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Saturday, 21 December, 2024
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मोदी सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे के बक्सर में, बीमार पड़ी है स्वास्थ्य व्यवस्था

सेंटर परिसर में सुअरों और एक गार्ड के अलावा कोई नजर नहीं आता है. इसके मुख्य गेट पर पड़े कूड़े और प्लास्टिक के ढेर भारत के स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं.

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बक्सर: सुअरों का समूह, गंदगी का ढेर और पशुओं के गोबर से उठती बदबू ही केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे की संसदीय सीट बक्सर के वेलनेस सेंटर में आने-जाने वालों का स्वागत करती है. भले ही यह वेलनेस सेंटर हैं लेकिन अगर आप यहां थोड़ी देर गुजारेंगे तो आपको लगेगा इस सेंटर को ही इलाज की जरूरत है. यहां ढूंढने पर न तो डॉक्टर नजर आते हैं और न ही नर्स. सेंटर पर मौजूद 66 वर्षीय हीरा लाल राम गार्ड पनियाली आंखों पर मफलर रगड़ते हुए कहते हैं, ‘मैडम! पिछले दिनों हमारी बहू जो पेट से थी, उसकी तबियत खराब होने पर उसे यहां लाए. सेंटर के डॉक्टरों ने कहा पटना ले जाना पड़ेगा. हम पटना भी गए लेकिन बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.’

चौबे ने इस सेंटर की शुरुआत तीन किश्तों में की थी. नवंबर 2017 में बिहार के विधानसभा सदस्य संजय कुमार तिवारी और अश्विनी चौबे ने मिलकर इसका उद्घाटन किया. सितंबर 2018 में अश्विनी चौबे और संजय कुमार तिवारी ने इसका शुभारंभ किया. मार्च 2019 में हेल्थ एटीएम, एम्बुलेंस व वॉटर एटीएम शुभारंभ मुख्य चिकित्सा अधिकारी आशुतोष कुमार सिंह और अश्विनी चौबे ने किया.


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बीते 30 दिसंबर को बक्सर सेंटर पर केवल हीरा लाल ही मौजूद थे. वो कहते हैं, ‘यहां अमूमन 5 गार्ड्स की ड्यूटी होती है जो सेंटर की पहली मंजिल के कमरों में रहते हैं. वहीं खाना बनाते हैं और वहीं सोते हैं.’ लेकिन 30 दिसंबर को बाकी गार्ड्स गायब थे. हीरा लाल ने सफाई दी कि वो मार्केट से सब्जियां खरीदने गए हैं.

सोमवार जैसे एक अति व्यस्त दिन के दौरान भी सेंटर परिसर में सुअरों और एक गार्ड के अलावा कोई नजर नहीं आता है. इसके मुख्य गेट पर पड़े कूड़े और प्लास्टिक के ढेर भारत के स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं. यहां न तो डॉक्टर हैं और ना ही मरीज़. केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री के संसदीय क्षेत्र के वेलनेस सेंटर की ये तस्वीर बिहार की नाजुक स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं. गौरतलब है कि पिछले साल मुजफ्फरनगर में चमकी बुखार से करीब 100 बच्चों को जान गई थी. जिले का सरकारी अस्पताल उनकी माओं की चीखों से भर गया था. लेकिन इसपर हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंत्री और नेता नींद की झपकियां लेते नजर आए थे. बिहार की राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए हेल्थ का बजट पिछले सालों की तुलना में बढ़ाकर 9,622.76 करोड़ रुपए किया था.

सेंटर में डॉक्टरों और नर्स की सूचि मांगने पर हीरा लाल दिवार पर लगे दो कागज दिखाते हुए कहते हैं कि इन्हीं पर नाम लिखा होता है कि किसकी ड्यूटी है. एक पर्चे पर तारीख वगैहर सब हट गया है लेकिन उसपर लिखे डॉक्टरों के नाम बताने पर वो कहते हैं कि 2018 के बाद इनमें से कई डॉक्टरों का तबादला हो चुका है. ये लिस्ट काफी पुरानी है. दूसरी लिस्ट की तारीख 30 जुलाई 2019 की है. प्रसूती विभाग से लेकर ओपीडी तक सब खाली थे. बिल्डिंग इतनी खाली पड़ी थी कि खुद की आवाज ही वापस लौट रही थी.

इस बिल्डिंग की दूसरी तरफ पोस्टमार्टम के लिए कुछ साल पहले नई बिल्डिंग बनाई गई थी लेकिन इस बिल्डिंग के आस-पास भी सुअरों का बसेरा बन गया है. जहां पोस्टमार्टम होता है वो एक सड़े हुए कमरेनुमा जगह है. इस कमरे की सांकल खोलने पर एक जोड़ी सड़े हुए दस्ताने और कुछ भद्दी शक्ल के डिब्बे पड़े हुए दिखते हैं.

जब इसी सेंटर को लेकर अश्विनी चौबे पर हुआ केस 

2018 में ये सेंटर उस वक्त राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया था जब सांसद अश्विनी चौबे पर डिस्ट्रिक कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. खुद अश्निनी चौबे को कहना पड़ा था कि ऐसा देश में पहली बार हुआ है जब किसी केंद्रीय मंत्री पर एक वेलनेस सेंटर को लेकर एफआईआर दर्ज हुई हो और ये बात प्रधानमंत्री मोदी तक भी पहुंच गई है.

मामला बक्सर की एक महिला किरण जैसवाल से जुड़ा था जिनका आरोप था कि उद्घाटन के ठीक एक दिन बाद उन्हें ये सेंटर बंद मिला. इसके बाद कोर्ट के आदेश पर सीजेएम शशिकांत चौधरी और तीन अन्य लोगों के खिलाफ धारा 417(धोखाधड़ी), 418 (जब किसी व्यक्ति के हित की रक्षा करने वाला ही उसे हानि पहुंचाने के मकसद से धोखाधड़ी करता है), 166 (लोकसेवक द्वारा किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने की मंशा से कानून का पालन ना करना) और 120बी (षड्यंत्र) के तहत मामला दर्ज किया गया था. अखबारों में सुर्खियां छपीं थी कि अगर इस केस में अश्विनी चौबे दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें 3 साल की जेल हो सकती है. इन खबरों पर चौबे ने सफाई दी थी कि वो इस तरह की हेडलाइन्स पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.

इस रिपोर्ट के दौरान उनके लिए मीडिया देख रहे पंकज से फोन, मेल और मैसेज्स के जरिए चौबे से बात करने की कोशिश की गई. साथ ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी को फोन कर सेंटर की इस हालत पर टिप्पणी लेनी चाही तो उन्होंने बताया कि जवाब मेल पर ही दिया जाएगा. दोनों ही तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. इस रिपोर्ट को उनकी टिप्पणियां आने के बाद अपडेट किया जाएगा.

सांसद: आयुष्मान भारत की छवि खराब ना करें अधिकारी

केस दर्ज होने के बाद पटना में हुए एक समारोह के दौरान चौबे ने अधिकारियों को चेताया भी था कि आयुष्मान भारत योजना की छवि खराब करने की कोशिश ना करें.

बक्सर का ये वेलनेस सेंटर आयुष्मान भारत योजना के तहत देश में खुले वाले 150,000 सेंटरों में से एक है. इन सेंटरो को उद्देश्य 550 मिलियन लोगों को फायदा पहुंचाना है. बताया गया था कि ये सेंटर चौबीस घंटे काम करेंगे. इनपर लोग किसी स्पेशलिस्ट से भी सलाह से सकेंगे. इसके साथ ही यहां प्रसूती, दंत चिकित्सा, मुधमेह, कई प्रकार के कैंसर की जांच व योग सिखाने की भी बात कही गई थी. बकौल अश्निनी चौबे, इन सेंटरो में एक एमबीबीएस डॉक्टर, एक स्टाफ नर्स, दो एएनएम नर्स, एक लैब टेक्नीशियन, एक फार्मासिस्ट, एक डाटा एंट्री ऑपरेटर ऑफिसर भी मौजूद रहेंगे.


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ये बात भी गौर करने लायक है कि इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2018-2019 में बिहार आयुष्मान भारत के तहत मिलने वाले केंद्रीय फंड (88.5 करोड़ रुपए) का तीसरा हिस्सा भी खर्च नहीं कर पाया.

बक्सर के सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व में संघ और एबीवीपी से 12 साल जुड़े रहे रामजी इस वेलनेस सेंटर को लेकर दिप्रिंट को बताते हैं, ‘बीत सितंबर महीने में मैं इस मामले को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर भी गया था. उसके बाद अश्विनी चौबे ने बक्सर में जनता दरबार लगाया. वहां मैंने सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन को चालू करवाने का मुद्दा उठाया. उन्होंने आश्वासन दिया कि एक महीने में ही मशीन चालू हो जाएगी. मैं ढाई महीने बाद फिर उनसे मिलने गया तो उन्होंने मुझे देखते ही भाग-भाग चिल्लाना शुरू कर दिया. इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ.’

स्थानीय लोगों के मुताबिक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ रामजी भावी विधायक टिकटार्थी भी हैं. ऐसे में उनके सामाजिक कार्य कहीं ना कहीं राजनीतिक प्रेरित भी हैं लेकिन इसपर रामजी कहते हैं, ‘मुझे अश्विनी चौबे और भाजपा के लोग अब देशद्रोही बोलते हैं. अस्पताल या सेंटर का मामला उठाना देशद्रोह कबसे हो गया?’

सदर अस्पताल- मरीजों को दस्ताने भी खुद ही खरीदने पड़ते हैं

यूं तो सदर अस्पताल जिले का एकमात्र बड़ा सरकारी अस्पताल है लेकिन शहर की जनसंख्या के मुताबिक यहां उतनी भीड़ नहीं है. इसका कारण दिव्यांग पुर्नवास केंद्र, बक्सर के जिला सचिव प्रमोद केसरी बताते हैं, ‘हम लोग तो दिव्यांग हैं. हम कबसे मांग उठा रहे हैं कि हमें जांच व दवाइयां उपलब्ध कराई जाएं. दोपहर के एक बजे के बाद दवाई की विंडो बंद कर देते हैं. चोट लगने या निमोनिया के केसों में भी पटना रेफर कर देते हैं. अब लोग खुद ही प्राइवेट अस्पताल भागते हैं क्योंकि यहां आकर भी जाना वहीं है.’

अस्पताल के बोर्ड पर लगे 97 इंजेक्शन की लिस्ट में सिर्फ 26 पर ही टिक से निशान लगे हुए हैं. अस्पताल की खस्ता हालत पर स्थानीय युवक राकेश सिन्हा कहते हैं, ‘बक्सर में बंदरों का आतंक है लेकिन सदर अस्पताल में कई महीनों से रेबीज का इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं है. इसके लिए भी क्या गरीब आदमी पटना या आरा जाए?’ 2019 में इस अस्पताल में कुछ अतिरिक्त क्षमता के विस्तार कार्यों का उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री नीतिश कुमार करने आए थे. उनके अलावा बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, सुशील मोदी और अश्विनी चौबे भी मौजूद थे.

बता दें कि चुनाव से ठीक पहले सांसद अश्विनी चौबे ने अल्ट्रासाउंड मशीन उपलब्ध कराई थी. लेकिन तबसे इस मशीन को चालू ही नहीं किया गया. रामजी के मुताबिक प्राइवेट अस्पतालों की लॉबी के कारण उसे चालू नहीं करवाया जा रहा है. अस्पताल में मौजूद कुछ मरीजों का भी यही कहना था कि अगर यहां चालू हो गया तो बाहरी डॉक्टरों का काम कैसे चलेगा. लोगों का दावा है कि प्राइवेट अस्पतालों के दबाव के चलते बक्सर को इस सुविधा से वंचित रखा जा रहा है. एक परिसर में मौजूद बुजुर्ग कहते हैं, ‘ये क्या कोई म्यूजियम है जो मशीन लाकर ताले के भीतर रख दी?’

23 वर्षीय प्रभावती देवी को पहला बच्चा होने वाला था वो 28 दिसंबर से भर्ती थीं. तीन दिन बाद उन्हें कहा गया कि नॉर्मल डिलीवरी नहीं हो पाएगी. सिजेरियन के लिए बाहर जाना पड़ेगा. प्रसव पीड़ा से गुजर रही प्रभावती के परिवार वाले अब अगले दिन आरा जाने की तैयारियां करने लगे.

दिप्रिंट से बात करते हुए उनकी सास कहती हैं, ‘दास्ताने तक हम खरीद कर ला रहे हैं. पानी चढ़वाना है तो बाहर प्राइवेट में ले जा रहे हैं. फिर वापस अस्पताल.’ प्रसूती विभाग में 30 तारीख की रात को तीन महिलाएं भर्ती हुई थीं. 19 साल की सुगंधा के पिता ने स्थानीय विधायक से अस्पताल में फोन करवाया. वो कहते हैं, ‘ये तो चलो सरकारी है. जब तक प्राइवेट अस्पतालों में भी किसी प्रभावशाली व्यक्ति से फोन ना कराओ तो आपका बच्चा निमोनिय तक से मर सकता है. दूसरे राज्यों में अब कम ही सुनाई देता है कि प्रसव के दौरान गर्भवती महिला की मौत हुई? लेकिन हमारे यहां होती हैं.’

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