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Saturday, 15 June, 2024
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भिंडरावाले के सहयोगी, चरमपंथियों के वकील — कौन हैं अमृतपाल के अभियान का नेतृत्व करने वाले राजदेव सिंह खालसा

अकाली दल, आप और भाजपा के साथ जुड़ाव से लेकर खालसा की जटिल राजनीतिक छवि है. अमृतपाल के साथ उनका जुड़ाव 2022 में दुबई से लौटने के बाद शुरू हुआ.

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चंडीगढ़: पहली बार जब घोषणा की गई कि सिख चरमपंथी अमृतपाल सिंह खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से संसदीय चुनाव लड़ेगा, तो यह उसके माता-पिता सहित कई लोगों के लिए चौंका देने वाली बात थी.

घोषणा 24 अप्रैल को अधिवक्ता राजदेव सिंह खालसा ने की, जो कि अमृतपाल के कानूनी सलाहकार हैं, जिन्होंने असम में डिब्रूगढ़ जेल की यात्रा के दौरान, अमृतपाल को पद के लिए खड़ा करने के लिए सिख समुदाय की इच्छा से अवगत कराया — एक प्रस्ताव जिसे अमृतपाल ने स्वीकार कर लिया.

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत एक साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने पर, अमृतपाल और उसके नौ सहयोगियों के कारावास को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन महीने के लिए बढ़ा दिया है.

घोषणा के बाद अमृतपाल के माता-पिता ने शुरू में खालसा के दावों का खंडन किया. हालांकि, अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह ने जेल में उससे मुलाकात के बाद, पुष्टि की कि अमृतपाल वास्तव में खडूर साहिब से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा.

तरसेम सिंह ने मीडिया से कहा, “खालसा जी ने फैसले की घोषणा करने में थोड़ी जल्दबाज़ी दिखाई.” उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया होगा कि अमृतपाल का कोई हृदय परिवर्तन न हो.

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हालांकि, दिप्रिंट से बात करते हुए खालसा ने कहा, “मैंने अमृतपाल को सिख संगत (समुदाय) का संदेश दिया कि वे चाहते हैं कि वे चुनाव लड़े. अंतिम फैसला उनका था. वे एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं और सिख धर्म को अच्छी तरह से जानते हैं.”

अमृतपाल की चुनावी दावेदारी के पीछे कौन हैं राजदेव सिंह खालसा, जो अमृतपाल की अनुपस्थिति के बावजूद उनके अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं?


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खालसा का भिंडरावाले से संबंध

बरनाला के एक प्रमुख आपराधिक वकील और सिख चरमपंथी खालसा के पास कई उपलब्धियां हैं — पुराने अकाली नेता, पंजाब के संगरूर से सांसद, राष्ट्रीय सिख संगत के नेता, कुछ समय के लिए आम आदमी पार्टी (आप) का समर्थन करने और फिर शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल रहे हैं.

अगस्त 2022 में जब अमृतपाल भारत लौटा, तो खालसा, जो कभी सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के करीबी सहयोगी रहे, ने बतौर कानूनी सहयोगी उसकी टीम से हाथ मिलाया. जब अमृतपाल को अप्रैल 2023 में एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया, तो खालसा अमृतपाल के माता-पिता के साथ डिब्रूगढ़ जेल में उनसे मिलने वाले पहले लोगों में से थे.

तब से खालसा जेल में अमृतपाल से नियमित मुलाकाती रहे हैं और अपनी यात्राओं के बारे में प्रेस को लगातार जानकारी देते रहे हैं. पिछले साल अक्टूबर में जब उन्हें मुलाकात से मना किया गया, तो अमृतपाल और उसके सहयोगी भूख हड़ताल पर चले गए.

खालसा ने दिप्रिंट को बताया, “अमृतपाल पंजाब में विभिन्न मामलों में कम से कम एक दर्जन मामलों का सामना कर रहा है और मैं उन सभी मामलों में उसे सलाह दे रहा हूं. हम वर्तमान में अदालती मुकदमों में सक्रिय रूप से शामिल नहीं हैं क्योंकि इनमें से कोई भी मामला वास्तव में शुरू नहीं हुआ है. अमृतपाल को किसी भी मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया है और वे एनएसए के तहत हिरासत में है.”

72-वर्षीय, जो बरनाला के धनौला क्षेत्र से हैं, अपनी युवावस्था में अकाली नेता मास्टर तारा सिंह के साथ जुड़े थे और पार्टी के विभाजन के दौरान भी वफादार बने रहे.

खालसा जो जो 1968 से 1970 तक तीन साल तक ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट फेडरेशन के अध्यक्ष भी रहे ने कहा, “जब अकाली दल दो गुटों में बंट गया तब भी मैं मास्टर तारा सिंह के प्रति वफादार रहा – एक का नेतृत्व मास्टर तारा सिंह ने किया और दूसरे का नेतृत्व संत फतेह सिंह ने किया.”

खालसा ने वकालत की पढ़ाई की और 1970 और 80 के दशक के अंत में पंजाब में चरमपंथियों का समर्थन किया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं संत जरनैल सिंह भिंडरावाले का बहुत करीबी था. जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दिन, उन्होंने मुझसे स्वर्ण मंदिर छोड़ने और उन सिखों के लिए काम करने के लिए कहा, जिन्हें कानूनी सहायता की ज़रूरत होगी.”

उन्होंने कहा, “संत जी ने मुझे अपने पिता बाबा जोगिंदर सिंह के मार्ग पर चलने के लिए कहा था, मैंने वैसा ही किया.”

राजनीतिक उथल-पुथल

खालसा ने 1989 में बाबा जोगिंदर सिंह की अध्यक्षता वाली पार्टी यूनाइटेड अकाली दल के टिकट पर संगरूर से संसदीय चुनाव लड़ा.

उन्होंने जीत हासिल की और अपनी पार्टी से निर्वाचित कुछ अन्य लोगों के साथ सांसद के रूप में शपथ ली. खालसा ने कहा, “सिमरनजीत सिंह मान भी जीते थे, लेकिन कृपाण मुद्दे के कारण उन्होंने शपथ लेने से इनकार कर दिया. मैं संसद में हमारी पार्टी का वास्तविक नेता था. मैं तब भी सांसद था जब 1991 में यूनाइटेड अकाली दल विभाजित हो गया और मान हमसे अलग हो गए.”

1993 में बाबा जोगिंदर सिंह की मृत्यु के बाद राजनीतिक एकांतवास की अवधि के बाद, खालसा ने 2012 में राजनीतिक क्षेत्र में फिर से प्रवेश किया.

2012 में अकाली नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा ने खालसा को अकाली दल में शामिल कराया और वे चुनाव से पहले राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्य बन गए, लेकिन पार्टी के साथ मेलजोल ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका.

2015 में खालसा फिर से खबरों में आ गए जब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सिख शाखा — राष्ट्रीय सिख संगत में शामिल हो गए. उन्हें आरएसएस द्वारा मालवा क्षेत्र का नेता चुना गया और बढ़-चढ़कर यह बताया गया कि खालसा का इरादा सिखों के बीच संघ के बारे में धारणा को दूर करना था.

खालसा ने दिप्रिंट को तीन शर्तें गिनाते हुए कहा, “चिरंजीव सिंह राष्ट्रीय सिख संगत के अध्यक्ष थे और उन्होंने कुछ सामान्य लिंक के माध्यम से मुझसे संपर्क किया था. मैंने उनके सामने तीन शर्तें रखी थीं.”

खालसा की पहली शर्त थी कि राष्ट्रीय सिख संगत यह माने कि सिख हिंदू नहीं हैं, बल्कि उनकी एक अलग पहचान है. फिर, उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा कि जरनैल सिंह भिंडरावाले और अन्य, जिन्होंने सिख हित के लिए अपनी जान दे दी, “शहीद” थे. अंत में, वे संविधान के तहत सिखों को विशेष दर्जा देने की दिशा में काम करेंगे.

खालसा ने दिप्रिंट को बताया कि इसके बाद, “मुझे मालवा में राष्ट्रीय सिख संगत का प्रभारी बनाया गया, लेकिन जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि उनका इरादा अपने वादों को पूरा करने का नहीं था. जब पंजाब में (2015 में) बेअदबी की घटनाएं हुईं, तो राष्ट्रीय सिख संगत ने प्रकाश सिंह बादल को क्लीन चिट देते हुए उनका समर्थन करना शुरू कर दिया, जबकि मैंने हमेशा माना कि इस घटना के लिए शिरोमणि अकाली दल जिम्मेदार था. उसके तुरंत बाद मैं वहां से चला गया.”

74-वर्षीय ने 2017 के चुनावों में AAP का समर्थन किया. उन्होंने कहा, “मैं कभी भी औपचारिक रूप से आप में शामिल नहीं हुआ, जैसा कि मेरे विरोधियों द्वारा फैलाया जा रहा है.”

उनके मुताबिक, सरदार हरविंदर सिंह फुल्का, जो उन्हें करीब से जानते थे, चाहते थे कि वे आप उम्मीदवार गुरमीत सिंह मीत हेयर का समर्थन करें.

खालसा ने कहा, “फुल्का ने कहा कि वे पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे और फैसला लेंगे. चूंकि, क्षेत्र में मेरी एक निश्चित पकड़ है, इसलिए मैंने हेयर का समर्थन किया, लेकिन फुल्का कभी सीएम नहीं बने, इसके बजाय विपक्ष के नेता बन गए, यह पद उन्होंने कुछ समय बाद छोड़ दिया.”

जनवरी 2019 में खालसा शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) में शामिल हो गए — जो शिरोमणि अकाली दल बादल से अलग हुआ गुट है — जिसका गठन पुराने अकाली नेताओं रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला और सेवा सिंह सेखवान ने किया था.

खालसा को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए संगरूर से उम्मीदवार घोषित किया गया था, लेकिन चोट के कारण उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. दिसंबर 2021 में पूर्व कांग्रेसी फतेह सिंह बाजवा के साथ भाजपा में शामिल होने के बाद वह फिर से खबरों में थे.

 

उन्होंने कहा, “मैंने भाजपा में शामिल होते ही इसे लगभग छोड़ दिया क्योंकि मुझसे फिर वादा किया गया था कि पार्टी वे तीन घोषणाएं करेगी जो आरएसएस ने मुझसे करने का वादा किया था, लेकिन, मुझे फिर निराश किया गया. इसलिए मैं चला गया.”

जून 2022 में संगरूर संसदीय उपचुनाव से पहले, खालसा ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी, सिमरनजीत सिंह मान का समर्थन किया. दोनों ने 32 साल बाद हाथ मिलाया था. भगवंत मान द्वारा पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के लिए सीट खाली करने के बाद मान ने चुनाव जीता.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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