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Friday, 22 November, 2024
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खालिस्तान आतंकवादियों से लेकर स्वर्ण मंदिर स्मारक तक, इनके पीछे है एक बड़ी सोशल मीडिया की लड़ाई

1955 में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या करने वाले दिलावर सिंह का एक चित्र इस सप्ताह स्वर्ण मंदिर के केंद्रीय सिख संग्रहालय में लगाया गया. इसके साथ ही टार्गेट ऑडियंस के लिए एक ट्वीट भी जारी किया गया.

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नई दिल्ली: सिक्का हवा में उछाला और फैसला दिलावर सिंह के पक्ष में आ गया. भाग्य ने उन्हें शहीद होने का अधिकार दिला दिया.

इस हफ्ते की शुरुआत में पंजाब पुलिस के सिपाही दिलावर सिंह का एक चित्र अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में केंद्रीय सिख संग्रहालय की दीवारों पर लगे कई खालिस्तान आतंकवादियों में शामिल हो गया. यह वही दिलावर सिंह है जिसने अगस्त 1955 में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी थी.

टार्गेट ऑडियंस का बड़ा हिस्सा यानी ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य जैसे देशों में लगभग 1 करोड़ 20 लाख पंजाबी, प्रवासी हत्यारों के इस स्मारक पर कभी नहीं जाएगा.

संग्रहालय और कई सिख धार्मिक संस्थानों को चलाने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने उनके लिए ट्विटर पर एक संदेश दिया: दिलावर सिंह ने ‘सिखों के खिलाफ किए गए अत्याचारों और घोर मानवाधिकार उल्लंघनों का अंत किया था.’


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खालिस्तान का सोशल मीडिया युद्ध

विदेशों में खालिस्तान अलगाववादियों ने मारे गए आतंकवादियों को लंबे समय तक याद किया है.

उदाहरण के लिए 2019 में संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने तलविंदर सिंह परमार को सम्मानित करते हुए एक विज्ञापन जारी किया. परमार 1985 में एयर इंडिया के एक विमान को बम विस्फोट से उड़ाने के लिए जिम्मेदार था, जिसमें 300 से अधिक लोग मारे गए. इनमें से अधिकांश भारतीय मूल के थे.

विज्ञापन को पहले ‘पंजाब को भारतीय कब्जे से मुक्त करने’ की मांग करने वाले एसएफजे द्वारा आयोजित ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ में साझा किया था.

कनाडा के लेखक-पत्रकार टेरी मिलेवस्की ने कहा है कि आतंकवादियों का सम्मान खालिस्तान के लिए साइबर युद्ध का एक ‘केंद्रीय’ हिस्सा है.

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) द्वारा संचालित खालिस्तान एक्सट्रीमिज्म मॉनिटर (केईएम) के अनुसार, ट्विटर खालिस्तान प्रचार का पसंदीदा हथियार रहा है.

दिप्रिंट के पास मौजूद रिकॉर्ड्स से मिली केईएम की रिपोर्ट के अनुसार ‘2020-21 के किसानों के विरोध प्रदर्शन, दिसंबर 2021 में लुधियाना की अदालत में विस्फोट और एसएफजे और अन्य खालिस्तानी तत्वों द्वारा धमकी की चेतावनी जैसी घटनाओं ने इस मंच पर बहुत लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा हैं.’

पिछले महीने जब खालिस्तानी झंडे हिमाचल प्रदेश विधानसभा के गेट से बंधे पाए गए, तो ट्विटर पर खालिस्तान से संबंधित लगभग 35,000 ट्वीट्स की बाढ़ आ गई. #खालिस्तान, #एसएफजे और #पंजाब जैसे हैशटैग सबसे लोकप्रिय थे.

यह दिसंबर 2021 में किसान विरोध और लुधियाना कोर्ट ब्लास्ट के दौरान खालिस्तान से संबंधित ट्वीट्स से काफी ज्यादा था, जिनकी संख्या लगभग 20,000 ट्वीट्स तक पहुंच गई थी.

केईएम की रिपोर्ट बताती है कि यह पता लगाना मुश्किल है कि इतने ट्वीट्स कहां से आ रहे हैं. ट्विटर की गोपनीयता नीतियों ने 76 प्रतिशत ट्वीट्स को भौगोलिक स्थिति के बारे में पता लगाना असंभव बना दिया. लेकिन जिन ट्वीट्स के बारे में पता चल पाया है उनमें से 6.36 प्रतिशत भारत से किए गए है जबकि 2.06 प्रतिशत पाकिस्तान से रहे.

खालिस्तान समर्थक प्रचार के कुछ मामलों में भारत सरकार ने कठोर कार्रवाई की है. अमृतसर संग्रहालय की आलोचना के बावजूद राज्य और केंद्र सरकार दोनों खालिस्तान आतंकवादियों के स्मारक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अनिच्छुक हैं.


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ऑनलाइन आलोचकों को चुप कराना

आईसीएम के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी ने कहा, ‘वास्तविक दुनिया के आतंकवादी समूहों की तरह, ऑनलाइन खालिस्तान नेटवर्क न केवल उनकी विचारधारा का प्रचार करते हैं, बल्कि आलोचकों को चुप कराने की कोशिश भी करते हैं.’ ‘ऐसी पोस्ट करने वाले यूजर्स के खिलाफ ‘अभद्र भाषा’ या ‘स्पैम’ के रूप में शिकायतें दर्ज की जाती हैं. ऐसे कुछ मामलों में अकाउंट को स्वचालित रूप से सस्पेंड किए जा सकते हैं.’

माइलवस्की ने ‘सस्पेंशन टीमों’ के बारे में बताते हुए कहा कि यह ट्विटर के सिस्टम पर हावी होने के लिए डिज़ाइन की गई सामूहिक शिकायतों को व्यवस्थित करता है.

उन्होंने एक सस्पेंड ‘टीम रियल किंग’ नामक मुंबई के एक ट्विटर अकाउंट का उदाहरण दिया, जिसने अपने ‘पीड़ितों’ के लिए सबूत पोस्ट किया था. ‘मामला संख्या #2748. ट्विटर ने अकाउंट को सस्पेंड कर दिया. कैटेगरी: इस्लामोफ़ोब, पिछले नवंबर में पोस्ट किए गए अकाउंट में एक ट्वीट था- ‘गुडबॉय @Puneet_Sahani’

यहां ‘पीड़ित’ न्यूयॉर्क स्थित सिख कार्यकर्ता पुनीत साहनी है.

साहनी सिख फॉर एनलाइटनमेंट वैल्यूज एसोसिएशन (सेवा) के नाम से जाने जाने वाले शोधकर्ताओं का एक छोटा ग्रुप चलाते हैं. यह खालिस्तान प्रचार को ऑनलाइन खारिज करने का दावा करता है.

साहनी ने कहा कि उनके अकाउंट को ट्विटर ने नवंबर में सस्पेंड कर दिया था, फिर जनवरी में बहाल कर दिया गया और मई में फिर से निलंबित कर दिया गया. उन्होंने दिप्रिंट के साथ तीन ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट साझा किए जिन्हें ‘अभद्र भाषा’ माना गया था. ट्वीट्स में भड़काऊ हिंदू विरोधी सामग्री के साथ भिंडरावाले के भाषण शामिल थे.

उन्होंने पूछा, ‘ये तीन ट्वीट बिल्कुल विनम्र नहीं हैं, लेकिन ये अभद्र भाषा कैसे हैं?’ साहनी ने कहा, ‘मैंने खालिस्तान के मिथकों को खत्म करने के लिए साहित्यिक और ऐतिहासिक सामग्री का हवाला दिया है और भिंडरावाले को ‘एक बड़े नरसंहारक ‘ के तौर पर पेश किया है, जो वह था.’

टेक पॉलिसी थिंक टैंक द डायलॉग में प्लेटफॉर्म रेगुलेशन की प्रोग्राम मैनेजर श्रुति श्रेया ने कहा कि आमतौर पर एक शिकायत अधिकारी होता है जो शिकायतों का सत्यापन करता है, लेकिन साथ ही कहा कि प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास रोजाना प्राप्त होने वाली शिकायतों की भारी संख्या से निपटने के लिए ‘पर्याप्त कार्यबल’ है.

साहनी का नाम सिख हलकों में जाना जाता है और उनकी टीम के काम की एसजीपीसी जैसी संस्थाओं ने आलोचना की है.

एसजीपीसी के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया: ‘हमें दुनिया भर के सिखों से पुनीत साहनी जैसे व्यक्तियों के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं, जो सोशल मीडिया पर सिख समुदाय को नीचा दिखाने और बदनाम करने के लिए जाने जाते हैं’. प्रवक्ता ने अपने दावों का समर्थन करने के लिए कोई विशेष उदाहरण नहीं दिए.

शमशेर सिंह जैसे खालिस्तान समर्थक शख्सियतों ने साहनी को ‘भाजपा की कठपुतली’ कहा, जो ‘खालिस्तान आंदोलन को संदर्भ से बाहर ले जाने’ के लिए जाने जाते हैं.


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ट्विटर पर ‘खालिस्तान के सैनिक’

भले ही ट्विटर ने खालिस्तान विरोधी हैंडल को ब्लॉक कर दिया हो, लेकिन कहा जाता है कि इस विचारधारा का समर्थन करने वाले हैंडल के खिलाफ इतनी तेजी से कार्रवाई नहीं की जाती है.

केईएम की हालिया रिपोर्ट में लगभग 10-15 महत्वपूर्ण खालिस्तान समर्थक हैंडल की सूची है, जिसे उन्होंने खालिस्तान पर मूल ट्वीट्स के भारी अनुपात के लिए जिम्मेदार पाया.

साहनी ने कहा, ‘आम तौर पर 8-10 सोर्स अकाउंट होते हैं जहां सभी संदेश तैयार किए जाते हैं. एक बार जब कोई संदेश या पोस्ट ऑनलाइन हो जाता है, तो इसे दोस्तों, अपने साथ जुड़े खातों और बॉट्स के एक बड़े नेटवर्क द्वारा प्रचारित किया जाता है, जो व्हाट्सएप या फेसबुक जैसे अन्य प्लेटफॉर्म पर फॉरवर्ड, रीट्वीट और शेयर करते हैं. और यह सब एक समन्वित तरीके से किया जाता है.’

दिप्रिंट ट्विटर हैंडल के पीछे के कुछ लोगों तक पहुंचा. इनमें से एक पंजाब के मुक्तसर साहिब के रहने वाले जसवीर सिंह हैं जिनके लगभग 11,600 ट्विटर फॉलोअर्स हैं. सिंह यूके स्थित पंजाबी चैनल, केटीवी न्यूज के साथ एक रिपोर्टर होने का दावा करते हैं. इस चैनल का प्रसारण लाइसेंस यूके ऑफिस ऑफ कम्युनिकेशंस ने कथित तौर पर खालिस्तानी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हिंसक कार्रवाई के लिए उकसाने के आरोप में अप्रैल में निलंबित कर दिया था.

सिंह के ट्विटर फीड पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि वह भी भिंडरांवाले जैसे सिख आतंकवादियों की प्रशंसा करने के एक पैटर्न पर काम कर रहे थे. 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए, उन्होंने #NeverForget1984 हैशटैग के साथ खालिस्तान के झंडे फहराते हुए एक काफिले का एक वीडियो ट्वीट किया और मारे गए आतंकवादियों को ‘शहीद’ बताया.

14 जून को, सिंह ने एसजीपीसी द्वारा दिलावर सिंह के चित्र के अनावरण का जश्न मनाने के लिए इंस्टाग्राम का सहारा लिया.

जसवीर सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी नज़र में दिलावर जी शहीद हैं.’

खालिस्तान सेंटर के कार्यक्रम निदेशक शमशेर सिंह को भी केईएम की रिपोर्ट में ‘सोर्स’ खाते के रूप में नामित किया गया था. यह एक संगठन है जो खुद को ‘खालिस्तान के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए गुरमत-संचालित नेतृत्व का समर्थन और काम करते है.

रिपोर्ट के निष्कर्षों के बारे में सूचित करते हुए, उन्होंने दिप्रिंट को बताया: ‘मुझे कुछ भी ‘कोऑर्डिनेट’ करने की जरूरत नहीं है. यूके और यूएस में बहुत सारे पंजाबी डायस्पोरा खालिस्तान विचारधारा में विश्वास करते हैं.’

1985 के एयर इंडिया बम विस्फोट पर अपने एक ट्वीट में उन्होंने आरोप लगाया कि भारत सरकार साजिश में शामिल थी. इस पर शमशेर सिंह ने कहा, ‘यह सिख समुदाय में एक खुला रहस्य है कि भारत सरकार ने एयर इंडिया में किए गए बम विस्फोट भूमिका निभाई थी. इसलिए उन्होंने ऐसा होने दिया. निश्चित रूप से यह एक थ्योरी है क्योंकि सिखों के पास अपनी जांच करने का साधन नहीं है.’

उन्होंने कहा कि, ‘सशस्त्र विद्रोह के बिना भारत से कोई आजादी नहीं मिल सकती है. क्योंकि भारत गैर-हिंदुओं को दबाने के लिए प्रतिबद्ध है.’

एयर इंडिया को बम विस्फोट की जांच के आधिकारिक कनाडाई आयोग ने हमले के लिए खालिस्तान आतंकवादियों को दोषी ठहराया और कहा कि देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियां उपलब्ध खुफिया जानकारी के आधार पर पर्याप्त कार्रवाई करने में विफल रही.

कनाडा के प्रधानमंत्री ने बाद में ‘कनाडा सरकार और सभी कनाडाई लोगों की ओर से 25 साल पहले की संस्थागत विफलताओं और उसके बाद पीड़ितों के परिवारों के इलाज के लिए माफी मांगी थी.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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