झेलना पड़ेगा. इसके तीन अहम कारण हैं- बारिश, ओले और कोरोना संक्रमण के कारण हुआ लॉकडउन. पिछले साल नवंबर से लेकर फरवरी के बीच हुई बेमौसम बरसात ने तो आम की खेती करने वाले किसानों को शुरुआत से ही परेशान रखा. इसके अलावा तेज आंधी और ओले ने काफी नुकसान पहुंचाया.

बारिश के कारण आम की बौर निकलने की रफ्तार प्रभावित हुई, जिसका असर फसल पर भी पड़ा है. हालांकि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार आम की उपज पिछले साल की 21.37 लाख टन की तुलना में 21.28 लाख टन ही रहेगी. वहीं आम की खेती पिछले साल की 22.96 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 23.09 लाख हेक्टेयर हो गई है.

यूपी का हाल

यूपी आम उत्पादन में काफी अहम है क्योंकि 23.47% उत्पादन यहीं होता है लेकिन इस बार यहां के आम उत्पादक बहुत परेशान हैं. आम उत्पादकों के नुकसान को देखते हुए यहां के मैंगो एसोसिशएन की ओर से सीएम योगी को पत्र भी लिखा गया है जिसमें सरकार से मदद की मांग की गई है.

ऑल इंडिया मैंगो ग्रोउर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली ने दिप्रिंट को बताया कि बारिश और लॉकडाउन के कारण इस बार आम का उत्पादन 30-35 लाख मीट्रिक टन होगा जो कि हर बार 45-50 लाख मीट्रिक टन होता था. इससे इस बार दो हजार करोड़ से अधिक का नुकसान यूपी के आम उत्पादकों को झेलना पड़ेगा. इसी कारण हमने सरकार से मांग की है कि किसानों से आम की खरीदारी सरकार करे. हमार लिए भी एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) तय किया जाए. इसके अलावा आम के किसानों का इस साल का कर्ज माफ किया जाए.

यूपी में 15 मैंगो बेल्ट हैं जिनमें मलिहाबाद, शाहबाद, सहारनपुर बेल्ट अहम हैं. मलिहाबाद से तो खाड़ी देशों समेत यूरोप तक के देशों में आम जाता है लेकिन इस बार विदेशों में जाना मुश्किल ही लग रहा है.

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ट्रांसपोर्ट, मजदूर व पैकेजिंग की समस्या

इंसराम के मुताबिक, मजदूर न मिलने से फसल खराब होने की आशंका है. कई मजदूर दूसरे जिलों के थ, वे लॉकडाउन होते ही चले गए. साथ ही उत्पादकों को यह भी डर है कि अगर लॉकडाउन लम्बा खिंचा तो आम मंडियों तक नहीं पहुंच पाएगा.

वाराणसी के आम उत्पादक संदीप सिंह बताते हैं कि, ‘पहले वाराणसी से दिल्ली जाने के लिए 35 हजार प्रति ट्रक खर्चा आता था जो कि अब 65 हजार प्रति ट्रक आ रहा है. इसके अलावा रास्ते में उन्हें आसानी से कहीं ढाबा, रेस्त्रा नहीं मिल रहा जहां वे रुककर खाना खा सकें. दिल्ली, मुंबई व पुणे जैसे शहरों तक भी आम पहुंचना आसान नहीं दिख रहा. इस बार 70-80 प्रतिशत तक इनकम का नुकसान तय लग रहा है.’

मलिहाबाद के माल गांव के आम उत्पादक माधवेंद्र देव सिंह के मुताबिक, ‘लॉकडाउ के अलावा क्लाइमेट चेंज का असर इस बार काफी पड़ा है. हर साल की तुलना में इस बार 35-40% तक उत्पादन कम हुआ है. इसके अलावा लेबर की और वुडन बॉक्स की भी कमी है.

एक्सपोर्ट होना मुश्किल

कोरोनावायरस का असर आयात-निर्यात पर काफी पड़ा है. आम उत्पादकों को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी. यूपी से मलिहाबादी, दशहरी, लखनवी सफेदा समेत कई वैरायटी दूसरे देशों में भी एक्सपोर्ट होती हैं लेकिन इस बार मुश्किल ही लग रही है. एग्रीकल्चरल एंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलेप्मेंट ऑथॉरिटी के मुताबिक 2018-19 में 406.5 करोड़ का आम एक्सपोर्ट किया गया था.

यूपी मैंगो एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष नदीम सिद्दीकी के मुताबिक यूपी से यूएई, यूके, कतर, सऊदी अरेबिया आदि के देशों में आम जाता था लेकिन वहां भी अधिकतर जगह लॉकडाउन है. इस बार उम्मीद थी कि पिछले साल की तुलना में एक्सपोर्ट डेढ़ गुना होगा लेकिन ऐसा नहीं संभव दिख रहा.

यूपी के अलावा अन्य आम उत्पादक प्रदेश- आंध्र, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात हैं जो कि नुकसान झेल रहे हैं.

वी.एस. कुमार, जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में किसानों को कृषि उपज विपणन और समाधान-संबंधित सेवाएं प्रदान करने वाला एक ऐप चलाते हैं ने कहा, ‘फल किसान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि उनकी उपज कम लाइफ वाली होने से ज्यादा खराब होती है. उन्हें काफी समर्थन की जरूरत है. आम को अन्य फलों की तरह लंबे समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता है, और यदि समय पर परिवहन न मिले और बिक्री नहीं की जाय, तो किसान को भारी नुकसान होगा.’

कुमार ने आगे कहा, ‘पिछले साल की तुलना में आम की खेती से कृषि आय में अनुमानित 40 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है, जैसे कि कृषि को लॉकडाउन से छूट दी गई है, ज्यादातर ट्रक कोरोनोवायरस के डर के कारण या राज्य की सीमाओं पर प्रतिबंध के कारण नहीं चल रहे हैं.’

इससे पहले दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि महाराष्ट्र के कोंकण तट के रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग में अल्फांसो आम किसानों को परिवहन और श्रम लागत बढ़ने के कारण संकट का सामना करना पड़ रहा है.

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