नई दिल्ली: 47 साल के जय प्रकाश बुधवार को जब उत्तर प्रदेश के अपने गांव कमालपुर लौटे तो सब कुछ बदल चुका था. उनके पिता को लकवा मार गया था और उनकी मां, भाई और बहन की मौत हो चुकी थी. वह अब अपनी मातृभाषा भोजपुरी भी धाराप्रवाह नहीं बोल सकता था. प्रकाश दो दशक पहले अपने गरीब परिवार की मदद के लिए काम की तलाश में निकला था, लेकिन उसके बाद से वह घर नहीं लौटा था.
उसके रिश्तेदार उसे यहां-वहां तलाशते रहे. लेकिन वह कहीं नहीं मिला. उन्हें तो यह तक पता नहीं था कि वह कैसे अक्टूबर 2000 में जम्मू पहुंचा और किस आधार पर उसे बिना लाइसेंस के कथित तौर पर गोला-बारूद रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उसे इस विचाराधीन अपराध के लिए जमानत मिल सकती थी, लेकिन प्रकाश 22 सालों तक जेल में बंद रहा.
वह ‘मानसिक रूप से बीमार’ था, वह कभी ट्रायल के लिए नहीं आया. उसके लिए 30,000 रुपये का ज़मानत बांड देने वाला भी कोई नहीं था. उसे जहां कहीं भी डिटेंशन में रखा गया था, वहां अधिकारियों को उनका नाम भी नहीं पता था. इस वजह से उनके मामले को कुछ समय के लिए एक असामान्य नाम दिया गया: ‘राज्य बनाम व्यक्ति, जिसका फोटो फाइल पर लगी है, उसका नाम ज्ञात नहीं है.’
फिर अचानक से अगस्त में ‘भाग्य’ ने उनका साथ दिया. जय प्रकाश को उन विचाराधीन कैदियों की सूची में शामिल किया गया था जिन्हें भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर सरकार के ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में विशेष छूट दी गई थी.
तब उनके चचेरे भाई सुदामा प्रसाद को जम्मू के अम्फल्ला जिले में प्रकाश के होने की खबर मिली. इसके बाद प्रसाद ने जमानत राशि जमा कराई और जय प्रकाश को आखिरकार इस सोमवार को जमानत पर रिहा कर दिया गया. वह दो दिन पहले ही अपने गांव पहुंचा है.
सितंबर में प्रकाश ने अपने वकील इरफान खान के जरिए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर ‘बिना किसी कारण के अवैध हिरासत’ में रखने के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की. याचिका में कहा गया है कि उनके खिलाफ मामला ‘झूठा और ज्यादा गंभीर नहीं’ था.
हम यहां प्रकाश के दर्दनाक सफर को जानने की कोशिश कर रहे हैं और साथ ही यह भी पता लगा रहे कि उसके परिवार को उसके ठिकाने का पता लगाने में इतना समय क्यों लगा, जबकि उसकी पहचान हो गई थी.
‘लापता रिपोर्ट दर्ज कराई’
‘जय प्रकाश बचपन में एक अच्छे छात्र थे और अंग्रेजी भी पढ़-लिख सकते थे’ उनके चचेरे भाई सुदामा प्रसाद ने दिप्रिंट को बताया.
उन्होंने कहा, ‘वह अपने परिवार की खराब आर्थिक हालत के चलते घर छोड़कर गया था. उनका परिवार हमारे गांव के सबसे गरीब परिवारों में से एक है.’
गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी), जम्मू ने प्रकाश को अक्टूबर 2000 में आर्म्स एक्ट की धारा 3 और 25 का कथित रूप से उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इन दोनों ही मामलों में आरोपी को जमानत दी जा सकती है.
याचिका के अनुसार, पुलिस ने दावा किया कि गिरफ्तारी के समय उसके पास से 34 जिंदा एके-47 कारतूस बरामद किए गए थे.
इस आरोप को सुनकर प्रसाद का दिमाग चकरा गया. उनके अनुसार, यह अजीब लग रहा था कि प्रकाश का संबंध हथियारों से था. क्योंकि वह तो हर चीज से डर जाता था, ‘यहां तक कि तीन साल के बच्चे से भी’.
सिटी कोर्ट के जनवरी 2001 के एक आदेश में कहा गया कि जमानत याचिका दायर करने के लिए आरोपी की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ है. यही वह आदेश भी था जिसके कारण उनके मामले का अज्ञात नामकरण किया गया था.
2001 में ही सिटी कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट में जम्मू के सरकारी कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख (एचओडी) ने प्रकाश के ‘मानसिक रूप से बीमार’ बताया था.
लेकिन प्रकाश के घर कोई सूचना नहीं भेजी गई. रिट याचिका में प्रकाश के परिवार ने मामला शुरू होने से पहले ही स्थानीय पुलिस थाने में दर्ज कराई गई गुमशुदगी की रिपोर्ट का उल्लेख किया है.
प्रसाद ने कहा, ‘लापता व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज कराने से कुछ भी सामने नहीं आया. इतने सारे लोग गांव छोड़ देते हैं और वापस नहीं आते हैं. हमने सोचा शायद उसने भी ऐसा ही किया होगा.’
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‘2014 तक नाम और पता मालूम था’
दिप्रिंट से बात करते हुए प्रकाश के वकील इरफान खान ने कहा कि दोषी होने पर भी प्रकाश को कम से कम तीन साल की सजा हो सकती थी. लेकिन वह इतने सालों तक बिना ट्रायल के जेल में बंद रहा.’
याचिका में आरोप लगाया गया कि उनकी ‘अवैध हिरासत’ ‘अनुच्छेद 21(जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है’.
याचिका में लिखा है, ‘वह अब लगभग पागल है और लापरवाही के कारण बदतर स्थिति में रह रहा है … अवैध हिरासत के दौरान उसने अपनी मां और असली भाई को खो दिया और उसके बूढ़े पिता उसका इंतजार की कर रहे हैं.’ प्रकाश के चचेरे भाई ने दिप्रिंट को बताया कि इस दौरान प्रकाश की बहन की भी मौत हो गई थी.
खान ने कहा, ‘यह सवाल किया जाना चाहिए कि जब जेल अधिकारियों ने 2014 में उसका आधार कार्ड बनाया था, जिसमें उसने अपना नाम (जय प्रकाश), पिता का नाम (मुरली) और पता (कमलपुर, बनारस) दिया था, तो यह कवायद तब (जमानत पर रिहा करने के समय) क्यों नहीं की गई थी.’
रिट याचिका में कहा गया है कि 2014 में अम्फल्ला जिला जेल अधीक्षक (एसपी) ने आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी. उस समय प्रकाश ने अपना सही नाम, अपने पिता के नाम के साथ-साथ अपने गांव, तहसील, डाकघर और जिले का विवरण स्पष्ट रूप से बताया था. आधार डिपारटमेंट ने इस कार्ड को इसी पोस्टल एड्रेस पर भेजा था.
प्रसाद ने कहा कि उनके परिवार को आधार कार्ड तो मिल गया लेकिन उनके जेल में होने के कोई संकेत उन्हें नहीं मिले थे. उन्होंने पूछा, ‘जब कार्ड उनके पते पर भेजा गया तो परिवार को यह क्यों नहीं बताया गया कि वह जेल में है.’
याचिका में कहा गया, ‘यह प्रतिवादी संख्या चार (अम्फला जिला जेल एसपी) की ड्यूटी थी कि कम से कम एड्रेस के वेरिफिकेशन के लिए नंबर दो और तीन रेस्पोंडेंट (वरिष्ठ अधीक्षक, रेलवे पुलिस और स्टेशन हाउस अधिकारी, जीआरपी, जम्मू) को संदेश दिया जाता. लेकिन कुछ नहीं किया गया था.’
‘बहुत खेदजनक स्थिति’
रिट याचिका में जहां एक तरफ प्रकाश के खिलाफ आपराधिक आरोपों को रद्द करने का प्रयास किया गया है, वहीं दूसरी तरफ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के नागरिक सचिवालय को पुलिस और जेल अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के लिए कहा है.
एकल पीठ के न्यायाधीश संजय धर ने 19 सितंबर के अंतरिम आदेश में कहा, ‘रिट याचिका में लगाए गए आरोप अगर सही हैं तो ये मजिस्ट्रेट, पुलिस और जेल अधिकारियों के बीच बहुत ही खेदजनक स्थिति है.’
रिट याचिका के अनुसार, प्रकाश को उस समय गिरफ्तार किया गया जब पुलिस गश्त कर रही थी. उन्होंने देखा कि वह बिना जूतों के अपनी पैंट में एक पॉलीथिन बैग लिए घूम रहा है.
याचिका में आगे कहा गया है कि जांच के बाद, पुलिस ने जेएमआईसी (सिटी जज) की अदालत के समक्ष आरोप पत्र पेश किया कि वह ‘पागल लग रहा है’.
पहले उल्लेखित 2001 के अदालती आदेश ने उसे ‘विक्षिप्त दिमाग’ का पाया, जैसा कि आरोप पत्र में भी दावा किया गया था. उसे न्यायिक लॉकअप में भेज दिया गया और पुलिस को मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ), जम्मू द्वारा उसकी चिकित्सकीय जांच करने का निर्देश दिया गया था.
मई 2001 के एक आदेश के अनुसार, प्रकाश की दिमागी जांच के आधार पर सिटी जज ने कहा कि वह व्यक्ति पुरानी मानसिक बीमारी से पीड़ित है. उन्होंने पुलिस अधीक्षक, जिला जेल, जम्मू को उसके इलाज के लिए उसे भर्ती कराने का निर्देश दिया था. जज ने कोर्ट में रिकवरी रिपोर्ट पेश करने के लिए भी कहा था.
इस पर, एचसी ने नोट किया, ‘लगता है कि फाइल को मामले में कोई और आदेश पारित किए बिना और मामले में कोई जांच किए बिना विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा रिकॉर्ड में भेज दिया गया है.’
खान ने समझाया कि ‘रिकॉर्ड में भेजने’ का मतलब है कि मामले को ‘अस्थायी रूप से क्लोज’ कर दिया गया है.
हाईकोर्ट ने राज्य को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है. इस मामले में अगली सुनवाई 31 जनवरी 2023 को की जाएगी.
रिट याचिका में प्रतिवादी संख्या चार (एसपी, अम्फल्ला जिला जेल) की ओर से कथित लापरवाही को भी ध्यान में लाया गया है. इसमें कहा गया कि ‘उसके मौलिक अधिकारों के साथ खिलवाड़ करते हुए उसे सिर्फ खाना और रहने के लिए जगह दी गई.’
विचाराधीन कैदियों को रिहा करने का मोदी का आह्वान
देश भर की जेलों में बंद दो-तिहाई कैदियों को विचाराधीन कैदी माना गया. ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में, प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी शीघ्र रिहाई का आह्वान किया था क्योंकि वे कानूनी सहायता के बिना सालों से जेल में बंद थे.
रिट याचिका के अनुसार, प्रसाद को यूपी के धीना पुलिस स्टेशन से प्रकाश के जम्मू में बंद होने के बारे में पता चला था. जम्मू पुलिस ने पुलिस स्टेशन से संपर्क किया था क्योंकि वह उन विचाराधीन कैदियों की सूची में शामिल था जिन्हें विशेष छूट दी गई थी.
प्रसाद ने कहा कि तब वह जम्मू गए और अम्फल्ला जेल में उनसे मिले. उन्होंने बताया कि प्रकाश उन्हें देखकर काफी खुश थे. ‘उन्होंने पंजाबी में कहा, ‘मेरा भाई आ गया है’ और मुझे गले लगा लिया.’
प्रसाद के बांड प्रस्तुत करने के बाद, सिटी जज / न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMIC) ने सोमवार को अम्फल्ला जिला जेल के प्रभारी को जय प्रकाश को रिहा करने का निर्देश दिया और मानसिक रोगों का इलाज करने वाले अस्पताल में उसके इलाज का आदेश दिया. अदालत ने इसके साथ ही यह भी कहा कि जब वह अदालत के सामने पेश होने में सक्षम हो जाए, तो कोर्ट के समक्ष उसकी पेशी की जाए.
प्रकाश के लिए बीत चुके अपने उन 22 सालों को वापस पाना संभव नहीं होगा, भले ही गांव में उनका स्वागत माला और नए कपड़ों के साथ किया गया हो. उनके चचेरे भाई ने कहा कि उन्होंने भोजपुरी पर अपनी पकड़ खो दी है, लेकिन वह इसे बोलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है.
(अनुवादः संघप्रिया मौर्य)
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