बेंगलुरू: गद्दे-बिस्तर, जूते, कपड़े और स्कूली किताबें सब चीजें बारिश के पानी में भीग चुकी हैं और उन्हें सुखाने के लिए जहां-तहां फैलाकर रखा गया है. बेंगलुरू के बेलंदूर इलाके की शाऊल केरे नामक छोटी-सी बस्ती में एक घरेलू कामगार शकुंतला जमीन पर बिखरे चावल की ओर इशारा करती है, जिससे दुर्गंध उठ रही है. बाढ़ के कारण बर्बाद करीब छह किलो कच्चा चावल को परिवारों ने अभी ही जमीन पर फेंका है. उसने दिप्रिंट से कहा, ‘क्या आपके लिए इसे सूंघना संभव है? इससे बदबू आ रही है.’
एक हफ्ते पहले अचानक आई बाढ़ का पानी शकुंतला की झोंपड़ी में घुसने लगा. यह तेजी से झोपड़ी में भरने लगा, वह हाथ के इशारे से बताती है, उसके पैर, घुटनों, जांघों से लेकर अंत में उसके सीने तक पानी भर गया. कुल मिलाकर करीब 20 परिवारों वाला दिहाड़ी मजदूरों का समुदाय ऊंची इमारतों से घिरी जमीन पर बसी इस बस्ती में रहता है. जब बाढ़ आई तो वे अपने बच्चों और कुछ सामान को साथ लेकर महंगी कारों से भरी पार्किंग में शरण लेने के लिए भागे.
4 और 5 सितंबर की मध्यरात्रि में केवल 12 घंटों के भीतर शहर में 131.6 मिमी बारिश हुई, जिससे जल निकायों पर बने इस शहर में देखते ही देखते जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो गई और बंद पड़ी नालियों ने हालात और भयावह बना दिए.
शकुंतला के बच्चों ने देखा कि उनकी स्कूली किताबें पानी में तैर रही हैं. परिवार के पास मौजूद दाल-चावल आदि राशन और उनके कपड़े-लत्ते भी भीग गए. शकुंतला ने दिप्रिंट को बताया, ‘बाढ़ ने महीने के पहले दिन ही मेरे पति की सारी कमाई लील ली.’
पिछले सप्ताह अधिकांश समय तक बेंगलुरु का पूर्वी क्षेत्र, जिसमें येमलुर, रेनबो ड्राइव लेआउट, सनी ब्रूक्स लेआउट और मराठाहल्ली, तमाम सारे टेक पार्क आदि स्थित हैं, सड़कों और फ्लाईओवरों पर भरे पानी के बीच लोगों के यात्रा करने और बच्चों के स्कूल जाने का गवाह बना. ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट से नीचे उतरने के लिए लोग सीढ़ियों और सड़क पार करने के लिए नावों का इस्तेमाल कर रहे थे. दृश्य काफी हैरत में डालने वाले थे, बाढ़ में फंसे तकनीकी सीईओ ट्रैक्टरों के जरिये बाहर निकाले जा रहे थे.
दिप्रिंट ने रविवार को जब इन क्षेत्रों का दौरा किया, तो बादल छाए हुए थे, सड़कों पर भरा पानी सूख चुका था और यातायात बदस्तूर जारी था. आस-पड़ोस में प्रौद्योगिकी से जीवन को आसान बनाने के वादे नजर आ रहे थे. एक बड़े से साइनबोर्ड पर लिखा था, ‘भारत का सबसे बड़ा एआई सम्मेलन’ और दूसरे में लिखा था, ‘सबसे स्वच्छ सह-आवास की जगह.’
एक टेक पार्क के बाहर टेम्पर्ड ग्लास बेचने वाले असम निवासी 23 वर्षीय सैफुल इस्लाम ने दिप्रिंट से कहा, ‘फिलहाल तो समस्या सुलझ गई है. जब तक फिर से बारिश नहीं होती.’ इस्लाम ने अपने फोन पर 5 सितंबर की सुबह की बाढ़ के कई वीडियो और तस्वीरें खींच रखी हैं.
उसने मुस्कुराते हुए बताया, ‘मेरे दोस्त के पास पानी का टैंकर है, इसलिए मैं उस पर सवार हो गया और फिर उस दिन की तमाम तस्वीरें खींची. लोग हर तरफ पानी से घिरे नजर आ रहे थे.’ पुलिस ने सुबह नौ बजे तक उस सड़क पर बैरिकेडिंग कर दी थी, जहां सैफुल अपनी दुकान लगाता है. बेलंदूर झील की ओर इशारा करते हुए उसने बताया, ‘यही वह झील है, जहां से बहकर पानी इधर आ रहा था.’
जल शोधकर्ता और स्कॉलर एस. विश्वनाथ ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘हमें यह पता लगाने की जरूरत है कि बारिश में इतनी तीव्रता कैसे आ गई है. बारिश सीमित क्षेत्र में बेहद तीव्र गति के साथ होती है और कई दिनों तक जारी रहती है.’
उन्होंने कहा, ‘बेंगलुरु में अभी जितना शहरीकरण हुआ है, उससे कहीं अधिक आगे जारी रहेगा, और बारिश के दौरान राजकालुवे (शहर में बारिश के पानी के निकास स्थानों के लिए इस्तेमाल होना कन्नड़ शब्द) की क्षमता से अधिक जल प्रवाह होगा. ऐसे में हमें एक नया सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की जरूरत है.’
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कैसी है बेंगलुरु की जल निकासी व्यवस्था
करीब आधा किलोमीटर दूर बुरी तरह पानी में डूबे एक अन्य टेक पार्क इकोस्पेस के बाहर जेसीबी मशीनें खुदाई के काम में जुटी थीं. जमीन के अंदर डालने के लिए कंक्रीट के बड़े-बड़े रिंग तैयार किए जा रहे थे. इस साइट पर मौजूद एक सुपरवाइजर ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने इस आउटलेट को यहां के नाले से जोड़ने वाला एक नया नाला बनाने का फैसला किया है.’
शहर का नागरिक निकाय बृहत बेंगलुरु महानगर पालिक (बीबीएमपी) और शहर में बिजली आपूर्ति करने वाला बेसकॉम सभी इसकी निगरानी में लगे हैं.
शहर के वाटर एक्टिविस्ट कहते हैं कि बाढ़ आने के कई कारण रहे हैं, जिनमें क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, बुनियादी ढांचे, के अलावा बेंगलुरु की झीलों का कुप्रबंधन और सड़कों का डिजाइन पूरी तरह सही न होना आदि शामिल है.
बेंगलुरू के इंटरवेब पर रविवार सुबह 11 बजे ‘अंडरस्टैंडिंग राजकालुवेस’ पर एक वेबिनार शुरू हुआ, जो कि जलनिकासी के लिए ब्रिटिश काल के दौरान बनाए गए नाले हैं. एक नागरिक समूह फ्रेंड्स ऑफ लेक्स की तरफ से आयोजित वेबिनार के दौरान, एक पूर्व-सैन्य अधिकारी कैप्टन संतोष कुमार ने समझाया, ‘इन राजकालुवों को पानी को अगली झील तक पहुंचाने के लिए डिजाइन किया गया है, यहां से पानी आगे झील तक पहुंचना चाहिए. यह ठीक से काम करते रहे, इसके लिए नियमित तौर पर इनकी गाद निकालना आवश्यक है. क्षेत्र में इसकी क्षमता अपेक्षित स्तर पर नहीं थी जिसकी वजह से ही बाढ़ आ गई.’
कैप्टन संतोष कुमार ने 2021 में बेंगलुरु शहरी जिले के अनेकल क्षेत्र में अतिक्रमण साफ कराया था. वह इलेक्ट्रॉनिक सिटी और बेलंदूर के लोगों को जलापूर्ति के लिए बोरवेल के माध्यम से झीलों के तल से पानी की बेरोकटोक अवैध पंपिंग को लेकर खासे चिंतित थे.
विश्वनाथ ने दिप्रिंट को बताया कि केवल पुराने राजकालुवों और झीलों पर भरोसा करना ही काफी नहीं है क्योंकि उन्हें स्टोर्मवाटर मैनेजमेंट के लिहाज से नहीं बनाया गया था.
आगे उन्होंने कहा कि शहर की लैंडयूज योजना ने ही तमाम बड़ी टेक कंपनियों को यहां अपने दफ्तर बनाने के लिए आकृष्ट किया. उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि उन्होंने जानबूझकर निचले इलाकों पर कब्जा जमाया. वे वहां गए क्योंकि शहर को लेकर ऐसी कोई योजना नहीं है जो यह स्पष्ट करती हो कि, यहां तक झील की सीमाएं हैं, यहां राजकालुवे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इन साइटों की कोई जियो-टैगिंग या जियो-रेफरिंग नहीं है, इसलिए किसी आम नागरिक के लिए यह पता लगाना मुश्किल है कि क्या वे किसी तरह के कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. मेरे विचार से इसके लिए जितने नागरिक दोषी है, उतनी ही दोषी सरकार भी है.’
विश्वनाथ ने आपदा टालने के लिए दिप्रिंट को दो व्यावहारिक विकल्प बताए, यदि उन्हें अपनाया जाए. एक मेघा संदेश जैसी वेदर ऐप का उपयोग करना, जिसे कर्नाटक राज्य प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र ने भारतीय विज्ञान संस्थान के सहयोग से डेवलप किया है. इस ऐप पर बारिश, बाढ़, बिजली गिरने, तूफान आदि के बारे में अलर्ट करने वाली जानकारी लगातार अपडेट होती रहती है. उन्होंने कहा, ‘हम इस बारिश से उपजे संकट को फिर भूल जाएं, इससे पहले इस प्रोजक्ट को तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिए.’
उनके मुताबिक, दूसरा समाधान के-100 मैजेस्टिक से बेलंदूर ड्रेन नेटवर्क जैसे और अधिक नेटवर्क तैयार करना है. उन्होंने बताया, ‘यह परियोजना वास्तुकारों ने अपनाई थी और उन्होंने नाले में बहने वाले पूरे सीवेज को साफ करने की कोशिश की है. बारिश के दौरान, के-100 ने एक मॉडल स्टॉर्मवॉटर ड्रेन का काम किया. यह बेलंदूर से मील भर ही दूर है.’
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