बेंगलुरु: कम से कम 30 रिटायर्ड भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों ने रविवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने 4 जून को चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ के मामले में निलंबित किए गए पांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का निलंबन रद्द करने की मांग की है. उस दिन हजारों लोग रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की आईपीएल जीत का जश्न मनाने जमा हुए थे.
8 जून की तारीख वाली इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि इन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को “बलि का बकरा” बना दिया गया, जबकि जिनकी लापरवाही से यह हादसा हुआ, वे बच निकले.
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व सीबीआई निदेशक डी.आर. कार्तिकेयन, कैबिनेट सचिवालय (रॉ) के पूर्व विशेष सचिव जी.बी.एस. सिद्धू, कैबिनेट सचिवालय (रॉ) के पूर्व सचिव सी.डी. सहाय, खुफिया ब्यूरो के पूर्व विशेष निदेशक बी.सी. नायक और असम, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी शामिल हैं.
कर्नाटक के पांच अधिकारियों, जिनमें बेंगलुरु शहर के पुलिस आयुक्त बी. दयानंद भी शामिल हैं, को ‘कर्तव्य में लापरवाही’ के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. इस भगदड़ में 11 लोगों की मौत हुई थी.
पत्र में लिखा है, “आपके शुरुआती बयान में आपने सही कहा था कि अचानक दो से तीन लाख लोगों की भीड़, जो केवल 35,000 लोगों की क्षमता वाले स्थान पर इकट्ठा हो गई, वही भगदड़ की वजह बनी. फिर भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को, जिनमें बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर भी हैं जिनकी सेवा और ईमानदारी का रिकॉर्ड बेदाग रहा है, निलंबित कर दिया गया.”
उन्होंने आगे लिखा, “उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया. आम धारणा है कि पुलिस अधिकारियों को बलि चढ़ाया गया, जबकि जिनकी जल्दबाज़ी, अति-उत्साह और स्पष्ट निर्णय न लेने की वजह से यह त्रासदी हुई, वे बच निकले.”
इस चिट्ठी ने निलंबित पुलिस अधिकारियों, खासकर दयानंद के समर्थन में बढ़ती आवाज़ों को और मज़बूती दी है.
1994 बैच के आईपीएस अधिकारी दयानंद को एक शांत स्वभाव वाले पुलिसवाले के तौर पर जाना जाता है, जिन्हें उनकी फोर्स का भी पूरा सम्मान मिलता है. इंटरनेट पर दयानंद की मेहनत और समर्पण की खूब तारीफ हो रही है, और नागरिक समाज लगातार इस आईपीएस अधिकारी के समर्थन में आवाज़ उठा रहा है और सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर उन्हें बहाल करने का दबाव बना रहा है.
दयानंद के निलंबन के एक दिन बाद, एक पुलिस कांस्टेबल को डॉ. भीमराव आंबेडकर की तस्वीर और काली पट्टी के साथ चलते हुए देखा गया, जो इस फैसले के खिलाफ विरोध का संकेत था.
कम से कम तीन पूर्व बेंगलुरु सिटी पुलिस कमिश्नर सरकार की आलोचना कर चुके हैं. उनका कहना है कि इस हादसे के लिए सिर्फ पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराना और बाकी सबको, खासकर राजनीतिक वर्ग को, पूरी तरह बरी कर देना गलत है.
एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “वह सबसे मेहनती अधिकारी हैं जिन्हें मैं जानता हूं. सरकार भी यह जानती है लेकिन खुद को बचाने के लिए उन्हें बलि का बकरा बना दिया.”
घटना के बाद कई चिट्ठियां और खुलासे सामने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि कई पुलिस अधिकारियों ने राज्य सरकार को आरसीबी की 18 साल में पहली आईपीएल जीत पर विजय जुलूस आयोजित करने को लेकर पहले ही चेतावनी दी थी.
इंडियन पुलिस फाउंडेशन, जो एक अखिल भारतीय बहुविषयक थिंक टैंक है और पुलिस सुधार पर काम करता है, ने सोमवार को कहा कि विस्तृत जांच पूरी होने से पहले पुलिस अधिकारियों को निलंबित करना “देशभर में पेशेवर पुलिसिंग समुदाय के बीच गंभीर चिंता का विषय बन गया है.”
फाउंडेशन ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करना अगर सिर्फ दिखावे के लिए किया गया तो यह “बलि का बकरा बनाने” जैसा लगेगा, न कि असली जवाबदेही, और इसका पूरे पुलिस बल पर निराशाजनक असर पड़ेगा.
अधिकारी ने CAT से संपर्क किया
इस भगदड़ में, जिसमें 11 लोगों की मौत हुई और दर्जनों लोग घायल हुए, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया: कमिश्नर बी. दयानंद; विकाश कुमार विकाश, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (वेस्ट); शेखर एच. टेक्कन्नावर, डीसीपी (सेंट्रल); सी. बालकृष्ण, एसीपी (कब्बन पार्क); और ए.के. गिरीश, कब्बन पार्क इंस्पेक्टर.
निलंबन पत्र में कहा गया कि पुलिस कमिश्नर का कार्यालय “आयोजकों को समय की कमी के कारण इतने बड़े कार्यक्रम की तैयारी न हो पाने की वजह से अनुमति अस्वीकार करने का लिखित जवाब देने में विफल रहा.”
सिद्धारमैया ने अपने राजनीतिक सचिव और सहयोगी के. गोविंदराज को भी हटा दिया और राज्य खुफिया प्रमुख हेमंत निंबालकर का तबादला कर दिया.
सोमवार को विकाश ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का रुख किया और निलंबन के खिलाफ अपील की.
नई कर्नाटक पुलिस महानिदेशक और महानिरीक्षक (डीजी और आईजीपी) एम.ए. सलीम के खिलाफ भी गुस्सा है क्योंकि उन्होंने निलंबनों के मामले में सरकार का विरोध नहीं किया.
एक अन्य पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,“डीजी और आईजीपी का पद एक पिता की तरह होता है. उनके पास सेवा बची है, लेकिन अब उन्हें इसे फोर्स के सम्मान के बिना पूरा करना होगा,”
कर्नाटक के रनबेन्नूर के रहने वाले दयानंद को 1998 में दक्षिण कन्नड़ जिले के पुत्तूर में एसीपी के रूप में तैनात किया गया था. बाद में वे दक्षिण कन्नड़, कोलार, चित्रदुर्ग, बेलगावी और विजयपुरा जैसे जिलों में पुलिस अधीक्षक के रूप में सेवाएं देते रहे, जो 2008 तक चला. इसके बाद उन्होंने मैसूरु और बेंगलुरु जैसे शहरों में विभिन्न पदों पर कार्य किया. वे राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले खुफिया प्रमुख भी रहे, और 2016 से 2023 तक इस पद पर रहे, जिसके बाद वे बेंगलुरु सिटी पुलिस कमिश्नर बने.
उन्होंने सिद्धारमैया के दो कार्यकालों के अलावा, एच.डी. कुमारस्वामी, बी.एस. येदियुरप्पा और बसवराज बोम्मई जैसे मुख्यमंत्रियों के अधीन खुफिया प्रमुख के रूप में सेवा दी.
तकनीक के प्रति अपने जुनून के लिए मशहूर दयानंद ने पुलिस अधिकारियों के लिए हमेशा बॉडी कैमरा पहनना अनिवार्य किया था.
हालांकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पहले पुलिस पर सरकार का पक्ष लेने और हिंदू कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया था, लेकिन विपक्ष के कई नेताओं ने दयानंद और अन्य निलंबित अधिकारियों का समर्थन किया है ताकि सिद्धारमैया को घेरा जा सके.
पूर्व बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा ने सोमवार को पत्रकारों से कहा, “आप पुलिस को निशाना बना रहे हैं. हमें लगा कि आपने (सिद्धारमैया) केवल जाति के आधार पर हिंदू समाज को तोड़ा, लेकिन हमें यह नहीं पता था कि आप पुलिस के भी खिलाफ हैं.”
उन्होंने सिद्धारमैया को “एंटी-पुलिस” कहते हुए कहा कि मुख्यमंत्री अपने करीबी लोगों को बचा रहे हैं और पुलिस के पीछे पड़ गए हैं. सिम्हा ने कहा, “हमारा पुलिस विभाग सबसे सक्षम में से एक है, आप उनका अपमान कर रहे हैं और उन्हें अयोग्य बता रहे हैं. असल में आप और आपकी सरकार अयोग्य हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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