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Thursday, 5 December, 2024
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भोपाल में वैक्सीन ट्रायल के दौरान वालंटियर की मौत पर भारत बायोटेक ने जहर से मौत होने की संभावना जताई

भारत बायोटेक ने कहा कि गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के मुताबिक जहर से मौत होने की संभावना है. इस मामले की अभी पुलिस जांच कर रही है.

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भोपाल: भोपाल के एक निजी अस्पताल में पिछले वर्ष दिसंबर के पहले पखवाड़े में कोरोना वैक्सीन के टीका ‘कोवैक्सीन’ का क्लीनिकल परीक्षण कराने वाले 42 वर्षीय एक वालंटियर की उसके 10 दिनों बाद ही मौत हो गई. हालांकि उसकी मौत के कारणों को लेकर चिकित्सकों ने संदेह व्यक्त किया है.

भारत बायोटेक ने बयान जारी कर कहा कि पंजीकरण के समय फेस 3 के ट्रायल के लिए जो भी क्राइटेरिया थे, वालंटियर उसके लिए तैयार था और डोस के 7 दिन बाद तक वो पूरी तरह स्वस्थ था.

भारत बायोटेक ने कहा कि गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के मुताबिक जहर से मौत होने की संभावना है. इस मामले की अभी पुलिस जांच कर रही है.

एक सरकारी अधिकारी ने वालंटियर के जहर खाने का संदेह जताया और कहा कि विसरा परीक्षण के बाद ही उसकी मौत के सही कारणों का पता चलेगा.

भोपाल के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के कुलपति डॉ. राजेश कपूर ने शनिवार को बताया कि दीपक मरावी ने 12 दिसंबर, 2020 को पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में आयोजित कोवैक्सीन टीके के परीक्षण में हिस्सा लिया था.

मध्य प्रदेश मेडिको लीगल इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. अशोक शर्मा ने बताया कि जिस डॉक्टर ने मृतक का पोस्टमॉर्टम किया था, उसे शक है कि उसकी मौत जहर खाने से हुई है. हालांकि उन्होंने कहा कि मौत का सही कारण उसके विसरा जांच से पता चल सकेगा .

डॉ. कपूर ने कहा कि 21 दिसंबर को मरावी की मौत के बाद हमने भारत के औषधि महानियंत्रक और भारत बायोटेक को इस बारे सूचित किया, जो इस ट्रायल के निर्माता और प्रायोजक हैं.

उन्होंने कहा कि मरावी इस परीक्षण में स्वेच्छा से शामिल हुआ था. उन्होंने दावा किया कि उसके परीक्षण में सभी प्रोटोकॉल का पालन किया गया और परीक्षण में भाग लेने की अनुमति देने से पहले मरावी की सहमति ली गई थी .

कपूर ने कहा कि मरावी को दिशा-निर्देशों के अनुसार परीक्षण के बाद 30 मिनट तक निगरानी में रखा गया था .

उन्होंने दावा किया, ‘हमने सात से आठ दिनों तक उसके स्वास्थ्य पर नजर रखी.’

वहीं मृतक मरावी के परिवार के सदस्यों ने कहा कि वह मजदूरी करता था. उन्होंने दावा किया कि मरावी और उसके सहयोगी को परीक्षण के दौरान 12 दिसंबर को कोवैक्सीन का इंजेक्शन दिया गया था .

उन्होंने कहा कि जब वह घर लौटा तो असहज महसूस कर था. उसने 17 दिसंबर को कंधे में दर्द की शिकायत की और उसके दो दिन बाद उसके मुंह से झाग भी निकला. लेकिन उसने एक-दो दिन में ठीक होने की बात कहते हुए डॉक्टर को दिखाने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि 21 दिसंबर को जब उसकी हालत बिगड़ी तो उसे अस्पताल ले जाने के दौरान रास्ते में ही उसकी मौत हो गयी.

भोपाल की सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने दावा किया कि क्लीनिकल परीक्षण में भाग लेने के लिए न तो मरावी की सहमति ली गई और न ही उसे इस अभ्यास में शामिल होने का कोई प्रमाण दिया गया. हालांकि अस्पताल ने इस आरोप से इनकार किया है.

(भाषा के इनपुट के साथ)


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