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मंगलवार, 13 मई, 2025
होमदेशभुज में संघर्ष ने 1971 की यादें ताज़ा की, जब सैकड़ों महिलाओं ने अपने हाथों से IAF रनवे की मरम्मत की थी

भुज में संघर्ष ने 1971 की यादें ताज़ा की, जब सैकड़ों महिलाओं ने अपने हाथों से IAF रनवे की मरम्मत की थी

स्थानीय लोगों, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं थीं, उनको पाकिस्तान द्वारा क्षतिग्रस्त रनवे की मरम्मत करते हुए पहले सायरन पर छिपने और दूसरे सायरन पर काम पर लौटने के लिए कहा गया. दुश्मन के विमानों की नज़रों से बचने के लिए उन्होंने हरी साड़ियां पहनी थीं.

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कच्छ: 80 साल की कानबाई शिवजी हिरानी यूट्यूब रील्स देख रही थीं, तभी उनकी नज़र एक वीडियो पर पड़ी, जिसमें बताया गया था कि पाकिस्तानी ड्रोन भुज में भारतीय हवाई क्षेत्र में घुस आए हैं. हिरानी को यह वीडियो उस समय की याद दिलाता है, जब वे पिछली बार अग्रिम मोर्चे पर थीं.

50 साल से ज़्यादा बीत गए हैं, लेकिन हिरानी को हर छोटी-बड़ी बात याद थी, जैसे कि कल की ही बात हो — सायरन, ब्लैकआउट और विस्फोट.

उन्होंने फोन उठाया और अपनी दोस्तों समुबेन विश्राम बांदेरी और शामभाई खोखानी को फोन किया. वह तीनों 1971 के युद्ध में ज़िंदा बची थीं, जब पाकिस्तानी जेट विमानों ने भुज हवाई पट्टी पर बमबारी की थी, जिससे यह इस्तेमाल के लायक नहीं रह गई थी.

माधापार गांव की यह युवतियां सैनिक तो नहीं थीं, लेकिन जब प्रशासन मदद मांगने आया, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के राज़ी हो गईं.

हिरानी ने मुस्कुराते हुए पूछा, पिछले हफ्ते तीनों महिलाएं फिर मिलीं — एक कप चाय पर. “अगर सरकार हमसे पूछेगी तो क्या तुम फिर से जाओगी?”

बंदेरी ने जवाब दिया, “मैं खुशी-खुशी जाऊंगी. और मैं युवा पीढ़ी को भी अपने साथ लाऊंगी.”

1971 में भुज हवाई पट्टी की मरम्मत करते स्थानीय ग्रामीण | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
1971 में भुज हवाई पट्टी की मरम्मत करते स्थानीय ग्रामीण | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

8 दिसंबर, 1971 की रात को पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) के एक स्क्वाड्रन ने गुजरात के भुज में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की हवाई पट्टी पर 64 बम गिराए थे. आठ विमान क्षतिग्रस्त हो गए और पूरा रनवे बेकार हो गया. शुरुआत में सरकार ने रनवे की मरम्मत के लिए एक ठेकेदार की सेवाएं लीं, लेकिन उसने कहा कि इसमें छह महीने लगेंगे.

हिरानी ने याद किया, “फिर हमारे कलेक्टर हमारे सरपंच के पास आए और पूछा कि क्या स्थानीय लोग मदद कर सकते हैं. हमारे सरपंच ने हमसे पूछा, और हमने कहा, ‘हम अपने देश के लिए सब कुछ करेंगे’.”

पहले दिन, लगभग 70-80 ग्रामीण आगे आए. दूसरे दिन, 300 से अधिक लोग आगे आए — जिनमें ज़्यादातर महिलाएं थीं. बंदेरी ने बताया, “हमने तीन दिनों तक सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक काम किया.”

उन्होंने आगे कहा, “बमबारी के कारण रनवे पर 22 से ज़्यादा गड्ढे हो गए थे. हमने अपने बच्चों को घर पर ही छोड़ दिया था. मेरे ससुराल वाले डरे हुए थे, लेकिन मेरे देश के लिए प्यार मेरी रगों में बह रहा था. मुझे किसी और चीज़ की परवाह नहीं थी — मैं बस अपने बलों के लिए काम पूरा करना चाहती थी.”

महिलाओं से कहा गया कि जब पहला सायरन बजे तो वह छिप जाएं और जब दूसरा सायरन बजे तो बाहर आकर काम पर लग जाएं. दुश्मन के विमानों की नज़रों से बचने के लिए उन्होंने हरे रंग की साड़ियां पहनी थीं. बंदेरी ने कहा, “हम थोड़े डरे हुए थे, लेकिन हम रुके नहीं.”

महिलाओं की मेहनत रंग लाई. 72 घंटों के भीतर रनवे बनकर तैयार हो गया. स्थानीय ग्रामीणों ने इसमें योगदान दिया और सरकार ने उन्हें 50,000 रुपये दिए, लेकिन उन्होंने इसे अपने पास रखने के बजाय गांव के प्रवेश द्वार पर पंचायत घर बनाने के लिए दान कर दिया.

उन्होंने इसका नाम वीरांगना भवन रखा.

आज, माधापार गांव के प्रवेश द्वार पर एक विशाल प्रतिकृति है, जिसमें इन महिलाओं को रनवे पर काम करते हुए, अपने नंगे हाथों से बम के गड्ढों को भरते हुए दिखाया गया है. प्रतिमा के आधार पर, गुजराती में सुनहरे अक्षरों में ‘वीरांगना स्मारक’ लिखा हुआ है.

यह इन महिलाओं के साहस की कहानी बयां करना है — उन महिलाओं की जिन्हें कभी लड़ने की ट्रेनिंग नहीं मिली थी, लेकिन जो तब सामने आईं जब देश को उनकी सबसे अधिक ज़रूरत थी.

माधापार गांव के प्रवेश द्वार पर बना ‘वीरांगना स्मारक’ | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
माधापार गांव के प्रवेश द्वार पर बना ‘वीरांगना स्मारक’ | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

हिरानी ने कहा, “अब हम में से बहुत से लोग ज़िंदा नहीं हैं, लेकिन बच्चे अभी भी उस युद्ध की कहानी सुनने के लिए हमारे पास आते हैं. यह नया ऑपरेशन, जिसे वह ऑपरेशन सिंदूर कह रहे हैं, इसने हमारी कहानियों को फिर से ज़िंदा कर दिया है.”

उदाहरण के लिए 12 साल के सागर दो दिनों में चार बार इन महिलाओं से मिलने आए. उन्होंने हर बार उनसे एक ही सवाल पूछा, “आपने कितने बम देखे? क्या मिसाइलें या ड्रोन थे? क्या 1971 में भी ब्लैकआउट ऐसे ही थे? आपने इतनी जल्दी रनवे कैसे बनाया?”

महिलाएं जवाब देने से कभी नहीं थकतीं. हिरानी ने कहा, “मैं उनके सभी सवालों का धैर्यपूर्वक जवाब देती हूं. हम युवा पीढ़ी को अपने देश से प्यार करना सिखाते हैं. अब यही हमारा कर्तव्य है.”

हिरानी के घर की सफेद दीवार प्रमाणपत्रों और पुरस्कारों से भरी हुई है. 80 साल की उम्र में, वह उन यादों को अगली पीढ़ी को एक-एक कहानी सुनाते हुए दे रही हैं.

उन्होंने कहा, “पहले का ब्लैकआउट बहुत खतरनाक था. पाकिस्तान बम छोड़कर हमारे सिर के ऊपर घूमता रहता था. जब सायरन बजता था तो हम झाड़ियों में छिप जाते थे. हम थोड़े डरे हुए होते थे, लेकिन यह हमें रोक नहीं पाया.”

बंदेरी ने याद किया, “जब कोई पाकिस्तानी विमान आता था, तो हमें छिपने के लिए सायरन बजाया जाता था. हम सभी ऐसा ही करते थे. हम अपनी जान जोखिम में डालकर भारत मां की रक्षा करने के लिए काम कर रहे थे.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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