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Friday, 22 November, 2024
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‘भाड़े की कोख’- कैसे उत्तर बंगाल से गैर कानूनी सरोगेसी के जरिए तस्कर कमा रहे लाखों रुपये

चाय के बागानों से लड़कियों की तस्करी करके उन्हें सरोगेसी के लिए मजबूर किया जाता है. नए कानून के तहत कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने से इस गैर कानूनी प्रेक्टिस से निजात पाया जा सकता है.

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दार्जिलिंग/जलपाईगुड़ी/सिलीगुड़ी: दिसंबर के सर्द दिन में एंटी ट्रैफिकिंग एक्सपर्ट अमोस सेरिंग के फ़ोन की घंटी बजती है. दूसरी तरफ से 18 साल की एक लड़की की आवाज आई. वह डरी हुई थी. लड़की ने बताया कि उसे एक दंपति ने बंधक बनाकर अपने घर में रखा हुआ था. उस दंपति का बच्चा इस लड़की की कोख में पल रहा था. सरोगेसी के लिए उस लड़की को कानूनी तौर पर चुना भी नहीं गया था न ही उनके बीच कोई समझौता हुआ था. लड़की को पकड़ा गया और बेच दिया गया था.

उत्तरी बंगाल के दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, और अलीपुरद्वार जिले में मानव तस्कर काफी दिन से सक्रिय हैं. ये जिले नेपाल, भूटान, और बांग्लादेश से सटे हुए हैं. इन जिलों की सीमा असम और बिहार से लगती है. लेकिन, जवान लड़कियों की खरीद-फरोख्त के कारोबार ने पिछले कुछ सालों में जोर पकड़ा है. कारोबारी इन्हें ‘भाड़े की कोख’ कहते हैं. ये लड़कियां पूरे भारत में नि:संतान दंपतियों की मांग को पूरी करने के लिए अपनी जिन्दगी बर्बाद करने को मजबूर हैं.

सेरिंग को जिस लड़की का कॉल आया था वह एक स्थानीय ब्यूटी पार्लर में काम करती थी. वहां उससे एक आदमी मिला जिसने उससे बेहतर सैलरी वाली नौकरी देने का वादा किया. फिर, उस लड़की को किसी अनजान जगह पर ले गया. एक महीने बाद उस लड़की का कृत्रिम गर्भाधान किया गया. इसके बाद उस लड़की को एक दंपति के घर पर छोड़ दिया गया. छह महीने की पेट से होने के बाद, आखिरकार वह लड़की दंपति के कब्जे से भागने में कामयाब हो पाई.

एक स्थानीय एनजीओ ने उस लड़की को मुक्त करवाया. 19 साल की वह लड़की अब शादीशुदा है और अपने बच्चे के साथ एक सामान्य जिन्दगी जी रही है. अपहरण करने वाले दंपति और एजेंट अब भी फरार हैं.

भारत में 25 जनवरी को सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्ट 2021 लागू हुआ. जिसके बाद, कमर्शियल सरोगेसी गैरकानूनी हो गया है. अब भारत में सिर्फ़ ‘ऐल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी’ या ‘परोपकारी सरोगेसी’ ही कानूनी तौर पर मान्य है. इसके तहत सरोगेट माता को किसी भी तरह की नगदी सहायता नहीं दी जा सकती है. ‘ऐल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी’ में सिर्फ़ मेडिकल खर्च और बीमा लाभ लिया जा सकता है.

लेकिन, जमीनी सच्चाई जटिल और घिनौनी है. सरोगेट-बच्चे की मांग को पूरा करने के लिए, कानून को ठेंगा दिखाकर लड़कियों की तस्करी जारी है. दरअसल, देश के कई हिस्सों में ‘बच्चों की बिक्री’ का कारोबार खूब फलफूल रहा है.

जलपाईगुड़ी के मालबजार से छुड़ाई गई लड़की अब छह महीने के बच्चे की मां है. फ़ोटो: मधुपर्णा दास

उत्तरी बंगाल के पिछड़े इलाकों, खासकर चाय बागान के आसपास ‘कोख का कारोबार’ तेजी से बढ़ रहा है. यहां की 16 से 19 साल की नाबालिग लड़कियों को देश के अलग-अलग हिस्सों में तस्करी करके पहुंचाया जाता है. जहां सरोगेसी के पारंपरिक तरीकों से उन्हें प्रेग्नेंट किया जाता है. इनमें कृत्रिम गर्भाधान, विट्रो फर्टिलाइजेशन या आईवीएफ शामिल हैं. बच्चे की डिलीवरी के बाद, इन्हें या तो अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है या फिर से बेच दिया जाता है. कई नाबालिग लड़कियों को यौन शोषण से भी गुजरना पड़ता है, इन्हें बिना मर्जी के प्रेगनेंट किया जाता है और बाद में इनके बच्चे को बेच दिया जाता है.

निगरानी के अभाव में कई गैरकानूनी क्लिीनिक खुल गए हैं. जहां इन पीड़िता का ऑपरेशन किया जाता है. जानकारों का मानना है कि कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से रोक लगने की वजह से इस तरह के गैरकानूनी प्रैक्टिस को बढ़ावा मिला है. ऐसा इसलिए, क्योंकि नि:संतान दंपति की बच्चे की चाह खत्म होने वाली नहीं है. निम्न आय वर्ग के दंपतियों के लिए, बच्चे गोद लेने की लंबी प्रक्रिया या अल्ट्रूस्टिक सरोगेसी से जुड़े कानूनों का पालन करना आसान नहीं है. ऐसे में गैरकानूनी तरीके से सरोगेसी को बढ़ावा मिल रहा है.

भाड़े की कोख के लिए दिया धोखा

नवंबर 2020 में जलपाईगुड़ी जिले के ऊडलबाड़ी इलाके के एक सुदूर गांव की 16 साल की लड़की किसी लड़के के प्यार में पड़ गई और घर छोड़कर उसके साथ चली गई दी. वह लड़का उसे एक घर में ले गया. वहां मौजूद दंपति से लड़की का परिचय, अपने माता-पिता के तौर पर करवाया.

कुछ महीनों के बाद उस लड़की को पता चला कि वह प्रेग्नेंट है. दंपति ने लड़की से कहा कि वह उससे ‘एक बच्ची चाहते हैं’. लड़की को भी घर में कैद करके रखा गया. इस दौरान उसे मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया.

पीड़ित लड़की ने दिप्रिंट से बताया, ‘मैं डरी थी, मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था कि मेरे साथ हो क्या रहा है. मैं किसी तरह वहां से भाग निकली.’

तमाम पीड़ा झेलने के बाद, जलपाईगुड़ी के एक अस्पताल में उस लड़की ने एक लड़के को जन्म दिया है. पीड़िता के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं. उसकी मां बीमार रहती हैं.

पीड़िता की मां ने कहा, ‘मैं अपनी बेटी का गर्भपात नहीं करवा सकती थी. हम लोग ईसाई हैं और हमारा चर्च इसे पाप मानता है. मैं मुश्किल से चीजों को संभाल रही हूं. मेरी बेटी अब 17 साल की हो गई है. उसका लड़का छह महीने का है. हम पुलिस के पास जाने से डर रहे हैं.’

इससे भी भयानक हादसा साल 2019 में जलपाईगुड़ी जिले के मालबजार इलाके की 17 साल की लड़की के साथ हुआ. वह चाय बागान के आसपास रहती थी.

पीड़िता के एक परिचित ने उसे ‘अच्छी नौकरी’ देने का वादा किया. उससे दिल्ली में घरेलू काम दिलवाने की बात कही गई थी.

उसे पहले हरियाणा ले जाया गया. इसके बाद उसे हरियाणा के एक गांव ले जाया गया. वहां उसे आर्टिफिशियल सरोगेसी (कृत्रिम गर्भाधान) से बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर किया गया.

बच्चे के जन्म के बाद उसे पहले झारखंड और फिर बिहार में देह व्यापार के लिए बेच दिया गया. पिछले साल सिलीगुड़ी स्थित एनजीओ ने उसे झारखंड से मुक्त करवाया.

चाय बागान के पास बने एक अंधेरे और गंदी झोपड़ी में बैठी उस लड़की ने कहा, ‘मैं तब आठवीं में पढ़ती थी, वे (मानव-तस्कर) मुझे बिहार और दूसरी जगहों पर ले गए. मेरी मां, चाय बागान में मजदूरी करती है. उनकी कमाई से पांच लोगों के परिवार को चलाना मुश्किल है. मेरे पिता शराबी हैं और मेरी मां को पीटते हैं. मेरी दो बहनें हैं. वे उन्हें भी तंग करते हैं. इसलिए, मैंने किसी दूसरी जगह पर नौकरी करने की सोची और घर छोड़ दिया.’

वह धीरे से कहती है, ‘मैं दोबारा स्कूल नहीं जा पाऊंगी. मुझे डर है कि वे (तस्कर) मुझे दोबारा लेने आएंगे.’

19 साल की लड़की जिसे पहले हरियाणा ले जाया गया और फिर बिहार से मुक्त कराया गया. वह चाय बागान के पास एक झोपड़ी में रहती है. फोटोः मधुपर्णा दास । दिप्रिंट

ये दोनों लड़कियां अपनी दास्तान बता पाने के लिए जिन्दा हैं. लेकिन, ऐसी सैकड़ों लड़कियां हैं जो लापता हो गईं.

देश के इस हिस्से में इस कारोबार को ‘भाड़े की कोख’ नाम दिया गया है, जिसके लिए लड़कियों की तस्करी की जाती है और उन्हें धोखा दिया जाता है.

कुछ ऐसे मामले भी हैं जहां पर वयस्क महिलाएं बड़ी रकम के बदले सेरोगेट बनने का फैसला अपनी मर्जी से लेती हैं. हालांकि ,ऐसे मामले कहीं ज्यादा है जिसमें सरोगेसी के लिए लड़कियों, खासकर नाबालिग की तस्करी की गई है, उन्हें पारंपरिक तरीकों से प्रेग्नेंट किया गया है. यहां तक कि इस दौरान उनका यौन शोषण भी हुआ है.

शर्म और लांछन की वजह से पीड़ित महिलाएं चुप रहती हैं. इसको लेकर पुलिस में कोई एफआईआर भी दर्ज नहीं है.


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सीमा के सटे इलाके में होती है तस्करी

सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नर के अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में पांच मामले, साल 2020 में सात मामले और साल 2021 में 10 मामले दर्ज किए गए हैं.

कमिश्नर ऑफिस में 249 नाबालिग के अपहरण के मामले दर्ज किए गए. साल 2020 में यह संख्या घटकर 180 रह गई. लेकिन, 2021 में यह बढ़कर 223 हो गई. ‘अपहरण’ के मामलों में गुमशुदगी की शिकायतें भी शामिल हैं. गौरतलब है कि तस्करी के अलावा और भी कई वजह से लड़की गुमशुदा हो सकती है.

दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, और अलीपुरद्वार जिले की सीमा नेपाल, भूटान, और बांग्लादेश से लगती है. ये जिले असम और बिहार की सीमा पर हैं.

इन तीन जिलों में 408 चाय के बागान हैं. इनमें काम करने वाले मजदूरों में बड़ी संख्या गोरख के साथ ही मुंडा और उरांव जनजाति के लोगों की है. ये बेहद गरीब हैं और चाय बागानों में मिलने वाली मामूली मजदूरी में अपना गुजर-बसर चलाते हैं. इनमें ज्यादातर चाय बागानों की स्थिति ठीक नहीं है और वे बंद हैं. टूरिज्म यहां के आय का एक अन्य स्रोत है.

यह इलाका सड़क और रेलमार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. यहां से राज्य और अंतरराष्ट्रीय सीमा लगती है. इन दोनों का फ़ायदा मानव-तस्करी में लगे लोग उठाते हैं.

सिलीगुड़ी स्थित एनजीओ लाइट हाउस दिशा की ममता खाटी मानव तस्करी की पीड़ित लड़कियों के लिए, शेल्टर होम और वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर चलाती हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें ऐसे मामलों के बारे में पता है जिसमें लड़कियों को पहले नेपाल ले जाया जाता है और फिर वहां से उन्हें म्यांमार अवैध तरीके से पहुंचा दिया जाता है, लेकिन इसका कोई अधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है. हम दूसरे एनजीओ के साथ मिलकर मानव-तस्करी की शिकार लड़कियों का पता लगाकर मुक्त करवाते हैं और उन्हें सामान्य जीवन जीने में मदद करते हैं.


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अवैध व्यापार, गैरकानूनी सरोगेसी, बच्चों बिक्री का धंधा

बंगाल, बिहार, और झारखंड के दूर-दराज के इलाकों में मानव तस्करी एक आम बात है. हालांकि यह जघन्य अपराध है. तस्करी करके बेची गई लड़कियां आमतौर पर वेश्यावृत्ति में लगा दी जाती हैं या उनसे घरेलू काम करवाया जाता है.

पिछले छह-सात सालों से इसमें एक नया आयाम और जुड़ गया है- लड़कियों की तस्करी करवाना और उनका इस्तेमाल बच्चे पैदा करने के लिए करना.

वर्ल्ड विजन इंडिया के अमोस सेरिंग का कहना है, ‘तस्करी की गई लड़कियों से काम लेना नया है. हमें इसके बारे में तब पता चला, जब हमने कुछ लड़कियों को मुक्त कराया. कई मामलों की रिपोर्ट नहीं की जाती है और उसके बारे में किसी को पता नहीं है. गरीब परिवार के लोग गांव में इज्जत जाने के डर से पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं कराते. मुक्त कराई गई लड़कियां डरी हुई हैं और वे पुलिस को सूचित नहीं करना चाहती हैं. इसलिए, सुनवाई ठंडे बस्ते में चली जाती है.’

राजस्थान से बचाई गई 19 साल की लड़की । मधुपर्णा दास । दिप्रिंट

दिप्रिंट ने सिलीगुड़ी के सुरक्षा गृह, लाइट हाउस दिशा से 16 साल की मुक्त कराई गई एक लड़की से मुलाकात की. उसे पिछले साल बिहार में बेचा गया था.

मुक्त कराई गई इस लड़की ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे बताया गया था कि मुझे दाई का काम मिलेगा. लेकिन, तस्करों ने मुझे पहले डांस बार में बेच दिया और फिर सामूहिक बलात्कार किया. जब मैं गर्भवती हुई तब उन्होंने मुझसे बच्चे को लेने की बात कही और दूसरे राज्य में भेजने को कहा.’

‘मैंने भागने की कोशिश की लेकिन पकड़ ली गई. मुझे बुरी तरह से पीटा गया और मेरा गर्भपात हो गया. तीन-चार महीने के बाद एक स्वयंसेवी संगठन ने स्थानीय पुलिस की मदद से मुझे छुड़वाया. अब मैं इस शेल्टर होम में व्यावसायिक प्रशिक्षण ले रही हूं. मैं स्कूल में जाकर अपनी शिक्षा पूरी करके एयरहोस्टेस बनना चाहती हूं.’

खाटी, मुक्त कराए गए लोगों की काउंसलिंग करते हैं और उन्हें नए जीवन शुरू करने का मौका देते हैं. ‘हमें अक्सर सुनने में आता है कि मुक्त कराई गईं लड़कियां मां बन जाती हैं, कुछ परंपरागत सरोगेसी से संबंधित होती हैं. जबकि कुछ तस्कर लड़कियों का इस्तेमाल बच्चे पैदा करने और उन्हें बेचने के लिए करते हैं. वे मानसिक यातना लिए आती हैं और कई तो इस बारे में कुछ बोलने से भी परहेज करती हैं.’

जलपाईगुड़ी के दुआर्स एक्सप्रेस से जुड़े स्वयंसेवी संगठन के राजू नेपाली ने बताया, ‘हम इसे स्थानीय बोली में ‘भाड़े की कोख’ कहते हैं. तस्करों को इसके लिए बहुत ज्यादा पैसा मिलता है. यह कमाई लड़कियों को वेश्यावृत्ति में बेचने से ज्यादा होती है. वे ज्यादातर कम उम्र की लड़कियों को प्राथमिकता देते हैं, कभी-कभी तो लड़कियां नाबालिग होती हैं. नाबालिग होने के कारण मेडिकल दिक्कतें आने की संभावना कम होती है. अक्सर हम गायब हुई लड़कियों को खोज लेते हैं लेकिन वे वापस आने के लिए तैयार नहीं होतीं.’

इस मामले की गहराई जानने वाले एक और एनजीओ के कार्यकर्ताओं ने बताया कि इन जिलों में स्वैच्छिक सरोगेसी तेजी से पनपी है.

दार्जिलिंग के एनजीओ ‘मार्ग’ के निर्णय जॉन छेत्री ने बताया, ‘इस इलाके में कई चाय बागान हैं जो 11 साल से बंद हैं. जवान लड़कियां यहां से गायब होती हैं. कुछ लड़कियों को मुक्त कराया गया, कुछ नहीं मिल सकीं जबकि कुछ लड़कियां कई साल बाद लाखों रुपये की मोटी रकम लेकर वापस लौटीं.’

उन्होंने कहा ‘ये लड़कियां यह नहीं बतातीं कि उन्होंने क्या किया और इतने पैसे कैसे कमाए. गांवों में ‘किराए की कोख’ को एक तरह से स्वीकृत मान्यता मिल चुकी है. हमें मालूम है कि काफी मोटी रकम लेकर वे बच्चा पैदा करने के लिए तैयार हो जाती हैं. लेकिन जबरदस्ती वाले सरोगेसी के मामले भी ज्यादा हैं.’

कमर्शियल सरोगेसी को बैन करने की बहस

सरोगेसी (नियमन) कानून 2021 को पिछले साल संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था. इस कानून के तहत ‘सिर्फ मानवीय आधार पर सरोगेसी धारण करने की इजाजत दी गई. इसमें कहा गया था कि कमर्शियल उद्देश्यों के लिए या सरोगेसी के व्यावसायीकरण या सरोगेसी की प्रक्रिया गैरकानूनी होगी. इसके तहत ही बच्चों को बेचने की दृष्टि से उन्हें पैदा करने, वेश्यावृत्ति या शोषण के दूसरे तरीकों पर प्रतिबंध लगाने की बात इस कानून में की गई थी….’

दिप्रिंट से बातचीत करते हुए गुजरात के आणंद के आकांक्षा हॉस्पिटल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर नयना पटेल ने कहा, ‘सरोगेसी के लिए क्षतिपूर्ति(नगद सहायता) देने पर रोक लगाने वाले कानून की समीक्षा होनी चाहिए.’

पटेल कहती हैं, ‘एक औरत किसी दूसरे के बच्चे को नौ महीने तक अपने गर्भ में क्यों रखेगी अगर उसको कोई आर्थिक लाभ या क्षतिपूर्ति नहीं मिलती?’

‘इस फील्ड में वर्षों तक काम करने के बाद हमें पता है कि कई दंपति, बच्चे की चाह में कितने हताश या मजबूर हो जाते हैं. अगर यह बैन जारी रहता है, तो इससे गैरकानूनी ढंग से सरोगेसी को बढ़ावा मिलेगा.

इसी तरह बेंगलुरू के, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर पियाली चैटर्जी ने कहा, ‘पैसा देकर सरोगेसी की सेवा पर बैन का निर्णय तमाम अनैतिक तस्करी को बढ़ावा देगा.’

चैटर्जी का मानना है कि सरकार को एक ऐसा कानूनी ढांचा तैयार करना होगा जिससे सरोगेसी का पंजीयन हो और पुलिस की जांच हो. जो क्षतिपूर्ति दी जानी है, उसे सीधे उनके खाते में डाला जाए. संबंधित दंपति और सरोगेसी की सेवा देने वाली महिला के बीच कोई बिचौलिया नहीं होना चाहिए.

पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूडान इससे सहमत नहीं हैं.

वह कहते हैं, ‘सरकार ने इस कानून को लाने के पहले काफी काम किया है. यह बहुत ही जटिल, उलझा हुआ और संवेदनशील मुद्दा है. अगर हम सरोगेसी का व्यावसायीकरण करते हैं, तब इसका कोई अंत नहीं होगा. इससे महिलाओं का शोषण बढ़ेगा और गैरकानूनी या जबरन सरोगेसी की घटनाएं बढ़ेंगी. महिलाओं को बच्चा पैदा करने की मशीन बना दिया जाएगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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