नई दिल्ली: नवंबर 2015 में 7वें वेतन आयोग ने सिफारिश की थी कि सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रदर्शन आधारित वेतन (पीआरपी) व्यवस्था शुरू की जाए जिसमें तकरीबन कॉरपोरेट जैसा वेतन ढांचा हो और भुगतान किसी की कार्यक्षमता और दक्षता के आधार पर निर्धारित किया जाए.
सातवें वेतन आयोग ने सिफारिश की थी कि पीआरपी रिजल्ट फ्रेमवर्क डॉक्यूमेंट और रिफॉर्म्ड एनुअल परफॉर्मेंस अप्रेजल रिपोर्ट और अन्य व्यापक सरकारी दिशानिर्देशों पर आधारित होगा.
लेकिन कुछ आईएएस अधिकारियों ने इसका जोरदारी से विरोध किया और फिर यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया.
अब पड़ोसी देश भूटान एक ऐसे बिल पर विचार कर रहा है जिसमें उसके सिविल सेवकों के वेतन को उनके प्रदर्शन से जोड़ने की बात कही गई है और इसके साथ ही यह नीति एक बार फिर सुर्खियों में है.
भूटान में 14 नवंबर को यह पे स्ट्रक्चर बिल, 2022 वित्त मंत्री नमगे त्शेरिंग की तरफ से नेशनल असेंबली में रखा गया था. प्रस्तावित विधेयक, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है, के तहत सरकार का इरादा प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन (पीबीआई) शुरू करना है. यह एक वैरिएबल पे पॉलिसी है जो सिविल सेवकों के वेतन ढांचे का हिस्सा होगी.
विधेयक को मंजूरी के लिए संबंधित समिति के पास भेजा गया है लेकिन इसने व्यापक स्तर पर चर्चा को जन्म दिया है और उस देश के सिविल सेवा अधिकारियों के बीच इसे लेकर खासी उत्सुकता है.
भूटान में पेश विधेयक के मुताबिक, पीबीआई को ‘राष्ट्रीय, संगठनात्मक और व्यक्तिगत प्रदर्शन’ से जोड़ा जाएगा और यह प्रोत्साहन राशि किसी अधिकारी के मूल वेतन का 100 प्रतिशत तक हो सकती है. भूटान सरकार ने कहा है कि विधेयक ‘योग्यता को बढ़ाने’ का एक तरीका है.
भूटान में जहां सिविल सेवकों के लिए प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन की शुरुआत को लेकर चर्चा जारी है, वहीं ऐसा लगता है कि भारत में इसी तरह प्रस्तावित पीआरपी पेश किए जाने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है.
भारतीय कार्मिक विभाग में सेवारत एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि फिलहाल देश में पीआरपी शुरू करने को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है.
अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सरकार सातवें वेतन आयोग (अभी के लिए) को ही जारी रखेगी क्योंकि निकट भविष्य में आठवें वेतन आयोग की कोई तैयारी नहीं है. सभी सिफारिशों में से सरकार डीए बढ़ाने पर विचार कर रही है लेकिन पीआरपी पर कुछ नहीं कहा गया है.’ साथ ही जोड़ा कि चौथे, पांचवें और छठे केंद्रीय वेतन आयोग सभी में प्रदर्शन से जुड़े प्रोत्साहनों का उल्लेख किया गया था लेकिन यह 7वां केंद्रीय वेतन आयोग ही था जिसने इसे ‘ठोस तरीके’ से किया था.
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पीआरपी पर आम राय नहीं
विधेयक के मुताबिक, पीबीआई ‘मापने की एक मजबूत प्रणाली पर आधारित है और परफॉर्मेंस मैनेजमेंट सिस्टम लागू होने के बाद इसके आधार पर प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा.’
बिल में कहा गया है, ‘परफॉर्मेंस-बेस्ड प्रोत्साहन में ऐसे कंपोनेंट शामिल हैं जो राष्ट्रीय, संगठनात्मक और व्यक्तिगत प्रदर्शन से जुड़े हैं और जो किसी पब्लिक सर्वेंट के वेतन के वार्षिक मूल वेतन के 100% तक हो सकते हैं. ताकि उनकी कार्य दक्षता बढ़ाई जा सके और प्रतिस्पर्धी वेतन पैकेज का भुगतान किया जा सके.’
भारत में जिन सेवारत और सेवानिवृत्त सिविल सेवकों से दिप्रिंट ने बात की थी, उनकी राय इस नीति को लेकर बंटी हुई नजर आई. जहां कुछ का मानना है कि इस तरह की परफॉर्मेंस-बेस्ड नीति से कार्य दक्षता में सुधार सुनिश्चित होगा, वहीं दूसरों का कहना है कि प्रदर्शन के आधार पर कोई वेतन ढांचा तय करना मुश्किल होगा.
वित्त मंत्रालय में सेवारत भारतीय राजस्व सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सातवां वेतन आयोग पीआरपी शुरू करने को लेकर एक अच्छी सिफारिश के साथ आगे आया था. यह आइडिया किसी कॉरपोरेट जैसे पे स्ट्रक्चर का है लेकिन इसे लागू किया जाता तो निश्चित तौर पर विभिन्न स्तरों पर दक्षता बढ़ाने में मददगार होता. हमारे पास एक मूल्यांकन प्रक्रिया है और पीआरपी को भी एसीआर से जोड़ा जा सकता था, जिसका उल्लेख रिपोर्ट में भी किया गया था.’
एसीआर यानी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट दरअसल वो मूल्यांकन रिपोर्ट है जो हर वित्तीय वर्ष के अंत में सिविल सेवा के प्रत्येक सदस्य के लिए तैयार की जाती है. यह किसी सिविल सेवक के कामकाज की वार्षिक समीक्षा का मुख्य तरीका है.
हालांकि, 15वें वित्त आयोग के सचिव के तौर पर सेवाएं दे चुके सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरविंद मेहता का मानना है कि पीआरपी ‘सिद्धांत रूप में एक अच्छा विचार है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर इस पर अमल करना एक कठिन कार्य है.’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी के प्रदर्शन के मूल्यांकन के तरीकों में आम तौर पर पे स्ट्रक्चर पर काम करने के बजाय प्रोमोशन और पोस्टिंग शामिल है. हमारे देश में सिविल सेवा अधिकारियों के लिए प्रोत्साहन योजना इसी तरह काम करती है.’
देश के पूर्व कोयला सचिव अनिल स्वरूप का मानना है कि जो व्यवस्था भूटान में काम करेगी, जरूरी नहीं कि वह भारत के लिए भी उपयुक्त हो.
उत्तर प्रदेश कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत और भूटान में संदर्भ और परिस्थितियां पूरी तरह से अलग हैं. सचिवालयों में, ऐसा कोई निर्धारित मानदंड नहीं है. इस प्रकार के स्ट्रक्चर का ऑब्जेक्टिव-ओरिएंटेड होना जरूरी है. यह अभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में तो संभव है लेकिन सचिवालय के पदों के लिए नहीं.’
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: कृष्ण मुरारी)
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