बेंगलुरू: एक छोटे से गैरेज के आकार का और क्रीम कलर की दीवारों वाला यह कमरा किसी सरकारी कार्यालय जैसा दिखता है. कागज़ी कार्रवाई के कागजों से भरी पड़ी अलमारियां, एक पुराना डेस्कटॉप कंप्यूटर, एक प्रिंटर, और अपने फोन पर टैप करने में व्यस्त पुरुषों का एक समूह.
लेकिन ये लोग कोई सरकारी अधिकारी नहीं हैं – बल्कि ये वे तकनीक-प्रेमी ऑटो चालक हैं, जो उबर, ओला और रैपिडो जैसे राइड – हेलिंग सेक्टर की विशालकाय कंपनियों के साथ अपने स्वयं के स्थानीय स्तर पर तैयार ऐप – जिसे ‘नम्मा यात्री’ (हमारा यात्री) कहा जाता है – के दम पर टक्कर देने की उम्मीद करते हैं.
बेंगलुरु के ऑटो रिक्शा चालक संघ (ऑटो रिक्शा ड्राइवर्स यूनियन-एआरडीयू) के महासचिव रुद्रमूर्ति ने कहा, ‘इस ऐप को 50,000 से अधिक बार डाउनलोड किया गया है और हमारे साथ पहले से ही लगभग 10,000 ड्राइवर जुड़े हैं.’ वह कमरे के स्थानीय विशेषज्ञ हैं जो साथी ड्राइवरों को ऐप में डेटा दर्ज करने और उनकी शंकाओं का समाधान करने में मदद करते हैं.
ऐप का बीटा संस्करण 1 नवंबर को ‘कर्नाटक दिवस’ के अवसर पर लॉन्च किया गया था, और ऑटो चालकों का दावा है कि वे एक दिन में लगभग 1,000 सवारियां बुक कर रहे हैं, जो वैसे तो कोई बड़ी संख्या नहीं है, लेकिन यह उस संख्या से बहुत अधिक है जिसके साथ उन्होंने शुरुआत की थी.
ऑटो ड्राइवरों का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को ‘वापस लाना’ है और कई अरब डॉलर के मूल्यांकन पर आधारित स्टार्टअप्स द्वारा उनकी कमाई से की जा रही ‘कटौती’ के बिना बेहतर कमाई करना है.
ऐसे ही एक ऑटो ड्राइवर गोविंदराज एच.जे. कहते हैं, ‘जब ओला और उबर जैसी कंपनियां आईं तो उन्होंने ऑटो स्टैंड्स की ख़ाक छानी और हमें मुफ्त मोबाइल, डेटा और प्रोत्साहन के वादे के जरिये अपने साथ जोड़ा… शुरुआत में, यह 10 सवारी पूरी करने पर 1,000 रुपये जितना अधिक था. लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते गए, इन कंपनियों ने सवारी से लिए वास्तविक किराए से भी अधिक राशि का कमीशन वसूलना शुरू कर दिया, जिससे न तो सवारियों और न ही चालकों को कोई लाभ हुआ.’ अब उम्मीद यह है कि बिना मध्यस्थ की दखलंदाजी वाले ऐप के माध्यम से, ड्राइवरों के साथ-साथ ग्राहकों को भी फायदा होगा.
हाल के दिनों में ऑटो रिक्शा वाला मुद्दा कर्नाटक में गरमागरम बहस का विषय रहा है. शोषण की हद तक बढ़े किराए और ‘काफी अधिक कमीशन शुल्क’ के आरोपों के बाद, राज्य सरकार ने पिछले महीने राइड-हेलिंग ऐप को ऑटो रिक्शा वाली सेवाओं की पेशकश करने से रोक दिया था. इसके बाद से, राज्य उच्च न्यायालय ने इस प्रतिबंध पर रोक तो लगा दी है, लेकिन इसने तब तक के लिए एग्रीगेटर्स द्वारा वसूले जाने वाले ‘सुविधा शुल्क’ की राशि को 10 प्रतिशत तक सीमित कर दिया है, जब तक कि राज्य सरकार और अन्य हितधारक ऐप-आधारित ऑटो के लिए किराए तय करने हेतु किसी फैसले पर नहीं पहुंच जाते.
इस बीच, ऑटो ड्राइवरों के संघ ने एशिया के प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में इस शहर की ख्याति में योगदान देने वाले मोबिलिटी स्टार्टअप का अनुकरण करते हुए – लेकिन एक अलग व्यवसाय मॉडल के साथ – सारे मामले को अपने हाथों में लेने का फैसला किया.
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कैसे विकसित हुआ ‘नम्मा यात्री’ ऐप?
अपने स्वयं के ऐप को ‘विकसित करने’ के लिए पिछले कई वर्षों से किये जा रहे व्यर्थ के प्रयास के बाद, ऑटो रिक्शा संघ ने केरल के कोच्चि में ड्राइवरों द्वारा संचालित ऐप-आधारित सवारी वाली सेवा से प्रेरणा ली.
बेंगलुरु में इसी तरह की विकेन्द्रीकृत ‘ओपन-मोबिलिटी’ सेवा का निर्माण करने के लिए, उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा नए-नए पेश किये गए ‘ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी)’ की ओर रुख किया. ओएनडीसी एक ऐसा समावेशी मंच है जो छोटे व्यवसायों को उन्नत तकनीक के साथ अवसर प्रदान करके ई-रिटेल में सभी के लिए समान अवसर प्रदान करना चाहता है.
नंदन नीलेकणी के नेतृत्व वाले फाउंडेशन फॉर इंटरऑपरेबिलिटी इन डिजिटल इकॉनमी (फिडे, पूर्व में बेकन फाउंडेशन) नामक गैर-लाभकारी फाउंडेशन, जो सार्वजनिक कल्याण के रूप में डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए एक ओपन सोर्स प्रोटोकॉल प्रदान करता है – के समर्थन से इस ऐप को बेंगलुरु की एक ऐसी कंपनी द्वारा विकसित किया गया था, जिसने अनुरोध किया कि इस खबर में उसका नाम जाहिर न किया जाए.
‘नम्मा यात्री’ के विकास में करीबी रूप से शामिल एक व्यक्ति ने कहा कि यह ऐप फिडे जैसे संगठनों द्वारा ‘गतिशीलता (मिबिलिटी) को डिजिटल सार्वजनिक कल्याण के रूप में तैयार करने – संक्षेप में कहें तो हर किसी के उपयोग के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण – के प्रयासों का हिस्सा है.
इसके अलावा, इस ऐप में इंटरऑपरेबिलिटी भी एक सुविधा के रूप में शामिल होगी, जिसके तहत परिवहन के अन्य साधनों – मेट्रो रेल, बसों और टैक्सियों सहित – को इस प्लेटफॉर्म का हिस्सा बनाने की संभावना होगी; इसका उद्देश्य एक छोर से दूसरे छोर तक गतिशीलता (एंड-टू-एंड मोबिलिटी) या ‘ट्रिप स्टिचिंग’ (सारे सफर को एक सूत्र में पिरोना) प्रदान करना है.
अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर, इस सॉफ्टवेयर के विकास में काफी नजदीकी से शामिल एक वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि यह ऐप ‘एकरूपिय बुनियादी ढांचे’ के तहत काम नहीं करेगा, जिसमें एक ही कंपनी प्लेटफॉर्म, ड्राइवरों और पूरे व्यवसाय को नियंत्रित करती है. इसके बजाय, यह ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ के हिस्से के रूप में एक ओपन मोबिलिटी नेटवर्क तैयार करेगा.
लेकिन इस ऐप की परिचालन लागत का भुगतान कौन करेगा? इसके जवाब में ऊपर उद्धृत स्रोत ने बताया कि सभी ड्राइवर इस सॉफ़्टवेयर का उपयोग करने के लिए मामूली राशि का भुगतान करेंगे, लेकिन यह हर राइड (सवारी) पर दिए जाने कमीशन के बजाय एक निश्चित दैनिक शुल्क होगा – जो कि अधिकांश एग्रीगेटर्स वैसे भी ड्राइवरों से वसूलते हैं.
लागत का एक बड़ा हिस्सा गूगल मैप्स के उपयोग में चला जाता है, जो प्रति 1000 सर्च पर $18 (लगभग 1,500 रुपये) तक की राशि वसूलता है.
इस स्रोत ने कहा, ‘अच्छी तकनीक अच्छे लोगों के साथ और अच्छे प्रीमियम पर आती है. हमारा लक्ष्य इसे किसी गरीब ऑटो चालक को स्थानांतरित करना नहीं है, बल्कि हम इसे एसएएस (सॉफ्टवेयर एज सर्विस) मॉडल के रूप में बना रहे हैं. हम उनसे प्रतिदिन 40-50 रुपये वसूलने का इरादा रखते हैं लेकिन यह कीमत वैज्ञानिक आधार पर तय नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘हम अभी भी इस ऐप का परीक्षण कर रहे हैं और यह विकसित होती तकनीक का एक अंश है.’
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‘अच्छे व्यवहार के लिए अंतर्निहित तंत्र’
‘नम्मा यात्री ‘ ऐप वर्तमान में एंड्राइड उपकरणों पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध है. इस ऐप के जरिए कोई भी व्यक्ति पिकअप (सवारी को बिठाने) और ड्रॉप (सवारी को उतारने) की जगह डालकर ऑटो रिक्शा बुक कर सकता है. यह ऐप 1.5 किमी के दायरे में लगभग 10 ड्राइवरों को सूचित करता है और सभी विकल्प ग्राहक या ‘राइडर’ के साथ साझा किए जाते हैं.
शहरी गतिशीलता के एक स्वतंत्र सलाहकार, सत्य अरिकुथराम ने कहा, ‘जिस तरह से यह ओपन मोबिलिटी (खुली गतिशीलता) काम करती है, मूल रूप से चालक ही नियंत्रण में होते हैं. पिक-अप चार्ज के लिए सरकार द्वारा विनियमित किराया 10 रुपये से अधिक है. ड्राइवर के पास पिक-अप चार्ज वाली लागत की भरपाई करने के लिए, ग्राहक से उसके द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर 10 रुपये से 30 रुपये के बीच चार्ज करने का विकल्प होगा.’
कर्नाटक में, ऑटो रिक्शा किरायों को छ: साल की अवधि के बाद साल 2020 में संशोधित करते हुए न्यूनतम 30 रुपये और इसके बाद 15 रुपये प्रति किमी कर दिया गया था. पहले का किराया न्यूनतम 25 रुपये और फिर 13 रुपये प्रति किमी था. इस बीच, ऑटो रिक्शा में प्रयुक्त होने वाले सीएनजी गैस की कीमत 2013-14 के करीब 54 रुपये से बढ़कर आज करीब 65 रुपये हो गई है.
हालांकि, इन दिशानिर्देशों के बावजूद, कर्नाटक और किराए के उचित निर्धारण के बीच एक उतार-चढ़ाव भरा समीकरण रहा है. प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित और ग्राहक-केंद्रित सेवाओं की शुरुआत ने ‘प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण’ की परिपाटी को जन्म दिया, जिसके तहत कंपनियां ग्राहकों को अपनी सेवाओं को छूट एवं प्रोत्साहनों के साथ प्रदान कराती थीं, और अपने प्रतिस्पर्धियों को मैदान से बाहर करने के लिए ड्राइवरों को भी पुरस्कृत किया करती थीं.
लेकिन समय के साथ, ड्राइवरों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन और ग्राहकों को मिलने वाली रियायती कीमतों को धीरे-धीरे कम कर दिया गया, जिससे ये दोनों इन कंपनियों पर निर्भर हो गए और उन्हें उसी तरह की सेवाओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा.
क्या ‘नम्मा यात्री’ भी इसी तरह की खामियों का शिकार हो सकता है? अरिकुथारम के मुताबिक, इसकी संभावना नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘इस ऐप में अच्छे व्यवहार के लिए एक इनबिल्ट मैकेनिज्म (अंतर्निहित तंत्र) है. वे इस ऐप का उपयोग इस जानकारी के साथ कर रहे होंगे कि वे ड्राइवरों के एक पूल (समुच्चय) के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. और अगर वे लगातार अधिक शुल्क (किराया) लेते हैं तो उनकी रेटिंग भी कम हो जाएगी.’
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे ‘डिजिटल स्वामित्व’ वाले ऐप, जिसमें ड्राइवर स्वयं एसएएस सुविधा के लिए भुगतान करेंगे, एक एग्रीगेटर की आवश्यकता को ख़त्म कर देंगे, और इन सेवाओं की अदायगी की लागत में कमी लाएंगे.‘
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(संपादनः ऋषभ राज)
(अनुवाद: रामलाल खन्ना )
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