लखनऊ : उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक स्थानीय व्यवसायी की शिकायत पर डॉ कफील खान के खिलाफ एक नई एफआईआर दर्ज की है, जिसमें दावा किया उन्होंने “चार-पांच अज्ञात व्यक्तियों” को किसी से फोन पर “राज्य सरकार को उखाड़ फेंकने” और “दंगे भड़काने” के बारे में बात करते हुए सुना है, वे पूर्व में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज से जुड़े बाल रोग विशेषज्ञ खान द्वारा “गुप्त रूप से प्रकाशित” पुस्तक पर बातचीत के दौरान कह रहे थे.
एफआईआर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, जिसमें उन्हें और “चार-पांच अज्ञात व्यक्तियों” को आरोपी बनाया गया है, डॉ कफील खान ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को “बेतुका” बताया और दिप्रिंट को बताया कि उन्हें निशाना बनाने वाले लोग शायद उनके द्वारा लिखे गए एक पत्र के कारण भड़के होंगे, जिसमें उन्होंने ‘शाहरुख खान को उनकी फिल्म जवान में 2017 बीआरडी मेडिकल कॉलेज त्रासदी को दर्शाने के लिए अभिनेता को धन्यवाद दिया था.’
कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी के कारण अगस्त 2017 में 48 घंटों के भीतर सरकारी अस्पताल में एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम से पीड़ित कम से कम 63 बच्चों की मौत हो गई थी. बाद में पुलिस ने चिकित्सकीय लापरवाही के आरोप में डॉ खान के खिलाफ मामला दर्ज किया. उन्हें निलंबित कर दिया गया और 8 महीने जेल में बिताए गए, इससे पहले कि जब तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ये फैसला नहीं सुनाया कि इसे साबित करने के लिए “रिकॉर्ड के तौर पर कुछ नहीं” है कि वह चिकित्सीय लापरवाही के दोषी हैं.
हालांकि, 24 फरवरी, 2020 को राज्य सरकार ने उनके खिलाफ दोबारा जांच का आदेश दिया, जिसे उन्होंने अदालत में चुनौती दी है.
लखनऊ के व्यवसायी मनीष शुक्ला की शिकायत पर डॉ खान और अन्य के खिलाफ लखनऊ के कृष्णा नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में, पुलिस ने आईपीसी की धारा 143 (गैरकानूनी सभा), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी या मूल्यवान सुरक्षा की चीजें स्थानांतरित करने), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी), 465 (जालसाजी), और 471 (जाली दस्तावेज़ को असली के रूप में इस्तेमाल करने) के तहत मामला दर्ज किया है.
1 दिसंबर की एफआईआर में उनके खिलाफ आईपीसी की अन्य धाराएं लगाई गईं, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, जिसमें धारा 504 (शांति भंग करने के लिए उकसावा), 505 (सार्वजनिक शरारत पैदा करने वाले बयान), 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे वाले शब्द बोलना), 295 (पूजा स्थल/पवित्र वस्तु को अपवित्र करना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए दुर्भावनापूर्ण कार्य), और 153-बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक दावे) करना शामिल है.
डॉ खान के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर कि एफआईआर में उनके खिलाफ लगाए गए आरोप “बेतुके” थे, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण क्षेत्र) शशांक सिंह ने दिप्रिंट को बताया: “शिकायतकर्ता ने जो भी आरोप लगाया है, उस पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है.”
“शिकायतकर्ता ने कहा कि उसे मौके पर एक किताब मिली. एफआईआर उनके द्वारा बताए गए तथ्यों के आधार पर दर्ज की गई है और जांच के दौरान हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि तथ्य सही हैं या गलत. फिलहाल जांच बेहद शुरुआती चरण में है.”
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‘सरकार को बदनाम करने, दंगे भड़काने की साजिश’
अपनी शिकायत में, शुक्ला ने आरोप लगाया कि वह 1 दिसंबर को एलडीए कॉलोनी के पास थे, जब उन्होंने “चार-पांच लोगों को उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए और सरकार को उखाड़ फेंकने की बात करते हुए” सुना.
उन्होंने पुलिस को दी अपनी शिकायत में दावा किया है कि, “वे कह रहे थे कि डॉ. कफील खान ने गुप्त रूप से एक किताब प्रकाशित की है, जिसे पूरे राज्य में छिपाकर प्रसारित किया जा रहा है और उनके अपने लोग एक गुप्त साजिश के लिए धन जुटा रहे हैं.”
शुक्ला ने आरोप लगाया, ”इस किताब में डॉ कफील ने मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में शिशुओं की मौत के बारे में सच्चाई बताई है और (अज्ञात लोग) जितना हो सके, उतने लोगों के बीच (किताब के) गुप्त तौर से बांटने के बारे में बात करते हुए यह कहते हैं कि वे लोकसभा चुनाव से पहले, अपने समुदाय के सभी लोगों के बीच इस किताब की एक प्रति प्रसारित करने में व्यस्त हैं.”
एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता का दावा है कि उसने अज्ञात व्यक्तियों को यह कहते हुए सुना था: “किसी भी कीमत पर केंद्र में हिंदुओं को चाहने वाली सरकार को सत्ता में नहीं आना चाहिए और योगी सरकार को भी उखाड़ फेंकना होगा, भले ही इसके लिए दंगा भड़काना पड़े.”
एफआईआर में शुक्ला के हवाले से लिखा गया है, ”मुझे लगा कि डॉ कफील खान के लोग नापसंदगी और नफरत फैलाकर बड़ी संख्या में लोगों को सरकार के खिलाफ भड़का कर शांति भंग कर सकते हैं और वे राज्य में दंगे भड़का सकते हैं व वे आतंकवादी हो सकते हैं.”
शुक्ला ने अपनी शिकायत में यह भी दावा किया कि उन्होंने अपने परिचितों को बुलाया और उनके साथ उन अज्ञात व्यक्तियों का आमना-सामना हुआ जो मौके से भाग गए. शुक्ला के मुताबिक, वह और उनके परिचितों ने इस डर से आरोपियों का पीछा नहीं किया कि उनके पास विस्फोटक हो सकते हैं.
“मैंने किताब को करीब से देखा और पढ़ा. इसमें लेखक या प्रकाशक का नाम नहीं था.” उन्होंने दावा किया कि ”मनगढ़ंत और झूठे दावों” वाली किताब को ”सरकार को बदनाम करने और नफरत फैलाने की पूर्व नियोजित साजिश” के हिस्से के तौर पर फैलाया जा रहा है.
शुक्ला ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में आरोप लगाया, ”इस बात की भी संभावना है कि इस साजिश में सभी राज्य विरोधी और राष्ट्र विरोधी तत्व शामिल हों.”
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‘बीआरडी का भूत बाहर आ गया, कोई है जो खुश नहीं’
इस बीच, डॉ कफील खान ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को लेकर बताई गई सामग्री पर सवाल उठाया है.
उन्होंने कहा, “एफआईआर में लिखा है कि शिकायतकर्ता ने अंधेरे में किसी को फोन पर बात करते हुए सुना और फिर भी वह किताब का नाम पढ़ सकता था. इसमें कहा गया है कि इस पर लेखक और प्रकाशक का नाम अंकित नहीं है.” उन्होंने दिप्रिंट को यह भी बताया कि 2021 में प्रकाशित उनकी किताब द गोरखपुर हॉस्पिटल ट्रेजडी, “अमेज़ॅन पर आसानी से उपलब्ध है.”
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह फिल्म जवान की रिलीज और शाहरुख खान को लिखे मेरे पत्र के कारण हुआ. जवान ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज त्रासदी की वास्तविकता को छुआ और बीआरडी का भूत बाहर आ गया. कोई है, जो खुश नहीं है और आप जानते हैं कि वह कौन है.”
यह स्पष्ट करने के लिए पूछे जाने पर कि वह किसकी बात कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोग खुलेआम घूम रहे हैं और उन्होंने अभिनेता को लिखे अपने पत्र में यही बात लिखा है.
“एफआईआर में जिक्र है कि पुस्तक को लोकसभा चुनाव से पहले प्रसारित किया जा रहा है और सरकार को उखाड़ फेंका जाएगा. जब मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था तो यूपी एसटीएफ ने मुझसे ऐसे ही सवाल पूछे थे. पुलिस ने मुझे तब बताया था कि उन्हें पता चला था कि मैं सरकार को अस्थिर करने के लिए जापान गया था.”
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मैंने उनसे पूछा कि वे जापान का उल्लेख क्यों कर रहे हैं, पाकिस्तान का क्यों नहीं. यह इस तथ्य के बावजूद कि मेरा पासपोर्ट मेरे पास नहीं है और मैं अदालत की अनुमति के बिना विदेश नहीं जा सकता. उन्होंने दावा किया कि मैंने लाखों लोगों को मारने के लिए एक पाउडर बनाया है और मैंने उन्हें बताया था कि मैं एक बाल रोग विशेषज्ञ हूं, वैज्ञानिक नहीं.”
डॉ खान ने कहा कि उनके खिलाफ नये आरोप “बेतुके” हैं क्योंकि वह अब यूपी में भी नहीं रह रहे हैं और सेवा से बर्खास्त होने के बाद से उनका परिवार राजस्थान चला गया है.
उन्हें 13 अगस्त, 2017 को बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल चिकित्सा विभाग से हटा दिया गया था – कथित तौर पर 48 घंटों के भीतर राज्य संचालित इस सुविधा केंद्र में 63 शिशुओं की मौत के एक दिन बाद.
बाद में उन्हें 22 अगस्त को निलंबित कर दिया गया और फिर उसी साल 3 सितंबर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
31 जुलाई, 2019 को, डॉ खान को दूसरी बार, बहराइच जिला अस्पताल में मरीजों का जबरन इलाज करने और सरकार की नीतियों की आलोचना करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था.
उन पर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया और उसी साल 13 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिया गया था.
हालांकि, बाद में उच्च न्यायालय ने इस मामले में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी.
जब खान ने अपने निलंबन आदेश के खिलाफ इस आधार पर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि 2 साल से अधिक समय के बाद भी उनके खिलाफ कोई जांच नहीं हुई है, तो अदालत ने 29 जुलाई, 2021 को पाया कि हालांकि खान को 2017 में निलंबित कर दिया गया था, लेकिन उनके खिलाफ जांच, जो कि याचिका दायर होने तक भी जारी थी, जिसमें सरकार से जवाब मांगा गया है.
अगस्त 2021 में, राज्य सरकार ने बताया कि उसने फरवरी 2020 में उनके खिलाफ आदेशित विभागीय जांच को रद्द कर दिया था.
9 सितंबर, 2021 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके दूसरे ‘निलंबन’ पर रोक लगा दी और राज्य सरकार को एक महीने के भीतर उनके निलंबन से संबंधित जांच पूरी करने का निर्देश दिया था.
डॉ खान के मुताबिक, 4 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी नौकरी से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाले मामले में यूपी सरकार को जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका दिया था.
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा जारी आदेश में न्यायमूर्ति राजन रॉय ने कहा कि “यदि सुनवाई की अगली तारीख से पहले जवाबकर्ता हलफनामा दायर नहीं करते तो अदालत याचिका सही मानते हुए मामले की सुनवाई और निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ेगी.”
अब इस मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी में होगी.
डॉ खान ने कहा: “हर व्यक्ति को अपनी रोजी-रोटी कमानी होती है और इसलिए, मैंने चेन्नई में नौकरी कर ली और यहां प्रैक्टिस कर रहा हूं, जबकि मेरा परिवार जयपुर में है. मेरे बच्चे बड़े हो रहे हैं और वे गूगल पर आसानी से देख सकते हैं कि मेरे साथ क्या हुआ. योगी सरकार ने मुझे जो सबसे बड़ा दर्द दिया है, वह है यह कि मुझे मेरे बच्चों से दूर करने का.”
“क्या आपने मुझे कोई राजनीतिक बयान देते देखा है? आपने मुझे बच्चों की कुछ बीमारियों के इलाज के बारे में वीडियो अपलोड करते हुए देखा होगा, लेकिन पिछले कुछ महीनों से मैं लगभग अनुपस्थित हूं. मैं किसी भी राजनीतिक चीज़ से दूरी रखता हूं. जब उन्होंने मेरे खिलाफ एनएसए लगाया, तो मैंने भारत की अखंडता और एकता के बारे में भाषण दिया, लेकिन इस बार, मैं यूपी में भी नहीं हूं.”
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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