लासलगांव (नासिक): होली से ठीक एक दिन पहले सोमवार को नासिक जिले के येओला तालुका के एक किसान कृष्णा डोंगरे ने अपनी होलिका जला दी. अपनी परिवार की मौजूदगी में डोंगरे ने अपनी डेढ़ एकड़ जमीन पर उगाई 150 क्विंटल प्याज की फसल को राख कर दिया था. उस समय पूरे परिवार की आंखों में आंसू थे.
डोंगरे ने सोमवार को की गई ‘अपनी इस होलिका दहन’ का निमंत्रण देते हुए मुख्यमंत्री को खून से एक पत्र भी लिखा था (पत्र की एक प्रति दिप्रिंट के पास है) लेकिन वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उन्होंने कहा, ”मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को इस होली का निमंत्रण भेजे 15 दिन हो चुके हैं, लेकिन किसी ने जवाब देने की जहमत तक नहीं उठाई.”
डोंगरे अकेले नहीं हैं. पिछले तीन हफ्तों से प्याज की कीमतों में गिरावट ने नासिक जिले के कई किसानों की आंखों में आंसू ला दिए हैं.
कमोडिटी प्राइस इंडेक्स के अनुसार, 4 फरवरी तक लासलगांव में प्याज की कीमत 1,151 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो 26-27 फरवरी के आसपास घटकर 550 रुपये रह गई. फिलहाल यह 700 रुपये प्रति क्विंटल है.
घटती कीमतों ने क्षेत्र के किसानों को नाराज़ कर दिया है. उन्होंने पिछले सप्ताह एक दिन के लिए कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) में नीलामी रोक दी थी.
डोंगरे के अनुसार, उपज को बाज़ार तक ले जाने के लिए परिवहन लागत एक अलग समस्या है, जो उनके नुकसान को कई गुना बढ़ा देती है. ‘‘मैं सिर्फ 2-4 रुपये प्रति किलो कमा पाता. मेरे पास फसल जलाने के अलावा और कोई चारा नहीं था.”
इस इलाके में अपनी हताशा और निराशा के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराने वाले डोगरे जैसे कई किसान हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मेरी फसल बर्बाद हो गई है, लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत है. सरकार को उनके लिए कुछ करना चाहिए.’’
हालांकि, सरकार ने अपना काम शुरू कर दिया है. एक सरकारी फार्म प्रोड्यूस ट्रेडर ‘राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ’ (NAFED) ने नासिक में अपनी खरीद गतिविधियां शुरू कर दी हैं.
इसके अलावा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी विधानसभा में घोषणा की कि उन्होंने नेफेड के जरिए एशिया के सबसे बड़े प्याज बाजार नासिक से सरप्लस प्याज खरीदना शुरू कर दिया है.
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‘किसानों को जीने दो’
कृष्णा डोंगरे के खेत में उनके पास उनकी मां मंडाबाई और पूरा परिवार बैठा था. ‘‘आज प्याज की कोई कीमत नहीं है. हम लेबर, ट्रांसपोर्ट और हाई-सीड फर्टीलाइजर पर काफी पैसा खर्च करते हैं, लेकिन कोई रिटर्न नहीं मिलता. हम क्या करे? क्या हमारे पास कोई विकल्प बचा है.’’ यह कहते-कहते उनकी मां रोने लगी.
मंडाबाई के लिए फसल अपने बच्चे से कम नहीं थी, जिसे उन्होंने बड़ी देखभाल से पाला था. उन्होंने कहा, ‘‘हम पर ध्यान कोई ध्यान नहीं दे रहा है. ऐसे में हम किसानों के पास आत्महत्या करने के अलावा क्या विकल्प बचा है.’’
सोमवार की ही दोपहर को नासिक के चंदवाड़ तालुका के एक किसान एकनाथ घुमरे 15 क्विंटल प्याज के साथ लासलगांव एपीएमसी बाजार में थे. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने सुबह ही 15 क्विंटल बेचा है और घर पर 15 क्विंटल प्याज और रखे हैं.
घुमरे ने कहा, ‘‘मुझे सिर्फ 650 रुपये प्रति क्विंटल मिला है. यह लगभग 29,000 रुपये बैठता है, लेकिन मैंने पहले ही अपनी फसल पर 50,000 रुपये खर्च कर दिए थे. हमें कम से कम 15,000- 2,000 रुपये प्रति क्विंटल मिलना चाहिए, नहीं तो हम नुकसान में रहेंगे. परिवहन लागत भी अधिक है, हम सरकार से हस्तक्षेप करने और मदद किए जाने की उम्मीद कर रहे हैं.’’
थोड़ा आगे नासिक के चंदवाड तालुका के एक अन्य किसान भाऊसाहेब कोंडाजी डुकरे ने भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाई.
उन्होंने बताया, ‘‘मैंने अपने छह एकड़ के खेत में लगभग 650-700 क्विंटल प्याज उगाया. मैं अब तक लगभग 70,000 रुपये प्रति एकड़ खर्च कर चुका हूं और मुझे मिला कितना है? औसतन 550 रुपये प्रति किलोग्राम! सरकार की तरफ से सिर्फ आश्वासन और वादे मिलते हैं. हमारी मदद के लिए कुछ नहीं किया जाता है.”
किसान ने सरकार के हस्तक्षेप के दावों पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, ‘‘अगर सरकार कहती है कि उसने फसल खरीदना शुरू कर दिया है, तो यह कहां है? महंगाई ज्यादा है, हम ज्यादा अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. हमें कम से कम 1,000 रुपए प्रति किलो का बेस प्राइस चाहिए. सरकार को हमें मुआवजा देना चाहिए.’’
बाजार के व्यापारी इस आकलन से सहमत थे. उन्होंने कहा, ‘‘उत्पादन लागत लगभग 1,100-1,200 रुपये प्रति क्विंटल है और किसानों को बहुत कम मिल रहा है.’’
कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव के कारण दिप्रिंट ने जिन किसानों से बात की, उन सभी ने प्याज के लिए न्यूनतम आधार मूल्य की जरूरत की बात कही.
मंडाबाई ने भी इसके लिए आग्रह करते हुए कहा, ‘‘हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य चाहिए. सरकार हमारी ओर कोई ध्यान नहीं देती है. अगर हमारे बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं तो बतौर माता-पिता हमें क्या करना चाहिए? किसानों को जीने दो.’’
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कीमतों में गिरावट की वजह क्या है ?
कारोबारियों और एपीएमसी प्रबंधन के मुताबिक तापमान में अचानक बदलाव और पड़ोसी देशों से आयात शुल्क में बढ़ोतरी प्याज की कीमतों में गिरावट के कुछ कारण हैं.
प्याज की खेती तीन मौसमों में की जाती है – खरीफ (जून-जुलाई में बोया जाता है और सितंबर-अक्टूबर में काटा जाता है), पछेती खरीफ (सितंबर-अक्टूबर में बोया जाता है और जनवरी-फरवरी में काटा जाता है) और रबी (दिसंबर-जनवरी में बोया जाता है और मार्च-अप्रैल में काटा जाता है).
लासलगांव के ई-व्यापारियों ने दिप्रिंट को समझाते हुए कहा कि खरीफ और पछेती खरीफ की फसलों में अधिक नमी होती है और इनकी शेल्फ लाइफ लगभग एक महीने की होती है, जबकि रबी की फसलों को छह महीने तक स्टोर किया जा सकता है.
किसान अपनी उपज बैचों में बेचते हैं. उन्होंने कहा कि खरीफ की फसल नवंबर-दिसंबर से शुरू होकर फरवरी तक बाजार में आती है, जबकि देर से खरीफ की फसल अप्रैल तक बाज़ार में रहती है और फिर रबी की फसल को मार्केट में लाया जाता है.
लासलगांव एपीएमसी बाजार में ‘जैन एक्सपोर्ट’ के व्यापारी और मालिक मनोज जैन ने कहा, इस बार तापमान के अचानक से बढ़ने के बाद किसानों ने अपनी खरीफ की फसल जल्दी काट ली. इसका नतीजा ये हुआ कि बाजार में प्याज की बंपर फसल आ गई.
जैन ने कहा, ‘‘लाल प्याज की क्वालिटी भी खराब होती है. रंग, त्वचा, आकार अच्छा नहीं होता है. यह कीमतों में गिरावट के लिए जिम्मेदार रही है.’’
गोखले इंस्टीट्यूट में राजनीति और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर संगीता श्रॉफ के मुताबिक, बंपर फसल के अलावा आने वाले दिनों में बारिश की संभावना भी किसानों को डरा रही है.
उन्होंने बताया, ‘‘वे मौसम से डरे हुए हैं और इसलिए जल्दी कटाई कर रहे हैं. इससे बाजार में प्याज का स्टॉक बढ़ गया है. क्योंकि उम्मीद है कि अगली फसल भी बाजार में आ जाएगी, इसलिए कीमतों में गिरावट आई है.’’
लासलगांव कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) के आंकड़ों के मुताबिक, सोमवार तक रोजाना औसतन बाजार में 35,000-40,000 क्विंटल प्याज आ रही है, जबकि पिछले हफ्ते 50,000 से 55,000 क्विंटल प्याज की आवक थी.
एपीएमसी के आंकड़ों के अनुसार – जिसकी प्रति दिप्रिंट के पास है – पिछले पांच सालों के दौरान, फरवरी 2022-23 में सबसे अधिक उत्पादन बाजार में लाया गया है. 2018-19 में 10 लाख क्विंटल प्याज बाजार में लाया गया था तो पिछले साल यह उत्पादन 8.97 लाख रहा, जबकि इस साल 11.64 लाख क्विंटल प्याज मार्किट में आ चुकी है.
2018-19 में कुल 64.34 लाख क्विंटल प्याज बाजार में लाया गया था, जबकि पिछले वित्त वर्ष (2021-22) में यह आंकड़ा पूरे साल के लिए 85.3 लाख क्विंटल था. इस वित्त वर्ष में फरवरी तक यह आंकड़ा 84.2 लाख क्विंटल को छू चुका है.
APMC बाजार के एक सदस्य ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया, ‘‘हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक उपज होगी, लेकिन कुछ हद तक सरकार के हस्तक्षेप और किसानों की अपनी उपज को बाजार में लाने की झिझक के कारण APMC में गिरावट देखी गई है.’’
लासलगांव को नासिक, अहमदनगर, धुले, जलगांव, नंदुरबार और औरंगाबाद से प्याज मिलता है. यहां से प्याज बांग्लादेश, श्रीलंका, सऊदी अरब, पाकिस्तान (दुबई के रास्ते) निर्यात किया जाता है.
उक्त एपीएमसी सदस्य ने कहा, ‘‘बांग्लादेश में उच्च आयात शुल्क भी चिंता का कारण है. उसके अलावा श्रीलंका और सऊदी अरब भी परेशानी का सबब बने हुए हैं. केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करने की जरूरत है ताकि हमारा निर्यात सामान्य हो सके.”
महाराष्ट्र का भारत के 25-26 मिलियन टन (MT) के वार्षिक प्याज उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें से 1.5-1.6 MT निर्यात किया जाता है. महाराष्ट्र के अलावा, मध्य प्रदेश (16-17 प्रतिशत), कर्नाटक (9-10 प्रतिशत), गुजरात (6-7 प्रतिशत), राजस्थान और बिहार (5-6 प्रतिशत) प्रमुख उत्पादक हैं.
श्रॉफ के मुताबिक, क्योंकि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने भी प्याज का उत्पादन शुरू कर दिया है, इसलिए महाराष्ट्र के प्याज का निर्यात प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा, ”हमें निर्यात के लिए पूर्वोत्तर जैसे नए क्षेत्रों की तलाश करनी चाहिए. सरकार को और अधिक बाजारों का विस्तार करना होगा.’’
सरकार का हस्तक्षेप
28 फरवरी को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा को बताया कि सरकार ने हस्तक्षेप किया है और नेफेड के जरिए खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
नेफेड ने विज्ञप्ति में कहा, ‘‘नेफेड ने जिले में सीमित केंद्र खोले हैं, जिनकी संख्या सोमवार तक बढ़ने की संभावना है. केंद्र सरकार के इस कदम से प्याज बाजार को स्थिरता मिलेगी. नेफेड ने बफर स्टॉकिंग के लिए अप्रैल से रबी प्याज की खरीद की भी योजना बनाई है. प्रमुख खरीद नासिक जिले में होनी है. किसानों से अनुरोध है कि इन केंद्रों पर बेहतर दर प्राप्त करने के लिए अपनी अच्छी गुणवत्ता और सूखे स्टॉक को उपार्जन केन्द्रों पर लाएं. भुगतान ऑनलाइन किया जाएगा.’’
जब दिप्रिंट ने नेफेड के व्यापारियों से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि 2 मार्च से खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
नेफेड की कृष्णधारा फार्मा निर्माता कंपनी के एक व्यापारी चंद्रशेखर शिंदे ने दिप्रिंट से कहा कि नेफेड आमतौर पर खरीफ सीजन में निकलने वाले लाल प्याज नहीं खरीदता है, लेकिन वे रबी सीजन से गुलाबी प्याज के थोक खरीदार होते हैं. नेफेड 45 मिमी से 65 मिमी तक के आकार वाले प्याज को लगभग 900 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदता है.
उन्होंने कहा, ”लेकिन इस बार कीमतों में गिरावट के चलते हमने लाल प्याज भी खरीदना शुरू कर दिया है.”
यह पूछे जाने पर कि किसानों को सीधे नेफेड में आने से क्या रोकता है, शिंदे ने समझाया, ‘‘वे इस बात से अनजान हैं कि हम नेफेड के माध्यम से खरीद कर रहे हैं. दरअसल वे इस बात से डरते हैं कि वहां उन्हें 10-12 दिनों की देरी से भुगतान मिलता है.’’
2 मार्च से अब तक शिंदे की कंपनी 1,140 क्विंटल प्याज की खरीद कर चुकी है, जो कि रोजाना 350 क्विंटल है.
लेकिन क्या नेफेड के हस्तक्षेप से किसानों को ज्यादा मदद मिलेगी? मनोज जैन के मुताबिक, ऐसा नहीं होगा. ‘‘नेफेड की एक सीमा है कि वे कितना खरीद सकते हैं. इसके बजाय, अगर सरकार एपीएमसी और खुले बाजारों के माध्यम से खरीद करती है, तो इसका किसानों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा.’’
क्या इस संकट का कोई और संभावित समाधान है? श्रॉफ के अनुसार, प्याज को डिहाइड्रेट करके रखना इसका एक संभावित जवाब हो सकता है. ‘‘हमें डिहाइड्रेट प्याज की मांग पैदा करने की जरूरत है ताकि वे अधिक समय तक चल सकें. सिर्फ सरकार द्वारा प्याज खरीदने से कुछ नहीं होगा क्योंकि वे वहां जाकर गोदाम में सड़ने लगेंगी. प्याज को डिहाइड्रेट करने के लिए सरकार के पास प्रोसेसिंग यूनिट होनी चाहिए.’’
(अनुवाद : संघप्रिया | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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