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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'माफिया को खत्म करने का सिर्फ एक तरीका': एनकाउंटर के कई प्रशंसक तो हैं लेकिन सभी का समर्थन नहीं

‘माफिया को खत्म करने का सिर्फ एक तरीका’: एनकाउंटर के कई प्रशंसक तो हैं लेकिन सभी का समर्थन नहीं

अतीक अहमद और उसके भाई की तीन लोगों ने पुलिस हिरासत में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हालांकि, उमेश पाल हत्याकांड के 4 अन्य आरोपी कथित पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए हैं.

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प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉलैंड हॉल हॉस्टल के विशाल मैदान में इस सप्ताह सबसे ज्यादा चर्चित विषय पर चर्चा हुई, जिसका विषय था पिछले सप्ताह प्रयागराज में गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या.

कथित रूप से पत्रकारों रूप में उपस्थित तीन लोगों द्वारा पुलिस हिरासत में इन दोनों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

इससे दो दिन पहले, अहमद के एक बेटे असद और उसके एक संदिग्ध सहयोगी मोहम्मद गुलाम को यूपी पुलिस ने एक कथित मुठभेड़ में मार गिराया था. उमेश पाल की फरवरी में हुई हत्या मामले में ये सभी लोग संदिग्ध थे. उमेश 2005 में हुए विधायक राजू पाल की हत्या का गवाह था.

ऐसा माना जा रहा है कि अहमद भाइयों के हत्यारों का क्रिमिनल रिकॉर्ड हो सकता है, जबकि अतीक अहमद ने अपनी मृत्यु के कुछ दिनों पहले आशंका व्यक्त की थी कि उन्हें एक मुठभेड़ में मार दिया जाएगा. उमेश पाल मामले के आरोपी चार लोग अब तक कथित पुलिस मुठभेड़ों में मारे जा चुके हैं.

पुलिस हिरासत में अहमद की हत्या होने के बाद से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर बनी हुई है. जो अक्सर अपराध के खिलाफ अपने आक्रामक रुख के जाने जाते है.

हॉलैंड हॉल मैदान में हालांकि खुशी का माहौल था. लॉ के एक वरिष्ठ छात्र 25 वर्षीय अनंत प्रताप सिंह ने जोर देकर कहा कि “माफिया के अंत” की तारीफ की जानी चाहिए.

सिंह के इस बयान पर वहां मौजूद छात्रों ने खूब हूटिंग की और तालियां बजाई.

मूल रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले आने वाले, जो माफिया हिंसा का केंद्र है, सिंह ने कहा कि वह 2017 में प्रयागराज आए थे, उसी साल आदित्यनाथ ने पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी.

सिंह ने कहा, उन्होंने आदित्यनाथ सरकार की “ठोक दो नीति” के कारण “नए उत्तर प्रदेश” का जन्म देखा था.

यह 2017 के आदित्यनाथ के एक साक्षात्कार का संदर्भ है, जहां उन्होंने कहा था, “अगर आप अपराध करेंगे, तो ठोक देंगे (यदि आप अपराध करते हैं, तो आपको मार दिया जाएगा).”

पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, आदित्यनाथ के पद संभालने के बाद से यूपी में 10,900 एनकाउंटर हो चुके हैं. इनमें से 183 का अंत हत्याओं में हुआ.

हालांकि कुछ मुठभेड़ों की परिस्थितियों पर सवाल उठे हैं, लेकिन फिर भी आदित्यनाथ ने राज्य में कानून व्यवस्था में सुधार के लिए अपनी सरकार को श्रेय दिया है.

2018 में विधानसभा में विपक्ष के विरोध को देखते हुए उन्होंने कहा कि मुठभेड़ जारी रहेगी. इसी दौरान उन्होंने कहा था कि जो लोग बंदूक दिखाकर लोगों को डराने में यकीन रखते हैं, उन्हें बंदूक की भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए.

अतीक अहमद के गढ़ प्रयागराज में इस दृष्टिकोण के कई प्रशंसक हैं. लेकिन सभी इससे सहमत हो ऐसा भी नहीं है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक वकील, फरमान नकवी ने कहा, “जब सरकार यह मान लेती हैं कि वह किसी भी व्यक्ति को सजा दे सकती है और न्यायपालिका के बिना अंतिम निर्णय पारित कर सकती है तो यह कानून, व्यवस्था और शासन का पतन है.”


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‘योगी का हर काम सही’

जिला अदालत के बाहर दिप्रिंट से बात करने वाली 41 वर्षीय प्रांजल राय ने कहा, “योगी बाबा [सीएम आदित्यनाथ] सब कुछ सही ही करते हैं.”

उन्होंने कहा, “जब अपराधी हाथ से निकल जाएं तो बेहतर होगा कि उन्हें मार दिया जाए.”

अदालत के बाहर अपने वकील का इंतजार कर रहे रोहन कुमार ने कहा कि कथित माफिया ने उत्तर प्रदेश को ‘बीमार राज्य’ बना दिया है.

उन्होंने कहा, “माफिया और उनके द्वारा उत्पन्न बाधाओं के कारण निवेशक यहां नहीं आ रहे थे. हर नए निर्माण के लिए माफिया को भुगतान किया जाता था. यूपी कब तक पिछड़ा रहेगा? हमें प्रगति करनी है.”

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र सिंह ने कहा, “हमें एनकाउंटर का समर्थन करना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए माफिया का सफाया करने का यही एकमात्र तरीका है और इसलिए, हमें इसका सपोर्ट भी करना चाहिए.”

सिंह के लिए यह मामला व्यक्तिगत है.

सुल्तानपुर में अपने बचपन के बारे में बात करते हुए और गैंगस्टरों की कहानियों के साथ बड़े होने की बात बताते हुए, उन्होंने कहा कि गांव के लोग इतने डरे रहते थे कि वे अपनी मासिक कमाई का एक हिस्सा उन्हें दे देते थे.

उनके पिता, एक व्यवसायी के साथ-साथ ग्राम प्रधान भी है जो खुद भी “माफिया आतंक” के शिकार बने. उन्होंने कहा कि उन्हें भी माफिया के सदस्यों को मासिक भुगतान देने के लिए मजबूर किया गया था.

एक अन्य छात्र, प्रशांत कुमार ने कहा कि प्रयागराज में बिल्डरों के रूप में काम करने वाले उनके रिश्तेदारों को अहमद के गिरोह के सदस्यों द्वारा समान शोषण का सामना करना पड़ा.

उन्होंने कहा कि वे 10 फीसदी कमीशन दिए बिना न तो जमीन खरीद सकते हैं और न ही निर्माण पूरा कर सकते हैं.

कुमार ने आरोप लगाया कि सरकार में बैठे लोग भी अपराधियों को संरक्षण देते हैं. “ये अपराधी निर्वाचित नेता कैसे बन जाते हैं? उनकी मदद कौन करता है?” उन्होंने सवाल किया.

जबकि अतीक अहमद ने दर्जनों आपराधिक मामलों का सामना किया और उसके पहले हत्या के लिए जो उसने कथित तौर पर 1979 में 17 साल की उम्र में किया था – उसकी सजा पिछले महीने ही आई थी.

वह एक पूर्व सांसद था, जिसने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पांच बार जीत हासिल की थी. उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाने वाले, अहमद को उन कारकों में से एक माना जाता है, जिसके कारण मुलायम और उनके बेटे पूर्व सीएम अखिलेश यादव के बीच दरार पैदा हो गई थी.

एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, अहमद को सजा होने के बाद भी उसके अहंकार में कोई कमी नहीं आई थी.

“जब भी अतीक को [राजू पाल मामले में] अदालत में पेश किया जाता था, तो वह पुलिस अधिकारियों को गुस्से से देखता था.” अधिकारी ने दावा किया कि कई मौकों पर उसने अधिकारियों को चेतावनी भी दी थी कि वे अपने तौर-तरीके सुधारें वरना उन्हें इसके लिए परिणाम भुगतना पड़ेगा.

सिंह ने कहा कि “ठोक दो नीति” अब माफिया को उन्हीं के तरीकों से मज़ा चखा रही हैं.

उन्होंने कहा, “यह (एनकाउंटर संस्कृति) एक संदेश है जिसे सरकार भेजने की कोशिश कर रही है कि अगर तुम अपराध नहीं रोकोगे, तो इसी तरह मारे जाओगे.”

‘न्यायपालिका के धीमे पहिए’

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा कथित मुठभेड़ों की जय-जयकार करने का एक कारण भारत में न्यायिक कार्यवाही की “धीमी गति” है.

सितंबर 2021 में, भारत भर की अदालतों में लगभग 4.5 करोड़ मामले लंबित बताए गए.

सिंह ने कहा कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है. 21 साल के पोस्टग्रेजुएट छात्र आलोक मिश्रा ने भी उनका समर्थन किया है, जिन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक न्याय प्रणाली को दुरुस्त नहीं किया जाता, तब तक सरकार को “एनकाउंटर” को जारी रखना चाहिए.

मिश्रा ने कहा, “क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि अतीक 40 साल पहले अपराधी बन गया था? इन 40 सालों में वो विधायक और सांसद भी बना. उनके खिलाफ 130 से अधिक मामले दर्ज थे लेकिन फिर भी कोई न्याय नहीं हुआ.”

एडवोकेट नकवी ने मामलों की धीमी गति को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि एनकाउंटर इसका हल नहीं हैं. “अदालतें धीमी हैं, यह सच है लेकिन इसके पीछे कारण हैं क्योंकि अदालतों पर बहुत ज्यादा बोझ है.”

“कई मामलों में, राज्य को गवाह पेश करने में समय लगता है. लेकिन यह सरकार को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं देता है.”

नकवी ने कहा, “विचार अदालत प्रणाली को सुव्यवस्थित करना है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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