नई दिल्ली: असेम्बली चुनावों में छह महीने से भी कम बचे हैं और योगी आदित्यनाथ की सरकार को कोई अच्छी ख़बर नहीं मिली है, चूंकि उत्तर प्रदेश को सबसे ख़राब शासन वाले बड़े राज्य का दर्जा दिया गया है.
पब्लिक अफेयर्स के ताज़ा सूचकांक के अनुसार, जो बेंगलुरु स्थित थिंक-टैंक पब्लिक अफेयर्स सेंटर द्वारा तैयार किया गया, राज्यों के शासन का पैमाना होता है. उत्तर प्रदेश को उसके शासन की गुणवत्ता के लिए आख़िरी स्थान (18) मिला है.
ये सूचकांक तीन व्यापक फैक्टर्स- विकास, इक्विटी और स्थिरता का एक समग्र स्कोर होता है, जो 43 संकेतकों पर आधारित होता है.
केरल को एक बार फिर सबसे अच्छे शासन के लिए, पहला दर्जा दिया गया है. पांच साल पहले जब पीएसी ने सूचकांक प्रकाशित करना शुरू किया, तब से केरल इसी जगह पर बना हुआ है.
ख़राब शासन का घटनाक्रम
उत्तर प्रदेश हमेशा शासन तालिका में सबसे निचले स्थान पर नहीं रहा है. 2016 में, जब पीएसी ने अपनी रैंकिंग्स का पहला संस्करण जारी किया, तो उत्तर प्रदेश 12वें स्थान पर था (उस समय पीएसी ने तेलंगाना को विश्लेषण में शामिल नहीं किया था), और उसके अंक मध्य प्रदेश, असम, ओडिशा, झारखंड, और बिहार से बेहतर थे.
लेकिन 2017 में, राज्य की रैंकिंग फिसलकर 14वें स्थान पर आ गया, जिसे उसने 2018 में बरक़रार रखा. लेकिन 2019 में वो फिर फिसला, जब उसकी रैंक बस ओडिशा से आगे 17 पर आ गई.
उसके बाद से यूपी सबसे नीचे चल रहा है.
रैंकिंग ऐसे समय आई है जब सत्तारूढ़ बीजेपी ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में बदलाव आया है.
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इतना ख़राब क्यों?
पहली रिपोर्ट आने के बाद से पीएसी ने राज्यों को रैंकिंग देने की अपनी कार्य प्रणाली बदल ली है. 2016 में रिपोर्ट 10 विषयों पर आधारित थी, जो 68 संकेतकों से लिए गए थे, जो अब घटकर तीन ‘स्तंभों’ पर आ गई है, जो 43 संकेतकों पर आधारित होते हैं.
2016 में, उत्तर प्रदेश को वित्तीय प्रबंधन के मामले में पहला स्थान दिया गया था, जो इस पर आधारित था कि राज्य ने विकास पर (प्रति व्यक्ति) किस तरह ख़र्च किया, और वित्तीय घाटे को क़ाबू रखने में उसका वित्तीय प्रदर्शन कैसा रहा.
राज्य आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर, सामाजिक संरक्षण, न्याय के वितरण, पारदर्शिता व जवाबदेही और आर्थिक स्वतंत्रता आदि के मामले में भी शीर्ष 10 में था.
2019 के बाद से सूचकांक ज़्यादा व्यापक हो गया है, जो अब तीन व्यापक मानकों पर ज़ोर देता है- विकास, इक्विटी और स्थिरता.
इक्विटी और स्थिति दोनों मानदंडों पर इस साल उत्तर प्रदेश बड़े राज्यों में आख़िरी स्थान पर आया है. ये रैंकिंग्स उस डेटा पर आधारित है, जो राज्य और केंद्र सरकार नियमित अंतराल पर प्रकाशित करती हैं.
राज्यों के इक्विटी अंक पांच विषयों पर आधारित थे- आवाज़ और जवाबदेही (सामाजिक संरक्षण, कुपोषण, सत्ता में महिला प्रतिनिधित्व, वास्तविक मज़दूरी और स्लम आबादी); सरकार की प्रभावशीलता (शिशु मृत्यु दर, ग्रामीण क़र्ज़दारी, ग़रीबी); क़ानून का शासन (हत्याओं का प्रचलन, जेलों में बिना सजा के बंदी, एससी-एसटी, बच्चों और महिलाओं के साथ अपराध); विनियामक गुणवत्ता और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘बड़े राज्यों के वर्ग में इक्विटी पिलर के अंतर्गत, जो सूबा लगातार पूरे साल सबसे नीचे बना रहा है, वो है उत्तर प्रदेश. ये सूबा एसडीजीज़ (सतत विकास लक्ष्यों) के अंतर्गत सबसे नीचे, लैंगिक समानता में 5, अच्छे स्वास्थ्य व भलाई में 3, और घटी हुई असमानताओं में 10वें स्थान पर बना हुआ है’.
रिपोर्ट में उन विशिष्ट आंकड़ों के बारे में विस्तार से लिखा गया है, जो यूपी की रैंकिंग को नीचे खींच रहे हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘इन एसडीजीज़ के अलावा, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ओर से 2019 में जारी आंकड़ों के अनुसार, प्रति 10 लाख आबादी पर दहेज हत्या के मामले में भी उत्तर प्रदेश सबसे नीचे आता है (244 के राष्ट्रीय औसत के मुक़ाबले 2,410 मामले सामने आए)’. ‘एसटी के खिलाफ अपराध की दर भी राज्य में 63.6% दर्ज है. राज्य में शिशु मृत्यु दर भी ऊंची, 64% है; इसका कारण भी राज्य में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में ऊंची स्टंटिंग (46.3%), वेस्टिंग (17.9%), और कम वज़न (39.5%) को माना जाता है’.
स्थिरता के मानदंड पर स्वच्छ ऊर्जा, ठोस कचरा प्रबंधन और पर्यावरण प्रदूषण तथा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के आधार पर अंक दिए गए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘स्थिरता स्तंभ पर आख़िरी स्थान पर है उत्तर प्रदेश, जो एसडीजी 11 में नीचे से दूसरे स्थान पर है (स्थिर शहर और समुदाय), जो इसके प्रदर्शन को नीचे गिराने के लिए काफी है’.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि केवल एसडीजी 11 में ही इतनी क्षमता है कि वो राज्य के प्रदर्शन को काफी हद तक बदल सकती है.
इसमें कहा गया, ‘198 के वार्षिक पीएम10 स्तरों के साथ, वायु प्रदूषण से निपटने के उत्तर प्रदेश के प्रयास काफी चिंताजनक हैं’.
केवल विकास के मानदंड पर उत्तर प्रदेश, अपने पड़ोसी बिहार से थोड़ा बेहतर है. विकास काफी हद तक स्वास्थ्य, सफाई, वित्तीय प्रबंधन और इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा विकास पर सरकारी ख़र्च पर निर्भर करता है.
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