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Friday, 17 May, 2024
होमदेशविलुप्त हो रहे वनभैंसो को लेकर जागी छत्तीसगढ़ सरकार, राजकीय पशु की संख्या बढ़ाने के लिए कराएगी सेरोगेसी

विलुप्त हो रहे वनभैंसो को लेकर जागी छत्तीसगढ़ सरकार, राजकीय पशु की संख्या बढ़ाने के लिए कराएगी सेरोगेसी

राज्यपशु की संख्या दोगुनी करने के लिए राज्यसरकार कई चरणों में काम कर रही है. जिसमें नैसर्गिक प्रजनन के साथ साथ असम के मानस नेशनल पार्क ने मादा और नर भैंसों को लाकर छत्तीसगढ़ के बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में कैप्टिव ब्रीडिंग कराना भी शामिल है.

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रायपुर: विगत 20 सालों से लगातार असफलता के बाद छ्त्तीसगढ़ से विलुप्त हो रहे राजकीय पशु ‘वनभैंसों’ की संख्या अगले दो वर्षों में दोगुनी से भी ज्यादा होने की संभावना है. ऐसा कहना है छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारियों का.

प्रदेश के आला अधिकारियों का मानना है कि छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैंसे की संख्या वृद्धि का काम गहनता से कई मोर्चों पर चल रहा है जिसका परिणाम आने वाले दिनों में दिखेगा.

दिप्रिंट को विभाग के कुछ बड़े अधिकारियों ने बताया कि दिसंबर से पहले चार मादा वनभैंसों का असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान से लाया जाएगा. साथ ही देश और संभवतः दुनिया की पहली मादा वनभैंस क्लोन ‘दीपाशा’ के अंडाणुओं का इस्तेमाल सेरोगेसी के लिए किया जाएगा.

जानकारों का यह भी कहना है कि इससे वनभैंसों के कई बच्चों का जन्म एक साथ कराया जा सकता है. इसके अलावा प्रदेश के उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व में करीब 10 नेटिव वनभैंसों को स्वाभाविक प्रजनन के लिए भी संरक्षण दिया जा रहा है.

वनभैंसों की संख्या बढ़ाएगी सेरोगेसी 

वन विभाग के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव, अरुण कुमार पांडेय ने दिप्रिंट को बताया,’पिछले दस सालों में वनभैंसों की संख्या वृद्धि में चाहे गए परिणाम नहीं मिल पाए हैं लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. यदि सबकुछ योजना के अनुसार चला तो आने वाले दो सालों में चौंकाने वाले परिणाम मिल सकते हैं.’

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वह बताते हैं, ‘राज्य पशु की संख्या दोगुनी से भी अधित हो सकती है. वनभैंसों की संख्या वृद्धि के लिए तीन मोर्चों पर काम एक साथ चल रहा है. पहला, प्रदेश के नेटिव वनभैंसों की संख्या की नैसर्गिक प्रक्रिया से प्रजनन होने देना. दूसरा, असम के मानस नेशनल पार्क से पांच मादा और एक नर सहित छः वनभैंसों को लाकर राज्य के बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में उनकी कैप्टिव ब्रीडिंग करवाना. यह प्रक्रिया अप्रैल 2020 में चालू हुई जब मानस से प्रत्यार्पित वनभैंसों का पहला जोड़ा बारनवापारा में छोड़ा गया था. दिसंबर 2020 तक मानस नेशनल पार्क से चार और मादा वनभैंसों को लाया जाएगा.’

गौरतलब है कि मानस से 6 वनभैंसों के लाने की केंद्र सरकार से मिली अनुमति के बाद 2019 में ही होना था लेकिन राज्य सरकार की हीला हवाली के चलते मामले में एक साल की देरी हो गई.

पांडेय ने आगे बताया, ‘विभाग द्वारा करनाल स्थित राष्ट्रीय डेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट में जनित देश और दुनिया की पहली क्लोन वनभैंस दीपाशा का इस्तेमाल सरोगेसी प्रजनन के लिए किया जाएगा. दीपाशा वन विभाग द्वारा गरियाबंद जिले के जंगल में रखी गई वनभैंस ‘आशा’ की क्लोन है. इस प्रक्रिया से वनभैंसों के कई बच्चों का जन्म एक साथ हो सकेगा.

दीपाशा को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने तीन साल पहले 80 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किया था.

आशा की क्लोन दीपाशा है/फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
आशा की क्लोन दीपाशा है/फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

दीपाशा से कराई  जाएगी ब्रीडिंग

वनभैंसों में भी सरोगेसी की इंसानों की तरह सामान्य तकनीक अपनाई जाएगी. वन विभाग के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने बताया कि इस तकनीक के तहत दीपाशा के अंडाणुओं का उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व स्थित एक नर वनभैंसे के सीमेन से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (टेस्ट ट्यूब बेबी) कराकर भ्रूण को सामान्य भैंसों में इंजेक्ट किया जाएगा.

इस प्रोजेक्ट से जुड़े राज्य वाइल्डलाइफ हेल्थ एण्ड फोरेंसिक सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर जसमीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘सामान्यतः भैंस एक महीने में एक ही अंडाणु रिलीज करती है. लेकिन क्लोन वनभैंस दीपाशा में हार्मोनल इंटरवेंशन कराकर सुपर ओवुलेशन के माध्यम से अंडाणुओं की संख्या हर महीने बढ़ाई जाएगी.’

सिंह आगे कहते हैं, ‘इससे 5-7 महीनों में करीब 40-50 अंडाणु इकट्ठा किये जाएंगे और फिर चिन्हित नर वनभैंसे के सीमेन से इनका इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन कराया जाएगा. बाद में इन भ्रूणों को विकसित करने के लिए सामान्य भैंसों (सेरोगेट) में इंजेक्ट किया जाएगा.’

डॉक्टर सिंह के अनुसार अभी नर वनभैंसे से सीमेन कलेक्शन का काम चल रहा है जिसके पूरा होने के बाद आगे की कार्यवाई की जाएगी.

डॉक्टर जसमीत बताते हैं, ‘सेरोगेसी तकनीक के अलावा क्लोन वनभैंस को भी कृत्रिम गर्भाधान कराया जाएगा. पांडेय के अनुसार इसके लिए विभाग सामान्य प्रजाति की भैंसे (सेरोगेट) भी खरीदेगा.’

डब्लूटीआई ने रिलीस किया शार्ट फिल्म

राज्य सरकार द्वारा वनभैंसों का संरक्षण और उनकी संख्या वृद्धि के लिए की जा रही कोशिश, विशेषकर मानस नेशनल पार्क से लाई जा रही भैंसों को लेकर प्रदेश में कार्यरत एनजीओ वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने हाल ही में एक शार्ट वीडियो फिल्म जारी किया है. एनजीओ का कहना है कि प्रदेश में वनभैंसों के संरक्षण के प्रति जागरूकता का भी अभाव है जिसके लिए ये फिल्म तैयार की गई है.

ट्रस्ट सेंट्रल इंडिया हेड डॉक्टर राजेन्द्र मिश्रा कहते हैं, ‘छत्तीसगढ़ में प्रदेश के राजकीय पशु वनभैंसों की संख्या शिकार और मानवीय दबाव के चलते लगातार घटती रही है. स्थानीय जनता में इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता का अभाव भी इसका एक प्रमुख कारण है पिछले. इस फिल्म का मुख्य उद्देश्य लोगों को जानकारी देना है.’

एक अनुमान के मुताबिक दो दशक पहले राज्य बनने के समय छत्तीसगढ़ के जंगलों में करीब 60 से अधिक वनभैंसे पाए जाते थे लेकिन आज उनकी संख्या 10 तक ही रह गई है. हालांकि डॉक्टर मिश्रा पुराने आंकड़ों पर उंगली उठाते हुए कहते हैं, ‘1998 में बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में 64 वनभैंसे हैं लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि ये हैं कहांं? इसके बाद 2005 में हमारे द्वारा सर्वे किया, तब पता चला कि प्रदेश में केवल 6 वनभैंसे ही बची हैं.’

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